आर्थिक स्थिति से चुनाव परिणाम अप्रभावित क्यों

Edited By ,Updated: 09 Jun, 2019 04:39 AM

why election results unaffected by economic situation

यह फिर पर्टी का फोन था। गत एक सप्ताह से अधिक समय से मैं उसकी समझदारीपूर्ण फोन काल्स का आदी हो गया था। ईमानदारी से कहूं तो वह कुछ हद तक सर्वज्ञाता बन गया है। इसलिए जब उसने एक बार फिर प्रश्न के साथ शुरूआत की तो मुझे पता था कि उसके पास पहले से ही उत्तर...

यह फिर पर्टी का फोन था। गत एक सप्ताह से अधिक समय से मैं उसकी समझदारीपूर्ण फोन काल्स का आदी हो गया था। ईमानदारी से कहूं तो वह कुछ हद तक सर्वज्ञाता बन गया है। इसलिए जब उसने एक बार फिर प्रश्न के साथ शुरूआत की तो मुझे पता था कि उसके पास पहले से ही उत्तर था। ‘‘ग्रामीण संकट तथा बेरोजगारी के साथ जो कुछ भी हुआ, हमें बताया गया था कि वे निर्धारण करेंगे कि लोगों ने कैसे वोट दी लेकिन ऐसा हुआ दिखाई नहीं दिया। तो क्या ये समस्याएं नहीं हैं? या उनका कोई महत्व नहीं है?’’ सच यह है कि ग्रामीण संकट तथा बेरोजगारी मौजूद हैं। दरअसल वे अभी भी बड़े पैमाने पर हैं। जरा तथ्यों पर नजर डालें। 

पहला, ग्रामीण संकट। पहली मोदी सरकार के पहले तीन वर्षों में नैशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो द्वारा आंकड़े जारी करना बंद करने से पहले किसानों की आत्महत्याओं में 42 प्रतिशत वृद्धि हुई थी। महाराष्ट्र में फडऩवीस सरकार के पांच वर्षों के दौरान किसानों की आत्महत्याएं पूर्ववर्ती पांच वर्षों के मुकाबले लगभग दोगुनी हो गईं। इसका एक अच्छा स्पष्टीकरण लेबर ब्यूरो डाटा से मिलता है। वह दिखाते हैं कि पहली मोदी सरकार के दौरान ग्रामीण आय में वाॢषक केवल 0.5 प्रतिशत वृद्धि हुई और उनमें से 2 वर्षों के दौरान मुद्रास्फीति बहुत अधिक थी। इससे भी खराब बात यह कि व्यापार की स्थितियां उल्लेखनीय रूप से किसानों के खिलाफ हो गईं। जहां उनके द्वारा बेची जानी वाली वस्तुओं की कीमतों में तीव्र गिरावट आई, वहीं उनके द्वारा खरीदी जाने वाली वस्तुओं की लागत काफी बढ़ गई। परिणामस्वरूप, किसान या तो गरीब हो रहे हैं या गरीब महसूस कर रहे हैं। 

जो तथ्य बेरोजगारी की सच्चाई बताते हैं वे भी उतने ही प्रभावपूर्ण हैं। सरकार अब इस बात से इंकार नहीं कर सकती कि 2017-18 तक बेरोजगारी की दर 6.1 प्रतिशत तक बढ़ गई, जो 45 वर्षों में सर्वोच्च है। जिस स्थिति का सामना युवा कर रहे हैं, वह उल्लेखनीय रूप से बहुत बुरी है। नैशनल सैम्पल सर्वे आफिस की वही रिपोर्ट कहती है कि युवाओं में बेरोजगारी की दर 2011-12 तथा  2017-18 के बीच दोगुनी से भी अधिक हो गई और यह ग्रामीण तथा शहरी भारत दोनों में हुआ। अंतत:, सैंटर फार मानीटरिंग द इंडियन इकानोमी का कहना है कि बेरोजगारी और भी बढ़ गई है। इस मई में इसका औसत 7 प्रतिशत था। कोई हैरानी नहीं हुई जब रेलवे ने 89,400 नौकरियों के लिए विज्ञापन दिया तथा 2.30 करोड़ से अधिक ने आवेदन किया। 

इन कठोर तथ्यों को देखते हुए पर्टी का प्रश्र विशेष रूप से उचित था। अंत: ग्रामीण संकट तथा बेरोजगारी ने लोगों को उस तरह से प्रभावित नहीं किया, जिस तरह से उन्होंने वोट दी? निश्चित तौर पर आप एक व्यापक प्रश्र पूछ सकते थे। पूरे वर्ष 2018 तथा 2019 की पहली तिमाही के दौरान विकास दर के लगातार गिरने के बावजूद उसने वोटों को प्रभावित क्यों नहीं किया? क्यों आर्थिक स्थिति  ने राजनीतिक परिणामों को प्रभावित नहीं किया? तथ्य यह कि प्राप्त की गई समझदारी का इस्तेमाल नहीं किया गया। ‘‘मोदी इसका आसान उत्तर हैं,’’ पर्टी ने घोषणा की। उसने यह इतने विश्वास के साथ कहा कि मैं उससे और सुनने की प्रतीक्षा करने लगा। मैं यह नहीं कह सकता कि उसका स्पष्टीकरण प्रभावित करने वाला नहीं था। 

‘‘ऐसा नहीं है कि लोगों को परेशानी नहीं हुई। वे परेशान हुए लेकिन इसके बावजूद उन्हें मोदी में विश्वास था। उनका मानना था कि यदि दूसरा अवसर दिया जाता है तो मोदी उनकी समस्याओं पर ध्यान देंगे। आखिरकार उन्होंने उन्हें शौचालय तथा बिजली, रसोई गैस व गांवों में सड़कें दी हैं। मैं यह स्वीकार करता हूं कि यह बहुत बढिय़ा तरीके से या कुशलतापूर्वक किया गया लेकिन एक शुरूआत तो की गई है। इसलिए लोगों का मानना है कि यदि एक और कार्यकाल दिया जाता है तो वह और अधिक काम करेंगे। यह मोदी में विश्वास है जो उन्हें डाले गए वोटों का स्पष्टीकरण देता है।’’ 

‘‘तो इसने हमें कहां ला खड़ा किया?’’ हम से मेरा मतलब निश्चित तौर पर खान मार्कीट गैंग तथा लुटियन्स दिल्ली से था। यदि मोदी ऐसी आॢथक चुनौतियों के बावजूद शानदार जीत हासिल कर सकते हैं तो उनके विरोधियों का क्या भविष्य है? पर्टी हंस दिया। मैं समझ सकता था कि उसने कुछ परिहासपूर्ण कहने के लिए सोचा है। ‘‘क्या तुम्हें स्कूल में पान-बीड़ी गैंग बारे याद है?’’ यह आज्ञा न मानने वाले मास्टरों के एक समूह का हमारे द्वारा दिया गया मजाकिया छोटा नाम था जो अंग्रेज हैडमास्टर क्रिस्टोफर मिलर के खिलाफ थे। यह इस तथ्य को रेखांकित करता है कि मिलर पश्चिमी थे और बाकी मास्टर देसी। ‘‘मैं इसे इस तरह से कहूंगा कि पान-बीड़ी गैंग सत्ता में आ गया है। श्रेष्ठता तथा जिमखाना क्लब में डिनर्स के दिन खत्म हो गए हैं।’’-करण थापर

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