अनावश्यक गिरफ्तारी-बेकार की कानूनी परेशानी

Edited By ,Updated: 12 Oct, 2021 03:38 AM

unnecessary arrest  unnecessary legal trouble

गैर -कानूनी गिरफ्तारी तथा अनावश्यक गिरफ्तारी में अंतर होता है। जब किसी दोषी या संदिग्ध व्यक्ति को पुलिस ने काबू कर लिया हो मगर उसकी गिरफ्तारी बारे रिकार्ड में दर्ज न किया जाए तो उसे गैर-कानूनी गिरफ्तारी कहा जा सकता है। कोई शक नहीं कि पुलिस का...

गैर -कानूनी गिरफ्तारी तथा अनावश्यक गिरफ्तारी में अंतर होता है। जब किसी दोषी या संदिग्ध व्यक्ति को पुलिस ने काबू कर लिया हो मगर उसकी गिरफ्तारी बारे रिकार्ड में दर्ज न किया जाए तो उसे गैर-कानूनी गिरफ्तारी कहा जा सकता है। कोई शक नहीं कि पुलिस का राजनीतिकरण हो चुका है। इसलिए कई बार राजनीतिज्ञ अपनी किसी राजनीतिक दुश्मनी निकालने या कोई अन्य दबाव बनाने के लिए निर्दोष लोगों को गिरफ्तार करवा देते हैं। इसी तरह पुलिस द्वारा कई बार किसी लालच के कारण अथवा सीनियर अधिकारियों के इशारों पर भी किसी निर्दोष को हिरासत में लेना पड़ता है। 

कई बार कुछ संदिग्ध व्यक्तियों को भी पूछताछ के लिए थाने में बंद कर दिया जाता है। ऐसी सभी गिरफ्तारियों को गैर-कानूनी माना जाता है। गैर-कानूनी हिरासत से मुक्ति दिलाने के लिए अधिकतर प्रभावित व्यक्तियों द्वारा हाईकोर्ट में हैबियस कार्पस एडिट दायर करके ऐसे लोगों को रिहा करवाना पड़ता है मगर हर व्यक्ति हाईकोर्ट तक जाने की हैसियत नहीं रखता जिस कारण अक्सर अधिकतर लोग गैर-कानूनी हिरासत से रिहाई का मामला भाग्य पर छोड़ देते हैं। पुलिस के पास मुजरिमों या संदिग्ध व्यक्तियों को गिरफ्तार करने के बहुत से अधिकार हैं। जाब्ता फौजदारी कानून की धारा 151 के अंतर्गत जब किसी पुलिस अधिकारी को जानकारी मिले कि कोई व्यक्ति किसी काबिल-ए-कार्रवाई अपराध की योजना बना रहा है और उसे गिरफ्तार किए बिना अपराध होने से रोका नहीं जा सकता तो ऐसी हालत में पुलिस अधिकारी उस व्यक्ति को अदालत के आदेश के बिना तथा बिना वारंट गिरफ्तार कर सकता है। 

इसी तरह धारा 41 के अंतर्गत भी पुलिस अधिकारी बिना किसी अदालती आदेश या गिरफ्तारी वारंट के उस व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है जिसने पुलिस की उपस्थिति में कोई काबिल-ए-कार्रवाई अपराध किया हो या जिसके खिलाफ किसी ऐसे अपराध करने बारे शिकायत मिली हो अथवा पक्का शक हो कि उसने कोई ऐसा अपराध किया है जिसमें 7 वर्ष या अधिक सजा हो सकती है और पुलिस को इस बात का संतोष हो कि उस व्यक्ति को अपराध करने से रोकने हेतु, मुकद्दमे की सही जांच अथवा किए गए अपराध के सबूत नष्ट करने या उनके साथ छेड़छाड़ करने से रोकने के लिए उसकी गिरफ्तारी आवश्यक है। इसी तरह कुछ अन्य परिस्थितियों में भी पुलिस किसी व्यक्ति को बिना वारंट गिरफ्तार कर सकती है। जाहिर है कि पुलिस के पास किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए अथाह अधिकार हैं। 

गैर-कानूनी तथा अनावश्यक गिरफ्तारी के रुझान को देखते हुए करीब अढ़ाई दशक पहले वर्ष 1994 में जोगिन्द्र कुमार बनाम उत्तर प्रदेश सरकार केस में माननीय सुप्रीमकोर्ट द्वारा किसी दोषी की गिरफ्तारी के लिए दिए दिशा-निर्देशों के साथ-साथ यह भी स्पष्ट किया गया था कि कोई गिरफ्तारी  केवल इस आधार पर नहीं करनी चाहिए कि कानूनी तौर पर गिरफ्तारी की जा सकती है। गिरफ्तार करने के अधिकार तथा गिरफ्तार करने के औचित्य में अंतर है। गिरफ्तार करने के अधिकार के अतिरिक्त पुलिस अधिकारी गिरफ्तारी को उचित बताने में सक्षम होना चाहिए। गिरफ्तारी तथा पुलिस थाने में डाल देने से प्रभावी व्यक्ति के रुतबे तथा स्वाभिमान को अत्यंत नुक्सान पहुंच सकता है। किसी व्यक्ति के विरुद्ध सिर्फ आरोपों को आधार बनाकर सरसरी तौर पर गिरफ्तार नहीं कर लेना चाहिए। 

