आखिर अफसरशाही पर भरोसा क्यों नहीं कर पा रहे हैं हिमाचल के नए मुख्यमंत्री

Edited By Pardeep,Updated: 17 May, 2018 05:59 AM

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हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुए 4 माह से अधिक हो चुके हैं लेकिन इस लंबी अवधि में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर राज्य की अफसरशाही पर अपना भरोसा नहीं जता पाए हैं। हालांकि इक्का-दुक्का अफसरों पर उनका भरोसा बना हुआ है लेकिन वे उनकी लंबी पारी का सफर पूरा...

हिमाचल प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुए 4 माह से अधिक हो चुके हैं लेकिन इस लंबी अवधि में मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर राज्य की अफसरशाही पर अपना भरोसा नहीं जता पाए हैं। हालांकि इक्का-दुक्का अफसरों पर उनका भरोसा बना हुआ है लेकिन वे उनकी लंबी पारी का सफर पूरा नहीं कर पाएंगे, क्योंकि ऐसे अफसरों की सेवानिवृत्ति का समय काफी नजदीक है। वहीं राज्य से संबंध रखने वाले आई.ए.एस. अधिकारियों से मुख्यमंत्री ने दूरी बनाकर रखी हुई है। 

सत्ता परिवर्तन के बाद प्रशासनिक और पुलिस में उच्च स्तर पर फेरबदल सभी सरकारें करती आई हैं लेकिन भाजपा के सत्ता में आने के बाद से लेकर अब तक ऐसे तबादलों का दौर नियमित रूप से चल रहा है। इस छोटे से राज्य में अभी तक आई.ए.एस. और एच.ए.एस. के 295 के करीब तबादले हो चुके हैं। जबकि आई.पी.एस. और एच.पी.एस. अधिकारियों के तबादलों पर गौर करें तो ये भी 104 के करीब हुए हैं। 

मुख्यमंत्री ने 4 माह पहले चुनी अपनी प्रधान सचिव मनीषा नंदा को भी हटा दिया है। वहीं जिन अफसरों के कंधों पर बड़े विभागों की जिम्मेदारियां उन्होंने सौंपी थीं उन्हें बदल कर जयराम ठाकुर ने अपने कड़े तेवरों से अफसरशाही को आगाह करने की कोशिश की है। आए दिन हो रहे तबादलों की वजह कहीं न कहीं इस सरकार में प्रशासनिक सूझबूझ की कमी को भी दर्शा रही है जिसका असर आने वाले समय में हिमाचल प्रदेश के विकास पर भी कहीं न कहीं जरूर पड़ेगा क्योंकि भाजपा के सत्ता में आने से लेकर अफसरशाही लगातार हो रहे इन तबादलों के कारण स्थिर ही नहीं हो पा रही है। यह भी एक बड़ा सवाल खड़ा होने लगा है कि अगर मुख्यमंत्री राज्य के अफसरों पर अपने भरोसे का रुख ऐसा ही रखेंगे तो अफसरशाही भी मुख्यमंत्री पर भरोसा नहीं कर पाएगी। 

लगातार होने वाले तबादलों पर विपक्षी कांग्रेस भी आए दिन भाजपा सरकार को घेर रही है। वहीं सत्तारूढ़ होने के बाद मंत्रिमंडल की पहली बैठक में रिटायर्ड कर्मचारियों को मिले सेवा विस्तार और पुन:रोजगार को जयराम ठाकुर ने खत्म कर भविष्य में इस प्रथा को बंद करने की बात कही थी लेकिन मात्र 4 माह के कार्यकाल में अभी तक 250 से अधिक कर्मचारियों को सेवा विस्तार दिए जा चुके हैं। 

मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर का मंत्रिमंडल भी लगभग नया है, जाहिर है कि प्रशासनिक सूझबूझ की कमी लगभग पूरी सरकार के अंदर ही है जिसका असर जनता आए दिन होने वाले तबादलों में देख रही है। वहीं राज्य में एकाएक जघन्य अपराधों में आई बढ़ौतरी से भी कानून-व्यवस्था पर यह सरकार घिरने लगी है। विपक्ष के लगातार हमलों पर भाजपा संगठन सरकार का सेफगार्ड तो बन रहा है लेकिन जयराम ठाकुर के मंत्रिमंडल सदस्य इस भूमिका को निभाने से अभी तक बचते ही दिख रहे हैं। वहीं मंत्री पद से दूर रखे गए वरिष्ठ भाजपा विधायक भी इस बार सरकार के अंदर अपनी सक्रिय भूमिका नहीं निभा रहे हैं। जिसकी सबसे बड़ी वजह भाजपा सरकार के अंदर संवाद की कमी को माना जा रहा है। 

