हमें सत्यनिष्ठ व विश्वसनीय नेताओं की जरूरत, न कि अपराधियों की

Edited By ,Updated: 06 Aug, 2019 02:03 AM

we need honest and reliable leaders not criminals

किसी भी राष्ट्र को सस्ते और नीच नेताओं की सबसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। पिछले सप्ताह उत्तर प्रदेश में नेताओं का यह कारनामा देखने को मिला जब उन्नाव के भाजपा विधायक ने उस लड़की की हत्या का प्रयास किया जिसके साथ उसने 2017 में बलात्कार किया था। मीडिया...

किसी भी राष्ट्र को सस्ते और नीच नेताओं की सबसे बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। पिछले सप्ताह उत्तर प्रदेश में नेताओं का यह कारनामा देखने को मिला जब उन्नाव के भाजपा विधायक ने उस लड़की की हत्या का प्रयास किया जिसके साथ उसने 2017 में बलात्कार किया था। 

मीडिया द्वारा शोर मचाने के बाद पार्टी ने उक्त विधायक को निलम्बित कर दिया और लड़की के परिजनों को 25 लाख का मुआवजा दिया तथा इस मामले को सी.बी.आई. को स्थानांतरित कर दिया। किन्तु इस मामले से अनेक प्रश्न उठते हैं। क्या ईमानदार और अच्छे नेताओं को ठगों और गुंडों की खातिर बलि की वेदी पर चढ़ाया जा रहा है क्योंकि संख्या खेल में जीत को सर्वोच्च महत्व दिया जा रहा है? क्या अपराधियों से राजनेता बने लोग अपनी बुलेट प्रूफ जैकेट पर सांसद, विधायक का तगमा लगाकर अपना वर्चस्व स्थापित करते हैं? क्या विचारधारा, नैतिकता और नैतिक मूल्यों को छोड़ दिया गया है? शायद ऐसा ही है क्योंकि आज सभी पाॢटयां अपराधियों को अपना उम्मीदवार बना रही हैं जिसके चलते अपराधी, हत्यारे सत्ता के गलियारों तक पहुंच रहे हैं। 

हैरानी की बात यह है कि लोकसभा के 545 सदस्यों में से 233 अर्थात 44 प्रतिशत सदस्यों पर हत्या, अपहरण, महिलाओं के विरुद्ध अपराध आदि के आपराधिक मामले हैं और 2009 की तुलना में इन सदस्यों की संख्या में 109 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। एक कांग्रेसी सांसद ने अपने पर 204 मामलों की घोषणा की है। 

भाजपा के 303 में से 116 अर्थात 39 प्रतिशत सांसदों, कांग्रेस के 51 में से 29 अर्थात 57 प्रतिशत सांसदों, जद (यू) के 16 में से 13 अर्थात 81 प्रतिशत सांसदों, द्रमुक के 23 में से10 अर्थात 43 प्रतिशत सांसदों और तृणमूल के 22 में से 9 सांसदों यानी 41 प्रतिशत सांसदों के विरुद्ध आपराधिक मामले दर्ज हैंं जिनमें से 29 प्रतिशत मामले गंभीर हैं। 10 सांसदों पर दोष सिद्ध हो रखा है। 11 सांसदों पर हत्या, 20 सांसदों पर हत्या के प्रयास और 19 सांसदों पर महिलाओं के विरुद्ध अपराधों के मामले हैं। 2014 के 185 सांसदों की तुलना में यह संख्या कहीं अधिक है। राज्यों में लगभग 20 प्रतिशत उम्मीदवार आपराधिक पृष्ठभूमि के हैं। उत्तर प्रदेश में 403 विधायकों में से 143 अर्थात 36 प्रतिशत, बिहार में 243 में से 142 अर्थात 58 प्रतिशत के विरुद्ध आपराधिक मामले हैं। ऐसे विधायकों के होने पर हम यह अपेक्षा कैसे कर सकते हैं कि देश अपराध मुक्त हो जाएगा। 

