पंजाब के खेत मजदूर का ‘भविष्य’ क्या

Edited By ,Updated: 23 Nov, 2019 01:38 AM

what is the  future  of punjab farm laborers

पंजाब का मालवा क्षेत्र जाति /जागीरदारी रुतबे वाली सत्ता की मानसिकता वाला क्षेत्र है। इसके कई सामाजिक/सांस्कृतिक कारण हैं। लेकिन यह रुतबा जब मानवीय सरोकारों से अलग हट कर मनुष्य को खाने लग जाता है तब दर्द उठता है। जुर्म की सीमा यह नहीं कि कैसे कोई एक...

 पंजाब का मालवा क्षेत्र जाति /जागीरदारी रुतबे वाली सत्ता की मानसिकता वाला क्षेत्र है। इसके कई सामाजिक/सांस्कृतिक कारण हैं। लेकिन यह रुतबा जब मानवीय सरोकारों से अलग हट कर मनुष्य को खाने लग जाता है तब दर्द उठता है। जुर्म की सीमा यह नहीं कि कैसे कोई एक नौजवान को घंटों तक बांध कर इतना पीटता है कि उसको जिंदगी से हाथ ही धोने पड़ जाते हैं। वह दुख में कुरलाता हुआ पानी मांगता है तब उसे पेशाब पिलाया जाता है।

संगरूर जिले के एक गांव चंगालीवाला के इसी जगमेल नाम के नौजवान को जब बुरी स्थिति में पी.जी.आई. ले जाया गया तब उसकी टांगों तक जहर फैल चुका था। इस कारण उसकी टांगेें काटनी पड़ गईं तथा वह इस दुख को बर्दाश्त न करते हुए दम तोड़ गया। यहां पर मामला केवल एक जगमेल सिंह तक सीमित नहीं है। यह मामला व्यवहार का है। पता नहीं मालवा में कितने जगमेल हैं जो दिन-रात पिसते हैं। 

जब भी मालवे का विशेष तौर पर जिक्र होता है तो किसान के कर्जे तथा किसान की आत्महत्या की बात होती है। सरकारों का ध्यान भी इस ओर जाता है। कुछेक कार्य भी होते हैं परन्तु इस मामले में कृषि में लगे मजदूर  की ओर ध्यान नहीं जाता। जबकि खेत मजदूर की हालत इतनी दयनीय होती है कि उसको बैंक ऋण देने के लिए तैयार नहीं। को-आप्रेटिव सोसायटियों से वह ऋण ले नहीं सकता। फिर जो फाइनांसर या साहूकार हैं उनसे वह 60 प्रतिशत वाॢषक ब्याज दर पर ऋण उठाता है। या फिर एक धनी किसान उसको कर्ज देकर उसे सारी उम्र तक अपना गुलाम बना लेता है।

ऐसे ही कई मामले सामने आते हैं कि कैसे उस गरीब दलित को तड़पा-तड़पा कर मारा जाता है। पंजाब खेत मजदूर सभा ने गत समय एक सर्वेक्षण करवाया, जिसके तहत उन्होंने दोआबा तथा मालवा के 6 जिलों के 13 गांवों में से 1618 परिवारों पर सर्वेक्षण किया। परिणाम यह रहा कि इनमें से 1364 परिवारों पर 12 करोड़ 47 लाख 20 हजार 979 रुपए का कर्जा है। कर्जा पीड़ित मजदूर पर प्रति परिवार 91,437 रुपए बनता है। यह भी महत्वपूर्ण तथ्य है कि इस कर्जे का 84 प्रतिशत जो है वह निजी स्रोतों से आता है। करीब 16 प्रतिशत ही बैंकों आदि से मिलता है। अब यह जो ऋण है वह किसी किस्म के लग्जरी कारण नहीं चढ़ा। यह तो सबसे ज्यादा बीमारियों के इलाज के कारण सिर पर चढ़ा है। 

कर्जे से आर्थिक तंगी ज्यादा खतरनाक
ऐसेे ही किसान/खेत मजदूर आत्महत्या वाले मामलों के अलावा जिस अहम मामले को कभी विचारा ही नहीं गया वह है महिलाओं की ओर से की जाने वाली आत्महत्याएं। पंजाब खेतीबाड़ी यूनिवॢसटी के अर्थ तथा सामाजिक विज्ञान विभाग के प्रमुख डा. सुखपाल सिंह के एक शोध अनुसार वर्ष 2011 का एक सर्वे बताता है कि पिछले कुछ वर्षों में पंजाब में 16000 आत्महत्याएं हुई थीं जिनमें से 9000 किसान तथा 7000 के करीब खेत मजदूर थे। मजदूरों में से 60 फीसदी इस कारण आत्महत्या करते हैं कि उनके सिर पर ऋण का बोझ है। बाकी के 40 प्रतिशत के आत्महत्या करने का मुख्य कारण आर्थिक तंगी ही है। आर्थिक तंगी ऋण से भी ज्यादा खतरनाक है। वास्तव में खेत मजदूर को ऋण मिलता ही नहीं। 

17 राज्यों में किसान/मजदूरों की प्रति माह आमदन 1700 रु.
हमारे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले समय यह बयान दिया कि हम वर्ष 2022 तक किसानों की आय दोगुनी कर देंगे। वह कैसे करेंगे यह तो उन्होंने नहीं बताया परन्तु कृषि अर्थशास्त्री दविंद्र शर्मा का कहना है कि सरकारी आंकड़े बताते हैं कि किसानों की 17 राज्यों में यानी कि आधे देश में वाॢषक आय 20,000 रुपए है। इसका अर्थ यह हुआ कि प्रति माह 1700 रुपए। इसमें कृषि मजदूर भी सरकार ने शामिल किए हैं। अब हम हिसाब लगा लें कि यदि आय दोगुनी भी हो जाती है तब कुल कितनी आय बनेगी और ऐसे समय में परिवारों का गुजारा कैसे होगा? आधे देश के किसान परिवारों का, खेत मजदूर परिवारों का क्या हश्र होगा, यह आप अंदाजा लगा लें।

सच्चाई तो यह है कि हम 1700 रुपए में एक पशु को भी नहीं पाल सकते, फिर यह तो एक परिवार के पालन-पोषण की बात हो रही है। फिर यदि कोई पढऩा चाहे या फिर बीमार हो जाए तब ऐसी स्थिति में कर्जा न लिया जाए तो फिर क्या किया जाए। और इसके बाद मजबूरी में आत्महत्या भी न करे तो फिर क्या करे? आज खेत किसान हर कदम पर मर रहा है। वह ऋणी हो चुका है। कोई एकाध खतरनाक मामला हो जाए तो मीडिया उसे उठा लेता है। इसके बाद लोग इकट्ठे होकर संघर्ष करते हैं। फिर उसका हल शायद निकल आता हो। मगर बीमारी की जो जड़ है उसकी कौन तलाश करेगा? उसके बारे में कौन विचार करेगा? हमारा सवाल यही है और यह मामला भी यही है। सरकार नजरअंदाज कर देती है।-देसराज काली(हरफ-हकीकी) 
 

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