भारत-पाकिस्तान मित्र क्यों नहीं बन सकते

Edited By Pardeep,Updated: 30 Jul, 2018 03:46 AM

why can not india pakistan be friends

बाहरी लोग आमतौर पर इस बात को लेकर उलझन में रहते हैं कि भारत तथा पाकिस्तान मित्र क्यों नहीं बन सकते। उनके दृष्टिकोण में दोनों देश न केवल स्पष्ट तौर पर एक-जैसे हैं बल्कि एक समान ही हैं। कहा जा सकता है कि ये स्पेन तथा पुर्तगाल अथवा जर्मनी और फ्रांस की...

बाहरी लोग आमतौर पर इस बात को लेकर उलझन में रहते हैं कि भारत तथा पाकिस्तान मित्र क्यों नहीं बन सकते। उनके दृष्टिकोण में दोनों देश न केवल स्पष्ट तौर पर एक-जैसे हैं बल्कि एक समान ही हैं। कहा जा सकता है कि ये स्पेन तथा पुर्तगाल अथवा जर्मनी और फ्रांस की तरह भिन्न नहीं हैं, जहां अलगाव, विशिष्ट संस्कृति तथा भाषा का एक लम्बा इतिहास है। 

भारत तथा पाकिस्तान में 1947 से पहले इस तरह का कोई विभाजन नहीं था क्योंकि हम दोनों के बीच कोई प्राकृतिक अवरोध नहीं है। हालांकि हम यह तर्क दे सकते हैं कि उनकी संस्कृति हम से बहुत भिन्न है, यह प्रत्यक्ष तौर पर दिखाई नहीं देती, कम से कम तुरंत बाहरी लोगों को। हमारे व्यंजनों के स्वाद समान हैं, मसालों से भरपूर और जिनका आधार चावल अथवा रोटी है। लोग दिखते भी एक जैसे हैं-यह कहना आसान नहीं होगा कि एक लाहौरी महिला दिल्ली वाली से अलग नजर आती है या कराची का कोई व्यक्ति उत्तर प्रदेश अथवा बिहार वाले से भिन्न दिखाई देता है। दक्षिण तथा पूर्वी भारत भिन्न हैं मगर यह अंतर केवल भारत के भीतर ही है। 

नि:संदेह संगीत भी लगभग एक जैसा है। बाहरी लोगों के लिए इस्तेमाल किए जाने वाले कुछ विशेष मसालों तथा मांस की विभिन्नता (वास्तव में पाकिस्तानियों द्वारा खाया जाने वाला अधिकांश भोजन हमारी तरह मांस नहीं बल्कि दाल-सब्जियां तथा अनाज होता है) उतनी महत्वपूर्ण नहीं है। इसी सब के कारण वह उलझन में पड़ जाते हैं कि दोनों देशों के बीच इस तरह की शत्रुता क्यों है। मेरी आयु लगभग 50 वर्ष है और मुझे कोई आशा नहीं है कि मैं दोनों देशों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध देख पाऊंगा। मैं निराशावादी नहीं बन रहा हूं बल्कि महज व्यवहारवादी हूं। मेरे सारे व्यस्क काल के दौरान ऐसा नहीं हुआ। जब मैं 20 वर्ष का होने वाला था, कश्मीर विवाद हिंसक बन गया और यह वैसा ही बना रहा, जबकि मैं तब से 30 वर्ष और बड़ा हो चुका हूं। मगर उससे पहले भी ऐसा नहीं है कि पाकिस्तान के साथ संबंध अच्छे और यहां तक कि सामान्य थे। जो आरोप अब हम उन पर लगाते हैं (आतंकवाद को बढ़ावा देना),1980 के दशक में भी यही आरोप लगाया जाता था, हालांकि उस समय यह पंजाब में ङ्क्षहसा को लेकर था। 

मुझे निजी तौर पर यह याद नहीं कि संबंधों के मामले में 1970 का दशक कैसा था मगर मुझे पढऩे के बाद पता चला कि 1965 के युद्ध के बाद जो एक चीज घटित हुई वह यह थी कि पंजाब सीमा के आरपार आसानी से होने वाली यात्रा तथा व्यापार समाप्त हो गया था तथा ऐसा ही फिल्में दिखाने के मामले में भी हुआ। यद्यपि 15 वर्ष पूर्व जनरल मुशर्रफ के कार्यकाल के दौरान स्थिति पलट गई मगर उनकी समाप्ति तक ही जारी रही। हम अभी भी उनकी फिल्में अथवा उनके चैनल नहीं दिखाते। 1971 के युद्ध के बाद सीमा को स्थायी तौर पर बंद कर दिया गया तथा वस्तुओं की स्वतंत्र अदला-बदली भी समाप्त हो गई और मैं समझता हूं कि उसी पल को इतने वर्षों बाद भी (मेरा जन्म 1969 में हुआ था) आज तक आगे ले जाया जा रहा है। 