शायद इसीलिए माननीय सुप्रीमकोर्ट को एक ताजा फैसले (सिद्धार्थ बनाम उत्तर प्रदेश सरकार) में फिर यही दिशा-निर्देश दोहराने पड़े। अदालत द्वारा इस बात पर भी जोर दिया गया कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता संवैधानिक फतवे का एक महत्वपूर्ण पक्ष है। किसी मुकद्दमे की तफ्तीश के दौरान एक दोषी को गिरफ्तार करने की जरूरत तब है जब उसकी हिरासती पूछताछ जरूरी बन जाए या मामला किसी घिनौने अपराध बारे हो अथवा जहां दोषी द्वारा गवाहों को प्रभावित करने, सबूतों के साथ छेड़छाड़ करने या उसके फरार हो जाने की आशंका हो।
गिरफ्तारी केवल इसलिए नहीं करनी बनती कि कानूनी तौर पर गिरफ्तारी की जा सकती है। जब गिरफ्तारी करने के कोई ठोस कारण न हों और गिरफ्तारी के बिना भी मुकद्दमे की निॢवघ्न जांच हो सके तो फिर ऐसी गिरफ्तारी को अनावश्यक गिरफ्तारी कह सकते हैं। 

हाल ही में कुछ ताजा घटनाएं गैर-कानूनी तथा अनावश्यक गिरफ्तारी के रुझान को उजागर करती हैं। पंजाब पुलिस के पूर्व प्रमुख सुमेध सैनी अदालत के आदेश का पालन करते हुए 18 अगस्त को जब जांच में शामिल होने के लिए विजीलैंस ब्यूरो के कार्यालय पहुंचे तो उनको एक पुराने मुकद्दमे में दोषी बनाकर गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस अनुसार यह गिरफ्तारी गैर-कानूनी नहीं थी मगर हाईकोर्ट में चुनौती देने पर अदालत द्वारा अगले दिन रात तक सुनवाई के बाद इस गिरफ्तारी को गैर-कानूनी मानते हुए उनकी तुरन्त रिहाई के आदेश जारी किए गए। पिछले दिनों केंद्रीय मध्यम तथा लघु उद्योग मंत्री नारायण राणे को महाराष्ट्र पुलिस ने रत्नागिरी जिले के गोलावली क्षेत्र से उस समय गिरफ्तार कर लिया था जब वह जन आशीर्वाद यात्रा के दौरान उस क्षेत्र के दौरे पर थे। उनका दोष इतना था कि उन्होंने यह टिप्पणी की थी कि स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर राज्य के मुख्यमंत्री अपने भाषण के दौरान भूल गए थे कि देश की आजादी को कितने वर्ष हो गए हैं और यदि वह वहां होते तो ठाकरे के जोरदार चांटा मारते। 

उत्तर प्रदेश के एक सेवामुक्त पुलिस अधिकारी अमिताभ ठाकुर को एक यौन शोषण की शिकार पीड़ित महिला तथा उसके साथी को आत्महत्या के लिए उकसाने के अपराध में गिरफ्तार किया गया। इस गिरफ्तारी से कुछ दिन पूर्व ठाकुर ने घोषणा की थी कि वह आगामी विधानसभा चुनावों में मंत्री के मुकाबले उतरेगा। अमिताभ ठाकुर के विरुद्ध जिस जल्दबाजी से मुकद्दमा दायर करके गिरफ्तारी हुई है, उससे यह प्रभाव पड़ता है कि गिरफ्तारी के लिए राजनीतिक कारण भारी रहे हैं। अर्नब गोस्वामी के मामले की सुनवाई के दौरान माननीय सुप्रीमकोर्ट ने स्पष्ट किया था कि जब इस नागरिक को उसकी निजी स्वतंत्रता से मनमाने तरीकों से वंचित किया जा रहा हो तो उच्च अदालतों को अपने अधिकारों के इस्तेमाल से संकोच नहीं करना चाहिए। मगर इस सच्चाई से इंकार नहीं होना चाहिए कि प्रत्येक नागरिक अपने अधिकारों की रक्षा के लिए उच्च अदालतों तक पहुंच की क्षमता नहीं रखता। जरूरत है कि अदालतों के दिशा-निर्देशों का पालन आवश्यक बनाया जाए, उल्लंघन करने वाले अधिकारियों के विरुद्ध कड़ी कार्रवाई हो, उनकी जवाबदेही तय हो तथा प्रभावित व्यक्तियों को तुरन्त न्याय मिले, अन्यथा अनावश्यक या गैर-कानूनी गिरफ्तारियों का सिलसिला जारी रहेगा और सामान्य लोग परेशान होते रहेंगे। एम.पी. सिंह पाहवा

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!