सरकार ने क्या किया और क्या करना चाहिए

Edited By ,Updated: 26 Apr, 2021 01:04 AM

what did the government do and what should it do

2014 के चुनाव से ठीक पहले भारत के दो प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों में एक सार्वजनिक बहस हुई। क्योंकि दोनों शिक्षाविद् थे इसलिए भाषा ज्यादातर विनम्र थी। लेकिन दोनों के बीच असहमति मामूली न थी। यह गुजरात मॉडल के बारे में बात थी।

2014 के चुनाव से ठीक पहले भारत के दो प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों में एक सार्वजनिक बहस हुई। क्योंकि दोनों शिक्षाविद् थे इसलिए भाषा ज्यादातर विनम्र थी। लेकिन दोनों के बीच असहमति मामूली न थी। यह गुजरात मॉडल के बारे में बात थी।

जगदीश भगवती ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का पक्ष लिया और अमत्र्य सेन ने इसका विपरीत पक्ष लिया। संक्षेप में भगवती-मोदी का विचार सामाजिक खर्च पर आॢथक विकास को प्राथमिकता देना था। वहीं सेन का विचार था कि सामाजिक खर्च के बिना आॢथक विकास सम्भव नहीं होता। सेन ने उदारीकृत कारोबारी माहौल का विरोध नहीं किया। उनकी ङ्क्षचता मुख्य रूप से यह थी कि सरकार ने क्या किया? भगवती ने सामाजिक खर्च का विरोध नहीं किया। उनकी ङ्क्षचता थी कि सरकार को क्या नहीं करना चाहिए। दोनों पक्षों में तर्कसंगत तर्क थे मगर सेन के पास एक अचूक प्रश्न था कि क्या कोई ऐसे राष्ट्र का नाम ले सकता है जो एक स्वस्थ तथा अच्छी तरह से शिक्षित आबादी के बिना विकसित हो गया हो? उसका जवाब नहीं था।

दुनिया का कोई भी ऐसा देश नहीं है जिसने अपनी आबादी के स्वास्थ्य और शिक्षा में निवेश में अनदेखी की हो और विकसित हो गया हो। यह सामाजिक खर्च है जो विकास की ओर जाता है न कि दूसरे तरीके से। आपके पास ऐसी कोई आबादी नहीं जो बहुत साक्षर नहीं है और न ही स्वस्थ है। उम्मीद करते हैं कि उद्योगपति एक राष्ट्र को विकसित करने के लिए सभी प्रकार के जरूरी कार्य करेंगे। राज्य तथा सरकार दोनों के लिए इस क्षेत्र में बड़ी जिम्मेदारी और कार्य हैं। गुजरात मॉडल का मानना है कि यदि सरकार सबसिडियों को देकर, व्यापार करने में आसानी, कर्मचारी यूनियनों से स्वतंत्रता और शानदार गुजरात मेलों का आयोजन करने का प्रस्ताव देकर उद्योगपतियों का समर्थन करती है तो यह पर्याप्त लाभ लम्बी अवधि के लिए सामान्य आबादी को मिलेंगे। क्योंकि यह कारोबार है जो अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाता है।

सेन मॉडल का मानना है कि एक स्वस्थ और शिक्षित आबादी अपने आपमें फायदेमंद है और आॢथक समृद्धि को पाने का एक जरिया है। वास्तव में सरकार के लिए एक स्वस्थ और शिक्षित जनसंख्या तब भी बननी संभव थी जब उसके पास कोई वास्तविक ताकत नहीं थी और क्यूबा इसका एक उदाहरण है। एक विकसित राष्ट्र का ऐसा कोई उदाहरण नहीं है जिसके पास तीसरी दुनिया की शिक्षा और स्वास्थ्य सेवा प्रणाली थी। इस कारण देश को एक मजबूत शिक्षा प्रणाली और स्वास्थ्य प्रणाली के निर्माण पर ध्यान केन्द्रित करना चाहिए और इन क्षेत्रों में इसके खर्च को प्राथमिकता देनी चाहिए। सेन मनरेगा और भोजन का अधिकार जैसी योजनाओं का समर्थन करते हैं।

मोदी ने मनरेगा का विरोध किया और इसे ‘असफलता का स्मारक’ कहा। कांग्रेस पार्टी ने इस सप्ताह कहा कि मोदी के 12 वर्षों सहित भाजपा के अन्तर्गत 25 सालों में गुजरात में एक भी नया सरकारी अस्पताल नहीं बना। भाजपा ने दावे से इंकार नहीं किया। मतलब यह है यह सही है। बेशक कई शानदार गुजरात सम्मेलन आयोजित किए गए थे। आखिर उन्होंने क्या उत्पन्न किया? उत्तर विकास नहीं है। जो भी परिभाषा इसके लिए उपयोग कर सकते हैं। हां यह सच है कि कुछ गुजराती 2020 में अपनी सम्पत्ति को तीन गुना कर बहुत धनवान बन गए। हम में से कइयों ने काम खो दिया लेकिन बहुमत के लिए कोई लाभ नहीं हुआ था।

गुजरात में आने वाले उद्योगों ने बहुत से लोगों को रोजगार नहीं दिया। यही कारण है कि राज्य के सबसे प्रमुख राजनीतिक समुदाय पाटीदारों ने नौकरियों में आरक्षण की मांग की। गुजरात मॉडल के लिए आबादी द्वारा किया गया बलिदान बहुत महान था। गुजरात मानव विकास सूचकांक पर बहुत कम था और 2012 में मोदी ने वाल स्ट्रीट जर्नल को बताया कि उनके राज्य में कुपोषण इसलिए था क्योंकि इसकी लड़कियां फैशन के प्रति जागरूक थीं और दूध नहीं पीना चाहती थीं। मौलिक मुद्दों की इस तरह की अवमानना और अज्ञानता भारत की कीमत पर आई है। सेन मॉडल न केवल खर्च के बारे में है बल्कि यह राज्य के फोकस के बारे में है। एक सरकार जो मानती है कि यह उसके नागरिकों की भलाई के लिए है जोकि उनके स्वास्थ्य और शिक्षा के माध्यम से मापी गई है, एक विशेष तरीके से व्यवस्थित की जाएगी।

वैश्विक महामारी के बाद इतनी जद्दोजहद करने के बावजूद इस पर लगाम नहीं लग पाई। क्योंकि सरकार के पास पर्याप्त दवाइयां और बैड नहीं हैं। गुजरात मॉडल को उम्मीद थी कि निजी क्षेत्र स्वास्थ्य का ध्यान रखेगा क्योंकि यह एक व्यवसाय था। आखिर बाकी दुनिया ने इसे कैसे हासिल किया। आज यह कहना जरूरी नहीं है कि भगवती पूरी तरह से गलत थे। मगर वह गलत थे क्योंकि हम अपने आसपास सब कुछ देख सकते हैं क्योंकि भारत त्रस्त है और सत्तारूढ़ पार्टी रक्षात्मक रुख अपनाए हुए है। यही कारण है कि बंगाल में अचानक अपनी रैलियों को रोकने के बाद मोदी जनता की नजरों से ओझल हैं।  

-आकार पटेल

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