केवल कुछ हजार भारतीय जीवित होंगे जिन्होंने पाकिस्तान देखा है और पाकिस्तानियों के मामले में भी यही बात है। ऐसा वीजा प्राप्त करने की अत्यंत कठिन प्रक्रिया के कारण है। यहां तक कि जो लोग वीजा प्राप्त कर लेते हैं उन्हें एक ‘पुलिस रिपोर्टिंग’ वीजा दिया जाता है जिसका मतलब यह है कि आगंतुक को आने के बाद तथा वापस लौटने से पहले कई घंटे अपना पंजीकरण करवाने तथा पंजीकरण रद्द करवाने में बिताने पड़ते हैं। यात्रा करने की क्षमता के अभाव का एक कारण यह है कि हम उनके बारे में जो कुछ भी जानते हैं वह हमें अन्यों से प्राप्त सूचना तथा भावनात्मक प्रचार के माध्यम से पता चलता है। 

इसने मनोवैज्ञानिक विभाजन को जीवित रखा है। हम युद्ध में नहीं हैं मगर हम कभी भी शांति में नहीं रहे। मुझे पूरा विश्वास नहीं कि अपनी सीमाओं को सख्त रख कर हमने क्या हासिल किया और यहां मेरा मतलब दोनों देशों से है। पाकिस्तान ने अपने जातीय तथा सांस्कृतिक संबंधी से अपना सम्पर्क खो दिया तथा वैसे ही हमने भी मगर उसने भारतीय पर्यटकों जैसी चीजों को भी गंवा दिया। मैं बहुत से ऐसे लोगों को जानता हंू जो सिंधु नदी अथवा तक्षशिला या गांधार जाने के लिए काफी धन खर्च सकते हैं। और इनमें पंजाबियों तथा सिंधियों जैसे वे लोग शामिल नहीं हैं जिनकी वहां जड़ें हैं। भारतीयों को पाकिस्तान में किसी भी चीज को लेकर समस्या नहीं आएगी और वे स्थानीय लोगों की तरह ही व्यवहार करेंगे, संकोचशील तरीके से और बिना किसी ऊंची आकांक्षाओं के जैसा कि अन्य विदेशी करते हैं। 

दूसरी ओर भारत ने अपने उत्पादों के लिए एक बड़ा बाजार गंवा दिया, जिनमें से आटोमोबाइल जैसी अधिकतर वस्तुएं पाकिस्तान में उपलब्ध वस्तुओं से आमतौर पर श्रेष्ठ तथा सस्ती होती हैं तथा उत्तर प्रदेश जैसे 20 करोड़ लोगों वाले देश पाकिस्तान को खारिज करना आसान हो सकता है मगर हमें यह अवश्य याद रखना चाहिए कि उनका एक अपना संभ्रांत वर्ग तथा एक तगड़ी अर्थव्यवस्था है जिसका हम दोहन कर सकते हैं। मैं समझता हूं कि आतंकवाद का डर एक ऐसा कारण है कि दोनों देश एक दूसरे के नागरिकों को परे रखते हैं।

1990 के दशक के मध्य से हम इस बात पर जोर दे रहे हैं कि वीजा तंत्र जहां तक संभव हो सके कड़ा रखना चाहिए ताकि हम सुरक्षित रह सकें। मगर भारत में आतंकवाद समाप्त नहीं हुआ तथा इसके तरीकों को अन्य द्वारा निर्धारित किया जाता है। दूसरी ओर मैं हमेशा पाकिस्तानियों को जोर देकर कहता रहा हूं कि वे भारतीयों को इतनी औपचारिकताओं के बिना प्रवेश करने दें। हालांकि गत वर्षों के दौरान जासूसी के आरोप में एक भारतीय की गिरफ्तारी तथा उसे दोषी करार देने का मतलब यह है कि वे भी उसी तर्क के अनुसार चलते हैं जिस पर हम। आज मेरे जैसों के लिए भी, जो आधी दर्जन बार पाकिस्तान की यात्रा कर चुका हो, पाकिस्तान का वीजा लेना आसान नहीं। 

एक नए चेहरे, क्रिकेटर प्लेब्वाय इमरान खान के चुनाव से इस संदेह को बल मिला है कि क्या पाकिस्तान तथा भारत के बीच संबंधों में सुधार होगा। नहीं, ऐसा नहीं होगा। उनसे पहले कई दोनों तरफ से नए चेहरे तथा हर तरह के व्यक्ति-उदार, रूढि़वादी, कट्टरपंथी और तानाशाह आ तथा जा चुके हैं। ऐसा नहीं है कि वह बड़ा कदम उठाने के लिए किसी सही व्यक्ति का अभाव है या दोनों तरफ के लोगों को नहीं पता है कि स्थायी रूप से शत्रुतापूर्ण स्थिति में रहने के लाभ नहीं हैं।
मैं समझता हूं कि हम केवल तब खुश दिखाई देते हैं जब हम एक दूसरे से नफरत करते हैं।-आकार पटेल

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