आखिर कहां चला गया सुनहरे सपनों का ‘सौदागर’

Edited By Punjab Kesari,Updated: 10 Oct, 2017 02:12 AM

where did the golden dreams go

जरा याद कीजिए वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले के उन दिनों को जब शहरों से लेकर गांवों तक, नुक्कड़...

जरा याद कीजिए वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले के उन दिनों को जब शहरों से लेकर गांवों तक, नुक्कड़, चौक-चौराहों से लेकर गलियों तक, रेडियो से लेकर टी.वी. और मोबाइल फोन के एस.एम.एस. तक सिर्फ एक ही नाम गूंजता था— नरेन्द्र मोदी। हर-हर मोदी, घर-घर मोदी। चारों तरफ मोदी ही मोदी। यह आपको भी पता है कि मोदी के नाम की गूंज कुछ यूं ही नहीं थी। उस गूंज के पीछे वे सपने थे, जिन्हें इस देश की जनता ने कभी देखा ही नहीं था

जैसे मेरी सरकार बनते ही हर बैंक खाते में 15-15 लाख रुपए आएंगे, प्रतिवर्ष 2 करोड़ लोगों को सरकारी नौकरी मिलेगी, महंगाई कम हो जाएगी, डीजल-पैट्रोल के दाम घट जाएंगे, पाकिस्तान पर नकेल कसी जाएगी, एक के बदले दस सिर लाए जाएंगे, देश में सामाजिक समरसता का माहौल बनेगा। ये इस तरह के सपने थे जिनकी गूंज हर तरफ सुनाई दे रही थी। इतना ही नहीं, यदि कोई इसे सुनना-देखना नहीं चाहता था तो उसे जबरदस्ती सुनाई-दिखाई जाती थी। देश ने शायद पहली बार कोई करिश्माई नेता देखा था जो इस तरह के सपने अपने सिर पर लेकर बेच रहा था। नतीजा यह हुआ कि देश के तकरीबन 31 प्रतिशत वोटर उस सपनों के सौदागर के झांसे में आ गए। 

सरकार बनने के बाद देश की दशा और दिशा क्या है, यह मैं नहीं बताऊंगा, उसे भाजपा के नेता यशवंत सिन्हा, अरुण शौरी, सुब्रह्मण्यम स्वामी, शत्रुघ्न सिन्हा आदि बता रहे हैं। यदि किसी को इससे भी अधिक जानकारी चाहिए तो वह अटल, अडवानी, जोशी से मिल सकता है। मैं तो एक वोटर के रूप में सिर्फ इतना जानना चाहता हूं कि आखिर वह सपनों का सौदागर गया कहां? लोकसभा चुनाव के दौरान नरेन्द्र मोदी की चिकनी-चुपड़ी बातों में फंसकर भाजपा को वोट देने वाले ज्यादातर लोग दबी जुबान में यह स्वीकारने लगे हैं कि उनसे गलत फैसला हो गया। भाजपा का एक बड़ा वोट बैंक व्यापारी वर्ग को माना जाता है। इस सरकार में यदि व्यापारियों की ही चर्चा करें तो पता चलेगा कि मोदी सरकार से सबसे ज्यादा व्यापारी ही परेशान हैं, चाहे मामला नोटबंदी का हो या जी.एस.टी. का। 

व्यापारी सूत्र बताते हैं कि जी.एस.टी. लागू होने के बाद जीना हराम हो गया है क्योंकि जी.एस.टी. के लिए सरकार ने जो पोर्टल बनाया है वह बार-बार क्रैश होता रहता है। पोर्टल के ठीक से काम नहीं करने की वजह से एक ही काम के लिए घंटों कम्प्यूटर के सामने बैठे रहना पड़ता है। सरकार दावा चाहे कुछ भी करे लेकिन सच्चाई यह है कि जी.एस.टी. टैक्स रिटर्न भरने का जो सिस्टम सरकार ने बनाया है, वह वाहियात है। उसमें अगर कोई भूल हो जाए तो उसे सुधारने की व्यवस्था भी नहीं है। मोदी के भरोसा दिलाने के बाद लोगों में उम्मीद जगी है कि शायद सरकार सिस्टम को ठीक करने के लिए जल्द कुछ कदम उठाएगी लेकिन फिलहाल जी.एस.टी. सबके लिए परेशानी का सबब बना हुआ है। 

