क्या एन.आर.सी. में संशोधन से असम में 'अवैध घुसपैठ' रुकेगी

Edited By Punjab Kesari,Updated: 29 Mar, 2018 01:43 AM

what nrc illegal intrusion in assam will prevent

प्रदेश और केन्द्र दोनों की ही सरकारें वोट बैंक राजनीति के हित में बंगलादेश से होने वाली अवैध घुसपैठ से अति महत्वपूर्ण मुद्दे पर 4 दशकों तक राजनीतिक नौटंकियों में व्यस्त रही हैं। फिर भी 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या का संज्ञान लेते हुए अपनी...

प्रदेश और केन्द्र दोनों की ही सरकारें वोट बैंक राजनीति के हित में बंगलादेश से होने वाली अवैध घुसपैठ से अति महत्वपूर्ण मुद्दे पर 4 दशकों तक राजनीतिक नौटंकियों में व्यस्त रही हैं। फिर भी 2009 में सुप्रीम कोर्ट ने इस समस्या का संज्ञान लेते हुए अपनी सीधी निगरानी में असम में 1991 के राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एन.आर.सी.) के संशोधन का आदेश जारी किया। इस आदेश का उद्देश्य असम में रहने वाले वास्तविक भारतीय नागरिकों का एक रजिस्टर तैयार करना था ताकि सभी अवैध विदेशियों को चिन्हित किया जा सके और उनके नाम असम की चुनावी सूचियों में से काटे जाएं। 

सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद निहित राजनीतिक स्वार्थों ने अपने-अपने वोट बैंक को बचाने के लिए एन.आर.सी. में या तो विलम्ब किया या फिर इस आदेश को विफल बनाने की कोशिश की। यह बात उन बयानों से भली-भांति स्पष्ट होती है जो एन.आर.सी. का प्रथम आंशिक मसौदा जारी होने के बाद दिए गए थे। सत्यापन की प्रक्रिया पर ही आशंकाएं उठाई गईं क्योंकि इसमें शामिल किए गए नामों के संबंध में कुछ विसंगितयां पाई गई थीं। ऐसा शरारत भरा प्रोपेगंडा भी किया जा रहा है कि विदेशी घुसपैठियों का मामला क्षेत्रीय वोट बटोरने के लिए एक राजनीतिक हथकंडा मात्र है। इस आरोप का अप्रत्यक्ष तात्पर्य यह निकलता है कि एन.आर.सी. का संशोधन फिजूल की कवायद है या फिर इस आरोप का विशिष्ट रूप में यह अर्थ निकलता है कि असम में कोई अवैध बंगलादेशी घुसपैठिया है ही नहीं। 

1979 की चुनावी सूचियों एवं 1983 के असम विधानसभा चुनावों को चुनौती देने के संबंध में सुप्रीम कोर्ट में दायर एक लिखित याचिका पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए भारतीय चुनाव आयोग ने 1971 की मतदाता सूचियों के आधार पर बड़े पैमाने पर संशोधन का कार्यक्रम शुरू किया। इस संशोधन दौरान 1.5 करोड़ मतदाताओं में से 35 लाख ऐसे थे जो स्वयं अथवा माता-पिता के माध्यम से 1971 की मतदाता सूचियों में कहीं दिखाई ही नहीं दिए। बेशक दावों और ऐतराजों के निपटान के बाद यह आंकड़ा घट कर लगभग 10 लाख पर आ गया, फिर भी इससे इन आशंकाओं की पुष्टि हो गई कि कुछ चुनावी क्षेत्रों में घुसपैठियों की बाढ़ सी आ गई है। 1985 के असम समझौते पर हस्ताक्षर होने के बावजूद  अवैध घुसपैठ पर कोई अंकुश नहीं लग पाया। 

चुनावी डाटा और जनगणना के आंकड़े 1971 के बाद असम की आबादी और मतदाता संख्या में असाधारण वृद्धि के संकेत देते हैं-खासतौर पर 1981 के बाद तो यह वृद्धि बहुत ही विराट रूप ग्रहण कर गई। महत्वपूर्ण बात यह है कि मतदाताओं की गिनती तथा जनसंख्या में वृद्धि उन जिलों में अधिक प्रचंड रूप में देखने को मिलती है जो बंगलादेश की सीमा से सटे हैं। फिर भी जनसंख्या विशेषज्ञों और विशेषकों की हिमाकत देखिए कि इस वृद्धि को वे सीमापार से होने वाली घुसपैठ  का संकेत नहीं मानते लेकिन तेजी से बदल रहा असम का जनसांख्यिकी अनुपात एक अलग ही कहानी कहता है। 

1971 के बाद असम के मजहबी और भाषायी प्रोफाइल में उल्लेखनीय परिवर्तन हुआ है। 1971 में असम की आबादी में मुस्लिमों का अनुपात 24 प्रतिशत था जो 1991 में बढ़ कर 31 प्रतिशत और 2011 में 34.7 प्रतिशत तक पहुंच गया था। संख्या की दृष्टि से 1951-1971 दौरान मुस्लिम आबादी में 16 लाख की वृद्धि हुई यानी 80,000 प्रतिवर्ष की दर से बढ़ती रही। 1971-91 दौरान उनकी आबादी में 27.81 लाख की वृद्धि हुई जोकि वार्षिक आधार पर 1,39,000 बैठती है। 1991 से 2001 के बीच के मात्र 10 वर्षों में मुस्लिम आबादी में 1,87,000 प्रतिवर्ष की दर से 18.67 लाख की वृद्धि हुई जबकि 2001-2011 तक के अगले दशक में 26 लाख मुस्लिम आबादी बढ़ गई जोकि प्रति वर्ष 2,60,000  बनती है। यह भारत भर में कहीं भी आबादी की सबसे ऊंची वृद्धि दर है। 

