कांग्रेस के ‘संकट’ का वास्तव में कारण क्या है

Edited By ,Updated: 02 Aug, 2019 01:03 AM

what is the real reason for the crisis of congress

राहुल गांधी द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद, पार्टी का संचालन 3 सप्ताह (अनौपचारिक रूप से 2 माह) से बिना मुखिया के हो रहा है। स्वतंत्रता के बाद देश पर 50 वर्षों तक एकछत्र शासन करने वाली इस पार्टी की स्थिति आज उस चलते वाहन जैसी हो गई...

राहुल गांधी द्वारा कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने के बाद, पार्टी का संचालन 3 सप्ताह (अनौपचारिक रूप से 2 माह) से बिना मुखिया के हो रहा है। स्वतंत्रता के बाद देश पर 50 वर्षों तक एकछत्र शासन करने वाली इस पार्टी की स्थिति आज उस चलते वाहन जैसी हो गई है, जिसका चालक बीच रास्ते में उतर गया है और अनियंत्रित गाड़ी इधर-उधर भाग रही है। इस पृष्ठभूमि में कांग्रेस के कई वरिष्ठ और अनुभवी नेताओं के जो वक्तव्य सामने आए हैं, वे स्पष्ट करने हेतु पर्याप्त हैं कि पार्टी आज किस स्थिति से गुजर रही है। 

हाल ही में केरल के तिरुवनंतपुरम से कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने कहा कि राहुल गांधी के अध्यक्ष पद छोडऩे के बाद, नेतृत्व को लेकर ‘स्पष्टता के अभाव’ का कांग्रेस पर घातक प्रभाव पड़ रहा है। इससे पहले पार्टी के वरिष्ठ नेता डा. कर्ण सिंह और जनार्दन द्विवेदी भी थरूर की भांति पार्टी की वर्तमान स्थिति को लेकर अपने विचार रख चुके हैं। दिल्ली में संसद स्थित सैंट्रल हॉल में अन्य कांग्रेसी सांसद भी दबी जुबान में इसी प्रकार की बात करते हुए झुंझलाते नजर आ रहे हैं। यक्ष प्रश्न है कि क्या कांग्रेस में समस्या की जड़ स्पष्ट नेतृत्व की कमी है या फिर नेतृत्व का मुद्दों को लेकर दिशाहीन होना है? 

यदि पिछले 100 वर्षों में भारतीय राजनीति का आकलन करें तो परिणाम बताएंगे कि नेतृत्व और नीतियां सदैव एक-दूसरे की पूरक रही हैं। अंग्रेजों के भारत छोडऩे से पहले कांग्रेस का तत्कालीन नेतृत्व गांधी जी के सनातन दर्शन, उनकी बहुलतावादी संस्कृति के साथ लौहपुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल के प्रखर राष्ट्रवाद और दूरदर्शी दृष्टिकोण से ओत-प्रोत था। किंतु जब कांग्रेस कार्यसमिति की राष्ट्रीय भावना के प्रतिकूल सरदार पटेल के स्थान पर पंडित जवाहर लाल नेहरू को स्वतंत्र भारत के नेतृत्व के साथ कांग्रेस की कमान सौंपी गई, तब कालांतर में गांधीजी और पटेल- दोनों का संयुक्त वैचारिक अधिष्ठान, उनकी मृत्यु के साथ समाप्त हो गया। 

समाजवादी आर्थिक नीति 
वामपंथ जनित समाजवादी आर्थिक नीति को अंगीकार करने के साथ 1947-48 में पाकिस्तान और 1962 में चीन के भारत पर हमले के समय, पं. नेहरू ने जिस बुद्धिमत्ता और इच्छाशक्ति का परिचय दिया, उसने खंडित भारत की भौगोलिक संरचना को और अधिक विकृत कर दिया, साथ ही पं. नेहरू के लापरवाह भरे आचरण और आत्ममुग्धता ने शेष विश्व में भारत की छवि को ‘कमजोर राष्ट्र’ की भी बना दिया। कश्मीर मामले में उनकी अदूरदर्शी नीतियों से आज वहां की स्थिति ‘‘कैंसर का फोड़ा’’ बन गई है। 

