‘कल्याण-आधारित’ से ‘अधिकार-आधारित’ खाद्य-सुरक्षा

Edited By ,Updated: 12 Dec, 2020 05:13 AM

welfare based  to  rights based  food security

बीते वर्षों में, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.) ने, जो 1960 के दशक में खाद्यान्न आपूर्ति की कमी के प्रबंधन की एक प्रणाली के तौर पर शुरू की गई थी, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 (एन.एफ.एस.ए.) के तहत ‘कल्याण-आधारित’ ...

बीते वर्षों में, सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पी.डी.एस.) ने, जो 1960 के दशक में खाद्यान्न आपूर्ति की कमी के प्रबंधन की एक प्रणाली के तौर पर शुरू की गई थी, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम 2013 (एन.एफ.एस.ए.) के तहत ‘कल्याण-आधारित’ से ‘अधिकार-आधारित’ खाद्य-सुरक्षा प्लेटफॉर्म तक का लंबा सफर तय कर चुकी है। करीब 67 प्रतिशत नागरिकों के लिए ‘भोजन का अधिकार’ कानून बनाना और हर महीने क्रमश: 3, 2, 1 रुपए प्रति किलो चावल, गेहूं और मोटे अनाज को सस्ते दाम पर लक्षित आबादी को खाद्यान्न वितरित करना दुनिया में अपनी तरह का पहला प्रयास है। यह देश में खाद्य अर्थव्यवस्था के प्रबंधन के लिए सरकार की नीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन चुका है। 

एन.एफ.एस.ए. के तहत लक्षित सार्वजनिक वितरण प्रणाली (टी.पी.डी.एस.) केंद्र और राज्य/ केंद्र शासित प्रदेशों की ओर से संयुक्त रूप से संचालित की जा रही है, जहां केंद्र सरकार देशभर में खाद्यान्न की खरीद, भंडारण, आबंटन और एफ.सी.आई. के तय डिपो तक इसे पहुंचाती है, तो राज्य/ केंद्र शासित प्रदेश अंत्योदय अन्न योजना (ए.ए.वाई.) के तहत पात्र परिवारों/लाभार्थियों की पहचान करते हैं और 75 प्रतिशत ग्रामीण आबादी और 50 प्रतिशत तक शहरी आबादी को कवर करते हुए अधिनियम के प्राथमिकता वाले परिवारों (पी.एच.एच.) की श्रेणियों के तहत राशन कार्ड जारी करते हैं और उसका प्रबंधन, उचित मूल्य की दुकानों (एफ.पी.एस.) के लिए खाद्यान्न आबंटन और लाभाॢथयों को वितरित करने के लिए सभी एफ.पी.एस. तक डोर-स्टैप-डिलीवरी सुनिश्चित करते हैं। 

इन वर्षों में, खासतौर से पिछले 6 वर्षों के दौरान कई ऐतिहासिक पहलों और तकनीकी हस्तक्षेपों ने टी.पी.डी.एस. में कई सुधारों को बढ़ावा दिया है। ‘टी.पी.डी.एस. परिचालनों  का एंड-टू-एंड कम्प्यूटरीकरण’ टी.पी.डी.एस. संचालन में मूक क्रांति लेकर आया है जो नागरिक केंद्रित सेवा सुनिश्चित करते हुए दुनिया के सबसे बड़े खाद्यान्न वितरण नैटवर्क को मैन्युअल रूप से संचालित प्रणाली से पारदर्शी स्वचालित प्रणाली में परिवर्तित कर रहा है। 

कुछ राज्यों में लाभार्थियों को एस.एम.एस. भी भेजे जाते हैं, जिसमें उन्हें अपने एफपीएस में खाद्यान्न मिलने के संभावित समय और उसकी मात्रा के बारे में भी जानकारी दी जाती है। इसके अलावा, टोल-फ्री हैल्पलाइन 1967/ 1800- शृृंखला और पी.डी.एस. से संबंधित शिकायतों को दर्ज कराने के लिए ऑनलाइन प्रणाली ने लोगों को और सशक्त बनाया है। 

