‘अटल महाधिवेशन’ के लिए भाजपा को क्यों नहीं मिली परेड ग्राऊंड की परमिशन

Edited By Pardeep,Updated: 14 Oct, 2018 01:06 AM

why did not the bjp get the parade ground permission for atal mahadivestion

तेलंगाना पर भगवा पार्टी की नजर है, भाजपा को भरोसा है कि इस दफे तेलंगाना में पार्टी का प्रदर्शन इतना चमकदार होगा कि उसको साथ लिए बगैर प्रदेश में कोई सरकार नहीं बन पाएगी। पार्टी के कर्णधारों ने तय किया है कि भाजपा का अगला महाधिवेशन तेलंगाना के...

तेलंगाना पर भगवा पार्टी की नजर है, भाजपा को भरोसा है कि इस दफे तेलंगाना में पार्टी का प्रदर्शन इतना चमकदार होगा कि उसको साथ लिए बगैर प्रदेश में कोई सरकार नहीं बन पाएगी। पार्टी के कर्णधारों ने तय किया है कि भाजपा का अगला महाधिवेशन तेलंगाना के सिकंदराबाद में आयोजित किया जाए, जिससे कि भगवा कैडर में एक नई जान फूंकी जा सके। 

अगला महाधिवेशन जिसे अटल महाधिवेशन का नाम दिया गया है, का यह तीन दिवसीय कार्यक्रम सिकंदराबाद की परेड ग्राऊंड में आहूत होगा जिसमें भाग लेने के लिए देशभर से कोई 50 हजार मंडल स्तर के कार्यकत्र्ता जुटेंगे। इस अटल महाधिवेशन के लिए 26-28 अक्तूबर की तारीख मुकर्रर की गई है। तयशुदा कार्यक्रमों के मुताबिक 12 अक्तूबर को ही परेड ग्राऊंड में भूमि पूजन होना था जिससे कि महाधिवेशन की तैयारियों को रफ्तार दी जा सके पर अभी तक डिफैंस मंत्रालय से परेड ग्राऊंड के लिए क्लीयरैंस ही नहीं आई है, चूंकि परेड ग्राऊंड कैंट एरिया में आता है और इसके लिए आर्मी की परमिशन की दरकार पड़ती है। 

परमिशन के कार्य का जिम्मा पार्टी ने मुरलीधर राव और युवा मोर्चा की पूनम महाजन पर छोड़ा हुआ है। ये दोनों नेता पिछले काफी समय से साऊथ ब्लॉक का चक्कर लगा रहे हैं। दो-तीन दफे रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण से भी मिल चुके हैं, पर केन्द्रीय रक्षा मंत्री के कई दफे के आश्वासनों के बावजूद अब तलक परेड ग्राऊंड के लिए एन.ओ.सी. नहीं मिल पाई है। परमिशन की फाइल एक जगह से दूसरी जगह घूम रही है और स्वयं मंत्री राफेल के चक्कर में नई दिल्ली-पैरिस का चक्कर लगा रही हैं। 

आर्मी जानना चाहती है कि अगर भाजपा अधिवेशन 26-28 अक्तूबर के बीच है तो मैदान एक पखवाड़ा पहले क्यों चाहिए, भगवा आयोजक बताना चाह रहे हैं कि मैदान में स्विस टैंट लगने हैं, आयोजन स्थल विकसित करने हैं, पानी-बिजली की व्यवस्था करनी है। आयोजक ‘ओयो रूम’ से भी बात कर रहे हैं और उनसे 12 हजार कमरे मांग रहे हैं, पर अब तक सिर्फ अढ़ाई हजार कमरों का ही आश्वासन मिल पाया है। और जो भाजपा को अपनी सरकार से ही नहीं मिल पाई है वह है एक अदद परमिशन। 