आर्थिक नीति के मोर्चे पर चौतरफा आलोचना झेल रही केन्द्र सरकार को एक और झटका भारतीय रिजर्व बैंक (आर.बी.आई.) की मौद्रिक नीति समिति ने दिया है। पिछले दिनों मौद्रिक नीति की समीक्षा बैठक में माना गया कि केन्द्र सरकार के कुछ आॢथक फैसले ठीक नहीं रहे हैं। इनमें जी.एस.टी. (वस्तु एवं सेवा कर) का क्रियान्वयन भी है। समिति ने अगली छमाही यानी अक्तूबर से मार्च के बीच महंगाई बढऩे की आशंका जताई है। जी.एस.टी. के नकारात्मक असर की व्याख्या करने के दौरान समिति ने साफ कहा है कि भविष्य में सरकार राहत पैकेज देने में सावधानी बरते। समिति का इशारा किसानों की कर्ज माफी को लेकर था। कहा गया कि इससे राजकोषीय घाटा बढ़ेगा, जोकि अर्थव्यवस्था के लिए ठीक नहीं होगा। 

रिजर्व बैंक ने स्पष्ट तौर पर कहा कि वह जी.एस.टी. लागू करने के तौर-तरीके से खुश नहीं है क्योंकि इससे अर्थव्यवस्था बेपटरी हो गई है, उत्पादन क्षेत्र की परेशानियां बढ़ी हैं। ऐसे में निवेश कम हो सकता है। पूंजी निवेशक पहले से ही दबाव में हैं। दीवाली के मौके पर कुछ विशेषज्ञों का मानना था कि बैंकों की कर्ज दर कम हो सकती है लेकिन अब साफ हो गया है कि रिजर्व बैंक ने ऐसा करने से इंकार कर दिया है। केन्द्रीय बैंक की 6 सदस्यीय समिति ने नीतिगत दरों को उनके मौजूदा स्तर पर बनाए रखने का निर्णय लिया है। इसका मतलब यह हुआ कि वर्तमान में रेपो रेट 6 प्रतिशत तथा रिवर्स रेपो रेट 5.7 प्रतिशत के स्तर पर ही बना रहेगा। रेपो रेट वह नीतिगत दर है जो रिजर्व बैंक कम अवधि के लिए राशि उधार लेने पर दूसरे बैंकों से लेता है।

रिवर्स रेपो रेट बैंकों को मिलने वाली वह दर है, जो बैंक अपनी राशि को अल्पकाल के लिए जमा करने पर आर.बी.आई. से लेते हैं। रिजर्व बैंक ने महंगाई, जी.एस.टी. और खरीफ उत्पादन में कमी के आधार पर अपने आर्थिक विकास की अनुमान दर भी घटा दी है। समिति ने चालू वित्त वर्ष में विकास दर का आकलन 7.3 से घटा कर 6.7 प्रतिशत कर दिया, जबकि महंगाई दर के अनुमान में वृद्धि कर दी। महंगाई को लेकर रिजर्व बैंक की चिंता वाजिब है। कई अर्थशास्त्री नोटबंदी और जी.एस.टी. को लेकर सरकार की सख्त आलोचना कर चुके हैं। स्थिति यहां तक आ पहुंची कि आखिरकार प्रधानमंत्री को खुद मैदान में उतर कर इसके लिए सफाई देनी पड़ी। 

प्रधानमंत्री ने सारी आलोचनाओं को ताक पर रखते हुए कहा कि उन्होंने एक कठिन रास्ता चुना है, इसलिए ऐसी मुश्किलें सामने आ रही हैं। उन्होंने आश्वस्त किया है कि जल्द ही सब कुछ ठीक हो जाएगा लेकिन वास्तव में प्रधानमंत्री की सफाई से भी यही सिद्ध हो रहा है कि अर्थव्यवस्था की गाड़ी डगमगाई है। इस स्थिति से जितना जल्दी उबरा जा सके, उतना ही अच्छा है। बिगड़ती अर्थव्यवस्था के बीच प्रधानमंत्री ने कहा है कि भारत की अर्थव्यवस्था थोड़ी सुस्त जरूर हुई है लेकिन यह इतने बुरे हाल में नहीं है जैसी कि कुछ लोग बता रहे हैं। 

मोदी ने यह भी कहा कि वह आलोचनाओं के डर से पीछे नहीं हटेंगे। भाजपा के कुछ वरिष्ठ नेता और अर्थशास्त्री भारत की अर्थव्यवस्था की स्थिति पर सवाल उठा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का कहना है कि देश की अर्थव्यवस्था सही रास्ते पर है। यदि पी.एम. मोदी की ही बातों को मान लें तो सवाल यह उठता है कि आखिर महंगाई और बेरोजगारी क्यों बढ़ रही है? लोकसभा चुनाव के दौरान उन्होंने जो सपने दिखाए थे, उनका क्या हुआ? लोगों को यह सवाल करना पड़ रहा है कि सुनहरे सपनों का सौदागर आखिर गया कहां? बहरहाल देखना है कि देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए सरकार क्या-क्या करती है।    

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