Edited By Pardeep,Updated: 04 Jul, 2018 03:46 AM
सम्मानित महसूस कर रहा हूं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मेरी आलोचना को नोटिस किया है। बेशक, उन्होंने मेरी प्रशंसा की और कहा, ‘‘मैं वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर जी का सम्मान करता हूं। उन्होंने आपातकाल के दौरान आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। भले ही, वह...
मैं सम्मानित महसूस कर रहा हूं कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने मेरी आलोचना को नोटिस किया है। बेशक, उन्होंने मेरी प्रशंसा की और कहा, ‘‘मैं वरिष्ठ पत्रकार कुलदीप नैयर जी का सम्मान करता हूं। उन्होंने आपातकाल के दौरान आजादी के लिए लड़ाई लड़ी। भले ही, वह हमारे कटु आलोचक होंगे लेकिन इसके लिए मैं उन्हें सलाम करता हूं।’’ जहां तक तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की ओर से लगाए गए आपातकाल की आलोचना का सवाल है, प्रधानमंत्री और मेरी राय एक है।
हमारा मतभेद इस पर है कि हम किस तरह का समाज चाहते हैं। वह भारतीय जनता पार्टी के हैं, जो देश में ङ्क्षहदू राष्ट्र बनाने की चाहत रखने वाले आर.एस.एस. की राजनीतिक शाखा है और मैं एक विविधतावादी समाज बनाना चाहता हूं। उनकी पार्टी लोगों को बांटती है और मैं उसमें विश्वास रखता हूं जो महात्मा गांधी ने बहु-सांस्कृतिक राष्ट्र के बारे में सिखाया है, जहां अलग-अलग मजहबों के लोग बिना भय के साथ रह सकते हैं। मुझे याद है कि गांधी जी अपनी प्रार्थना सभाओं में कुरान के साथ गीता और बाइबल का पाठ कराते थे और अगर किसी ने इस पर आपत्ति की तो वह सभा नहीं करते थे। महात्मा गांधी का विविधतावाद का दर्शन राष्ट्र का स्वभाव था। मोदी गांधी जी का सम्मान करते हैं और ‘‘सबका साथ सबका विकास’’ कहते हैं लेकिन उनकी पार्टी का लक्ष्य इसके विपरीत है।
मोदी विचार-विमर्श के लिए नागपुर आलाकमान जाकर बहुत लोगों को निराश कर देते हैं। मुसलमान खासतौर पर नाराज होते हैं क्योंकि उन्हें समाज मजहब के आधार पर बंटता दिखाई देता है, बाबरी मस्जिद को ढहाने के बाद से और भी ज्यादा। मोदी ने बुजुर्ग भाजपा नेता अडवानी तथा मुरली मनोहर जोशी को सफलतापूर्वक पार्टी के मामलों से दूर रखा है। मोदी के कामकाज का तरीका भी इन नेताओं के कामकाज से अलग है लेकिन देश को जिस दिशा में वह ले जाना चाहते हैं, वह स्पष्ट है। हल्के रंग का हिंदुत्व पूरे देश में फैल गया है।
प्रधानमंत्री को खुद से पूछना चाहिए कि क्या यह परिदृश्य लोगों के लिए अच्छा है। एक बहु-संस्कृति वाले समाज को विविधतावादी ही होना चाहिए क्योंकि भारत के लिए यही सही है। जब शिक्षा या सरकार के दूसरे मामलों में महत्वपूर्ण पद आर.एस.एस. के विश्वासपात्रों को दिए जाते हैं तो उदारवादियों, मुसलमानों तथा हाशिए पर रहने वालों का विश्वास हिल जाता है। मोदी को उनमें आत्मविश्वास भरना चाहिए ताकि उनके योगदान को भी बराबर के महत्व का समझा जाए। मैं देखता हूं कि अल्पसंख्यक असुरक्षित महसूस करते हैं। वे आबादी का एक चौथाई हैं। तत्कालीन मुस्लिम लीग ने समुदाय के मन में जहर भर दिया था और ऐसी स्थिति पैदा कर दी थी कि रेलवे स्टेशनों पर पानी को भी अलग-अलग घड़ों में बांट दिया गया था और एक हिंदू तथा दूसरा मुसलमान के लिए चिन्हित कर दिया गया था।