सबसिडी वाले खाद्यान्नों को प्रभावी ढंग से लक्षित आबादी तक पहुंचाने के लिए अपनाए गए प्रौद्योगिकी-सुधारों की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता ही वास्तविक लाभार्थियों की पहचान है। इस समय देश में 90 प्रतिशत से अधिक राशन कार्ड, आधार कार्ड के साथ संबद्ध हो चुके हैं, जिससे देशभर में 4.9 लाख (कुल 5.4 लाख का 91 प्रतिशत) इलैक्ट्रॉनिक प्वाइंट ऑफ सेल उपकरणों के माध्यम से 70 प्रतिशत मासिक आबंटन का पारदर्शी तरीके से बायोमैट्रिक वितरण संभव हो सका है। इन उपायों ने 2013 से पिछले 7 वर्षों के दौरान लगभग 4.39 करोड़ अयोग्य/डुप्लीकेट राशन कार्ड की पहचान कर बांटे जा रहे सबसिडी वाले अनाज पर रोक लगाई है और इस तरह से एन.एफ.एस.ए. के तहत लाभार्थियों के उचित लक्ष्यीकरण में लगातार सुधार हो रहा है। 

कम्प्यूटरीकरण की मजबूत नींव का लाभ उठाते हुए, ‘एक देश एक राशन कार्ड (ओ.एन.ओ.आर.सी.) योजना  के तहत प्रौद्योगिकी संचालित प्रक्रिया के माध्यम से देश में राशन कार्डों की नैशनल पोर्टेबिलिटी की शुरूआत की गई है। यह एकीकृत दृष्टिकोण अपने उसी राशन कार्ड का उपयोग कर बायोमैट्रिक/आधार प्रमाणीकरण के साथ देश के किसी भी कोने में किसी भी एफ.पी.एस. से पी.डी.एस. का लाभ उठाकर खाद्यान्न प्राप्त करने की सुविधा देकर लाभार्थियों को सशक्त बना रहा है। चूंकि यह पहल प्रवासियों को उनकी खाद्य-सुरक्षा के लिए आत्मनिर्भर होने में मदद कर रही है, इसलिए यह आत्मनिर्भर भारत अभियान के अंतर्गत प्रधानमंत्री के प्रौद्योगिकी से संचालित प्रणाली सुधारों का एक अभिन्न हिस्सा बन गया है। 

आगे यह सुनिश्चित करने के लिए कि कोई योग्य लाभार्थी न छूटे, छह राज्यों के छह जिलों-झारखंड (पलामू), उत्तर प्रदेश (बाराबंकी), गुजरात (छोटा उदयपुर), आंध्र प्रदेश (गुंटूर), हिमाचल प्रदेश (मंडी) और मिजोरम (हनथियाल) में संमिलन पर एक पायलट परियोजना शुरू की गई। ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा संचालित ईज ऑफ लिविंग (ई.ओ.एल.) सर्वेक्षण से मिले लाभार्थी डेटा को संमिलन के स्तर को सत्यापित करने के लिए पी.डी.एस. डाटा के साथ मैप किया गया। हालांकि ई.ओ.एल. डाटा के आधार पर आधारित न होने के कारण इसमें कुछ चुनौतियां भी थीं। 

कोविड संकट के दौरान, देश की तकनीकी संचालित पी.डी.एस. ने तेजी के साथ अप्रैल से नवंबर 2020 तक पिछले 8 महीनों के दौरान देश में 80 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को करीब दोगुनी मात्रा में खाद्यान्न वितरित किया। इस अवधि के दौरान विभाग ने लगभग 680 एल.एम.टी. खाद्यान्न (सामान्य एन.एफ.एस.ए. के तहत करीब 350 एल.एम.टी., पी.एम. गरीब कल्याण अन्न योजना के तहत 321 एल.एम.टी.) आबंटित किया था और यह देखा गया कि सभी चुनौतियों के बावजूद कोविड-19 प्रोटोकॉल का पालन करते हुए औसतन प्रति माह 93 प्रतिशत खाद्यान्न सफलतापूर्वक वितरित किए गए।-सुधांशु पांडे (सचिव, खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग, भारत सरकार)

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