Edited By ,Updated: 23 Dec, 2019 02:46 AM
हमें इस बात की जांच करनी चाहिए कि पूरे देशभर में नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) के खिलाफ प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं जिन पर दुनिया भर में चर्चा हो रही है। सरकार का कहना है कि प्रदर्शनकारियों के मन में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जानकारी का अभाव है।...
हमें इस बात की जांच करनी चाहिए कि पूरे देशभर में नागरिकता संशोधन कानून (सी.ए.ए.) के खिलाफ प्रदर्शन क्यों हो रहे हैं जिन पर दुनिया भर में चर्चा हो रही है। सरकार का कहना है कि प्रदर्शनकारियों के मन में नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जानकारी का अभाव है। लेकिन वास्तविकता यह है कि 2014 के बाद ऐसा पहली बार हुआ है जब हम देख रहे हैं कि सरकार के इस कदम का काफी व्यापक विरोध हो रहा है। प्रश्र यह है कि ऐसा क्यों है।
मेरे ख्याल में सरकार के लिए ऐसा विश्वास करना गलत होगा कि प्रदर्शनकारियों को इस बात की जानकारी नहीं है कि वे किस चीज के बारे में विरोध कर रहे हैं और यह विश्वास करना भी गलत होगा कि प्रदर्शनकारियों को सरकार के वर्तमान कदमों तथा भविष्य के लिए उसके द्वारा की गई घोषणा से नहीं डरना चाहिए। इस संबंध में एक छोटी-सी बैकग्राऊंड पर नजर डालना उपयोगी रहेगा। 2017 में असम सरकार ने गुवाहाटी हाईकोर्ट में एक शपथ पत्र दाखिल किया। यह उन एडवोकेट्स के दो वर्षीय कांट्रैक्ट को बढ़ाने के बारे में था जो राज्य में फॉरनर्स ट्रिब्यूनल्स के इंचार्ज थे। सरकार द्वारा जमा किए गए दस्तावेज यह दर्शाते थे कि वे उन सदस्यों का कार्यकाल बढ़ाने के पक्ष में नहीं थी जो ज्यादा लोगों को विदेशी घोषित नहीं कर रहे थे। कार्तिक सी. रे ने 380 लोगों के दस्तावेजों की जांच की जिनमें से उन्होंने 1.32 प्रतिशत लोगों को विदेशी घोषित किया। असम सरकार ने कहा कि इनकी सेवाएं ‘‘समाप्त की जा सकती हैं।’’
सरकार की ओर से अपनी अप्रेजल, जिसका शीर्षक था ‘‘सदस्य के बारे में सरकार के विचार’’ में रे की परफार्मेंस को ‘‘संतोषजनक नहीं’’ बताया गया था तथा शीर्षक ‘‘क्या सेवाएं आगे जारी रखने के लिए बनाए रखा जा सकता है अथवा सेवाएं समाप्त की जा सकती हैं,’’ सरकार ने कहा, ‘‘समाप्त की जा सकती हैं।’’ इसी प्रकार दिलीप कुमार बर्मन (485 लोगों में से 4.33 प्रतिशत, संतोषजनक नहीं, समाप्त की जा सकती हैं), भावा हजारिका (494 लोगों में से 2.43 प्रतिशत, संतोषजनक नहीं, समाप्त की जा सकती हैं), द्विजेन दत्ता (548 लोगों में से 1.46 प्रतिशत, संतोषजनक नहीं, समाप्त की जा सकती हैं) कमालुद्दीन अहमद चौधरी (472 लोगों में से 1.06 प्रतिशत, संतोषजनक नहीं, समाप्त की जा सकती हैं), निलय कांति घोष (485 लोगों में से 0.82 प्रतिशत, संतोषजनक नहीं, समाप्त की जा सकती हैं), नवनीत मित्रा (263 लोगों में से 2.23 प्रतिशत, संतोषजनक नहीं, समाप्त की जा सकती हैं) तथा कुलेन्द्र तालुकदार (326 लोगों में से 7.67 प्रतिशत, संतोषजनक नहीं, समाप्त की जा सकती हैं)।
