अपने जैसे लोगों के लिए हमने सहानुभूति खो दी

Edited By ,Updated: 03 May, 2021 04:20 AM

we lost sympathy for people like us

प्रस्तावना संविधान का परिचय और एक संक्षिप्त तैयारी कथन है। प्रस्तावना हमें यह बताती है कि संविधान का उद्देश्य क्या है? और कानूनों को प्राप्त करने के लिए क्या है? भारतीय संविधान कह

प्रस्तावना संविधान का परिचय और एक संक्षिप्त तैयारी कथन है। प्रस्तावना हमें यह बताती है कि संविधान का उद्देश्य क्या है? और कानूनों को प्राप्त करने के लिए क्या है? भारतीय संविधान कहता है कि भारत के लोगों (सरकार ने नहीं) ने भारत को एक ऐसा लोकतंत्र बनाने का संकल्प लिया है जो उसके सभी नागरिकों के लिए सामाजिक न्याय, आर्थिक न्याय और राजनीतिक न्याय को यकीनी बनाएगा।

हम यह सुनिश्चित करेंगे कि हमारे पास विचार धर्म और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो। हमारे पास स्थिति और अवसर की समानता हो। हमने निश्चित रूप से इन सभी को अनदेखा किया है और हमने अपने इतिहास में कभी भी इन स्वतंत्रताओं में से किसी का भी पूरा आनंद नहीं लिया है। लेकिन यह प्रस्तावना की अंतिम पंक्ति है जिसे हमें आज देखना चाहिए। इसमें कहा गया है कि भारत के लोग अपने आपको बंधुत्व का विचार देंगे। बंधुत्व क्या है? यह किसी ऐसे व्यक्ति के लिए सहानुभूति है जो आपके जैसा नहीं है। हमें सरकार को अपने लिए सहानुभूति महसूस करवाने की आवश्यकता नहीं है। भारतीय लोग विशेषकर समुदाय दिमाग वाले होते हैं। हम आपस में विवाह करते हैं और हम अपने आप में सहज हैं।

हम अपने ही समुदाय के लिए वोट भी करते हैं।  बंधुत्व का मतलब यह है कि आप किसी दूसरे को छूना और महसूस करना चाहते हैं जो आपके जैसा नहीं है। फिर चाहे वह व्यक्ति अलग समुदाय से हो या अलग आॢथक पृष्ठभूमि का हो। क्या हम अपनी संविधान की प्रस्तावना में इस शब्द के अनुसार जी रहे हैं? इसका जवाब न में है। हम किसी भी प्रकार के भाईचारे को बढ़ावा नहीं दे रहे हैं। 

हमारा हालिया इतिहास बताता है कि हम न केवल बंधुत्व को बढ़ावा देते हैं बल्कि हम इसके विपरीत होते हैं। लॉकडाऊन से पहले और दिशा-निर्देशों को स्थापित करने से पूर्व जब रोजाना के कोविड मामले देश में करीब 100 थे और एक समुदाय एक धार्मिक इकट्ठ का आयोजन कर रहा था तब उन्हें कोविड आतंकियों का नाम दिया गया। जब कोई अन्य समुदाय मानवीय इतिहास में सबसे बड़ी सभा का आयोजन करता है जबकि मामले प्रतिदिन एक लाख से अधिक होते हैं, तो यह न केवल आलोचना को आकॢषत करता है बल्कि यह घटना प्रधानमंत्री के निमंत्रण पर होती है। हम सामाजिक भाईचारे को बढ़ावा नहीं दे रहे। 

हमारे देश में प्रति वर्ष सैंकड़ों लोगों की मौत एक ऐसे सिस्टम से होती है जिसे मानव द्वारा सफाई करना कहा जाता है। ऐसी कर्मचारी ज्यादातर दलित महिलाएं होती हैं। जिन्हें अपने हाथों से शौचालय साफ करना होता है। सरकार ने हालांकि इस प्रथा पर प्रतिबंध लगा रखा है लेकिन यह अभी भी निरंतर जारी है। दलित व्यक्तियों द्वारा ज्यादातर सैप्टिक टैंकों और नालियों को स्वयं साफ किया जाता है। इनमें से कई लोगों की मौत  जहर चढऩे से हो जाती है।

