सैन्य कार्रवाइयों को सार्वजनिक करना कहां तक जायज

Edited By Pardeep,Updated: 05 Jul, 2018 03:52 AM

where to make military operations public

भारतीय सेना द्वारा 28-29 सितम्बर 2016 को पाक अधिकृत कश्मीर में की गई सर्जिकल स्ट्राइक के 21 महीनों बाद आप्रेशन बारे वीडियो सामने आने के बाद राजनीतिज्ञों ने शाब्दिक युद्ध छेड़ दिया है। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुर्जेवाला ने मोदी सरकार पर सेना...

भारतीय सेना द्वारा 28-29 सितम्बर 2016 को पाक अधिकृत कश्मीर में की गई सर्जिकल स्ट्राइक के 21 महीनों बाद आप्रेशन बारे वीडियो सामने आने के बाद राजनीतिज्ञों ने शाब्दिक युद्ध छेड़ दिया है। कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुर्जेवाला ने मोदी सरकार पर सेना की बहादुरी का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया है और कहा है कि क्या सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो वायरल करके सरकार ने सीमा पर तैनात जवानों तथा सीमांत क्षेत्रों में रहने वाले लोगों की सुरक्षा को खतरे में तो नहीं डाल दिया? 

भाजपा नेता तथा केन्द्रीय संचार मंत्री रविशंकर प्रसाद ने पलटवार करते हुए कहा कि सेना का मनोबल तोडऩा कांग्रेस की नीति रही है और वह आतंकवादियों के हौसले बुलंद कर रही है। भाजपा के बागी नेता तथा केन्द्रीय मंत्री रह चुके अरुण शौरी ने कहा कि सरकार की विश्वसनीयता बहुत कम हो गई है इसलिए सबूत के तौर पर इसे सर्जिकल स्ट्राइक का वीडियो जारी करना पड़ा। 

पाकिस्तान द्वारा सर्जिकल स्ट्राइक संबंधी वीडियो को खारिज करते हुए उसके विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता मोहम्मद फजल ने कहा, ‘‘मैंने पहले भी कहा है और अब फिर कह रहा हूं कि भारत के सर्जिकल स्ट्राइक वाले दावे कल्पना के सिवाय और कुछ नहीं।’’ 29 जून को मैं अपने क्षेत्र के पटवारी को अपने निजी कार्य हेतु पटवारखाने मिलने गया। उसने मेरा हालचाल तो क्या पूछना था, मिलते ही मुझसे पूछा, ‘‘सैनिक कार्रवाइयों को सार्वजनिक करना कहां तक जायज है?’’ वास्तव में आम नागरिकों में भी कई तरह की शंकाएं पैदा हो गई हैं जिन्हें दूर करना जरूरी है। 

संकल्प से भाव: सरकार की निर्धारित नीति के अनुसार भारतीय सेना द्वारा देश की सीमाओं की रक्षा करते समय मुख्य तौर पर रक्षात्मक, आक्रामक या फिर मिली-जुली युद्ध रणनीति अपनाई जाती है, जिसमें स्पैशल आप्रेशन्स भी आते हैं। प्रत्यक्ष रूप में युद्ध लडऩा ओवर्ट (overt) क्रिया की श्रेणी में आता है। मगर दुश्मन के ठिकानों पर छापा मारना (raid) तथा घात लगाकर बैठना (ambush) कवर्ट (covert) गुप्त आप्रेशन की श्रेणी में शामिल हैं। चूंकि सर्जिकल स्ट्राइक ‘रेड’ का विस्तार है इसलिए इसे गुप्त रखना सेना का परम धर्म है। 

उल्लेखनीय है कि जब पाकिस्तान के पालतू सरगनाओं ने अपनी सरगर्मियां जम्मू-कश्मीर में तेज करने के अतिरिक्त अपना रुख पंजाब की ओर करते हुए 27 जुलाई 2015 को गुरदासपुर जिले में पहले बस और फिर दीनानगर पुलिस थाने पर हमला किया, जिसमें 4 पुलिस कर्मी, 3 नागरिक तथा 3 आतंकवादी मारे गए। फिर 2 जनवरी 2016 को पठानकोट एयरफोर्स स्टेशन में 5 पाकिस्तानी हमलावर दाखिल हो गए और 17 घंटे चले आप्रेशन में वे सभी मारे गए। इस दौरान 6 सुरक्षा कर्मी भी शहीद हो गए। 18 सितम्बर 2016 को उड़ी में सैन्य शिविर पर आतंकवादियों ने हमला किया जिसमें हमारे 19 जवान शहीद हो गए। 

