जब ट्रैफिक जाम के लिए असम के मुख्यमंत्री ने डी.सी. को लगाई लताड़

Edited By ,Updated: 23 Jan, 2022 05:58 AM

when the chief minister of assam asked d c for traffic jam reprimanded

असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा आम लोगों के व्यक्ति हैं और जोरदार तरीके से ‘वी.आई.पी.’ संस्कृति के खिलाफ हैं। वह चाहते हैं कि हम सभी विश्वास कर लें कि वे सड़क छाप शैली के

असम के मुख्यमंत्री हेमंत बिस्वा सरमा आम लोगों के व्यक्ति हैं और जोरदार तरीके से ‘वी.आई.पी.’ संस्कृति के खिलाफ हैं। वह चाहते हैं कि हम सभी विश्वास कर लें कि वे सड़क छाप शैली के व्यक्ति हैं। इसलिए जब नागाओं जिला के डिप्टी कमिश्रर निसर्ग हावारे ने नियमों का कड़ाई से पालन करते हुए एक नजदीकी सड़क पर आधारशिला रखने के लिए जा रहे मुख्यमंत्री के काफिले के लिए ट्रैफिक को रोक दिया, सरमा ने अपना वाहन रुकवाया तथा हावारे को गुजर रही जनता को हुई असुविधा के लिए लताड़ लगाई। 

किसी युवा अधिकारी द्वारा सामना किए गए किसी ऐसे घटनाक्रम के समाचार शायद ही कभी सामने आते हों लेकिन जो भी हो इस घटना को मीडिया पर काफी समय दिया गया क्योंकि राकांपा ने इस घटनाक्रम में पकड़े गए असहाय अधिकारी का मामला उठाने का निर्णय किया। 

स्वाभाविक है कि प्रश्र तो उठने ही थे। उदाहरण के लिए सरमा किस चीज का उद्घाटन कर रहे थे तथा क्यों इसकी योजना एक ऐसे समय में बनाई गई जब अधिक ट्रैफिक नहीं होता? और क्यों मु यमंत्री ने सार्वजनिक तौर पर आई.ए.एस. अधिकारी को शर्मसार किया जो महज वी.आई.पी. यात्राओं के लिए निर्धारित प्रोटोकॉल का अनुसरण कर रहा था? यदि सरमा महसूस करते हैं कि उन्होंने प्रभावपूर्ण तरीके से अपनी बात समझाई तो वह गलत हो सकते हैं। 

इन दिनों आम आदमी बड़ी हस्तियों की वी.आई.पी. संस्कृति से कम प्रभावित होते हैं, विशेषकर हाल ही में पंजाब में वी.वी.आई.पी. को लेकर हुई घटना के बाद से। जैसा कि सरमा ने बाद में ट्वीट किया, कि उनका मकसद ‘बाबू मानसिकता’ में बदलाव लाना था। दुख की बात यह है कि इस आरोप-प्रत्यारोप से उनका नुक्सान अधिक होगा। हमें आशा है कि हमारे जमीनी स्रोत बाद की घटनाओं बारे हमें वाकिफ करवाते रहे हैं। 

डैपुटेशन को लेकर राज्यों को बाईपास करने के नियम विवाद में फंसे : केंद्र सरकार का डैपुटेशन संबंधी नियमों में संशोधन तथा आई.ए.एस. अधिकारियों की राज्य सरकारों के विचारों को नजरअंदाज करते हुए केंद्र में तैनाती का कदम गैर-भाजपा शासित राज्यों के साथ एक विवाद खड़ा कर देगा, जिन पर आमतौर पर केंद्र द्वारा उसके यहां डैपुटेशन पर अधिकारियों को भेजने से इंकार करने का आरोप लगाया जाता है, स्वाभाविक है कि राजनीतिक आधार पर। 