ऐेसा नहीं होना चाहिए मगर ज्यादातर अपना ध्यान नहीं रखते। ऐसी प्रथा अनगिनत अदालती आदेशों के बावजूद भी जारी है। हम जाति भाईचारे को बढ़ावा नहीं दे रहे। भारत सरकार ने उन लोगों के लिए टीकाकरण खोला है जो निजी अस्पतालों में इसकी कीमत झेल सकते हैं। वे कोवैक्सीन की एक खुराक के लिए 1200 रुपए से ज्यादा चार्ज कर रहे हैं। 6 हफ्तों के बाद आपको दूसरी खुराक चाहिए जो 2400 रुपए प्रति व्यक्ति ठहरती है। 5 व्यक्तियों वाले कितने परिवार वैक्सीन के लिए 12000 रुपए का भुगतान कर सकते हैं जो एक वर्ष तक चलेगा। गरीबों को उनके अपने उपकरणों पर छोड़ दिया गया है।

केंद्र सरकार ने राज्यों को टीकाकरण के लिए कहा है मगर न तो राज्यों को पैसा और न ही वैक्सीन दी है। 2014 से अब तक  28000 डालर से ज्यादा वाले करोड़पतियों ने (मतलब ऐसे लोग जिनके पास 7.5 करोड़ से ज्यादा है) भारत छोड़ दिया है और वे दूसरे राष्ट्रों के नागरिक बन चुके हैं। इसमें हमें आश्चर्य नहीं होना चाहिए।  हमने एक ऐसे रास्ते को पा लिया है जिसने आशावाद को छोड़ दिया है। आज हम कानून पर वोटों की मांग कर रहे हैं जिसके तहत हम लोगों के धर्म के अनुसार उन पर निशाना साधते हैं। 

आज हम स्मारकों का विनाश कर रहे हैं और उन पर मंदिरों का निर्माण कर जश्र मना रहे हैं। आज हम इस क्षण नई दिल्ली का पुनॢनर्माण कर रहे हैं जिसकी लागत 20,000 करोड़ रुपए बैठेगी और प्रधानमंत्री को एक नया घर मिलेगा जबकि करोड़ों आदमियों के पास अपने बच्चों के लिए वैक्सीन खरीदने के लिए न कोई साधन और न पैसा होगा। हम अभूतपूर्व अनुपात के राष्ट्रीय संकट से गुजर रहे हैं। इतने बड़े स्तर पर एक वायरस को लेकर स्वतंत्र भारत में हम इतने अधिक प्रभावित कभी नहीं हुए। इस वायरस ने हमें समान रूप से  सभी को एक साथ पकड़ा है मगर कुछ की मौतें हुई हैं जिनकी पहुंच बैडों, वैंटीलेटरों तथा ऑक्सीजन तक नहीं थी। 

बेंगलुरू में मेरे एक सहयोगी हैं जिन्होंने अपनी नौकरी खो दी और उन्हें 22,000 रुपए प्रतिदिन की अदायगी करनी पड़ी क्योंकि उनकी पत्नी और बच्चा संक्रमित हो गए थे। मगर वह भाग्यशाली रहे। हम में से बहुत से भारतीयों के लिए ऐसा संभव नहीं है। वे अपने घरों में मर जाएंगे क्योंकि आधिकारिक कोविड मौतों का आंकड़ा तथा प्रैस द्वारा जलती हुई चिताओं की गिनती के बारे में की गई रिपोर्ट का आंकड़ा कुछ अलग है। लोग बिना किसी उपचार के मर जाएंगे क्योंकि उनके पास उपचार तक पहुंचने की हि मत नहीं। 

यह बंधुत्व का मामला नहीं बल्कि बंधुत्व जैसे शब्द की अवमानना है। हमने उन लोगों के लिए सहानुभूति खो दी है जो हम जैसे ही हैं। हमारे संविधान ने यह बताया है कि हमें उन लोगों को समझने और उनका समर्थन करने की कोशिश करनी चाहिए जो हम जैसे ही हैं। वास्तविकता यह है कि हम यह भी नहीं जानते हैं कि हमें क्या करना है?-आकार पटेल 
 

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