Edited By Pardeep,Updated: 05 Aug, 2018 04:26 AM
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल में लगातार दूसरी बार रेपो रेट में वृद्धि की है और अब वह 6.5 प्रतिशत हो गई है। इस वृद्धि का अनुमान वित्तीय व आॢथक विशेषज्ञों को पहले से ही था और शेयर बाजार ने भी इस वृद्धि के अनुमान को...
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ने वर्तमान नरेन्द्र मोदी सरकार के कार्यकाल में लगातार दूसरी बार रेपो रेट में वृद्धि की है और अब वह 6.5 प्रतिशत हो गई है। इस वृद्धि का अनुमान वित्तीय व आॢथक विशेषज्ञों को पहले से ही था और शेयर बाजार ने भी इस वृद्धि के अनुमान को अपनी बढ़त में समाहित कर लिया था। यही कारण है कि कोई विशेष उथल-पुथल कैपिटल मार्कीट में अथवा करंसी मार्कीट में नहीं देखी गई और रुपया भी अपने दायरे में ही रहा।
रिजर्व बैंक के गवर्नर उॢजत पटेल ने अपने संबोधन में करंसी वार का जिक्र किया। उनके अनुसार ट्रेड को लेकर अमरीका की नीतियां विश्व को इस करंसी वार की ओर धकेल सकती हैं। यह एक बिल्कुल नए प्रकार का जोखिम है, जिसके बारे में अनुमान लगाना असंभव है। यही कारण है कि अपनी नीति में एक तरफ आऊटलुक तटस्थ रखते हुए भी रेपो रेट में वृद्धि की गई है। ऐसा उन संभावनाओं को देखते हुए किया गया है जिसका इशारा अमरीका के फैड चेयरमैन पॉवेल ने किया है। उनके अनुसार अमरीका में रेट की वृद्धि लगभग तय है। कई देश इस समय अपने आपको किसी बड़ी पूंजी निकासी के लिए तैयार कर रहे हैं।
ऐसा उस स्थिति में है जिसमें कि अमरीका अपनी ब्याज दरों में वृद्धि करेगा और अमरीकी डॉलर निवेश के लिए निरंतर आकर्षक हो सकता है। इसका स्पष्ट मतलब है कि चीन और अमरीका के आपसी व्यापारिक सम्बन्ध और खराब हो सकते हैं। भारत उस जोखिम से अछूता नहीं है। अमरीका ने अभी हाल में ही हमारे स्टील और एल्युमीनियम पर भी ड्यूटी बढ़ाई थी और भारत ने भी कैलीफोर्नियन बादाम इत्यादि को अपनी वृद्धि की सूची में शामिल किया था। यह बिल्कुल नई परिस्थिति है। गवर्नर महोदय ने करंसी वार का जिक्र करके सही ही किया है। यदि सिर्फ तेल की कीमतें एवं मुद्रास्फीति ही मुद्दा होती तो शायद यह वृद्धि न होती। यह अति सक्रियता है। इस अति सक्रियता का वाजिब कारण है चीन, जोकि काफी लम्बे समय से अपनी मुद्रा को जानबूझ कर कमजोर रखे हुए है। अमरीका द्वारा उठाए जा रहे कदम चीन को मुद्रा अवमूल्यन की ओर भी धकेल सकते हैं और मजबूती की ओर भी। ऐसी स्थिति में रुपए में कमजोरी बढ़ सकती है।
यह सब अचानक नहीं होगा। अमरीका चीन का इलाज धीरे-धीरे करेगा जैसे कि चीन ने धीरे-धीरे उसके बाजारों पर कब्जा जमाया है। रेपो रेट में वृद्धि का मुख्य ध्येय मांग में कमी ला कर मुद्रास्फीति को रोकना होता है। उसके लिए रुका जा सकता था क्योंकि मॉनसून बिल्कुल ठीक-ठाक है और कच्चा तेल भी अब धीरे-धीरे नीचे की ओर आ रहा है। अमरीका में कच्चे तेल का उत्पादन फिर से रिकॉर्ड स्तर पर है एवं ईरान से बातचीत को अमरीका उत्सुक नजर आ रहा है। हालांकि अभी इसमें काफी दिक्कतें हैं मगर वे हल हो भी सकती हैं।
