Edited By ,Updated: 08 Mar, 2020 04:27 AM
रक्षा राज्यमंत्री श्रीपद नायक ने 4 मार्च को लोकसभा में बताया कि वर्ष 2019 में तीनों सेनाओं के कुल 95 सैनिकों ने आत्महत्याएं कीं। जिसमें सेना के 73, नौसेना के 2 तथा वायुसेना के 16 सैनिक शामिल थे। उन्होंने लिखित रूप में 2017 तथा 2018 के आंकड़े भी दिए।...
रक्षा राज्यमंत्री श्रीपद नायक ने 4 मार्च को लोकसभा में बताया कि वर्ष 2019 में तीनों सेनाओं के कुल 95 सैनिकों ने आत्महत्याएं कीं। जिसमें सेना के 73, नौसेना के 2 तथा वायुसेना के 16 सैनिक शामिल थे। उन्होंने लिखित रूप में 2017 तथा 2018 के आंकड़े भी दिए। यदि पिछले तीन वर्षों के आंकड़े जोड़ लिए जाएं तो हमें पता चलेगा कि सेना के 233, नौसेना के 15 तथा वायुसेना के 57 देश के रखवालों ने आत्महत्याएं कीं। रक्षा मनोवैज्ञानिक शोध संस्था की ओर से वर्ष 2006 से लगातार किए जा रहे ङ्क्षचतन के अनुसार, आत्महत्याओं के मुख्य कारण घरेलू समस्याएं, वैवाहिक जीवन संबंधित मतभेद, तनावपूर्ण स्थितियां तथा आर्थिक पहलू हैं।
एक सामाजिक कलंक है आत्महत्या
नायक ने इस किस्म की समस्याओं को दूर करने के लिए उठाए गए कदमों का भी जिक्र किया। जहां सभी धर्म आत्महत्या को एक पाप मानते हैं, वहीं इसको एक सामाजिक कलंक भी माना जाता है। सेना के अंदर आत्महत्या को कायरता के तौर पर माना जाता है। जब कोई सेना का जवान बुजदिली वाला कदम उठाने के लिए मजबूर हो जाता है तब उसका प्रभाव केवल उसके यूनिट तथा परिवार पर नहीं पड़ता बल्कि समस्त समाज, सरकार तथा सेना के उच्च कमांडरों पर भी पड़ता है। सवाल यह पैदा होता है कि एक इंसान विशेष तौर पर अनुशासन में रहने वाला एक आज्ञाकारी सैनिक अपनी जीवन लीला समाप्त करने वाला ऐसा कार्य क्यों करता है। सेना में ऐसी घटनाओं पर कैसे नकेल डाली जाए।
मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) सामे राम की ओर से किए गए वैज्ञानिक शोध के अनुसार वर्ष 2006 के दौरान सेना में 120 आत्महत्याएं होने की पुष्टि हुई थी जिसमें अधिकारी भी शामिल थे। इनमें से ज्यादातर 20-25 वर्ष की आयु वाले सैनिक थे जिनमें 72 शादीशुदा तथा 48 अविवाहित थे। शोध ने यह भी सिद्ध किया कि 96 प्रतिशत हादसे नौकरी दौरान घटे तथा 4 प्रतिशत छुट्टी काटने आए सैनिकों के साथ घटे। इनमें 87 प्रतिशत सैनिक यूनिटों में तैनात थे जबकि बाकी के एक्स्ट्रा रैजीमैंटल इम्प्लाई थे जैसे कि रैजीमैंटल सैंटर, एन.सी.सी. आदि। शोध के दौरान एक और महत्वपूर्ण पहलू यह सामने आया कि 64 फीसदी सैनिकों ने पारिवारिक समस्याओं के कारण आत्महत्याएं कीं जबकि 18 प्रतिशत सैनिक प्रोफैशनल परेशानियों के शिकार हुए। बाकी 18 प्रतिशत की आत्महत्या का कारण बीमारी या फिर इज्जत-सम्मान वाला मामला था।
समस्याएं
सैनिकों को नौकरी के दौरान भी कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। जैसे कि आॢथक मंदी, दो स्थानों व सम्पत्तियों के खर्चे, बच्चों की पढ़ाई की फिक्र, रिहायशी मकानों की कमी इत्यादि। सैन्य परिवारों को बहुत कम समय इकट्ठे रहने को मिलता है। जल्दी-जल्दी ड्यूटी स्थान भी बदल जाता है। अपने परिवार से सैंकड़ों मील दूर रहकर सैनिकों को कई सामाजिक रस्में भी अदा करनी पड़ती हैं। अनेकों किस्मों की समस्याओं से जूझता हुआ जब एक परेशान सैनिक अपने कमांडर के जरिए या छुट्टी के दौरान प्रशासन, पुलिस या फिर राजनीतिक नेताओं की ओर भागदौड़ करता है तो उसकी कोई सुनवाई नहीं होती। जब पीड़ित सैनिक अपने इर्द-गिर्द के माहौल के प्रभाव अधीन सामाजिक तथा कार्य से जुड़ी परेशानियों का सामना करने के लिए विवश हो जाता है तब उसे मानसिक यातना झेलनी पड़ती है। जो आत्महत्या करने का सबसे बड़ा कारण बनता है।