तेजस्वी बनाम तेज प्रताप की जंग तेज
लालू परिवार में तूफान आने से पहले का सन्नाटा बिखरा पड़ा है, लालू के दोनों पुत्रों तेजस्वी और तेज प्रताप के बीच महत्वाकांक्षाओं की जंग उफान मार रही है और परिवार में सशंकित लम्हों की आहटों को हर पल महसूस किया जा सकता है। सूत्र बताते हैं कि एक दिन जब रात के खाने की टेबल पर लालू को छोड़कर अन्य पूरा परिवार इकट्ठा था तो तेज और तेजस्वी में किसी बात को लेकर घोर बहस हो गई। सूत्रों की मानें तो तेज की अपने छोटे भाई को राय थी कि ‘कांग्रेस को साथ ढोने में क्या अक्लमंदी है अगर उसके पास वोट ही इतने कम बचे रह गए हैं।’ इसके अलावा तेज ने झारखंड को लेकर भी अपनी कुछ राय रखी। 

कहते हैं इस पर तेजस्वी उखड़ गए और आदतन उन्होंने अपने बड़े भाई से थोड़ी तल्खी से कह डाला-‘जितनी बुद्धि है उतना ही दिमाग लगाओ, जितना भगवान ने दिया है उतना ही चलाया करो। हमारा लीडर जेल में है और आप पार्टी के थिंक टैंक नहीं।’ पर ये सब कहते हुए तेजस्वी भूल गए कि अब तेज के पास भी एक ऐश्वर्या है, ऐश्वर्या राय उनकी धर्मपत्नी। रात में पत्नी ने अपने पति को समझाया कि यादवों के असली नेता तो आप हो, आपके छोटे भाई तो बस ‘पोस्टर ब्यॉय’ हैं। तेज को बात जम गई, जितनी चाबी भरी राम ने उतना चले खिलौना, कहते हैं बेकाबू होकर आधी रात को तेज ने अपने छोटे भाई का दरवाजा खटखटा दिया, दरवाजा खुला तो कथित तौर पर उस पर अपनी देसी तान दी, बमुश्किल बवाल शांत हुआ। अगली सुबह तेजस्वी भागे-भागे अपने पिता के पास पहुंचे और उनसे दो टूक कहा-‘आप तय कर दीजिए कि आपकी विरासत आगे लेकर कौन चल सकता है।’ हालांकि तेज अपने पिता के बहुत करीबी हैं पर सियासत के धुरंधर लालू को मालूम है कि उनकी विरासत को सही मायनों में आगे कौन ले जा सकता है, सो उन्होंने वहीं से तेज को फोन लगाया और डपट दिया। परिवार में इतना तनाव था कि लालू पुत्री मीसा भारती की जुबान फिसल गई, फिर मीडिया के समक्ष उन्होंने खुद को सुधारा और कहा-उनके परिवार में ऐसी कोई तनातनी नहीं है पर सियासत कहे शब्दों पर कब चली है? 

कांग्रेस पर होगी धन की बरसात!
धन की कमी से जूझ रही कांग्रेस के लिए अच्छी खबर है कि देश के उद्योगपतियों का एक बड़ा तबका आगामी चुनावों में खास कर 2019 के आम चुनावों में अपनी थैली का मुंह कांग्रेस के लिए खोलने को उत्सुक है। सूत्रों की मानें तो देश के उद्योगपतियों की हालिया दिनों में भाजपा को लेकर नाराजगी बढ़ी है, उन्हें कहीं न कहीं ऐसा लगता है कि मोदी राज की नीतियों से उद्योग-धंधों की सेहत चौपट हुई है और सिर्फ  दो-चार गिने-चुने उद्योगपतियों पर ही मोदी राज में कृपा बरसी है। 

