Edited By Pardeep,Updated: 16 Dec, 2018 03:36 AM
कांग्रेस मुक्त भारत हमेशा से ही एक कल्पना थी। भाजपा और विशेष रूप से इसके दो नेताओं नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह ने मूर्खतापूर्ण विचार बेचने का प्रयास किया कि कांग्रेस पार्टी को देश के चुनावी नक्शे से मिटाया जा सकता है और मिटा दिया जाएगा। कांग्रेस ने...
कांग्रेस मुक्त भारत हमेशा से ही एक कल्पना थी। भाजपा और विशेष रूप से इसके दो नेताओं नरेन्द्र मोदी तथा अमित शाह ने मूर्खतापूर्ण विचार बेचने का प्रयास किया कि कांग्रेस पार्टी को देश के चुनावी नक्शे से मिटाया जा सकता है और मिटा दिया जाएगा। कांग्रेस ने इस तर्क को बकवास बताया। यहां तक कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आर.एस.एस.) ने भी खुद को इस उकसाऊ नारे से दूर रखा। हालांकि भारत के लोगों में भाजपा की योजना को लेकर अप्रसन्नता दिखाई दी।
जब अवसर पैदा हुआ, छत्तीसगढ़, राजस्थान तथा मध्य प्रदेश, इन तीनों राज्यों में मतदाताओं ने निर्णायक तौर पर कांगे्रस के पक्ष में मतदान किया जहां वह भाजपा के साथ सीधी लड़ाई में थी। पाठक सम्भवत: ‘निर्णायक’ शब्द पर आपत्ति जताएं लेकिन ऐसा मैंने परिणामों की सतर्कतापूर्वक समीक्षा करने के बाद जानबूझकर किया।
निर्णायक फैसला
निम्नलिखित तथ्यों को ध्यान में रखें :
* छत्तीसगढ़ के गठन के बाद से कांग्रेस ने किसी भी अन्य पार्टी के मुकाबले सर्वाधिक संख्या में सीटें जीतीं (68/90) जबकि इसके पक्ष में 43 प्रतिशत वोट डाले गए।
* राजस्थान में कांगे्रस भाजपा के मुकाबले लोकप्रिय मतों (1,39,35,201 बनाम 1,37,57,502) तथा डाले गए वोटों के प्रतिशत (39.3 बनाम 38.8 प्रतिशत) दोनों मामलों में आगे रही। इसके अतिरिक्त कांग्रेस ने 5 सीटें अपने सहयोगियों को दीं जिन्हें 1,84,874 वोट मिले, जिन्हें कांग्रेस के आंकड़े में ही शामिल किया जाना चाहिए।
* मध्य प्रदेश में कांग्रेस ने भाजपा से एक सीट कम पर चुनाव लड़ा, फिर भी कांग्रेस ने अधिक सीटें (114 बनाम 109) हासिल कीं जबकि दोनों ही पार्टियों को लगभग बराबर वोट पड़े (1,55,95,153 बनाम 1,56,42,980)।
यह ध्यान में रखते हुए कि कांग्रेस ने तीन राज्यों में दौड़ की शुरूआत कहां से की, यह तथ्य कि कांग्रेस भाजपा के बराबर तक पहुंच गई, लोगों के फैसले की निर्णायक प्रकृति को दर्शाता है। परिणाम और भी अधिक निर्णायक होते यदि बसपा ने कांग्रेस के साथ गठबंधन किया होता। राजस्थान में बसपा ने 6 सीटें जीतीं (4.0 प्रतिशत तथा 14,10,995 वोटें) तथा मध्य प्रदेश में 2 सीटें (5.0 प्रतिशत तथा 19,11,642 वोटें)। दोनों पार्टियों के बीच गठबंधन हुआ होता तो मध्य प्रदेश में कांग्रेस की 114 की संख्या में 29 सीटें और जुड़ गई होतीं।
परिणामों के पीछे कारण
पर्याप्त संख्या! खुद से पूछें कि क्यों लोगों ने कांग्रेस के पक्ष में इतना निर्णायक मतदान किया। ङ्क्षहदी पट्टी में इसके मुख्य कारण अच्छी तरह से ज्ञात हैं-किसानों की दुर्दशा, बेरोजगारी तथा महिलाओं, दलितों जनजातीय लोगों व अल्पसंख्यकों में असुरक्षा। हिंदी पट्टी के आगे भी यही कारक काम कर रहे हैं। 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले यह एक बहुत बड़ा प्रश्र है कि क्या केन्द्र में सत्तासीन भाजपा सरकार शक्तिशाली नकारात्मक लहर को रोक पाने में सक्षम होगी? मैं समझता हूं कि एक गहरे स्तर पर अन्य बहुत से कारक कार्य कर रहे हैं। यह अनुमान लगाने की गलती न करें कि औसत नागरिक केवल भोजन की कीमतों तथा नौकरियों से जुड़े मुद्दों की ही चिंता करते हैं। निश्चित तौर पर अन्य मुद्दों के साथ वे अवचेतन स्तरों से चिंतित हैं।
