Edited By ,Updated: 07 Dec, 2020 04:06 AM
किसी भी माता-पिता के लिए संतान सबसे बड़ी सम्पत्ति मानी जाती है। इसी प्रकार बच्चों के लिए माता-पिता की सेवा ईश्वर की सेवा मानी गई है। परन्तु आज के भागते युग में बच्चे अपने करियर को लक्ष्य बनाकर माता-पिता सहित शेष परिवार को भूलने
किसी भी माता-पिता के लिए संतान सबसे बड़ी सम्पत्ति मानी जाती है। इसी प्रकार बच्चों के लिए माता-पिता की सेवा ईश्वर की सेवा मानी गई है। परन्तु आज के भागते युग में बच्चे अपने करियर को लक्ष्य बनाकर माता-पिता सहित शेष परिवार को भूलने लगे हैं। हाल ही में पंजाब के होशियारपुर जिले की एक 62 वर्षीय महिला ने अपने स्वर्गीय पति की तीसरी पुण्य तिथि पर स्वयं भी आत्महत्या कर ली। वह होशियारपुर में अकेली रह रही थी, क्योंकि उनकी दो विवाहित बेटियां और एक पुत्र कनाडा में जाकर बस गए थे। यह एक अकेला एेसा परिवार नहीं था जहां वृद्धावस्था में माता-पिता दोनों को या एक की मृत्यु होने पर दूसरे को एकाकी जीवन जीने के लिए मजबूर होना पड़ा हो।
लॉकडाऊन के प्रथम दौर में ऐसे ही एकाकी वृद्ध लोगों की तरफ जब मेरा ध्यान गया तो मैंने तुरन्त एक लेख के माध्यम से यह आह्वान किया था कि जहां कहीं भी एेसे एकाकी वृद्ध रह रहे हों उनकी सहायता के लिए तत्पर रहना प्रत्येक पड़ोसी का प्रमुख दायित्व होना चाहिए।
एकाकी बुजुर्गों के प्रति दायित्व का अभिप्राय: केवल यह नहीं है कि उनके कहने पर या कोई विशेष आवश्यकता पडऩे पर ही उनकी सहायता के लिए हम आगे आएं, बल्कि वास्तविक जिम्मेदारी यह होनी चाहिए कि हम प्रतिदिन प्रात:-सायं, उठते-बैठते किसी न किसी बहाने उनको अपने परिवार का अभिन्न अंग बनाकर उन्हें अपने हर सुख-दु:ख में शामिल करें और उनके मन में दबे एकाकी भाव को पूरी तरह से समाप्त करने का प्रयास करें। ऐसे वृद्ध पुरुषों के साथ हर समय का उठना-बैठना केवल पड़ोसी ही निभा सकते हैं।
यदि हमारा सारा समाज इस प्रकार के पड़ोसीपन के दायित्व को समझने लगे तो उन बच्चों को भी स्वाभाविक रूप से कुछ शर्म अवश्य ही महसूस होगी जो मां-बाप का त्याग करके अपने करियर की उड़ान भरते फिरते हैं। किसी का करियर कितना ही महवपूर्ण और कीमती क्यों न हो, माता-पिता के समान और ईश्वर के तुल्य दो जीवों को अपने साथ रखना कदापि कठिन नहीं हो सकता।
एेसा न करने वाले तथाकथित प्रगतिशील लोग जो माता-पिता को ठुकरा सकते हैं वे तो इस सारी सृष्टि के उत्पत्तिकर्ता अर्थात् परमात्मा की शक्ति को भी कहां मानते होंगे। कुल मिलाकर इससे बड़ी कृतघ्रता कोई नहीं हो सकती। 