Edited By ,Updated: 14 Dec, 2019 02:16 AM
महाराष्ट्र में 1972 में भीषण सूखे के दौरान दिवंगत विलास राव सालुनखे उर्फ पानी बाबा का सपना था कि सूखे के कारणों का पता लगाकर उससे निजात पाई जाए। इस तरह वह आम नागरिक के आर्थिक तथा सामाजिक हालातों को सुधारना चाहते थे। इसके लिए उनके दिमाग में पानी...
महाराष्ट्र में 1972 में भीषण सूखे के दौरान दिवंगत विलास राव सालुनखे उर्फ पानी बाबा का सपना था कि सूखे के कारणों का पता लगाकर उससे निजात पाई जाए। इस तरह वह आम नागरिक के आर्थिक तथा सामाजिक हालातों को सुधारना चाहते थे। इसके लिए उनके दिमाग में पानी पंचायत का ख्याल आया ताकि पानी आबंटन के लिए बराबरी की हिस्सेदारी तैयार की जा सके। सबसे पहले उन्होंने महाराष्ट्र के नयागांव में वाटर शैड मैनेजमैंट का आइडिया विकसित किया। इसके लिए उन्होंने पानी तथा भूमि के कटाव को रोकने के लिए सीमाएं बांधीं।
1974 में ग्राम गौरव प्रतिष्ठान का गठन किया गया जिसने कई विकास तथा परियोजनाओं को पानी पंचायत के अधीन जन्म दिया। उड़ीसा में तो पानी पंचायत ने सराहनीय कार्य किया है जिससे कृषि उत्पादकता को बढ़ाया गया है तथा किसानों की वित्तीय हालत भी सुधरी है।
पानी पंचायत एक्ट (2002) की छत्रछाया में सिंचाई प्रबंधन उड़ीसा में फल-फूल रहा है। 2015-16 में सूखे जैसी स्थिति के बावजूद भी कृषि क्षेत्र में 36 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई। रबी मौसम के दौरान धान की रोपाई को रोकने से पानी पंचायत के निर्णय को और बढ़ावा मिला। उड़ीसा में इस समय 30,000 के करीब पानी पंचायतों का गठन हुआ है जिन्हें चुनाव आयोजित कर बनाया जाता है। सिंचाई की मूलभूत सुविधाओं हेतु किसानों के बीच स्वायत्तता को लेकर एक नई उम्मीद जागी है। जल वितरण में हिस्सेदारी भी बढ़ी है जिससे फसलों की उत्पादकता एक सांझे प्रयत्न से बढ़ाई गई है। पानी पंचायत एक्ट के माध्यम से महिलाओं को भी हिस्सेदारी दी गई है। जल उपभोक्ता संगठनों का सभी वर्गों में गठन किया गया है।
पानी पंचायत एक्ट 2002 तथा नियम-2003 में 2006, 2008, 2014 में इसके बेहतर कार्य को लेकर संशोधन किए गए हैं। इस एक्ट के माध्यम से सिंचाई प्रणाली के प्रबंधन में किसानों की भागीदारी तय की गई है। पानी पंचायत के जरिए सरकार द्वारा मुख्य, मध्यम तथा लघु सिंचाई परियोजनाओं की निॢदष्ट जलीय सीमाएं खींची गई हैं। कृषि संगठनों को सिंचाई प्रणाली की देखरेख तथा प्रबंधन में महत्वपूर्ण भूमिका दी गई है जिससे कि बराबर तथा विश्वसनीय जल आबंटन आपूर्ति दी जा सके।