उदाहरण के लिए सबसे बड़े राज्य उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ‘योगी’ आदित्यनाथ के प्रभाव पर गौर करें। आदित्यनाथ नरेन्द्र मोदी की तरह अथक प्रचारक थे और उन्होंने मोदी से अधिक रैलियों को सम्बोधित किया। जब कोई ऐसा व्यक्ति बोलता है तो केवल गायों की रक्षा, राम मंदिर के निर्माण, भगवान राम की सबसे ऊंची प्रतिमा खड़ी करने, राज्यों तथा शहरों के नाम बदलने, उनके राज्यों से मुसलमान नेताओं को समाप्त करने आदि के बारे में ही बोलता है, वह आशा या विकास अथवा सुरक्षा का संदेश नहीं देता। इसके विपरीत वह निरंतर लड़ाई-झगड़े, हिंसा, दंगों तथा समाज के ध्रुवीकरण व विभाजन की काली छाया पैदा करता है और औसत नागरिकों के दिल में डर की भावना उत्पन्न करता है। मेरे विचार में ऐसा डर अत्यंत गरीब लोगों के मतदान के व्यवहार के पीछे एक बहुत सक्षम कारण होता है। वे गरीबी तथा विकास के झूठे वायदों के साथ रह सकते हैं लेकिन लगातार लड़ाई-झगड़ों की स्थिति में नहीं रह सकते।
हमें डर समाप्त करना होगा
बाकी मतदाताओं पर भी योगी आदित्यनाथ का प्रभाव लगभग वही है। इसके साथ ही चुनावों के अंतिम चरण में मोदी तथा शाह द्वारा जिस तरह के भाषण दिए गए उन्होंने तस्वीर को पूर्ण तथा भयावह बना दिया। यदि आप यह सोचते हैं कि डर वरिष्ठ नागरिकों अथवा गृहिणियों या महत्वाकांक्षी प्रोफैशनल्स अथवा आकांक्षावान छात्रों पर असर नहीं डालता तो आप गलत हैं। अंतिम सप्ताह में कई विचारशील व्यावसायिक व्यक्तियों तथा बैंकरों ने गर्मजोशी के साथ मुझसे हाथ मिलाया और कांग्रेस पार्टी के लिए मुझे फुसफुसा कर शुभकामनाएं दीं। एक शिक्षित युवती, जो ट्रॉली को धकेल रही थी, मुझे यह कहने के लिए दौड़कर पास पहुंची कि चुनाव परिणामों से वह कितनी खुश है और कांग्रेस पार्टी के लिए शुभेच्छाएं दीं। लंच के समय वरिष्ठ नागरिकों ने मुझे यह कहने के लिए रोका कि वे परिणामों से अत्यंत रोमांचित हैं और उन्होंने आशा जताई कि 2019 में परिवर्तन होगा। पत्रकार, जो राजनीतिक स्थिति के पर्यवेक्षकों में सबसे सख्त तथा निंदक होते हैं, ने साक्षात्कार की इच्छा जताई (हालांकि अभी मुझे नहीं पता कि उनके मालिक क्या सोचते हैं)।
गलती न करें, भाजपा अपने हाथ में सभी औजारों के साथ पूरी ताकत से वापसी के लिए लड़ाई लड़ेगी-कानून, अध्यादेश, वायदे, खोजें, मुकद्दमे तथा सबसे बढ़कर जारी कार्यक्रमों में और अधिक धन झोंक कर। जहां तक अधिक धन की बात है तो डा. उॢजत पटेल के जाने से सरकार के रिजर्व बैंक के ‘अतिरिक्त कोष’ पर धावा बोलने के अवसरों में और सुधार हुआ है। भाजपा के पास जवाबी लड़ाई लडऩे के लिए 100 दिन बाकी हैं। विपक्ष के पास भी लड़ाई को आगे ले जाने के लिए 100 दिन हैं। 2019 का फैसला भारत के संविधान तथा इसके मूल्यों के भविष्य का निर्णय करेगा।-पी. चिदम्बरम