‘क्या इशारा करते हैं गुजरात के स्थानीय निकाय चुनावों के नतीजे’

Edited By ,Updated: 06 Mar, 2021 04:29 AM

what do the results of local body elections of gujarat indicate

लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टियों की कार्य अवधि, उनके द्वारा किए गए कार्य और मनुष्य के आर्थिक विकास की नीति की परख, वोटों के कसौटी पर ही होती है। देश को आजाद हुए 74 वर्षों का समय हो चुका है। इस लंबे आजादी के दौर में लोक-लुभावने...

लोकतंत्र में राजनीतिक पार्टियों की कार्य अवधि, उनके द्वारा किए गए कार्य और मनुष्य के आर्थिक विकास की नीति की परख, वोटों के कसौटी पर ही होती है। देश को आजाद हुए 74 वर्षों का समय हो चुका है। इस लंबे आजादी के दौर में लोक-लुभावने नारे ‘गरीबी हटाओ’, ‘जय जवान जय किसान’ की बात करने वाली कांग्रेस पार्टी जिसने पूरे देश में 1947 से 1977 तक 30 साल बिना विरोध और बाद में करीब 25 साल देश में राजनीति की बागडोर संभाली। इस समय के दौरान न तो देश बाहरी हमलों से सुरक्षित रहा, न ही आॢथक खुशहाली हुई और न ही साइंस का पूरा विकास हुआ इसलिए कांग्रेस पाटी को जनता ने किनारे कर दिया। 

कृषि देश का प्रमुख व्यवसाय है जिसमें देश के ग्रामीण क्षेत्र के 70 प्रतिशत लोग कार्य कर रहे हैं। इनमें से 82 प्रतिशत किसान बहुत कम जमीन के मालिक हैं। गुजरात के करीब 5000000 किसान परिवार खेती करते हैं। मौसम के आधार पर वहां 8 किस्म का कृषि क्षेत्र है जिसमें कपास, मूंगफली, गेहूं, ज्वार, चावल, बाजरा और तेल के बीजों की खेती होती है। दूध का भी एक बड़ा कारोबार है। गिर केसरी आम और खजूर की खेती भी खूब होती है। कारखानों और लोक भलाई में लगे लोग गुजरात को खुशहाल बना रहे हैं। गुजरात ही देश का एक ऐसा राज्य है जहां बेरोजगारी की दर केवल 1.2 प्रतिशत ही है। ऐसे विकसित राज्य में लोगों की शिक्षित दर भी 83 प्रतिशत से अधिक है। 

जब कोई समझदार, आर्थिक रूप से मजबूत और दूर-दृष्टि रखने वाला व्यक्ति वोट डालता है तो वह हर राजनीतिक पार्टी के द्वारा किए गए कार्य, अपनी सुरक्षा और तरक्की को ध्यान में रखता है। 4 मार्च 1998 (मतलब पिछले 23 वर्षों) से गुजरात में लोग अलग-अलग राजनीतिक नेताओं को अग्रसर बना कर भारतीय जनता पार्टी को भारी मतों से चुनते आ रहे हैं। जिससे राज्य की तरक्की का हिसाब लगाया जा सकता है। महात्मा गांधी और सरदार पटेल के पैतृक राज्य में दुनिया के सर्वोच्च कारखानेदार और व्यापारी भी हैं। 

अभी हाल में ही हुए लोकल इकाइयों, जिला पंचायत, तालुका, नगरपालिका, महानगर पालिका के 8 विधानसभा उपचुनावों के नतीजे भी हैरानी जनक हैं। 31 जिला परिषद चुनाव के अंदर सभी वोटरों ने भारतीय जनता पार्टी के उम्मीदवारों को जीत का सेहरा बांधा है। 2015 के चुनावों में कांग्रेस पाटी ने 24 जिला परिषद सीटों पर जीत प्राप्त की थी। भारतीय जनता पार्टी केवल 7 स्थानों पर ही जीत दर्ज करा सकी थी। इसी प्रकार तालुका चुनावों में जहां भारतीय जनता पार्टी 2015 में केवल 74 स्थानों पर जीत दर्ज करा सकी थी, इस बार 203 तालुका चुनावों पर जीत का झंडा गाड़ा है। पिछली बार 140 सीटें जीतने वाली कांग्रेस केवल 24 सीटों तक ही सिमट गई है। 