मानसिक तौर पर कमजोर एक सैनिक अनेकों परेशानियों का सामना करने में असमर्थ होकर जिंदगी की हार को महसूस करने लग जाता है। सैनिक 24 घंटे तैयार रहकर हर हालत में ड्यूटी निभाते हैं। आतंकवाद प्रभावित क्षेत्रों के अंदर जहां यह पता नहीं कि कब कैसे और किस ओर से आतंकी हमला कर दें, इस कारण भी तनाव वाला माहौल बना रहता है। कई बार समय पर अवकाश नहीं मिलता जिस कारण दुखी सैनिक भड़क उठते हैं। 37/40 वर्ष की उम्र में सेवानिवृत्ति के उपरांत फिर से अपने आपको स्थापित करने की चिंता भी उन्हें सताती है। इसके अलावा मानवीय अधिकारों की उल्लंघना का डर भी कमांडरों के दिमाग में छाया रहता है। अब तो सेवानिवृत्ति के उपरांत भी यह पीछा नहीं छोड़ रहा। अच्छी वार्षिक गुप्त रिपोर्टों तथा लाभान्वित पदों के चाहवान अधिकारी नीचे के रैंक के अधिकारियों से उम्मीद से ज्यादा उम्मीदें रखते हैं। कई बार तो कुछ अधिकारी जवानों से अभद्र भाषा का इस्तेमाल करते हैं। जिस कारण एक सैनिक के मनोबल तथा आत्म सम्मान पर गलत असर पड़ता है।
बाज वाली नजर
यह ज्यादातर देखने में आया है कि जब भी कभी संसद के अंदर सेना से संबंधित मामलों बारे सवाल पूछे जाते हैं तो जवाब तो मिल जाते हैं। रक्षा राज्य मंत्री ने विचाराधीन आत्महत्या के मामलों बारे आंकड़े दिए तथा सरकार की ओर से इस बारे में उठाए जा रहे कदमों का भी जिक्र किया मगर जमीनी स्तर पर कम ही दिखाई दे रहा है। इस समय सेना में तकरीबन 9 हजार अधिकारियों तथा हजारों सैनिकों की कमी है। यह कमी तो पूरी सरकार ने करनी है। अब तो कटौती करने के हुक्म भी दिए जा रहे हैं तथा जिम्मेदारियां बढ़ती ही जा रही हैं। बजट की कमी भी सेना की युद्ध की तैयारी को प्रभावित करती है।
सेना देश की है, किसी एक नेता की जागीर नहीं
यदि 64 प्रतिशत सैनिकों ने घरेलू समस्याओं के कारण आत्महत्याएं की हैं तो उसका हल भी तो कानून बनाने वालों ने ही ढूंढना है। सांसदों को सेना की मुश्किलों तथा देश की सुरक्षा से जुड़े कार्यों की भी कम जानकारी है। जरूरत इस बात की है कि हमारे सांसद पार्टी स्तर से ऊपर उठकर सर्वसम्मति से सैनिक वर्ग के लिए एक विशाल राष्ट्रीय भलाई नीति तैयार करें तथा राष्ट्रीय कमीशन का गठन भी किया जाए क्योंकि सेना देश की है, किसी एक नेता की जागीर नहीं। हर राज्य तथा जिला स्तर पर नौकरशाहों को सैन्य वर्ग की भलाई के लिए उत्तरदायी बनाया जाए। सैनिकों की घरेलू समस्याओं जैसे कि सम्पत्ति के झगड़े, मकान खाली करवाना आदिे मामलों को निपटाने के लिए विशेष अदालतें कायम की जाएं। सैनिकों को पुन: स्थापित करने के लिए सरकारी तथा गैर सरकारी नौकरियां आरक्षित की जाएं। केन्द्र के कई विभागों में अद्र्धसैनिक बलों के लिए 20-25 प्रतिशत के करीब आरक्षण हैं मगर मात्र 2-3 प्रतिशत ही ये आरक्षित पद भरे जाते हैं। एक रैंक एक पैंशन को भी लागू किया जाए। सेना का राजनीतिकरण न किया जाए।-ब्रिगे. कुलदीप सिंह काहलों (रिटा.)