इन सबके चलते डॉलर की नियंत्रण मजबूती ने मॉनिटरी पॉलिसी कमिटी और गवर्नर साहब को इस बात के लिए बाध्य किया कि वह रेट में वृद्धि करें। जी.एस.टी. के झटकों से उबरती हुई अर्थव्यवस्था को एक हल्का झटका दिया जाए। यह आवश्यक कड़वी दवाई है। यह वृद्धि की दो बूंदें हैं, जो करंसी वार की स्थिति में हमें पोलियोग्रस्त होने से बचाएंगी। यह जो बार-बार ऐसी घोषणाओं में अनिश्चितता बताई जाती है, वह सदैव होती है। इसमें कुछ नया नहीं होता कि मॉनसून पर नजर रखनी होगी। मुद्रास्फीति की स्थिति अनिश्चित है। ऐसा तो हमेशा से है और रहेगा। मगर जो सबसे नई अनिश्चितता है, वह है ‘ट्रम्प’। आज न मॉनसून, न तेल, न चुनाव महत्वपूर्ण रह गए हैं। आज तो सबसे महत्वपूर्ण ट्रम्प साहब का ट्वीट है। आज अनिश्चितता के वातावरण और उथल-पुथल का कारण अमरीका का बार-बार यू-टर्न लेना है। संरक्षणवाद की ओर बढ़ता अमरीका कब नया चीन बन जाए और चीन अपने सामान के लिए बाजार ढूंढता-ढूूंढता कब नया अमरीका बन जाए, कोई नहीं जानता। इसी जोखिम को ध्यान में रखकर रिजर्व बैंक ने सही कदम उठाया कि रेपो रेट में वृद्धि की।
चुनावों के सन्निकट होने के बावजूद यह वृद्धि रिजर्व बैंक की स्वायतत्ता की ओर भी इशारा करती है, जोकि बहुत अच्छा संकेत है। इस वृद्धि के परिणामस्वरूप वही होगा जो रेपो रेट की वृद्धि के साथ हमेशा होता है अर्थात ऋण लेना महंगा हो जाएगा, कर्ज की मासिक किस्तें बढ़ जाएंगी, मकानों की डिमांड में कमी आ सकती है। ऑटो सैक्टर में कमजोरी महसूस की जा सकती है। हां, डिपाजिट रेट बढ़ेंगे। कुछ बैंकों ने यह वृद्धि कर भी दी है और कुछ जल्द ही करेंगे। रेट वृद्धि के साथ अगर ग्रोथ कम होती है, डिमांड कम होती है तो अवश्य उसका नकारात्मक प्रभाव सकल घरेलू उत्पाद (जी.डी.पी.)पर पडऩा चाहिए। मगर सुखद स्थिति है कि आर.बी.आई. ने जी.डी.पी. के अनुमान में कोई कमी नहीं की है और वह अनुमान 7.4 फीसदी ही रखा गया है। यह हमारी अर्थव्यवस्था की अन्तॢनहित मजबूती का प्रतीक है।
तेल के बढ़ते मूल्य जब डॉलर के बढ़ते मूल्य से कदमताल मिलाते हैं तो अवश्य ही ङ्क्षचता होती है। इस बड़े जोखिम के प्रबंधन का एकमात्र उपाय विदेशी निवेश एवं एक्सपोर्ट्स की बढ़ती विदेशी आय पर विशेष ध्यान दिया जाना ही है, जो हमारी रफ्तार को डबल डिजिट विकास दर की ओर ले जा सकता है। भारत आज बहुत बड़े महत्वपूर्ण पड़ाव पर है। रिजर्व बैंक ने रेपो रेट में वृद्धि करके यह संकेत दिया है कि नियंत्रण गतिविधियों का मौद्रिक नीतियों पर प्रभाव अब बढ़ रहा है और इस चुनौती से निपटने के लिए हम कड़े फैसले लेने को तैयार हैं।
एक बात और विचारणीय है तथा वह यह है कि अगर अगले दो माह मॉनसून अपनी रफ्तार कायम रखता है और ईरान-अमरीका के मध्य कोई डील हो जाती है तो ऑयल के दाम स्थिर होते जाएंगे और कम भी हो सकते हैं। ट्रेड संबंधों में नए अध्याय जुड़ेंगे तो इस बात की भी संभावना है कि हमारे निर्यात में अप्रत्याशित उछाल आए। अमरीका के दबाव में चीन अपनी मुद्रा को जानबूझ कर कमजोर न कर पाए और उस पर अंकुश लगे तो भी यह स्थिति काफी लाभप्रद हो सकती है। जी.डी.पी. में आशा से अधिक कलैक्शन को भविष्य में नकारा नहीं जा सकता। रुपए की पूर्ण परिवर्तनीयता की ओर कुछ और कदम बढ़ सकते हैं। ये सब वे सकारात्मक आशाएं-अपेक्षाएं हैं, जो एक बार फिर से रेपो रेट कम करने की दिशा में देश को ले जा सकती हैं।-अनिल उपाध्याय