भाजपा पंजाब में किसका ‘दामन’ थामेगी

Edited By ,Updated: 05 Nov, 2020 03:20 AM

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हालांकि पंजाब प्रदेश भाजपा के नेताओं की ओर से बार-बार इस दावे को दोहराया जा रहा है कि इस बार भाजपा पंजाब विधानसभा की सभी (117) सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इसके बावजूद पंजाब की जमीनी राजनीति से जुड़े चले आ रहे राजनीतिज्ञ उनके इस दावे पर विश्वास करने को...

हालांकि पंजाब प्रदेश भाजपा के नेताओं की ओर से बार-बार इस दावे को दोहराया जा रहा है कि इस बार भाजपा पंजाब विधानसभा की सभी (117) सीटों पर चुनाव लड़ेगी। इसके बावजूद पंजाब की जमीनी राजनीति से जुड़े चले आ रहे राजनीतिज्ञ उनके इस दावे पर विश्वास करने को तैयार नहीं हो रहे। इसके विरुद्ध वे सवाल उठा रहे हैं कि इस बार पंजाब विधानसभा के चुनावों में भाजपा किसका हाथ थामेगी? 

इसका कारण वे बताते हैं कि भाजपा का नेतृत्व जानता है कि पंजाब के राजनीतिक समीकरण ऐसे हैं कि बिना किसी ऐसी पार्टी का सहयोग प्राप्त किए भाजपा पंजाब में सत्ता के गलियारों तक नहीं पहुंच सकती, जिसका पंजाब के बहुसंख्यक वर्ग, सिखों में मजबूत आधार न हो क्योंकि भाजपा का नेतृत्व धर्म-निरपेक्ष होने का दावा करते चले आने के बावजूद, अपनी नीतियों के कारण भाजपा को हिंदू-पार्टी होने के अक्स से उभार नहीं पाया। अत: बीते लम्बे समय से उसे पंजाब में विधानसभा के चुनाव हों या लोकसभा के या फिर स्थानीय निकायों, उसे गैर-हिंदुओं, विशेष रूप से सिखों का सहयोग प्राप्त करने के लिए शिरोमणि अकाली दल (बादल) के साथ गठजोड़ कर चलते आना पड़ रहा है। 

बीते समय में शिरोमणि अकाली दल (बादल), अपने नेतृत्व की गलत नीतियों, जिन्हें सिख विरोधी माना गया, के कारण आम सिखों का विश्वास गंवा चुका है जिसके चलते उसे पिछले विधानसभा और लोकसभा चुनावों में शर्मनाक हार का सामना करना पड़ा। इसके साथ ही उसके साथ गठजोड़ के चलते भाजपा को भी उसका मोल चुकाना पड़ा। इस प्रकार शिरोमणि अकाली दल (बादल) के खिसकते चले आ रहे आधार को देखते हुए, भाजपा नेतृत्व का ङ्क्षचतित होना स्वाभाविक ही है। संभवत: इसी कारण भाजपा नेतृत्व पंजाब में किसी ऐसी पार्टी की तलाश में है जिसका आम सिखों में आधार हो और बादल दल के बदल के रूप में उसकी सहयोगी बन सके। पंजाब भाजपा के एक वर्ग का मानना है कि संभवत: अकाली दल डैमोक्रेटिक (ढींडसा) उनकी इस जरूरत को पूरा कर सकेगा। 

भाजपा नेतृत्व के दावे : इसी बीच पंजाब भाजपा के नेतृत्व की ओर से पंजाब की सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लडऩे के किए जा रहे दावे के संबंध में इन राजनीतिज्ञों का मानना है कि बादल अकाली दल के साथ चले आ रहे गठजोड़ के तहत भाजपा को अभी तक दल के छोटे भाई के रूप में चलते आना पड़ रहा है। इस बार बदले हालात के चलते भाजपा नेतृत्व गठजोड़ में अपनी भूमिका छोटे भाई से बड़े भाई में बदलना और पंजाब में अपना मुख्यमंत्री बनाना चाहता है, यही कारण वह अकाली दल पर दबाव बनाने के लिए बार-बार ऐसे बयान दे रहा है जिसके चलते अकालियों को इस बात का आभास हो जाए कि इस बार भाजपा उन पर निर्भर नहीं है इसलिए यदि उसने भाजपा को साथ लेकर चलना है तो उसे उसकी शर्तों को मानना ही होगा। 

बात सरना-जी.के गठजोड़ की : बताया गया है कि बीते कुछ समय से शिरोमणि अकाली दल डैमोक्रेटिक के अध्यक्ष सुखदेव सिंह ढींडसा और उनके साथियों ने दिल्ली गुरुद्वारा चुनाव में शिरोमणि अकाली दल (बादल) को सत्ता से बाहर करने के लिए शिरोमणि अकाली दल दिल्ली (सरना) और जागो-जग आसरा गुरु ओट पार्टी (जी.के.) में गठजोड़ करवाने के लिए अपनी सक्रियता बढ़ा दी है। बताया गया है कि बीते दिनों दोनों में कुछ मुलाकातें भी हो चुकी हैं जिनमें कुछेक मुद्दों पर दोनों में सहमति बन चुकी है। बताया गया है कि गठजोड़ को अंतिम रूप देने के लिए सीटों के लेन-देन और कुछ और मुद्दों पर बात और सहमति को अंतिम रूप दिया जाना बाकी है। 

