क्या के. चन्द्रशेखर राव अपने दाव में सफल होंगे

Edited By Pardeep,Updated: 17 Oct, 2018 04:27 AM

what chandrashekhar rao will be successful in his claim

देश का सबसे युवा राज्य तेलंगाना 2014 में अपने जन्म के बाद दूसरी बार 7 दिसम्बर को चुनावों का सामना करेगा। मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव ने चुनावों को 8 महीने पहले करवाकर एक बड़ा जोखिम उठाया है। उन्होंने उसी दिन अपने 105 उम्मीदवारों की घोषणा करके भी...

देश का सबसे युवा राज्य तेलंगाना 2014 में अपने जन्म के बाद दूसरी बार 7 दिसम्बर को चुनावों का सामना करेगा। मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव ने चुनावों को 8 महीने पहले करवाकर एक बड़ा जोखिम उठाया है। उन्होंने उसी दिन अपने 105 उम्मीदवारों की घोषणा करके भी बहुत हिम्मत दिखाई, यहां तक कि चुनाव आयोग द्वारा मतदान की तिथि घोषित करने से भी पहले। क्या वह अपने दाव में सफल होंगे? 

हालांकि केन्द्र में तब कांग्रेस सरकार थी जो 2014 में राज्य के विभाजन के लिए सहमत हुई, मगर तेलंगाना राष्ट्र समिति (टी.आर.एस.) तेलंगाना लहर पर सवार होकर सत्ता में आई। इसकी आशाओं के विपरीत तेलंगाना तथा आंध्र प्रदेश दोनों राज्यों से कांग्रेस साफ हो गई। चूंकि इस बार कोई लहर नहीं है, चुनाव कांग्रेस सहित विपक्ष के लिए अस्तित्व की लड़ाई है।

तेलुगु देशम, कांग्रेस, भाकपा तथा तेलंगाना जन समिति (टी.जे.एस.) ने टी.आर.एस. के खिलाफ महाकूटामी (महागठबंधन) का गठन किया है। तेलंगाना एक्शन कमेटी, जो के.सी.आर. के मुकाबले पिछड़ गई थी, के कोडंडराम टी.जे.एस. का नेतृत्व कर रहे हैं। मजे की बात यह है कि कांग्रेस तथा तेदेपा, जो किसी समय धुर विरोधी थीं, राजनीतिक अस्तित्व बचाने के लिए एक साथ आ गई हैं। यह स्पष्ट नहीं है कि इनका तालमेल कितना काम आएगा। टी.आर.एस. को इस घटनाक्रम की आशा नहीं थी मगर वह गठबंधन को गम्भीरतापूर्वक ले रही है। 

2014 में टी.आर.एस. ने 119 सीटों में से 63 जीती थीं, जबकि बिखरा हुआ विपक्ष आसानी से पराजित हो गया। कांग्रेस ने 21, जबकि तेदेपा ने 15 सीटें जीती थीं। राव ने चरणबद्ध ढंग से विपक्ष को समाप्त कर दिया और तेदेपा (13), कांग्रेस (12) तथा अन्य पाॢटयों के विधायकों का शिकार करके अपनी पार्टी को मजबूत किया। कांग्रेस तथा तेदेपा के रणनीतिकारों को आशा है कि कांग्रेस को उच्च जाति रैड्डी, अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति तथा अल्पसंख्यक वोटों में से बड़ा हिस्सा मिलेगा तथा तेदेपा अपने केन्द्रीय ओ.बी.सी. वोटों में से बड़ी संख्या में मत प्राप्त करेगी। 

राव अब नई चुनौतियों का सामना कर रहे हैं। उन्होंने अपने आसपास व्यक्तित्व पूजा का घेरा बना लिया है। उन्होंने अपने बेटे के.टी. रामाराव को कैबिनेट में अपना डिप्टी बना दिया है, अपने भतीजे हरीश राव को मंत्री तथा बेटी कविता को सांसद बना दिया है। विपक्ष उनके तानाशाहीपूर्ण तरीके से काम करने, वंशवादी शासन तथा भाजपा के साथ गोपनीय समझ के साथ-साथ नौकरियों तथा वायदों को पूरा न करने को चुनावी मुद्दे बनाने का प्रयास कर रहा है। यदि भाजपा को आगामी लोकसभा चुनावों में 272 का आंकड़ा प्राप्त नहीं होता तो टी.आर.एस. अब उसकी मदद करने के लिए तैयार है। के.सी.आर. पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जैसे नेताओं के साथ एक संघीय मोर्चे का गठन करने का भी प्रयास कर रहे हैं। राव ने यह जुआ क्यों खेला? ज्योतिषियों का लगभग हर मामले में के.सी.आर. पर पूरा प्रभाव है।