सूत्रों की मानें तो पिछले दिनों आनंद महिन्द्रा के नेतृत्व में 8 उद्योगपतियों का एक प्रतिनिधिमंडल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी से मिला। इस प्रतिनिधिमंडल में अजीम प्रेमजी, संजीव गोयनका, राजीव बजाज जैसे देश के शीर्ष उद्योगपति शामिल बताए जा रहे हैं। राहुल से मुलाकात में इन उद्योगपतियों ने जानना चाहा कि क्या राहुल के पास 2019 के चुनावों का रोड मैप तैयार है और वे किन मुद्दों के साथ चुनावों में जाना चाहते हैं, चुनावी गठबंधन को लेकर उनकी नीतियां क्या रहने वाली हैं, आदि-आदि? राहुल ने साफ किया कि 2019 को लेकर उनकी नीतियां बिल्कुल तैयार हैं, पर इसका खुलासा वे अभी नहीं कर सकते। राहुल से मुलाकात के बाद कांग्रेस को लेकर इस प्रतिनिधिमंडल के उत्साह में थोड़ी कमी जरूर आई है। अब उन्होंने तय किया है कि कांग्रेस के साथ-साथ वे अब अपना चुनावी चंदा चंद प्रमुख क्षेत्रीय पार्टियों को भी देंगे। भाजपा को कुछ न कुछ देना तो उनकी मजबूरी है ही। 

जनवरी में होगा बसपा-सपा का गठबंधन
बड़े लम्बे समय के बाद पिछले दिनों अखिलेश और मायावती के बीच एक लम्बी बातचीत हुई। माया ने इस बार न सिर्फ अखिलेश का फोन उठाया बल्कि उनका मान भी बढ़ाया, यह कहते हुए कि बसपा-सपा का गठबंधन यू.पी. में होकर रहेगा। कांग्रेस इस गठबंधन का हिस्सा होगी या नहीं, इसका निर्णय अखिलेश करेंगे क्योंकि कांग्रेस के लिए उन्हें जो सीटें छोडऩी हैं अपने हिस्से की सीटों में से छोडऩी होंगी। सूत्र बताते हैं कि माया ने अखिलेश को यह भी समझाया कि वह गठबंधन को लेकर उतावलापन न दिखाएं क्योंकि अभी देश का माहौल ठीक नहीं है, उन दोनों लोगों के ऊपर केन्द्र की सख्ती बढ़ सकती है। 

सूत्र बताते हैं कि मायावती ने अखिलेश को आश्वस्त किया है कि बसपा-सपा के बीच गठबंधन जनवरी माह में होगा और इस गठबंधन की सफलता के लिए जरूरी है कि अखिलेश एक बड़ा दिल दिखाएं। माया ने इच्छा जाहिर की है कि बसपा 40 से ज्यादा सीटों पर चुनाव लडऩे की इच्छुक है। कहते हैं माया ने यह भी साफ कर दिया है कि बसपा अजित सिंह की लोकदल के साथ भी चुनावी गठबंधन की इच्छुक नहीं क्योंकि अजित का जनाधार सिर्फ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में है, जहां दलित और मुस्लिम भाजपा को हराने के लिए एकजुट हो चुके हैं और पश्चिमी यू.पी. का जाट वोटर भी भाजपा से नाखुश है।’ अखिलेश ने माया की हां में हां मिलाई है, उन्हें मालूम है कि यू.पी. में साइकिल को हाथी की मदद की कितनी दरकार है। 

दिग्विजय के घर कोहराम
कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह अपने घरेलू मोर्चे पर बेदम दिख रहे हैं। सूत्रों की मानें तो उनकी नव नवेली पत्नी अमृता राय को लेकर उनके घर में मचे कोहराम ने अब एक भीषण रूप ले लिया है। कहते हैं कि दिग्विजय से उनकी बेटियां इतनी नाराज हैं कि उन्होंने अपने पिता से बात करनी ही छोड़ दी है। बेटे ने साफ तौर पर ऐलान कर दिया है कि अमृता राय परिवार के पुश्तैनी घर राघोगढ़ किले में कदम नहीं रखेंगी। अमृता राय के दिल्ली में सियासी सलाहकारों की कोई कमी नहीं है। राज्यसभा टी.वी. के पूर्व सी.ई.ओ. गुरदीप सप्पल उनके सबसे प्रमुख सलाहकारों में शुमार होते हैं। 