इस संंबध में स. ढींडसा के साथियों का मानना है कि जिस प्रकार दोनों पक्षों में बात चल रही है उसके चलते सब अच्छा ही होगा। उनके अनुसार गुरुद्वारा कमेटी की साख और उसके प्रबंधाधीन सिख विरासत की प्रतीक शैक्षणिक संस्थाओं को बचाने के लिए यदि दोनों पक्षों को लचीली नीति अपनानी पड़े तो उन्हें संकोच नहीं करना चाहिए। यदि सीटों के लेन-देन में दो-चार सीटों का लेन-देन भी करना पड़े तो पीछे नहीं हटना चाहिए। ऐसे उम्मीदवारों, जिन्हें इस  समझौते के चलते अपनी सीट पर दावा छोडऩा पड़ता है, उन्हें गुरुद्वारा कमेटी के प्रबंध से संबंधित कमेटियों में महत्वपूर्ण पद दे, संतुष्ट किया जा सकता है। 

सिख नेतृत्व ने विश्वास गंवाया :  दिल्ली उच्च न्यायालय के पूर्व जज, जस्टिस आर.एस. सोढी का मानना है कि वर्तमान सिख नेतृत्व सिख पंथ का प्रतिनिधित्व करने और उसके आत्म-सम्मान को कायम रखने में पूरी तरह असफल साबित हुआ है। उनका कहना है कि वर्तमान सिख नेतृत्व के समय में ही सिख धर्म की मान्यताएं, और मर्यादाएं राजनीतिक स्वार्थ की भेंट चढ़ा दी गई हैं। उनके अनुसार वर्तमान सिख नेतृत्व की नीतियों का ही परिणाम है कि सिख युवा भटक, सिखी से दूर हो रहे हैं। उन्होंने कहा कि यदि धार्मिक मर्यादाओं और मान्यताओं को पुन: स्थापित कर उनका गौरव लौटाना है, वर्तमान नेतृत्व को नकार, ऐसे लोगों को सिख पंथ का नेतृत्व सौंपना होगा जो पूरी तरह सिख धर्म के प्रति समॢपत हो और उसकी मान्यताओं की रक्षा कर पाने में सक्षम हों। उनका राजनीतिक स्वार्थ से कोई संबंध न हो। 

अपने आप बने उम्मीदवार : हालांकि किसी भी पार्टी या दल ने अभी तक दिल्ली गुरुद्वारा चुनावों के लिए न तो अपने उम्मीदवारों और न ही निशानदेही किए उम्मीदवारों के नामों की सार्वजनिक घोषणा की है। इसके बावजूद विभिन्न चुनाव क्षेत्रों के कुछेक सिख मुखियों ने सोशल मीडिया पर अपने आपको, अपनी पसंद की पार्टी के उम्मीदवार के रूप में पेश करना शुरू कर दिया है और ऐसा करते हुए उन्होंने अपने क्षेत्र के सिखों को मतदाता बनने और मतदाता बनने में उनकी सहायता करने की पेशकश करना तो शुरू किया ही है। इसके साथ ही वे उन्हें अपने समर्थन में आगे आने को भी प्रेरित करने लगे हैं। 

...और अंत में : सिखों में कई ऐसी सूझवान विवादों से दूर, जनसेवा में समर्पित चली आ रही शख्सियतें हैं जो सिख बच्चों की सिखी जीवन के साथ जोडऩे में प्रशंसनीय भूमिका निभा रही है। ये शख्सियतें, प्रचार पाने के स्थान पर काम करने में अपने मनोरथ की पूर्ति स्वीकारती है। जब इन्हें कोई कहता है कि उन्हें अपनी द्वारा की जा रही सेवा का प्रचार कर, लोगों तक पहुंचना चाहिए ताकि उनकी  सेवा-भावना  से प्रेरित हो और भी इस ओर आगे आ सकें, तो उनका जवाब होता है कि उनके काम के प्रचार से कितने लोग प्रेरणा लेंगे, यह तो नहीं कहा सकता परन्तु यदि उनकी इस तुच्छ-सी सेवा का प्रचार होगा तो यदि कुछेक ने भी उनकी प्रशंसा करनी शुरू कर दी तो उनके दिल में अहं की भावना पैदा हो जाएगी, जिससे वे अपने उद्देश्य और मनोरथ से भटक सकते हैं।-न काहू से दोस्ती न काहू से बैर जसवंत सिंह ‘अजीत’
 

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