अब सोचिए, पं. नेहरू के नेतृत्व में जिस कांग्रेस ने पाकिस्तान और चीन के खतरों की उपेक्षा की और दोनों की वास्तविक नीयत को पहचानने से चूक गई, उसी कांग्रेस ने इंदिरा गांधी की अगुवाई में वर्ष 1971 में पाकिस्तान के टुकड़े कर दिए, जिससे एक नए राष्ट्र बंगलादेश का जन्म हुआ। इसी तरह, देश में कांग्रेस समॢथत बुद्धिजीवी और स्वघोषित सैकुलरिस्ट दावा करते हैं कि पं. नेहरू ने ही देश में मजबूत लोकतंत्र की नींव रखी। यदि ऐसा था, तो क्या यह सत्य नहीं कि उन्हीं की सुपुत्री इंदिरा गांधी के नेतृत्व में तत्कालीन कांग्रेस ने लोकतांत्रिक और संवैधानिक मूल्यों का गला घोंटते हुए 1975-77 के बीच देश पर आपातकाल थोप दिया, जिसमें राजनीतिक विरोधियों को चुन-चुनकर जेल भेजकर अमानवीय यातनाएं दी गई थीं? 

यह स्थापित सत्य है कि पं. नेहरू समाजवादी और वामपंथी विचारधारा के चश्मे से भारत और शेष विश्व को देखते थे। यही कारण था कि जब सरदार पटेल ने सोमनाथ मंदिर का पुर्निर्माण करवाया, तब पं. नेहरू ने इसका विरोध किया। यदि पटेल ने दृढ़ता नहीं दिखाई होती तो आज सोमनाथ का मामला भी अयोध्या की तरह विवादित बना रहता। वाम-दर्शन की ओर झुकाव के कारण ही पं. नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस सरकार ने समाजवादी अर्थव्यवस्था को अपनाया, जिसे अगले 4 दशकों तक लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी ने भी अपने शासनकाल में आगे बढ़ाया। उस कालखंड में सरकार का देश के आयात-निर्यात पर पूर्ण नियंत्रण और लाइसैंस-इंस्पैक्टर राज का भय चरम पर था। दूध, चीनी सहित दैनिक आवश्यकता से संबंधित मूलभूत वस्तुओं के लिए लंबी-लंबी कतारें लगा करती थीं।

एक समय ऐसा भी आया, जब ऋण चुकाने हेतु भारत को विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष में अपना स्वर्ण भंडार गिरवी रखना पड़ा था और आयातित वस्तुओं के भुगतान के लिए 3 माह का विदेशी मुद्रा भंडार ही शेष रह गया था। अब कांग्रेस के जिस नेतृत्व ने उस समय भारतीय अर्थव्यवस्था को रसातल में पहुंचा दिया, वर्ष 1991 में उसी कांग्रेस ने पी.वी. नरसिम्हा राव के नेतृत्व में डा. मनमोहन सिंह के माध्यम से नेहरूकाल की आर्थिक नीतियों का विघटन कर दिया, जिसके परिणामस्वरूप भारत की स्थिति लगातार सुधर रही है। इस पृष्ठभूमि में वर्तमान कांग्रेस में संकट का कारण क्या है? 

किंकत्र्तव्यविमूढ़ नेतृत्व, नकारात्मक राजनीति
आज कांग्रेस में व्याप्त समस्या के पीछे शीर्ष नेतृत्व का किंकत्र्तव्यविमूढ़ होना है, जिसके कारण उनकी नीतियां स्पष्ट ही नहीं हैं। वर्ष 1998 में सोनिया गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने से लेकर राहुल गांधी के 2017 में पार्टी की कमान संभालने और अब इस्तीफा देने तक कांग्रेस ने अपनी नकारात्मक राजनीति, आचरण और व्यवहार से यह तो साफ  कर दिया है कि वर्तमान समय में भारतीय जनता पार्टी और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ही उसकी सबसे बड़ी राजनीतिक विरोधी है। गत वर्षों में भाजपा, विशेषकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और संघ के प्रति कांग्रेस का विरोध उस स्तर को लांघ चुका है, जहां भारत की सहिष्णु और बहुलतावादी छवि को कलंकित किया जा रहा है। अनर्गल आरोपों के कारण पार्टी के शीर्ष नेता राहुल गांधी आज अदालती मामलों में फंसे हुए हैं और कुछ में तो उन्हें माफी भी मांगनी पड़ी है। राफेल मामला इसका प्रत्यक्ष उदाहरण है। 