सूत्र बताते हैं कि सप्पल की सलाह पर ही अमृता ने चुनाव लडऩे का मन बना लिया है। वह मध्य प्रदेश से दिग्विजय की परंपरागत सीट से चुनाव लडऩे की इच्छुक हैं, वहीं दिग्विजय इस सीट से अपने बेटे को चुनाव लड़वाना चाहते हैं। अमृता दिग्विजय को समझाने में लगी हैं कि अपनी उम्र और वरिष्ठता को देखते हुए उन्हें अब राज्यसभा में आ जाना चाहिए। दिग्विजय भी कहीं न कहीं इस बात को लेकर तैयार बताए जा रहे हैं, पर असल पेंचोखम तो उनके राजनीतिक उत्तराधिकार को लेकर उलझा है। एक तरफ पुत्र है तो दूसरी तरफ पत्नी, उन्हें इस सियासी बवंडर को अपना कंधा तो देना ही होगा। 

माया को ममता का फोन
पर सबसे आश्चर्यजनक था मायावती को ममता बनर्जी का फोन आना। बातों ही बातों में ममता ने मायावती की खुलकर तारीफ की और कहा कि उन्होंने कांग्रेस का घमंड तोड़ कर रख दिया है। माया ने भी दीदी के समक्ष कांग्रेस पर पलटवार करते हुए कहा-लोग कहते हैं कांग्रेस उदार है, राहुल उदार हैं तो यह सब बस एक दिखावा है, क्योंकि कांग्रेस गठबंधन के लिए सिर्फ उन राज्यों की बात करती है जहां वह है ही नहीं, जहां वह है, गठबंधन साथियों को सीट देने के लिए वह तैयार नहीं।’ माया ने आगे कहा कि उन्होंने 6 प्रदेशों के लिए कांग्रेस को प्रस्ताव दिया था पर उसका कोई सकारात्मक जवाब आया नहीं, उनकी मंशा सिर्फ यू.पी. में गठबंधन को लेकर है। फिर बातों ही बातों में ममता ने माया को बताया कि बंगाल में कांग्रेस साफ होने वाली है, मालदा की चाचा-भतीजी की जोड़ी उनकी पार्टी में आने वाली है, अधीर रंजन चौधरी भाजपा में जाने वाले हैं, ऐसे में बंगाल में फिर उनका बचता क्या है? फिर माया ने एक अध्यात्म की बात ममता से शेयर की और कहा कि अगर 2019 में हमारी किस्मत में पी.एम. बनना ही लिखा है तो फिर क्या मालूम कि मैं भाजपा के सपोर्ट से ही पी.एम. बन जाऊं?’ बहनजी की बातें सुनकर एक पल दीदी भी भौंचक रह गईं, यह सोचकर कि सियासत में तो माया का हाथी भी अढ़ाई घर चलता है। 

पूरब में भाजपा का सूरज
देश के वोटरों का मूड भांपने के लिए भाजपा के शीर्ष नेतृत्व ने 4 अलग-अलग सर्वेक्षण एजैंसियों से देश के पूर्वी तट का सर्वेक्षण करवाया है। इस सर्वेक्षण में पश्चिम बंगाल, ओडिशा, तमिलनाडु और आंध्र प्रदेश जैसे राज्य शामिल हैं। पर अगर एक अदद ओडिशा की बात छोड़ दी जाए तो अन्य तीनों राज्यों में भाजपा की हालत बेहद नाजुक बताई जा रही है। कमोबेश चारों सर्वेक्षण रिपोर्ट में एक ही बात उभर कर सामने आ रही है कि अकेले ओडिशा में भाजपा का प्रदर्शन बेहतर रहेगा और वहां की 21 में से भाजपा अभी 6 सीटें जीतने की स्थिति में है, 2014 के लोकसभा चुनाव में सिर्फजुआल ओरांव ही यहां से जीत दर्ज कर पाए थे। सी.एम. पद की रेस में धर्मेन्द्र प्रधान पिछड़ कर तीसरे नम्बर पर आ गए हैं, सो पार्टी हाईकमान ने तय किया है कि ओडिशा विधानसभा चुनाव में भाजपा किसी को भी अपना सी.एम. फेस प्रोजैक्ट नहीं करेगी, यहां तक कि शाह के सबसे दुलारे धर्मेन्द्र प्रधान को भी विधानसभा की बजाय लोकसभा के चुनावों में उतारा जाएगा।-मिर्च-मसाला
त्रिदीब रमण

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