नगर पालिका चुनावों में तो नतीजे और भी हैरानीजनक हैं। भारतीय जनता पार्टी ने 2021 में 75 नगर पालिका सीटें जीतीं। पिछली बार 16 नगर पालिका सीटें जीतने वाली कांग्रेस पार्टी केवल 4 सीटों तक ही सिमट कर रह गई है। 6 महानगर पालिका सीटों पर भी भारतीय जनता पार्टी ने ही जीत दर्ज की। पिछले साल हुए 8 विधानसभा उपचुनाव भी भारतीय जनता पार्टी ने जीते और वोटरों ने गुजरात में कांग्रेस पार्टी  से मुख ही मोड़ लिया है। 

गुजरात में लोकल इकाई के चुनाव (ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में) तीन नए खेती कानून फार्म प्रोड्यूस ट्रेड एंड कॉमर्स एक्ट, किसान एग्रीमैंट ऑन प्राइस एश्योरैंस और फार्म सर्विस एक्ट के जून 2020 में आर्डिनैंस और सितंबर 2020 में कानून बनने के बाद हुए हैं। गुजरात के आदिवासी क्षेत्र में पिछले 5 सालों के दौरान मौसम की खराबी के कारण फसल खराब हो जाने पर केवल 91 किसानों ने खुदकुशी की है। 

विचारणीय विषय यह है कि गुजरात के किसानों को इन तीन कृषि कानूनों में कोई गलती नजर नर्ही आई और न ही उन्हें जमीन पर किसी विदेशी या बहुदेशी कंपनी की तरफ से कब्जे का डर ही महसूस हुआ, न ही उनको राहुल गांधी की कांग्रेस, अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पाटी या बहके हुए किसान नेता कानून के काले होने के बारे में कुछ समझा सके। 

किसानों द्वारा की गई खुदकुशियों के आंकड़ों के अनुसार पंजाब में पिछले 2 सालों के दौरान 919 से अधिक किसानों ने आत्महत्याएं की हैं। आज भी एक-दो किसान हर रोज खुदकुशी कर रहे हैं। 86 प्रतिशत किसान कर्जे के नीचे दबे हुए हैं। अन्य आंकड़े बताते हैं कि साल 2000 से 2015 के दौरान पंजाब में 16606 किसानों और किसान मजदूरों ने आत्महत्याएं की हैं। पंजाब हरित क्रांति का प्रमुख प्रदेश रहा है। श्वेत क्रांति के लिए भी दूध का बड़ा उत्पादक राज्य रहा है। फिर किसान खुदकुशी की तरफ क्यों? 

पंजाब विधानसभा चुनावों से पहले 9 जनवरी 2017 को डा. मनमोहन सिंह ने कै. अमरेन्द्र सिंह, रणदीप सिंह सुर्जेवाला आदि की उपस्थिति में सभी किसानों का कर्ज माफ करने की बात कही थी। यह वायदा कांग्रेस सरकार के 4 साल का राज पूरा होने के बाद भी पूरा क्यों नहीं हो सका? पूरे भारत का किसान जागृत है और अपने अधिकारों और जिम्मेदारियों के बारे में जानता है। 

इन कृषि कानूनों को काले कानून कहकर, काल्पनिक डर पैदा करके राजनीतिक पार्टियों और राज सत्ता के लोभियों के प्रचार का असर न स्वीकार करते हुए गुजरात के लोगों ने स्थानीय इकाइयों के चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को बड़ी सफलता प्रदान की है। केवल धार्मिक भावनाएं भड़का कर ‘जंग हिंद पंजाब दा होण लगा’ कि 1849 की सोच और नीति के आधार पर हम केंद्र सरकार से मन-मुटाव पैदा कर पंजाब का विकास नहीं कर पाएंगे।-इकबाल सिंह लालपुरा 
 

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