क्या संकेत देती है बंगाल के बशीरहाट की साम्प्रदायिक हिंसा

Edited By Punjab Kesari,Updated: 27 Jul, 2017 12:03 AM

what indicates the communal violence of bashirhat of bengal

4 जुलाई को प. बंगाल के बशीरहाट और इसके आस-पास के क्षेत्रों में व्यापक साम्प्रदायिक ......

4 जुलाई को प. बंगाल के बशीरहाट और इसके आस-पास के क्षेत्रों में व्यापक साम्प्रदायिक हिंसा भड़क उठी। बाहरी रूप में तो ऐसा लगता था कि एक किशोर द्वारा फेसबुक पर अत्यंत भड़काऊ और ऐतराजयोग्य सामग्री पोस्ट किए जाने के विरुद्ध यह मुस्लिमों का स्वाभाविक आक्रोश था। बशीरहाट से 15 कि.मी. दूर उत्तरी 24 परगना के बदुरिया नगर का रहने वाला यह किशोर एक ऐसे संगठन का सदस्य है, जो हिन्दुत्ववादी विचारधारा का प्रचारक है। यह पूरा क्षेत्र बंगलादेश की सीमा से सटा हुआ है और साम्प्रदायिक दृष्टि से अत्यंत संवेदनशील है। 

बेशक इस किशोर की पोस्ट को डिलीट कर दिया गया और उसे गिरफ्तार कर लिया गया तो भी दोनों पक्षों के शरारती तत्वों ने साम्प्रदायिक लपटें भड़काने में कोई कमी नहीं रहने दी। देखते ही देखते पूरा इलाका इस पाशविकता की जकड़ में आ गया। 4 जुलाई से दो दिन पहले ही इस साम्प्रदायिक हिंसा की जमीन तैयार हो गई थी। बशीरहाट की एक स्थानीय अखबार ने जानबूझ कर एक झूठी कहानी प्रकाशित की कि कुछ स्थानीय मुस्लिमों ने ईद के दिन पाकिस्तानी झंडा फहराया था और इसके प्रकाशित होते ही स्थानीय मुस्लिमों को निशाना बनाया जाने लगा। ऐसे में फेसबुक पोस्ट के प्रकाशित होने से पहले ही पूरा क्षेत्र वस्तुत: आग की लपटों में बदल चुका था। 

बंगलादेश में साम्प्रदायिक संगठनों के विरुद्ध शेख हसीना सरकार द्वारा कड़ी कार्रवाई शुरू होने के बाद जमात-ए-इस्लामी के बहुत से सदस्यों ने भाग कर पश्चिम बंगाल में शरण ले ली और बशीरहाट और आसपास के इलाकों में साम्प्रदायिक विषवमन शुरू कर दिया। इसी के चलते हिन्दुत्ववादी संगठन भी परिदृश्य पर उभर आए। उन्होंने मुख्य तौर पर बंगलादेश से आए हुए हिन्दू शरणार्थियों पर ध्यान केन्द्रित किया। उन्होंने प्रमुखता से यह प्रचार किया कि जिस तेजी से मुस्लिमों की संख्या बंगाल में बढ़ती जा रही है उसके चलते शीघ्र ही हिन्दू अल्पसंख्यक हो जाएंगे। इसी भावना की लहर पर सवार हो कर भाजपा उम्मीदवार शमिक भट्टाचार्य  2014 में बशीरहाट विधानसभा सीट जीत गए और राज्य में भाजपा के इकलौते विधायक बने। 

