जब कानून के रक्षक ही बन जाएं भक्षक

Edited By ,Updated: 07 Nov, 2019 12:41 AM

when only the defenders of law become eater

हाल कही में राष्ट्रीय राजधानी में वकीलों तथा पुलिस कर्मियों में हुई झड़पें तथा वकीलों द्वारा पुलिस कर्मियों की बेरहमी से की गई पिटाई एक शर्मनाक बात ही नहीं बल्कि एक बेहद संवेदनशील मामला है। वायरल हुए वीडियोज में देखा जा सकता है कि कैसे वकील...

हाल कही में राष्ट्रीय राजधानी में वकीलों तथा पुलिस कर्मियों में हुई झड़पें तथा वकीलों द्वारा पुलिस कर्मियों की बेरहमी से की गई पिटाई एक शर्मनाक बात ही नहीं बल्कि एक बेहद संवेदनशील मामला है। वायरल हुए वीडियोज में देखा जा सकता है कि कैसे वकील अपराधियों की तरह वर्दी में पुलिस कर्मियों की पिटाई कर रहे हैं। आम लोग भी इन वीडियोज को देख कर हैरान रह गए। इसी को लेकर सैंकड़ों पुलिस कर्मी और उनके पारिवारिक सदस्यों ने दिल्ली में पुलिस मुख्यालय के निकट अभूतपूर्व प्रदर्शन किए। यह मामला शनिवार को तीस हजारी कोर्ट परिसर में पुलिस कर्मी तथा वकीलों के बीच पार्किंग को लेकर घटित हुआ।

इसके तत्काल बाद कई वकील अपने सहयोगी के समर्थन में एकत्रित हो गए जिसे देखते ही अतिरिक्त पुलिस बल घटनास्थल पर पहुंचा। बहसबाजी इतनी गर्मा गई कि दोनों पार्टियां आपस में उलझ गईं जिसके नतीजे में करीब 20 पुलिस कर्मी तथा 8 वकील घायल हो गए। वहीं वकीलों ने दावा किया कि पुलिस ने कुछ गोलियां भी दागीं जिससे उस क्षेत्र के पार्किंग क्षेत्र में खड़े वाहन क्षतिग्रस्त हो गए। इसके बाद भी यह बेहूदा घटना कम न हुई। विभिन्न स्थानों पर शूट किए गए वीडियोज दर्शाते हैं कि कुछ पुलिस कर्मियों तथा नागरिकों को भी निशाना बनाया गया और उनकी पिटाई की गई।

इस मौके पर जबकि कुछ वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मामले को सुलझाने में नाकाम रहे, केन्द्रीय तथा दिल्ली सरकार ने न तो इस मामले की निंदा की और न ही इस झगड़े को सुलझाने की कोशिश की। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने एफ.आई.आर. दायर करने की अनुमति भी नहीं दी। दूसरी ओर दिल्ली उच्च न्यायालय ने एकतरफा फैसला सुना डाला। न्यायालय ने कहा कि कोई भी कड़ी कार्रवाई उन वकीलों के विरुद्ध नहीं की जाएगी जो उस घटना में शामिल थे। इसी मौके पर उच्च न्यायालय ने कुछ पुलिस कर्मियों के निलम्बन तथा तबादलों का आदेश भी सुना डाला। इस तरह का आदेश कोई अच्छी बात नहीं। इस फैसले ने पुलिस कर्मियों तथा आम लोगों के बीच और निराशा झोंक दी।

कानून व्यवस्था के वकील और पुलिस बल दो स्तंभ हैं। वे दोनों कानून के रक्षक हैं। दोनों के बीच एक रिश्ता जुड़ा है और दोनों ही कानून का स्तर उठाने वाले हैं। यदि ऐसी पवित्र ड्यूटी निभाते समय रक्षक ही भक्षक बन जाए तो कानून व्यवस्था का स्तर नीचा गिरता दिखाई देगा। सेवा करने के इन हालातों में यह ऐसा पहला मामला होगा जब पुलिस कर्मी इतनी तादाद में प्रदर्शन पर उतरे। पुलिस कर्मी न तो यूनियन बना सकते हैं, न ही प्रदर्शन कर सकते हैं पर ऐसे कई मामले देखे गए हैं जब वकीलों ने कानून को अपने हाथ में लिया। ऐसा उदाहरण तब देखने को मिला जब पटियाला हाऊस कोर्ट में 2016 में कन्हैया कुमार को प्रस्तुत करने के दौरान पत्रकारों तथा वादियों के बीच पिटाई करने का मामला सामने आया। इसके अलावा वकील हैदराबाद में उपद्रव करते नजर आए।

यह जगजाहिर है कि कैसे वकील हड़ताल पर चले जाते हैं और बलपूर्वक अदालतों को बंद करवाते हैं। ऐसे नजारे चंडीगढ़ तथा पड़ोसी राज्यों में दर्जनों बार देखने को मिलते हैं जिससे वादियों को कितनी कठिनाई झेलनी पड़ती है। वकीलों को ऑफिसर्ज ऑफ द कोर्ट (न्यायालय के अधिकारी) भी कहा जाता है क्योंकि वे लोग साफ-सुथरा निर्णय देने के लिए कोर्ट की सहायता करते हैं। अफसोसजनक बात यह है कि कुछ वकील और विशेष तौर पर ऐसे वकील जिनके पास कोर्ट में लडऩे के लिए केस नहीं होते, वही लोग समाज में अपनी जिम्मेदारी निभाने के प्रति अपनी भूमिका को तय नहीं कर पाते। वे अपने आपको कानून से भी बड़ा मानते हैं।

अब समय आ गया है कि ऐसे गैर कानूनी कृत्यों को जड़ से ही खत्म कर दिया जाए। पुलिस बल के बीच व्याप्त असंतोष कानून के नियमों के लिए एक गंभीर  चेतावनी है। वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों को भी उनकी भावनाओं को समझते हुए इसमें दखलअंदाजी करनी चाहिए। विडम्बना देखिए कि कानून के रक्षक ही अपने आपको बचाने के लिए छोड़े गए हैं और उसी समय पुलिस अधिकारी जिन्होंने बल प्रयोग किया, उनको भी दंडित किया जा रहा है। अब सभी की निगाहें दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश के विरुद्ध दायर की गई याचिका पर टिकी हैं जो उचित दिखाई नहीं देता। उच्च न्यायालय को उन वकीलों के खिलाफ सख्ती बरतनी होगी जो पुलिस कर्मियों की बेदर्दी से की गई पिटाई में शामिल थे और उनकी पहचान वीडियोज के माध्यम से की जा सकती है। न्याय चैरिटी की तरह हो जिसकी शुरूआत घर से ही होनी चाहिए। 

विपिन पब्बी vipinpubby@gmail.com

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