अहमदाबाद की 23 साल की आयशा साबरमती नदी के किनारे गई। एक वीडियो बनाया जिसमें बताया कि मौत को क्यों गले लगा रही है। परिवार वालों से भी बात की। उसके पिता उसे रोकते रह गए लेकिन उसने बात नहीं मानी। वह नदी में कूद गई और
अहमदाबाद की 23 साल की आयशा साबरमती नदी के किनारे गई। एक वीडियो बनाया जिसमें बताया कि मौत को क्यों गले लगा रही है। परिवार वालों से भी बात की। उसके पिता उसे रोकते रह गए लेकिन उसने बात नहीं मानी। वह नदी में कूद गई और जान दे दी। एक युवा लड़की तमाम आशाओं, आकांक्षाओं, जीवन के प्रति प्यार, दुलार सबका इतना भीषण अंत।
उसका वीडियो सुनते हुए सोच रही थी कि अगर उसकी शादी न हुई होती तो शायद वह जीवित होती या अगर वह अपने पति से अलग हो गई होती तो शायद इस तरह से जान न गंवाती। जिस तरह से वह वीडियो में कह रही कि वह एक बहती हुई हवा है, उसमें उसका दु:ख झलक रहा है। एक बहती हुई हवा बंधनों में भला कैसे रह सकती है। उसे आजादी चाहिए। लेकिन आजादी मिले भी तो कैसे? वह अपने पति से प्यार करती है और पति उससे कहता है कि जा मर जा। इसीलिए आयशा वीडियो में कहती है कि प्यार इकतरफा नहीं दो तरफा होना चाहिए। उसके कथन से साबित है कि वह अपने पति को बहुत चाहती है लेकिन पति के लिए उसकी कोई कीमत नहीं।
बताया जाता है कि उसकी शादी 2018 में राजस्थान के रहने वाले आरिफ से हुई थी। उसे पति और ससुराल वाले दहेज के लिए सताने लगे। उसने पति और सास-ससुर के खिलाफ शिकायत की थी। घरेलू हिंसा का केस भी दर्ज कराया था। बाद में वह एक बैंक में काम भी करने लगी थी।
वह वीडियो में अपने पिता से कहती है कि यह एक अवसर है। मैं खुश हूं कि अल्लाह से मिलूंगी। मैं अल्लाह से पूछूंगी कि मेरी गलती कहां थी। आयशा ने नदी में छलांग लगाने से पहले अपने पति आरिफ को भी फोन किया था और आरिफ ने कहा कि वह जो चाहे करे। कितनी नृशंसता है। अगर वह उसे कुछ समझाता, भरोसा दिलाता तो हो सकता है आयशा जान न देती। आरिफ ने एक पल के लिए ऐसा क्यों नहीं सोचा कि अगर आयशा ने वास्तव में जान दे दी तो क्या होगा?
आयशा के दोनों वीडियो वायरल होने के बाद लोग दुख मना रहे हैं। कह रहे हैं आयशा तुम्हें ऐसे नहीं जाना चाहिए था। हम शॄमदा हैं। लेकिन किसी के जाने के बाद शर्मिंदा होने का लाभ भी क्या है। जब तक आयशा या उस जैसी सैंकड़ों-हजारों लड़कियां जीवित रहती हैं, जिंदगी उन्हें कोई सहारा नहीं देती। वे दर-दर भटकने को मजबूर होती हैं। कोई उनकी नहीं सुनता। वे अकेली छोड़ दी जाती हैं। जिस पति के भरोसे वे ससुराल गई थीं, पता नहीं कब वह बेगाना हो जाता है। कब उसके किसी और लड़की से संबंध बन जाते हैं और वह पत्नी से निजात पाने की सोचने लगता है।
यद्यपि आजकल बहुत-सी लड़कियां फेरों के बाद भी दहेज लोभी पति और ससुराल वालों के साथ कई बार जाने से मना कर देती हैं लेकिन बहुत बार ऐसा नहीं हो पाता। वे अपने परिवार की इज्जत के लिए चुप लगा जाती हैं। यह भी सोचती हैं कि शादी में माता-पिता का इतना पैसा लगा है, अगर वे शादी से इंकार करेंगी तो माता-पिता का क्या होगा। परिवार, समाज, उसकी मान्यताएं, रीति-रिवाज सब लड़कियों की पीठ पर किसी प्रेत की तरह लदे हैं, तभी तो आयशा जैसी लड़कियों को जान देनी पड़ती है।
लाख कानून बना लीजिए, दहेज के खिलाफ 498ए जैसी कठोर धारा का प्रावधान भी कर दीजिए, मगर कानून एक तरफ तो आयशा जैसी सताई गई लड़कियों की मदद नहीं करता, दूसरी तरफ निरपराध स्त्री-पुरुषों को सताता भी है। इस कानून का दुरुपयोग बहुत है, लेकिन जिन्हें इसकी सचमुच जरूरत है, वहां तक नहीं पहुंच पाता। वरना आयशा को दहेज के लालची पति के कारण जान क्यों देनी पड़ती।
कहा जाता है कि इस्लाम में दहेज लेना-देना सही नहीं माना जाता लेकिन अर्से से यह भी कहा जा रहा है कि पहले जिन कम्युनिटीज में दहेज का चलन नहीं था, वहां भी अब दहेज ने अपने जबड़े फैला लिए हैं क्योंकि पैसे के लालच से कोई जाति, धर्म, समुदाय नहीं बच पाता। आखिर जीवन के मुकाबले मृत्यु इतनी अच्छी क्यों लगने लगी है। ऐसी स्थिति आखिर किन कारणों से आती है, जहां लगता है कि अब बस जीवन को खत्म करना ही आखिरी विकल्प है। हमारे इन लड़के-लड़कियों को कौन बचाए।-क्षमा शर्मा
‘सांडों के साथ क्रूरता आखिर कब तक’
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