यक्ष प्रश्न है कि कांग्रेस समर्थन किसका कर रही है? वास्तव में, इस प्रश्न के उत्तर में ही कांग्रेस के संकट का कारण और निवारण- दोनों निहित हैं। क्या यह सत्य नहीं कि देश में इस्लामी कट्टरवाद-आतंकवाद को झूठा बताने के लिए कांग्रेस नेतृत्व (राहुल गांधी, चिदम्बरम, दिग्विजय सिंह, शिंदे आदि) ने यू.पी.ए. में विकृत तथ्यों के आधार पर ‘हिंदू-भगवा आतंकवाद’ शब्द की रचना कर डाली थी? दावा तो यहां तक किया गया था कि 2008 में दिल्ली स्थित बाटला हाऊस मुठभेड़ में मारे आतंकियों की तस्वीरें देखकर सोनिया गांधी रो पड़ी थीं। 

आत्मचिंतन नहीं किया
आशा थी कि 2014 के लोकसभा चुनाव में मिली पराजय के बाद कांग्रेस आत्मङ्क्षचतन करते हुए अपने मूल चरित्र की ओर लौटेगी। क्या ऐसा हुआ? क्या यह सत्य नहीं कि राहुल गांधी सहित कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व ने ‘अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता’ के नाम पर ‘भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशा-अल्लाह-इंशा-अल्लाह’ नारे को उचित ठहराकर इसके आरोपी और ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ के प्रतीक कन्हैया कुमार का खुलकर बचाव किया था या यूं कहें कि ऐसा अब भी हो रहा है? क्या कांग्रेस ने 2016 की सर्जिकल स्ट्राइक और 2019 में बालाकोट पर भारतीय वायुसेना की एयरस्ट्राइक पर सवाल नहीं उठाए थे? 

विगत वर्षों में राहुल गांधी कांग्रेस की छवि सुधारने के लिए मंदिरों और हिंदू-मठों में पूजा-अर्चना करते हुए दिखाई दिए थे। पार्टी ने उन्हें कभी जनेऊधारी, तो कभी दत्तात्रेय गोत्र का बताया। दावा यह भी किया गया कि राहुल कैलाश मानसरोवर की यात्रा कर चुके हैं। किंतु इसका वांछित लाभ कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व को नहीं मिला क्योंकि उनकी ‘मंदिर-यात्रा’ हिंदू देवी-देवताओं के प्रति सम्मान या आस्था न होकर केवल चुनावी लाभ उठाने तक सीमित थी। वैसे भी कांग्रेस नेतृत्व के ‘मंदिर-प्रेम’ और सनातन संस्कृति के प्रति सम्मान की काली सच्चाई तभी सामने आ गई थी, जब मोदी सरकार द्वारा पशु खरीद-बिक्री संबंधित नियम बनाने पर केरल स्थित कन्नूर में कांग्रेसी नेताओं ने करोड़ों हिंदुओं के लिए पूजनीय गाय के बछड़े का न केवल गला काट दिया, अपितु भाजपा-संघ विरोध के नाम पर उसके मांस का सार्वजनिक रूप से सेवन कर हिंदुओं की आस्था और परम्पराओं को ठेस पहुंचाई थी। 

वास्तव में, इस प्रकार के कई मामलों से स्पष्ट है कि कांग्रेस को अब भी वामपंथियों की वह ‘बौद्धिक-सेवा’ प्राप्त है, जिसे इंदिरा गांधी ने अपनी सरकार बचाने के लिए 1970 के दशक में आऊटसोर्स किया था। सच तो यह है कि आज देश में वामपंथी जिस प्रकार अप्रासंगिक हो चुके हैं, उसी प्रकार कांग्रेस वाम चिंतन को अंगीकार करने के कारण कांग्रेस अपने अस्तित्व के लिए जूझती नजर आ रही है। दिशाहीन कांग्रेस की समस्या ही यही है कि उसका नेतृत्व आज भी उपरोक्त विकृति के कारण ‘टुकड़े-टुकड़े गैंग’ का समर्थन, भारतीय सेना का अनादर, देश की मूल सनातन संस्कृति को शेष विश्व में कलंकित और हिंदुओं की आस्था से खिलवाड़ कर रहा है। जब तक पार्टी के भीतर आमूलचूल परिवर्तन नहीं होगा, उसकी स्थिति यथावत रहेगी।-बलबीर पुंज
 

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