निर्णय लेने से पूर्व के.सी.आर. ने कम से कम 10 सर्वेक्षण करवाए और उन्हें विश्वास है कि उनकी पार्टी कम से कम 100 सीटें प्राप्त कर लेगी जबकि वास्तविकतावादी यह आंकड़ा 70-80 के बीच रखते हैं। राव का मानना है कि आश्चर्य का तत्व उनके पक्ष में जाएगा। राव चाहते हैं कि चुनाव के.सी.आर. बनाम अन्य हों न कि मोदी बनाम के.सी.आर.। उन्हें जीत प्राप्त करने का विश्वास है क्योंकि न तो कांग्रेस और न ही भाजपा अथवा तेलुगु देशम के पास उनके कद का कोई स्थानीय नेता है। यदि वह जीतते हैं तो उनकी मंशा अपने बेटे रामाराव को गद्दी पर बैठाकर राष्ट्रीय राजनीति में जाने की है। के.सी.आर. के अगला प्रधानमंत्री बनने के बड़े सपने हैं। 

सकारात्मक पहलू से देखें तो के.सी.आर. सरकार पहले ही कई कल्याणकारी योजनाएं घोषित कर चुकी है जिनमें किसानों के लिए रायथु बंधु तथा रायथु भीमा शामिल हैं और उन्होंने कालेश्वरम सिंचाई, मिशन काकातिया, हरित हरम तथा मिशन भागीरथ जैसी योजनाओं को भी हाथ में लिया। घोषणा पत्र में और अधिक चुनावी वायदे किए जाएंगे। ‘ईज ऑफ डुइंग बिजनैस’ अर्थात व्यवसाय करने में आसानी के मामले में तेलंगाना को पहला स्थान प्राप्त है। इसने जी.डी.पी. तथा औद्योगिक विकास में वृद्धि दर्ज की है। यह प्रति व्यक्ति ऊर्जा उपभोग, सेवाओं में प्रगति तथा आई.टी. निर्यात के मामले में अन्य राज्यों से आगे है। हालांकि के.सी.आर. के लिए सब कुछ ठीक-ठाक नहीं है क्योंकि उन्होंने दो बैडरूम वाले घरों की योजना, राज्य को स्वर्ण तेलंगाना में बदलना, 1.50 लाख खाली पदों को भरना अथवा तेलंगाना आंदोलन में मारे गए लोगों के परिजनों को नौकरियां देने के मामले में कुछ नहीं किया है। अधिशेष राज्य से अब यह राजस्व घाटे वाला राज्य बन गया है। 

पारम्परिक रूप से कांग्रेस को प्रभावशाली रैड्डीस तथा अनुसूचित जातियों का समर्थन प्राप्त है जबकि तेदेपा के पास काफी संख्या में ओ.बी.सी. वोट हैं। कांग्रेस को रैड्डी पार्टी के तौर पर देखा जाता है जबकि टी.आर.एस. को वेलामा पार्टी के तौर पर। मुसलमान तथा दलित मतदाता चुनावों में महत्वपूर्ण हैं। राज्य, जो पूर्ववर्ती निजाम क्षेत्र का हिस्सा था, की लगभग 12 प्रतिशत जनसंख्या मुसलमान है। किसी समय कांग्रेस की सहयोगी रही ए.आई.एम.आई.एम. टी.आर.एस. के करीब आ गई है और जहां दोनों के सामने हितों का टकराव नहीं है वहां उन्होंने मित्रों के तौर पर चुनाव लडऩे का निर्णय किया है। 

अधिकतर सर्वेक्षण टी.आर.एस. के लिए स्पष्ट विजय की भविष्यवाणी करते हैं। फिलहाल भविष्यवाणी टी.आर.एस. को लाभ की है हालांकि संयुक्त विपक्ष द्वारा लड़ाई टी.आर.एस. के वोटों को चोट पहुंचा सकती है। मगर तेलंगाना लहर का अभाव एक बड़ा नकारात्मक बिंदू है। विजय अथवा पराजय अंतत: विपक्षी एकता, युवाओं के समर्थन, सत्ता विरोधी लहर तथा सभी दलों के संचार कौशल पर निर्भर करती है।-कल्याणी शंकर

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