जब आतंकवादियों के हमलों की हद होती दिखाई दी तो भारत सरकार ने तत्कालीन रक्षा मंत्री मनोहर पाॢरकर की देखरेख में पाक अधिकृत कश्मीर में आतंकवादियों के अस्थायी प्रशिक्षण शिविरों को उड़ाने का निर्णय लिया। जिस योजना, युद्धक तैयारी, तालमेल निपुणता तथा शूरवीरता के साथ सेना ने अपने बिना किसी जानी-माली नुक्सान के 7 पाकिस्तानी लांच पैडों पर हमला बोल कर दुश्मन को जबरदस्त नुक्सान पहुंचाया, उसकी देशवासियों ने भरपूर प्रशंसा की, जिसका श्रेय तो फिर राजनीतिज्ञों ने लेना ही था। डायरैक्टर जनरल मिलिट्री आप्रेशन्स (डी.जी.एम.ओ.) द्वारा आप्रेशन की सफलता बारे प्रैस को सम्बोधित करने का उद्देश्य बेशक देशवासियों को जानकारी देना तथा पाकिस्तान को सबक सिखाना या कोई अन्य गोपनीय राज ही क्यों न हो मगर उनके द्वारा यह कहना कि कोई और सॢजकल स्ट्राइक नहीं होगी, ने युद्धक रणनीति के पक्ष से कई संदेह पैदा कर दिए जिससे पाकिस्तान को भी गलत संकेत जरूर गया होगा। हमें इस बात की भी जानकारी है कि इस तरह की बयानबाजी सरकार की सहमति के बिना नहीं की जा सकती। 

समीक्षा: भारतीय सेना से सभी युद्ध हारने के बावजूद पाकिस्तान ने कोई सबक नहीं सीखा और फिर स्ट्राइक के बाद स्थिति बद से बदतर होती गई। अक्तूबर 2016 से अब तक जम्मू-कश्मीर में आतंकवादी घटनाओं में बहुत से लोगों की जानें गई हैं और कई जवान शहादत का जाम पी गए। यह सिलसिला आज भी जारी है। वर्ष 2017 में संघर्ष विराम का 860 बार तथा 2018 में अब तक 950 बार उल्लंघन हो चुका है, जिसमें दर्जनों सुरक्षा कर्मी शहीद हुए तथा कुछ नागरिक भी मारे गए। इस कारण हजारों की संख्या में सीमांत लोगों ने पलायन कर सुरक्षित ठिकानों पर शरण ली। 

विश्व को सर्जिकल स्ट्राइक की असली परिभाषा की झलक उस समय देखने को मिली जब 27 जून 1976 को पैलिस्टेनियन लिबरेशन फोर्स ने यात्रियों का हवाई जहाज अगवा कर लिया और उसको यूगांडा अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डे पर ले गए तो इसराईली कमांडो फोर्स ने 4000 किलोमीटर की दूरी तय करके 3/4 जुलाई 1976 को 106 बंधक बनाए गए यात्रियों में से 102 को सही-सलामत बचा लिया। दूसरी सर्जिकल स्ट्राइक का नमूना अमरीका ने उस समय दिखाया जब सात समुद्र पार 2 मई 2011 को ओसामा बिन लादेन तथा उसके दो दर्जन पारिवारिक सदस्यों को एबटाबाद (पाकिस्तान) में सफलतापूर्वक तरीके से समेट दिया तथा उसकी भनक पाकिस्तान को भी नहीं लगने दी। इन दोनों देशों ने सैन्य कार्रवाई की कोई वीडियो क्लिप जारी नहीं की। इससे भारत सबक सीखे। 

चिंताजनक विषय तो यह है कि हमारे शासक अलगाववादियों के परिवारों व उनके बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के लिए देश की सुरक्षा को भी दाव पर लगा देते हैं। यदि राजनीतिज्ञों को देश के लिए प्राण न्यौछावर करने वालों का जरा भी एहसास होता तो सरकार उनके बच्चों की स्कूली फीसों की अदायगी की सीमा तय न करती और यदि सेना के दर्जे, सम्मान की ओर ध्यान होता तो दिल्ली के जंतर-मंतर पर पूर्व सैनिकों के मैडल पैरों में न रौंदे जाते। सेना का राजनीतिकरण देशहित में नहीं होगा।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)

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