हिंदू खुश थे कि खान अब्दुल गफ्फार खान के प्रभाव वाला उत्तर पश्चिम सीमा प्रांत उनके साथ था लेकिन दूसरी तरफ वे मुसलमानों को ज्यादा छूट नहीं देते थे। अबुल कलाम आजाद, जो कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में से थे, हिंदुओं के साथ आ गए थे लेकिन मुस्लिम लीग ने धर्म के आधार पर बंटवारे के रास्ते को छोड़ा नहीं। दुर्भाग्य से, इसने छात्रों को प्रभावित किया जो अलग-अलग रसोई में जाते थे और अपना अलग समूह बनाते थे। मुझे याद है कि मैं लाहौर लॉ कालेज में आखिरी वर्ष में था, जब कायदे आजम मोहम्मद अली ने छात्रों को संबोधित किया था। बेशक उन्होंने इस पर जोर दिया कि हिंदू और मुसलमान दो अलग राष्ट्र हैं लेकिन उन्होंने समझाया कि उन्हें एक साथ रहना चाहिए और देश को विकसित करना चाहिए। मैंने प्रश्नोत्तर के सत्र में अपना संदेह जाहिर किया और जिन्ना ने हमें भरोसा दिलाया कि भारत और पाकिस्तान बहुत अच्छे दोस्त होंगे।
आज दोनों समुदायों में बहुत कम संपर्क है। भारत आने के लिए पाकिस्तानियों को वीजा मिलना लगभग नामुमकिन है और भारतीयों को पाकिस्तान जाने का। मेरी जो सबसे बुरी आशंका थी, वह सच साबित हुई। दोनों तरफ के बहुत सारे लोग मानते हैं कि कश्मीर बाधा है। प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, ‘‘कश्मीर भारत विरोधी भावनाओं का प्रतिनिधित्व करता है।’’ अगर यह नहीं होता तो भारत से नफरत करने के लिए पाकिस्तान कोई और मुद्दा ढूंढ निकालता। प्रधानमंत्री मोदी पर वापस आएं तो लगता है कि उन्होंने सत्ता संभालने के तुरंत बाद पाकिस्तान से संबंध बढ़ाने की खूब कोशिश की। यहां तक कि उस समय के प्रधानमंत्री नवाज शरीफ को शुभकामना देने के लिए उन्होंने रूस और अफगानिस्तान से वापसी की अपनी यात्रा बीच में, लाहौर में रोक दी। 10 सालों में यह किसी भारतीय प्रधानमंत्री की पहली पाकिस्तान यात्रा थी। अपनी बातचीत में दोनों नेताओं ने कश्मीर पर भी चर्चा की।
अपने शासन के अंतिम साल में मोदी पाकिस्तान को लेकर कोई पहल नहीं करेंगे ताकि ऐसा न हो कि कोई नई बहस शुरू हो जाए जो फायदेमंद हो या न हो। मोदी का ध्यान विंध्य पार के प्रदेशों पर केन्द्रित रहेगा क्योंकि हिंदी भाषी राज्यों में भाजपा काफी मजबूत दिखाई देती है। खतरा यह है कि सत्ता उन पर केन्द्रित है जिसका अर्थ है-एक व्यक्ति का शासन। जब लोगों को लगा कि एक व्यक्ति का शासन बन गया है तो श्रीमती गांधी को सत्ता से बाहर कर दिया गया था। दुर्भाग्य से, उनकी सत्ता को चुनौती देने वाला कोई और बड़े कद का नेता नहीं था, न ही उन्होंने किसी को बनने दिया था। भाजपा में परिस्थिति अभी ऐसी ही है। मोदी का विरोध करने वाला कोई नहीं है। यही उनकी मजबूती है और यही कमजोरी भी।
पता नहीं, चुनाव के पहले प्रधानमंत्री कमजोर पक्षों को दुरुस्त कर पाते हैं या नहीं। मोदी एक ऐसे घोड़े पर सवार हैं जिस पर से वह चुनाव के पहले उतर नहीं सकते हैं। उनकी सफलता इसी पर निर्भर करेगी कि आर.एस.एस. के काडर कितना बेहतर कर पाते हैं। शायद मोदी चुनाव लडऩे के लिए कोई रणनीति बना रहे हैं और यह साफ है कि वही पार्टी होंगे। ऐसा लगता है कि बाकी पार्टियां इकट्ठी होने जा रही हैं और संघीय मोर्चा जैसा कुछ बनाएंगी। इसका प्रयास, जैसा कांग्रेस नेता सोनिया गांधी कह चुकी हैं, मोदी को सत्ता मेें वापस आने से रोकने का होगा। ऐसे मोड़ पर, मोदी को पार्टी की सबसे ज्यादा जरूरत होगी लेकिन यह कैसे संभव हो पाएगा कि जब वह खुद ही भाजपा बन गए हैं?-कुलदीप नैय्यर