511 धाराआें की भारतीय दंड संहिता में सैंकड़ों प्रकार के अपराध सूचीबद्ध हैं। किसी को शारीरिक हानि पहुंचाना, आर्थिक हानि का कारण बनना या किसी के मान-सम्मान को ठेस पहुंचाना आदि अपराधों के सामने अपने उस माता-पिता को ठुकरा देना जिनसे हमें यह जीवन मिला है, जिन्होंने बाल्यावस्था की हर सर्दी-गर्मी से बचाकर हमें उंगली पकड़कर चलना सिखाया और युवावस्था की सड़क तक हमें लेकर आए और आज जिनके कारण ही हम करियर की दौड़ में अग्रसर हैं, ऐसे उत्पत्तिकत्र्ता एवं पालनकत्र्ता माता-पिता को वृद्धावस्था के अनेकों प्रकार के झोंके सहने के लिए अकेले छोड़ देना तो दुनिया का सबसे बड़ा अपराध माना जाना चाहिए। यह सबसे बड़ी हत्या, सबसे बड़ा विश्वासघात और सबसे बड़ी मानहानि के रूप में समझा जाना चाहिए।
सामाजिक दायित्व के साथ-साथ सरकारी तथा गैर-सरकारी संस्थाआें के द्वारा भी इस क्षेत्र में बहुत बड़ी पहल की जा सकती है। वैसे इस सम्बन्ध में वरिष्ठ नागरिकों की सुरक्षा के लिए भारत की संसद द्वारा भी एक कानून बनाकर पुलिस और प्रशासन को यह विशेष जिम्मेदारी सौंपी है कि अपने-अपने क्षेत्र में रहने वाले वरिष्ठ नागरिकों को सूचीबद्ध करें तथा आवश्यकता पडऩे पर उनकी सहायता का प्रयास करें। परन्तु धरातल पर इस कानून का कोई विशेष प्रभाव देखने को नहीं मिल रहा है। स्थानीय पुलिस स्टेशनों का यह सख्त दायित्व निर्धारित होना चाहिए कि वे पूरी सहानुभूति के साथ समाज के सभी वरिष्ठ नागरिकों और विशेष रूप से एकाकी वृद्धों के साथ निरन्तर मेल-जोल के भिन्न-भिन्न कार्यक्रम निर्धारित करें। पुलिस की इस पहल से आस-पड़ोस के लोगों में भी एकाकी वृद्धों के प्रति सहानुभूति की एक विशेष लहर पैदा की जा सकेगी। पुलिस की सहायता के लिए हर क्षेत्र के सभी गैर-सरकारी संस्थाआें और विशेष रूप से मंदिरों और गुरुद्वारों जैसी धार्मिक संस्थाआें को भी इस विषय में आगे बढ़कर दायित्व संभालना चाहिए।
सरकारों द्वारा सभी वरिष्ठ नागरिकों को वृद्धावस्था पैंशन का अधिकार दिया गया है, परन्तु केवल पैंशन राशि भावनात्मक कमियों को पूरा नहीं कर सकती। इस प्रकार तो देश-विदेश में दूर बसे पुत्र-पुत्रियां भी अपने एकाकी माता-पिता को कुछ न कुछ धनराशि भेजते ही होंगे, परन्तु केवल धनराशि से एकाकीपन दूर नहीं हो जाता। भारतीय रैडक्रास सोसाइटी की तरफ से भी मैंने यह विशेष प्रयास किया है कि केन्द्र सरकार के सामाजिक कल्याण मंत्रालय के सहयोग से एकाकी वृद्ध नागरिकों के संरक्षण एवं हरसम्भव सहायता के लिए एक राष्ट्रव्यापी नैटवर्क स्थापित किया जाए।
रेडक्रास सोसाइटी की इकाइयां भारत के प्रत्येक राज्य में स्थापित हैं। यह राज्य इकाइयां आगे जिला स्तरीय इकाइयां भी स्थापित करती हैं। मानवीय सेवा कार्यों में जुटे इस संस्थान की क्षमताआें का लाभ उठाकर एकाकी वृद्ध नागरिकों के लिए एक आशा की किरण पैदा की जा सकती है। मेरा प्रयास यह भी होगा कि केन्द्र सरकार को आग्रह करके भारत के प्रत्येक जिले में एकाकी वृद्ध नागरिकों की सहायता के लिए एक विशेष टोल फ्री (हैल्पलाइन) नम्बर निर्धारित करवाया जाए जो एेसे महानुभावों को एक परिवार के रूप में तत्काल सहायता उपलब्ध करवा सके।-अविनाश राय खन्ना