सत्ता में संख्या का खेल
सत्ता में संख्या खेल का महत्व बढऩे के कारण पाॢटयां माफिया डॉनों को टिकट देती हैं जो अपने बाहुबल और अवैध पैसे के बल पर वोट प्राप्त करते हैं और जीत दर्ज करते हैं। इस खेल में लेन-देन चलता है। पाॢटयों को चुनाव लडऩे के लिए पैसा मिलता है तो अपराधियों को कानून से संरक्षण। माफिया डॉन नेता बनने के लिए पैसा क्यों लगाते हैं? ऐसा कर वे राजनीतिक सत्ता का उपयोग कर अपनी वसूली जारी रखते हैं, प्रभावशाली बनते हैं और यह सुनिश्चित करते हैं कि उनके विरुद्ध मामले हटा दिए जाएं। राजनीतिक निवेश में लाभ इतना अधिक मिलता है कि अपराधी अन्य जगह निवेश करने की सोचता भी नहीं है। 

राजनीति के अपराधीकरण से लेकर अपराध के राजनीतिकरण तक भारत ने एक चक्कर पूरा कर लिया है। कल के माफिया डॉन आज के विधायक बन गए हैं। वे अपने आप में कानून और सर्वशक्तिमान हैं। आज स्थिति यह बन गई है कि हमारे जन सेवक जनता, लोकतांत्रिक मूल्यों और सुशासन की कीमत पर अपने अंडरवल्र्ड आका की धुन पर नाचते हैं। माफिया डॉन जेल से चुने जाते हैं और ऐसे कुछ सांसद जेल में ही अपना दरबार लगाते हैं जहां पर उन्हें घर जैसी सुख-सुविधाएं मिलती हैं। कुछ नेता अग्रिम जमानत ले लेते हैं या कुछ भाग जाते हैं। 

दूसरी ओर मनमोहन सिंह जैसे ईमानदार और अच्छे व्यक्ति जब चुनाव में खड़े होते हैं तो उनकी जमानत जब्त हो जाती है। प्रश्न उठता है कि क्या मतदाता ईमानदार राजनेता और स्वच्छ सरकार चाहते हैं? एक ईमानदार व्यक्ति व्यवस्था से संघर्ष करने और उसमें सुधार करने का वायदा कर सकता है क्योंकि मतदाता बाहुबलियों को पसंद करते हैं जो उन्हें संरक्षण, राशन और सरकारी नौकरी प्राप्त करने में सहायता करते हैं और इसके बदले उन्हें वोट मिलते हैं। आज ईमानदार उम्मीदवारों की तुलना में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले अधिक नेता चुनावों में जीत प्राप्त करते हैं। एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार 45.5 प्रतिशत आपराधिक पृष्ठभूमि वाले नेताओं की जीत हुई जबकि साफ- सुथरी छवि वाले 24.7 प्रतिशत नेताओं की जीत हुई। भारत के मध्यम वर्ग को भी अपराधियों को चुनने से परहेज नहीं है बशर्ते कि वे उनके संरक्षक बनें और उनके काम करें। 

गिने-चुने अच्छे नेता
जब एक पूर्व मुख्यमंत्री से पूछा गया कि उनके मंत्रिमंडल में 22 मंत्री ऐसे हैं जिनकी आपराधिक पृष्ठभूमि है तो उन्होंने कहा कि मैं अतीत के बारे में ङ्क्षचता नहीं करता हूं। सरकार में शामिल होने के बाद वे अपराध नहीं कर रहे हैं और आपराधिक गतिविधियों पर अंकुश लगाने में सहायता कर रहे हैं। आप लोगों से पूछिए कि उन्होंने ऐसे नेताओं को क्यों चुना? आज देश में राजनीति में गिने-चुने अच्छे नेता हैं। 