तो इसमें क्या पैटर्न है? यह जानने के लिए हमें यह देखना होगा कि किसका कांट्रैक्ट बढ़ाया गया था। इनमें शामिल हैं नारायण कुमार नाथ (460 लोगों में से 34.57 प्रतिशत विदेशी घोषित किए), जिनके बारे में सरकार का सामान्य विचार था, ‘‘गुड’’ तथा सरकार की अनुशंसा थी कि उसको ‘‘बनाए रखा जा सकता है।’’ इसके बाद अभिजीत दास (443 लोगों में से 39.05 प्रतिशत विदेशी घोषित किए, गुड, बनाए रखा जा सकता है), हेमंत महंता (574 लोगों में से 41.67 प्रतिशत ‘‘सुधार की जरूरत’’ तथा ‘‘चेतावनी के साथ बनाए रखा जा सकता है’’, नभा कुमार बरूआ (321 में से 74.77 प्रतिशत, गुड, बनाए रखा जा सकता है), धीरज कुमार सैकिया (345 में से 31.16 प्रतिशत, गुड, बनाए रखा जा सकता है), जनमोनी बोरा (300 में से 15.33 प्रतिशत, गुड, बनाए रखा जा सकता है), कल्पना बरूआ (249 में से 26.91 प्रतिशत, सुधार की जरूरत है, बनाए रखा जा सकता है), रमाकांत (626 में से 15.65 प्रतिशत, गुड, बनाए रखा जा सकता है), अजय फूकन (239 में से 19.38 प्रतिशत, गुड, बनाए रखा जा सकता है), तथा निबेदिता तमूलीनाथ (691 में से 58.47 प्रतिशत, गुड, बनाए रखा जा सकता है)।
स्पष्ट है पैटर्न
यहां मुझे पैटर्न बताने की जरूरत नहीं है क्योंकि यह स्पष्ट है। हुआ यह है कि असम में कांट्रैक्ट वर्कर्स को लोगों को विदेशी घोषित करने के लिए प्रोत्साहित और रिवार्ड किया जा रहा है जो कांट्रैक्ट वर्कर सरकार के मनमाकिफ काम नहीं कर रहे हैं उन्हें हटाया जा रहा है। इसके बाद विदेशी घोषित लोगों को जेल में डाला जा रहा है। जब राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने इन लोगों के हालात का जायजा लेने के लिए टीम भेजी तो उन्होंने पाया कि परिवारों को स्थायी तौर पर अलग किया जा रहा है। महिलाओं और बच्चों को पुरुषों से अलग जेल में रखा जा रहा है। सरकार अपने लोगों के साथ ऐसा कर रही है। सभ्य दुनिया में सरकार को यह साबित करना होता है कि किसी व्यक्ति ने कोई अपराध किया है। भारत में किसी व्यक्ति को यह साबित करना होता है कि उसे जेल नहीं भेजा जाना चाहिए। यह है राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और इसे इस प्रकार लागू किया जा रहा है जिसे अमित शाह देश भर में लागू करने का इरादा रखते हैं।
नागरिकता संशोधन कानून
आइए अब नागरिकता संशोधन कानून को देखते हैं। यह क्या करता है? यह उन मुसलमानों को जेल में डाल सकता है जिन पर विदेशी होने का आरोप है तथा जो सरकार को इस बारे में संतुष्ट नहीं कर सकते कि वे भारतीय हैं। अन्य सभी धर्मों के लोगों को यह साबित करने से छूट है क्योंकि सी.ए.ए. कहता है कि यदि वे दिसम्बर 2014 सेे पहले अवैध रूप से भी भारत आए होंगे, उन्हें फास्ट ट्रैक नागरिकता दे दी जाएगी। केवल मुसलमानों को ही परिचय पत्र साबित करना होगा। और इसलिए एन.आर.सी. का मकसद उन मुसलमानों को पकड़ कर जेल में डालना है जो अपने दस्तावेज से सरकार को संतुष्ट नहीं कर सकते। यही कारण है कि हम यह देख रहे हैं कि बहुत से भारतीय मुसलमान इन कानूनों का विरोध कर रहे हैं और इसलिए बहुत से गैर मुसलमान भी चुपचाप यह नहीं देख सकते कि देश में क्या हो रहा है।
क्यों भागे विदेश मंत्री
आखिर में यही कारण रहा कि पिछले हफ्ते भारत के विदेश मंत्री अमरीकी कांग्रेस (संसद) की डैलीगेशन से अपनी अप्वाइंटमैंट रद्द करके भाग गए क्योंकि यू.एस. कांग्रेस के सदस्य यह जानना चाहते थे कि भारत में क्या हो रहा है। वे जानते थे कि वे अपनी और सरकार की कार्रवाई का बचाव नहीं कर पाएंगे क्योंकि इसका बचाव नहीं किया जा सकता था।-आकार पटेल