कहां जाकर रुकेगी रुपए की गिरावट

Edited By ,Updated: 24 Jul, 2022 07:19 AM

where will the fall of rupee stop

हाल ही में भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 80 रुपए के स्तर से नीचे चला गया। कहने का मतलब है कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है, जिसका प्रमुख कारण बाजार में रुपए की तुलना में

हाल ही में भारतीय रुपया डॉलर के मुकाबले 80 रुपए के स्तर से नीचे चला गया। कहने का मतलब है कि डॉलर के मुकाबले रुपया कमजोर हो रहा है, जिसका प्रमुख कारण बाजार में रुपए की तुलना में डॉलर की मांग ज्यादा है। रुपए की तुलना में डॉलर की मांग 2 कारणों से बढ़ रही है। 

पहला यह कि भारतीय जितना निर्यात करते हैं, उससे अधिक वस्तुओं और सेवाओं का आयात करते हैं। इसे ही करेंट अकाऊंट डैफिसिट यानी चालू खाते का घाटा कहा जाता है। इसका तात्पर्य यह है कि जो रुपया आ रहा है, उससे अधिक विदेशी मुद्रा (विशेषकर डॉलर) भारत से बाहर निकल रही है। इसके कई कारण हैं। 2022 की शुरूआत के बाद से, विशेषकर रूस-यूक्रेन युद्ध के मद्देनजर कच्चे तेल और अन्य वस्तुओं की कीमतों में बढ़ौतरी होने लगी है, जिसकी वजह से भारत का चालू घाटा तेजी से बढ़ा है। 

दूसरा, भारतीय अर्थव्यवस्था में निवेश में गिरावट दर्ज की गई है। 2022 की शुरूआत के बाद से, अधिक से अधिक विदेशी निवेशक भारतीय बाजारों से पैसा निकाल रहे हैं। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि भारत की तुलना में अमरीका में ब्याज दरें बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। अमरीका में ऐतिहासिक रूप से उच्च मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए अमरीकी केंद्रीय बैंक आक्रामक रूप से ब्याज दरों में वृद्धि कर रहा है। 

निवेश में इस गिरावट ने भारतीय शेयर बाजारों में निवेश करने के इच्छुक निवेशकों के बीच भारतीय रुपए की मांग में तेजी से कमी की है। इन दोनों प्रवृत्तियों का परिणाम यह है कि डॉलर के मुकाबले रुपए की मांग में तेजी से गिरावट दर्ज की गई है और रुपया कमजोर हो रहा है। डॉलर के मुकाबले केवल रुपए में ही  गिरावट आई है,ऐसा नहीं है। यूरो और जापानी येन समेत सभी मुद्राओं के मुकाबले डॉलर मजबूत हो रहा है। दरअसल, यूरो जैसी कई मुद्राओं के मुकाबले रुपए में तेजी आई है। 

भारत का केंद्रीय बैंक आर.बी.आई. रुपए की गिरावट को थामने के लिए 100 अरब डॉलर की रकम और खर्च कर सकता है। कुछ रिपोर्टों के अनुसार आर.बी.आई. अपने विदेशी मुद्रा भंडार का छठा हिस्सा बेचने के लिए तैयार है, ताकि हाल के हफ्तों के दौरान रुपए में हो रही तेज गिरावट से बचा जा सके।

आर.बी.आई का मुद्रा भंडार, जो सितम्बर की शुरूआत में 642.450 अरब डॉलर था, इसमें अब तक 60 अरब डॉलर से अधिक की गिरावट आई है। यह कमी कुछ हद तक बड़े पैमाने पर रुपए की बड़ी गिरावट को रोकने के लिए की गई डॉलर की बिक्री के कारण हुई है। लेकिन इस कमी के बावजूद, आर.बी.आई. के पास 580 अरब डॉलर का विदेशी मुद्रा भंडार है, जो दुनिया में 5वां सबसे बड़ा है। इस विशाल फॉॅरेन रिजर्व के चलते ही आर.बी.आई. रुपए में आने वाली तेज गिरावट को रोकने के लिए अधिक तैयार और सक्षम है। रुपए में गिरावट वैश्विक परिस्थितियों का परिणाम है।

अमरीकी फैडरल रिजर्व द्वारा लागू की गई सख्त और आक्रामक मौद्रिक नीतियों की आशंका से अमरीकी डॉलर की मांग मजबूत हुई है। इस कारण निवेशकों द्वारा डॉलर के मुकाबले ज्यादातर अन्य करंसियों की बिकवाली की जा रही है। उल्लेखनीय है कि भारतीय रिजर्व बैंक ने विदेशी मुद्रा प्रवाह बढ़ाने के लिए कई उपाय किए हैं। इसमें कंपनियों के लिए उधारी सीमा बढ़ाना और सरकारी बॉन्ड में निवेश के लिए नियमों को उदार बनाना शामिल है। 

रुपए का गिरना अर्थ जगत में होने वाले उतार-चढ़ाव का हिस्सा है। हम समझें कि जैसे ही अंतर्राष्ट्रीय वित्त बाजारों में कोई दहशत होती है, लोग डॉलर की तरफ भागते हैं और उसकी मांग बढ़ती है। उसका भी एक असर होता है। कुछ विदेशी संस्थागत निवेशकों ने भारत से विनिवेश किया, जिस वजह से स्टॉक मार्कीट गिरी और इस कारण काफी पैसा बाहर चला गया।

हमें चिंता है कि रुपए में आई गिरावट का एक सीधा असर उन छात्रों पर भी पड़ेगा, जो पढ़ाई के लिए विदेश जाने की योजना बना रहे हैं। डॉलर के मुकाबले रुपए के कमजोर होने से भारतीय छात्रों के लिए विदेशों में शिक्षा ले पाना मंहगा हो जाएगा। जो विद्यार्थी पहले ही विदेश में पढ़ाई करने जा चुके हैं, उनका खर्च भी रुपए में आई गिरावट से बढ़ गया है। उन्हें अपनी पढ़ाई और रहने का खर्च निकालने के लिए ज्यादा रुपयों की जरूरत पड़ रही है। 

परन्तु हमारे निर्यातकों के लिए रुपए का गिरना फायदे का सौदा है, क्योंकि उन्हें विदेशी मुद्रा भुगतान को भारतीय रुपए में परिवर्तित करने पर ज्यादा राशि प्राप्त होगी। माना जा रहा है कि रुपए में गिरावट से आई.टी. और फार्मा कंपनियों की कमाई में तेजी आएगी। डॉलर के सामने अभी के माहौल में रुपए के नहीं टिक पाने की वजहें समय के हिसाब से बदलती रहती हैं। कभी यह आॢथक तो कभी सियासी हालात का शिकार बनता है और कभी दोनों का ही। कुल मिला कर रुपए का गिरना एक अस्थायी बात है और आने वाले दिनों में पायदार आॢथक नीतियों से यह स्थिर भी हो सकता है।-डा. वरिन्द्र भाटिया
 

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