विरोधियों को ‘कुचलने’ के लिए पुलिस तथा सरकारी एजैंसियों का इस्तेमाल

Edited By ,Updated: 06 Feb, 2020 03:17 AM

use of police and government agencies to crush opponents

पुलिस तथा अन्य सरकारी एजैंसियों का इस्तेमाल अपने विरोधियों को कुचलने के लिए करना सरकारों तथा सत्ताधारी पार्टियों के लिए कोई असामान्य बात नहीं है। यह कोई न्यायोचित बात नहीं कि केंद्र में वर्तमान सरकार तथा भाजपा सरकारें सभी सीमाएं लांघ चुकी हैं।...

पुलिस तथा अन्य सरकारी एजैंसियों का इस्तेमाल अपने विरोधियों को कुचलने के लिए करना सरकारों तथा सत्ताधारी पार्टियों के लिए कोई असामान्य बात नहीं है। यह कोई न्यायोचित बात नहीं कि केंद्र में वर्तमान सरकार तथा भाजपा सरकारें सभी सीमाएं लांघ चुकी हैं। मनमानी करने का नवीनतम उदाहरण जिसने कि पूरे देश तथा विदेश को झकझोर दिया, वह यह है कि एक राजद्रोह का मामला कर्नाटक के  बीदर में एक दूर-दराज इलाके के स्कूल में खेले गए नाटक के लिए दर्ज किया गया है। 

स्कूल के प्रिंसिपल तथा 9 वर्षीय बालिका को हिरासत में लेकर पुलिस रिमांड पर भेजा गया है। उन पर देश के विरुद्ध राजद्रोह का आरोप लगाया गया है। इसके प्रावधान के तहत उनकी तत्काल गिरफ्तारी हो सकती है। ब्रिटिश साम्राज्य द्वारा बनाए गए प्राचीन एक्ट के प्रावधानों के तहत इसका इस्तेमाल स्वतंत्रता आंदोलन को कुचलने के लिए किया गया था। शब्दों द्वारा, भाषा द्वारा, लिखित रूप से, संकेतों से, प्रत्यक्ष प्रतिनिधित्व द्वारा कोई भी ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ आवाज बुलंद नहीं कर सकता था। इसके अलावा इस कानून के तहत न ही साम्राज्य के खिलाफ नफरत, अवमानना, भड़काना अथवा सरकार के खिलाफ असंतोष फैलाना आदि प्रयास  हो सकते हैं। इस कानून की अवमानना करने वालों को दंडित या फिर जिंदगी भर के लिए जेल में डाला जा सकता है। 

स्कूल प्रशासन को अवमानना के तहत उस पर दोष लगाना कोई बुरी बात नहीं थी मगर 9 वर्ष की आयु के कई बच्चों से वर्दीधारी पुलिस अधिकारियों द्वारा स्कूल परिसर में 5 घंटों तक पूछताछ की गई। उनसे रोजाना पूछताछ के दौरान यह सवाल किया गया कि किसने इस नाटक को लिखा था तथा उनके शिक्षकों ने उन्हें क्या करने को कहा था? 

बच्चों को तो यह भी पता नहीं कि आखिर देशद्रोह कानून होता क्या है
नाबालिग दोषी जिसमें दुष्कर्मी भी शामिल हैं, पुलिस द्वारा जांचे नहीं जाते और न ही उन्हें लगातार जेलों में रखा जाता है। मगर यहां तो कर्नाटक पुलिस ने सभी सीमाओं को लांघते हुए वर्दीधारी पुलिस अधिकारियों के डर को छोटे-छोटे बच्चों के मनों में डाल दिया है। ऐसे बच्चों को तो यह भी पता नहीं होगा कि आखिर देशद्रोह कानून होता क्या है। इस देश की विडम्बना देखिए कि हाल ही में ऐसी खबरें आई हैं कि गुजरात के स्कूली बच्चों को ये हिदायतें दी गई हैं कि वे सी.ए.ए. की प्रशंसा में एक पोस्टकार्ड लिखें। यह पोस्टकार्ड साफ-साफ लिखाई में होना चाहिए और इसे प्रधानमंत्री कार्यालय में भेजा जाना चाहिए! हालांकि ऐसी रिपोर्टों को सरकार द्वारा बाद में नकार दिया गया। बीदर के स्कूल में खेले गए नाटक में नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) के खिलाफ अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया गया था। इसके अलावा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ भी अपमानजनक शब्दों का इस्तेमाल किया गया था। इसी के चलते पुलिस ने छठी से 8वीं कक्षा के स्कूली छात्रों पर आतंक का डंडा चलाया जिनका अपराध केवल यह था कि उन्होंने सी.ए.ए. की एक नाटक में आलोचना की। 

अभिभावकों की अनुपस्थिति में बच्चों से पूछताछ 
गिरफ्तार की गई बच्ची की मां ने इस नाटक के एक डायलाग में एक संदर्भ शामिल किया है। अब वह बच्ची एक पड़ोसी की निगरानी में है क्योंकि वह देश के खिलाफ देशद्रोह के आरोप झेल रही है। वहीं अभिभावकों तथा सामाजिक कार्यकत्र्ताओं के कई संगठनों ने इस मुद्दे को उठाया है तथा बीदर पुलिस की कार्रवाई की जोरदार आलोचना की है। प्रशासन को लिखे एक खुले खत में इन संगठनों ने मामले को तत्काल ही वापस लेने की मांग की है। उन्होंने यह भी मांग की है कि बच्ची की माता तथा स्कूल के प्रिंसिपल को रिहा किया जाए। पत्र लिखने वाले समूह ने अपने आप को ‘शांति, न्याय तथा अनेकता के अभिभावक’ शीर्षक से संबोधित किया है और कहा है कि यह किशोर न्याय एक्ट (2015) का जबरदस्त उल्लंघन है। 

पुलिस ने लगातार स्कूली बच्चों के अभिभावकों की अनुपस्थिति में उनसे पूछताछ की है। उन्होंने पत्र में आरोप लगाया कि यह बीदर पुलिस का अमानवीय तथा गैर-कानूनी कृत्य है। पत्र में आगे लिखा गया है कि यदि यहां पर कोई ऐसी शंका है कि पुलिस विभाग का इस्तेमाल सत्ताधारी लोग एक हथियार के तौर पर कर रहे हैं तब इस मामले को तत्काल रूप से बंद कर दिया जाए। पुलिस राज्य सरकार के आदेशों के अंतर्गत कार्य कर रही है और सी.ए.ए. तथा एन.आर.सी. के खिलाफ आक्रोश को दबाने के लिए एक प्राचीन देशद्रोह कानून का इस्तेमाल कर रही है। हम नहीं चाहते कि हमारे बच्चे आतंक के साए के नीचे पले-बढ़ें। देशद्रोह के विचित्र आरोपों का यह नवीनतम मामला है जिसमें लेखक, फिल्म निर्माता, कवि, पत्रकार, राजनेता, सामाजिक कार्यकत्र्ता तथा बुद्धिजीवी शामिल हैं। कुछ माह पूर्व 49 प्रसिद्ध व्यक्तियों को राजद्रोह के लिए बुक किया गया था। इन विशिष्ट व्यक्तियों में इतिहासकार रामचंद्र गुहा, कोंकणासेन शर्मा, फिल्म मेकर मणि रत्नम तथा अपर्णा सेन शामिल थीं।-विपिन पब्बी 

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