फिर भी उल्लेखनीय बात यह है कि स्थानीय मुस्लिमों ने जमात के साम्प्रदायिक प्रॉपेगंडे में फंसने से इंकार कर दिया और इसका कड़ा विरोध किया। परिणाम यह हुआ कि स्थानीय मुस्लिमों और बंगलादेश से आए जमात-ए-इस्लामी के लोगों में टकराव तेज हो गया। फिर भी भयावह वास्तविकता यह है कि इस क्षेत्र में दोनों ही समुदायों के साम्प्रदायिक तत्व सक्रिय थे। 4 जुलाई को जब वास्तविक रूप में हिंसा भड़की तो पुलिस तथा स्थानीय प्रशासन नींद में ही दबोचा गया। हैरानी की बात है कि दोनों को इस क्षेत्र की साम्प्रदायिक स्थिति के बारे में जानकारी थी, फिर भी उन्होंने उत्पात को टालने के लिए पहले से कोई प्रयास नहीं किया। यह बात समझ से परे है कि प्रशासन और पुलिस लापरवाह क्यों बनी रही। शायद पश्चिम बंगाल सरकार द्वारा गठित एक सदस्यीय न्यायिक आयोग की जांच से सच्चाई सामने आएगी। 

हालांकि राज्य के प्रिंट तथा इलैक्ट्रोनिक मीडिया ने बशीरहाट हिंसा के मुद्दे पर उल्लेखनीय संयम और संकोच तथा वस्तुनिष्ठता का प्रदर्शन किया और हिन्दू मुस्लिम एकता को रेखांकित किया तो भी दिल्ली के कथित राष्ट्रीय चैनलों ने बहुत ही पक्षपात पूर्ण भूमिका अदा की। पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा कि राष्ट्रीय टी.वी. चैनलों ने बंगलादेश के कोमिला शहर में हुए दंगों की पुरानी तस्वीरें दिखाने के साथ-साथ भोजपुरी फिल्मों के दृश्य टैलीकास्ट करके बशीरहाट में दंगे भड़काने का प्रयास किया। ममता ने यह चेतावनी दी थी कि राज्य सरकार दो टी.वी. चैनलों के विरुद्ध कार्रवाई करेगी क्योंकि उन्होंने बशीरहाट झड़पों के संबंध में जाली वीडियो क्लिप्स दिखाई थीं। उन्होंने बदुरिया और बशीरहाट के लोगों की प्रशंसा की कि भड़काहट के बावजूद वे भाजपा के जाल में नहीं फंसे। फिर भी हो सकता है कि बशीरहाट भविष्य की घटनाओं का ही संकेत हो। 

पश्चिम बंगाल की राजनीति में भाजपा काफी लंबे समय से हाशिए पर ही रही है तो भी 2014 के आम चुनावों में राष्ट्रीय स्तर पर अपनी जीत के बाद यह अचानक ही असाधारण रूप में सक्रिय हो गई। यह बुद्धिजीवियों और पूर्ण नौकरशाहों से लेकर कलाकारों तथा विभिन्न क्षेत्रों के लोगों का दिल जीतने के लिए बहुत दृढ़ प्रयास कर रही है। बहुत सारे पूर्व वामपंथी कार्यकत्र्ता, खासतौर पर माकपा के सदस्य भाजपा में शामिल हो गए। चूंकि इन लोगों को चुनाव लडऩे का काफी अनुभव है इसलिए 2021 के विधानसभा चुनाव जीतने में वे भाजपा के लिए बहुत मददगार सिद्ध होंगे। भाजपा इस जन अवधारणा का खूब लाभ ले रही है कि ममता बनर्जी की सरकार मुस्लिमों के प्रति नरम रुख रखती है और इसने अपनी पार्टी तथा मंत्रिमंडल में ऐसे मुस्लिमों को शामिल किया है जिनका साम्प्रदायिक रुख जगजाहिर है। 

वास्तव में इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता कि बाहरी रूप में बेशक साम्प्रदायिक शांति और सौहार्द देखने को मिलता है तो भी अन्दर ही अंदर साम्प्रदायिकवाद की बहुत गहरी भावनाएं कार्यरत हैं। यह मानना घोर बेसमझी होगी कि पुलिस और प्रशासन वर्तमान वातावरण से पूरी तरह अप्रभावित रहेंगे। भाजपा ने तो पहले ही ममता और तृणमूल सरकार के विरुद्ध अपना प्रचार अभियान तेज कर रखा है और इसके साथ ही तत्काल सरकार को बर्खास्त किए जाने की मांग उठाई है क्योंकि यह सरकार प्रदेश में अमन-कानून बनाए रखने में विफल रही है।    

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