भाषायी दृष्टि से असम में 1971 के बाद बंगालीभाषियों की संख्या बहुत तेजी से बढ़ी है। जहां 1971 में असम में बंगाली भाषियों की संख्या 19 प्रतिशत थी, वहीं 2001 में यह 30 प्रतिशत तक पहुंच गई। जहां नेपाली और असमी भाषियों की संख्या में कमी आई है, वहीं हिन्दी तथा अन्य भाषियों की संख्या में मामूली वृद्धि हुई है। उल्लेखनीय बात तो यह है कि असम के मजहबी और भाषायी प्रोफाइल में सबसे प्रखर बदलाव उन्हीं जिलों में आया है जो बंगलादेश की सीमा से सटे हुए हैं। समाज शास्त्री असम के मजहबी और भाषायी प्रोफाइल में इस महत्वपूर्ण बदलाव के लिए मुख्य तौर पर बंगलादेश से होने वाली घुसपैठ को जिम्मेदार मानते हैं। 

1996 में बंगलादेश जनसंख्या रिपोर्ट ने खुलासा किया कि 80 लाख लोग देश से गायब हैं या जनगणना में उनका उल्लेख नहीं है। 2013 में संयुक्त राष्ट्र के आॢथक एवं सामाजिक मामलों के विभाग ने यह रिपोर्ट जारी की थी कि 32 लाख बंगलादेशी भारत में न केवल दाखिल हुए हैं बल्कि स्थायी तौर पर वहां बस चुके हैं। बेशक इन घुसपैठियों में अधिक संख्या मुस्लिमों की ही है तो भी बंगलादेश के जाने-माने अर्थशास्त्री और अकादमिशियन प्रोफैसर अब्दुल बराक के अनुसार 1964 से 2012 के बीच नस्ली और मजहबी उत्पीडऩ से परेशान होकर 1 करोड़ 10 लाख हिन्दुओं ने बंगलादेश से पलायन किया है। इन लोगों का पसन्दीदा गंतव्य भारत के पूर्वोत्तर राज्य और खास तौर पर असम होता है न कि पश्चिम बंगाल। इसका एक कारण यह है कि पश्चिम बंगाल में आबादी का घनत्व पहले ही बहुत अधिक है। 

1981 के बाद इस रुझान में और भी बढ़ौतरी हुई है। अवैध आव्रजन पहचान पंचाट अधिनियम (आई.एम.डी.टी.) 1983 के लागू होने के बाद बंगलादेश से आने वालों को और भी उत्साह मिला है। शेष भारत में लागू 1946 के विदेशी नागरिक अधिनियम के विपरीत आई.एम.डी.टी. अधिनियम केवल असम में ही लागू है। जहां विदेशी नागरिक कानून के अंतर्गत अपनी वैधता सिद्ध करने की जिम्मेदारी आरोपी पर होती है, वहीं आई.एम.डी.टी. के अंतर्गत उसे अवैध घुसपैठिया सिद्ध करने की जिम्मेदारी शिकायतकत्र्ता पर होती है। हालांकि सुप्रीमकोर्ट ने 2005 में आई.एम.डी.टी. कानून को रद्द कर दिया था तो भी असम में सरकारी दस्तावेजों की जालसाजी का कारोबार आज भी काफी फल-फूल रहा है। दूसरी ओर एन.आर.सी. यानी राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के संशोधन को स्थानीय जनता से जोरदार समर्थन मिला है। 

एन.आर.सी. में अपना नाम दर्ज करवाने के लिए कुल 68.27 लाख परिवारों ने 6.6 करोड़ दस्तावेजों सहित 3.29 करोड़ आवेदन दाखिल करवाए हैं। यह कार्य इन अर्थों में बहुत जटिल और दैत्याकार है कि जाली दस्तावेजों की संख्या बहुत अधिक है। फिर भी विरासत या पुश्तैनी जानकारियों से संबंधित आंकड़ों की डिजीटाईजेशन ने किसी के खानदान से संबंधित दावों की सत्यता परखना बहुत आसान और अकाट्य बना दिया है। अभी तक 48 लाख मामलों में अपने बुजुर्गों के संबंध में बताई गई गलत जानकारियां पकड़ी गई हैं। एक मुद्दा जोकि विदेशी नागरिक अधिनियम 1946 के अंतर्गत निपटाया जाना चाहिए था और जिसके लिए अर्थपूर्ण कूटनीतिक पहल होनी चाहिए थी, उसे केवल राजनीतिक स्वार्थों के चलते विकराल और विवादित रूप धारण करने दिया गया है।

बंगलादेशी आव्रजकों के साथ वोटों की राजनीतिक सौदेबाजी इस आधार पर होती रही है कि तुम हमें वोट दो, हम असम में तुम्हारी नागरिकता बचाए रखेंगे। इसी सौदेबाजी ने न केवल असम का जनसांख्यिकी संतुलन बिगाड़ दिया है, बल्कि स्थानीय लोगों में ये आशंकाएं व्याप्त हो गईं कि उन्हें हाशिए पर धकेला जा रहा है लेकिन उनकी आशंकाओं की अनदेखी होती रही है। सुप्रीमकोर्ट के नवीनतम निर्देश के अनुसार 30 जून 2018 तक एन.आर.सी. का अंतिम  प्रारूप प्रकाशित होना चाहिए। इस आदेश का सभी जागरूक नागरिकों द्वारा भाषा, मजहब और नस्ल की सीमाओं से ऊपर उठकर स्वागत किया गया है क्योंकि इसी की बदौलत दशकों पुराना विवाद समाप्त हो सकता है।-प्राणजीत अग्रवाल

India

397/4

50.0

New Zealand

327/10

48.5

India win by 70 runs

RR 7.94
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!