स्पष्ट है कि इस प्रस्ताव की जरूरत ममता बनर्जी की पश्चिम बंगाल की सरकार  के साथ गतिरोध के कारण पड़ी। यह विवाद गत वर्ष राज्य में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के दौरे के दौरान राज्य के मु य  सचिव अल्पन बंधोपाध्याय द्वारा कथित ‘दुव्र्यवहार’ के कारण उपजा। सूत्रों का कहना है कि केंद्र ने डैपुटेशन्स संबंधी नियमों पर विचार जानने के लिए मुख्य सचिवों को पहले ही पत्र भेजे हैं। 

इस बात की बहुत संभावना है कि इस प्रस्ताव से नार्थ ब्लाक तथा नाबाना, पश्चिम बंगाल सरकार की सीट के बीच दरार और चौड़ी होगी तथा अन्य विपक्ष शासित राज्यों से भी प्रतिरोध का सामना करना पड़ेगा। उनके द्वारा इस कदम का विरोध करने की संभावना है क्योंकि वे इसे केंद्र की कीमत पर राज्यों को कमजोर करने के लिए एक अन्य कदम मानते हैं। यदि यह प्रस्ताव पारित हो जाता है तो इससे केंद्र को यह निर्णय लेने का अधिकार मिल जाएगा कि एक राज्य कितने अधिकारियों को अपने पास रख सकता है। एक डर यह भी है कि केंद्र अपने तौर पर किसी भी राज्य से किसी भी अधिकारी को संबंधित राज्य सरकार के विचार जाने बिना चुन सकता है जिससे राज्य के हितों को नुक्सान पहुंचेगा। 

ओ.एन.जी.सी. को मिला एक अन्य स्थानापन्न सी.एम.डी. : तेल एवं प्राकृतिक गैस निगम (ओ.एन.जी.सी.) की मानव संसाधन निदेशक अलका मित्तल को चेयरपर्सन एवं प्रबंध निदेशक (सी.एम.डी.) का अतिरिक्त प्रभार दिया गया है जिससे वह सरकार संचालित क पनी के इतिहास में उसका नेतृत्व करने वाली पहली महिला बन गई है। सरकार ने एक वक्तव्य में कहा है कि मित्तल अपनी नई भूमिका में अगले 6 महीनों तक रहेंगी जब तक कि एक पूर्णकालिक सी.एम.डी. की नियुक्ति नहीं हो जाती या ‘अगले आदेशों तक’। 

सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में शीर्ष पदों पर नियुक्तियों में विलंब अब कोई हैरानी की बात नहीं है लेकिन ओ.एन.जी.सी. सरकारी स्वामित्व वाली क पनियों में सर्वाधिक लाभकारी है तथा इस तरह के असामान्य विलंब हैरानीजनक हैं। द पब्लिक इंटरप्राइसेज सिलैक्शन बोर्ड (पी.ई.एस.बी.) ने सी.एम.डी. के  पद हेतु 9 उ मीदवारों का साक्षात्कार किया था जिनमें 2 सेवारत आई.ए.एस. अधिकारी शामिल थे लेकिन किसी को भी चुनने में असफल रहा। इसकी बजाय इसने एक खोज समिति के गठन की घोषणा कर दी जिसने मामलों में और विलंब कर दिया।

इस सारे जमीनी कार्य के बावजूद मित्तल की नियुक्ति की घोषणा वित्त निदेशक सुभाष कुमार की दिसंबर में सेवानिवृत्ति के 2 महीनों बाद की गई जो सी.एम.डी. का अतिरिक्त प्रभार संभाले हुए थे। ओ.एन.जी.सी. का गत मार्च में शशिशंकर की सेवानिवृत्ति के बाद से कोई भी पूर्णकालिक सी.एम.डी. नहीं है। आशा है कि पैट्रोलियम बाबू तथा पब्लिक इंटरप्राइजेज सिलैक्शन बोर्ड कुमार के उत्तराधिकारी की नियुक्ति करने अथवा ओ.एन.जी.सी. के लिए एक पूर्णकालिक सी.एम.डी. खोजने में इतना अधिक समय नहीं लेगा।-दिल्ली का बाबू दिलीप चेरियन

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