लोकसभा में नए चेहरों की तलाश में भाजपा, कांग्रेस का भी मंथन शुरू : आने वाले लोकसभा चुनावों को लेकर भाजपा ने तैयारियां शुरू कर दी हैं। भाजपा हाईकमान इस बार नए चेहरों पर दाव खेलना चाहती है। बताया जा रहा है कि इस बदलाव का असर हिमाचल प्रदेश के 2 से 3 लोकसभा क्षेत्रों में पड़ सकता है। वहीं हाईकमान ने यह भी तय किया है कि विधानसभा चुनावों में उतारे गए प्रत्याशियों को लोकसभा में नहीं उतारा जाएगा। कांगड़ा संसदीय क्षेत्र से मौजूदा सांसद शांता कुमार खुद चुनाव लडऩे की बजाय चुनाव लड़वाने की बात कह चुके हैं। 

पार्टी इस लोकसभा क्षेत्र में गद्दी और ओ.बी.सी. मतदाताओं की संख्या को ध्यान में रखते हुए किसी नए चेहरे पर दाव खेल सकती है। गद्दी नेताओं में मुख्यत: पूर्व विधायक दूलोराम, भाजपा के राष्ट्रीय पदाधिकारी त्रिलोक कपूर और विशाल नैहरिया के नाम चर्चा में हैं। जबकि ओ.बी.सी. चेहरे के रूप में सेवानिवृत्त ब्रिगेडियर पवन चौधरी पार्टी की पसंद बन सकते हैं। वह ओ.बी.सी. के साथ-साथ सैनिक परिवारों का वोट भाजपा के पक्ष में कर सकते हैं। मंडी संसदीय क्षेत्र में मौजूदा सांसद रामस्वरूप शर्मा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से नजदीकियों के चलते अपना टिकट बचा भी सकते हैं। अगर कोई बदलाव होता है तो भाजपा युवा तुर्क प्रवीण शर्मा और पूर्व मंत्री रूप सिंह ठाकुर व अजय राणा पार्टी की पसंद हो सकते हैं। 

शिमला संसदीय क्षेत्र में टिकट का बदलाव तय माना जा रहा है। यहां से किसी महिला को चुनाव में उतारे जाने की चर्चाएं जोर पकड़ चुकी हैं। यह सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है और यहां से शिमला नगर निगम की मौजूदा मेयर कुसुम सदरेट और लंबे समय से पंचायती राज संस्थाओं में सक्रिय आशा कश्यप पर पार्टी भरोसा जता सकती है। अगर विधानसभा में उतारे गए प्रत्याशियों को लोकसभा में न उतारे जाने वाले अपने फैसले से पार्टी समझौता करती है तो रोहड़ू विधानसभा क्षेत्र से भाजपा के टिकट पर चुनाव लड़ चुकी शशि बाला भी पार्टी की पसंद हो सकती हैं। शिमला संसदीय क्षेत्र से पूर्व प्रशासनिक अधिकारी एच.एन. कश्यप का भी इस बार लोकसभा की टिकट पर पूरा दावा है। हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से टिकट पर अनुराग ठाकुर का इकलौता दावा माना जा रहा है। हालांकि पूर्व मुख्यमंत्री प्रो. प्रेम कुमार धूमल और भाजपा अध्यक्ष सतपाल सिंह सत्ती का नाम भी कहीं न कहीं इस बार चल रहा है। प्रदेश भाजपा ने मिशन चार का नारा देते हुए अभी से लोकसभा चुनावों की तैयारियां शुरू कर दी हैं। 

दूसरी ओर कांग्रेस पार्टी अभी तक लोकसभा चुनावों को लेकर संगठन की कोई भी कार्य योजना तय नहीं कर सकी है लेकिन बावजूद इसके कांग्रेस पार्टी ने अभी से चारों लोकसभा क्षेत्रों में प्रत्याशियों की टोह शुरू कर दी है। जिसके तहत कांगड़ा से पूर्व मंत्री सुधीर शर्मा, मंडी से पूर्व मंत्री कौल सिंह ठाकुर, शिमला (आरक्षित) से पूर्व मंत्री व मौजूदा विधायक धनीराम शांडिल व युवा तुर्क विनोद सुल्तानपुरी तथा हमीरपुर संसदीय क्षेत्र से सुजानपुर के विधायक राजेंद्र राणा के नामों की चर्चा चल रही है।-डा. राजीव पत्थरिया

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