हमारी और उपमहाद्वीप की जरूरत है मजबूत इमरान

Edited By Pardeep,Updated: 03 Dec, 2018 04:58 AM

we need the subcontinent and strong imran

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को भी अंदाजा नहीं होगा कि वह जिस करतारपुर गलियारे को बनाने व खोलने की शुरूआत कर रहे हैं, उससे भारतीय राजनीति के गलियारों में ऐसे विस्फोट होने लगेंगे। क्रिकेट की भाषा में कहूं तो यह इमरान का वह बाऊंसर है जिसे ‘डक’...

पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को भी अंदाजा नहीं होगा कि वह जिस करतारपुर गलियारे को बनाने व खोलने की शुरूआत कर रहे हैं, उससे भारतीय राजनीति के गलियारों में ऐसे विस्फोट होने लगेंगे। क्रिकेट की भाषा में कहूं तो यह इमरान का वह बाऊंसर है जिसे ‘डक’ करने को भारतीय राजनीति मजबूर हो गई है। यह बेहद हास्यास्पद और बचकाना है। 

यह सोच भी हैरान करने वाली है कि हमने इमरान खान के प्रधानमंत्री बनते ही पाकिस्तान के साथ राजनीतिक पहल की सारी बागडोर नवजोत सिंह सिद्धू के हाथ में सौंप दी है। सिद्धू ने राजनीति की पिच पर कभी गंभीर बल्लेबाजी नहीं की है। उनकी राजनीतिक समझ कपिल शर्मा के शो में बनी और परवान चढ़ी है। वह दलों के दलदल में उतर कर कुर्सी पकडऩे वाले राजनीतिज्ञ हैं। उनको दल और आका बदलते देर नहीं लगती है। आज वह राहुल गांधी की कांग्रेस में हैं और पंजाब के सबसे नौसिखुआ मंत्री हैं।

वह पाकिस्तान के साथ की हमारी राजनीति की डोर संभालें और केन्द्र सरकार अपने बचाव में बयान जारी करे, उनके चैनल इमरान की लानत-मलानत करें, सिद्धू की देशभक्ति पर सवाल खड़े करें, क्या यह भी कपिल शर्मा शो का ही हिस्सा नहीं लगता? यह बात यहां तक पहुंची है कि केन्द्र सरकार के दो मंत्री भी गलियारा कार्यक्रम में उपस्थित थे लेकिन वे बेजुबान बलि के बकरे से ज्यादा कुछ नहीं थे। इधर सिद्धू थे तो उधर इमरान! यह रंग यहां तक जमा कि इमरान ने यह कह कर कूटनीतिक छक्का ही मार दिया कि भारत-पाक दोस्ती सिद्धू के प्रधानमंत्री बनने पर ही हो सकेगी, ऐसे हालात हम न बनाएं। 

दूर तक जा सकती हैं बातें
लेकिन इमरान खान ने गलियारा दिवस पर और फिर दूसरे दिन भारतीय पत्रकारों से बातचीत करते हुए जो कुछ कहा, वह फब्तियां कसने या खिल्ली उड़ाने जैसी बात नहीं है। ये बातें बहुत दूर तक जा सकती हैं यदि सीमा के दोनों तरफ की सरकारें मजबूत मन से चलें। इधर हाल के दिनों में दूसरे किसी पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने इतनी साफ बातें नहीं की हैं। यही मौका है कि हम पाकिस्तान को जांचने की तैयारी करें। हम न भूलें कि आज इमरान उसी तरह अनुभवहीन हैं जिस तरह 2014 में दिल्ली पहुंचे नरेंद्र मोदी थे।