कुछ शासक केवल राजनीतिक लाभ और वोट बैंक की राजनीति के बारे में सोचते हैं। वे आए दिन दल-बदल करते रहते हैं और इसका कारण उनके व्यक्तिगत हित हैं तथा उनकी पैसा बटोरने की इच्छा है। आज आप राजनीति में अपराधियों और राजनेताओं की सांठ-गांठ को एक स्थायी दौर कह सकते हैं किन्तु हमारी लोकतांत्रिक व्यवस्था पर अपराधियों ने कब्जा कर लिया है। पूर्व लोकसभा अध्यक्ष सोमनाथ चटर्जी के शब्दों में, ‘‘आपको जनता का एक भी पैसा नहीं मिलना चाहिए। मुझे विश्वास है कि आप चुनाव में हार जाओगे।’’ कुल मिलाकर हमने ईमानदारी और नैतिकता को छोड़ दिया है। आज राजनीति में अपराध का बोलबाला है जो जीत सुनिश्चित करता है, चाहे वह छोटा-मोटा ठग हो, दस नम्बरी हो या माफिया डॉन। आज महत्वपूर्ण यह है कि अपराधी, सांसद या विधायक इनके साथ हैं। ये सभी दलों में हैं, संख्या में अंतर हो सकता है। 

सांठ-गांठ पारस्परिक लाभ के लिए
अपराधियों और पाॢटयों के बीच सांठ-गांठ पारस्परिक लाभ के लिए होती है और आज ऐसे वातावरण में जहां पर हमारी संसदीय प्रणाली ने अच्छे नेताओं को दफना दिया है और इस व्यवस्था पर अपराधियों से राजनेता बने व्यक्तियों ने कब्जा कर लिया है तथा जहां पर माफिया डॉन का बोलबाला हो वहां पर आम आदमी का सशंकित होना स्वाभाविक है। सबसे दुखद तथ्य यह है कि इससे किसी को फर्क नहीं पड़ता है। प्रत्येक चुनाव के बाद अपराधी राजनेताओं की संख्या बढ़ती जा रही है। आप इसे लोकतंत्र की कीमत भी कह सकते हो। हमारे पास कोई विकल्प भी नहीं रहता है। अगर एक पार्टी का उम्मीदवार हत्यारा है तो दूसरी का बलात्कारी। इसलिए हमें गुंडे और लुटेरे उम्मीदवारों में से किसी एक को चुनना होता है। 

भविष्य का क्या होगा? क्या हम अपराधियों को महत्व देते रहेंगे? क्या हम अपराधियों को नेता बनाते रहेंगे? क्या यह लोकतंत्र के लिए अच्छा है कि मतदाताओं का प्रतिनिधित्व बदमाश करें? लोगों का प्रतिनिधित्व करने के लिए किसी व्यक्ति को अयोग्य घोषित करने हेतु उस पर हत्या के कितने आरोप होने चाहिएं? क्या ईमानदार और सक्षम नेता नहीं रह गए हैं? हमें व्यवस्था से खिलवाड़ करने की बजाय उसमें सुधार करने वाले नेता कैसे मिलेंगे? किन्तु जब इन लोगों से नेतृत्व की अपेक्षा की जाती है और वे विघटनकारी बन जाते हैं तो फिर कुछ गंभीर कदम उठाए जाने चाहिएं। 

इस संबंध में कुछ कानूनी सुधार आवश्यक हैं ताकि हमें नैतिक, निर्णायक, साहसी, दूरदर्शी और पारदर्शी नेता मिल सकें जो आम जनता के कल्याण के लिए सुशासन उपलब्ध करा सकते हैं। किसी भी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए हमारी व्यवस्था को भी साहसिक कदम उठाने होंगे। राजनीति के अपराधीकरण का विरोध किया जाना चाहिए। हमें सत्यनिष्ठ और विश्वसनीय नेताओं की आवश्यकता है न कि अपराधियों की, जहां पर आज के अपराधी किंगमेकर कल स्वयं किंग बन सकते हैं।-पूनम आई. कौशिश
 

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