अंतर्राष्ट्रीय कूटनीति में कितनी ही बचकानी हरकतें की थीं उनकी सरकार ने! उन्हें लगा था कि गले लगाने, झूला झूलने, ड्रम बजाने, हर विदेशी दौरे में प्रायोजित भीड़ जुटा कर अपनी लोकप्रियता का दावा पेश करने से लेकर विदेशी राष्ट्राध्यक्षों को उनके पहले नाम से पुकारने से राजनीति अलग धरातल पर ले जाई जा सकती है। धीरे-धीरे ये सब अर्थहीन होता गया। यह सारी चमक फीकी पडऩे लगी। अब न चमक बची है, न उसका भ्रम। इमरान के साथ भी ऐसा हो सकता है। पाकिस्तान की राजनीति की रीढ़ तो कभी बनी ही नहीं। वह जन्म से ही इस या उस कंधे पर सवार होकर ही चली है। इसलिए पूरी संभावना है कि जल्दी ही इमरान कोई कंधा पकड़ेंगे। इसलिए हमारी कूटनीतिक प्रौढ़ता इसमें है कि इमरान वहां कमजोर पड़ें, इससे पहले हम उन्हें मजबूत बनाने की पहल करें। मजबूत और निर्णायक इमरान हमारी भी और इस उपमहाद्वीप की भी जरूरत है। दूसरी तरफ इमरान के अपने अस्तित्व के लिए इस उपमहाद्वीप में भारत की प्रभावी उपस्थिति जरूरी है। 

अवसर देना चाहिए
तो क्या और कैसी पहल होनी चाहिए? पहली पहल तो यही होनी चाहिए कि हमारी सरकार उलटे-सीधे लोगों से, उलटी-सीधी बयानबाजी न करवाए। इमरान को हम उन सारी बातों के बोझ तले न दबाएं जो उनके पहले के लोगों ने की हैं। उनसे वे सवाल भी न पूछे जाएं जिनका जवाब जिन्हें देना चाहिए था, वे अब पाकिस्तान से कहीं दूर, अपनी बेईमानी की कमाई से आराम की जिंदगी जी रहे हैं। हम पाकिस्तान से आज की और अभी की बात करें। अगर इमरान कहते हैं कि वह, उनकी सरकार, उनकी फौज और उनका मुल्क जहां तक भारत के साथ रिश्ते सुधारने का सवाल है, एक राय हैं, तो हमें उन्हें उस राय का खुलासा करने का अवसर देना चाहिए। कश्मीर को इमरान दोनों देशों के बीच का जिंदा सवाल मानते हैं। वह है, हम भी मानते हैं लेकिन हम यह भी जानते हैं कि कश्मीर को बीच में रख कर अब तक पाकिस्तान ने बहुत खेल खेला है। इमरान ने भी उस दिन कबूल किया कि गलतियां दोनों तरफ से हुई हैं। तो हम उन्हें तुरंत मौका दें कि वह हमारी गलतियां बताएं और अपनी कबूलें। 

इमरान को कई प्रमाण देने होंगे
पाकिस्तान के साथ हमारे अनुभव इतने बुरे रहे हैं कि उधर से बहने वाली हर हवा पर दिल्ली की प्रतिक्रिया धीरे-धीरे और सावधानी से ही उभरेगी, यह बात पाकिस्तान को समझनी चाहिए। इसलिए सदाशयता के एक नहीं, कई प्रमाण इमरान को देने होंगे, देते रहने पड़ेंगे। हम ऐसे हमकदम को शक की नजर से नहीं, भरोसे से देखें। जिस हाफिज सईद के अपराध की बात प्रकारांतर से उन्होंने कबूल की है, पाकिस्तान में उसकी आजादी को तुरंत प्रतिबंधित किया जाए; दाऊद इब्राहिम का पाकिस्तान में होना वह कबूल करें और पहले कदम के तौर पर पाकिस्तान में ही उस पर मुकद्दमा दायर करें; सीमा पर हो रही आतंकी घुसपैठ और फौज की बेजा हरकतों पर प्रभावी रोक लगाएं। इमरान का पाकिस्तान इसे समझे और मोदी का हिंदुस्तान सकारात्मक रवैया रखे तो यह गलियारा हमारी दोस्ती का राजमार्ग बन सकता है।-कुमार प्रशांत

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