पाक सेना गलियारे के लिए अब क्यों सहमत हुई

Edited By shukdev,Updated: 19 Dec, 2018 12:52 AM

why has the pakistan army agreed for the corridor now

यह हैरानीजनक है कि डेरा बाबा नानक में करतारपुर साहिब गलियारा खोलने के समारोह के दो सप्ताह बाद 5 बार मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल यह कहते हैं कि मैं इसके खुलने में व्यवधान डालना चाहता हूं। यदि उन्होंने उस दिन मेरे भाषण की रिपोटर््स या 28 नवम्बर...

यह हैरानीजनक है कि डेरा बाबा नानक में करतारपुर साहिब गलियारा खोलने के समारोह के दो सप्ताह बाद 5 बार मुख्यमंत्री रहे प्रकाश सिंह बादल यह कहते हैं कि मैं इसके खुलने में व्यवधान डालना चाहता हूं। यदि उन्होंने उस दिन मेरे भाषण की रिपोटर््स या 28 नवम्बर को करतारपुर साहिब में शामिल होने के लिए उनके प्रधानमंत्री के निमंत्रण को ठुकराते हुए पाकिस्तानी विदेश मंत्री को लिखे मेरे पत्र को पढ़ा होता तो यह उनको बिल्कुल स्पष्ट हो गया होता कि मैंने ऐसा क्यों किया।

26 नवम्बर को डेरा बाबा नानक में मैंने स्पष्ट किया कि प्रत्येक सुबह हर सिख की अरदास का यह हिस्सा होता है कि हम अपने उन गुरुद्वारों के साथ जुड़ें जो 1947 में पाकिस्तान में रह गए थे। मैंने पूरे दिल से भारत तथा पाकिस्तान की सरकारों द्वारा की गई इस पहल का स्वागत किया और कहा कि पंजाब इसके निर्माण में तेजी लाने के लिए जो कुछ भी चाहिए, करेगा। इसके बाद हमने डेरा बाबा नानक डिवैल्पमैंट अथारिटी का गठन किया और सड़क परिवहन तथा उच्चमार्ग मंत्रालय द्वारा हमें अपनी जरूरतें बताने के बाद इसके विकास हेतु जमीन अधिग्रहण का काम शुरू कर दिया जाएगा।

यद्यपि बादल द्वारा अपनी राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं (झूठी या सच्ची) को आगे बढ़ाने के लिए अपने हिसाब से किसी मुद्दे को चुनने की उनकी कार्यप्रणाली अनोखी है। बादल को 80-90 के दशकों के दौरान पंजाब में 35000 मौतों तथा अर्थव्यवस्था के विनाश का श्रेय जाता है। अपनी राजनीति के लिए हमारे गुरुद्वारों का इस्तेमाल, संवैधानिक शिष्टाचार के प्रत्येक चिन्ह को नष्ट करना, व्यापक बेरोजगारी पैदा करना तथा खुद को पंजाब तथा हमारे लोगों से पहले रखना हमेशा ही उनका एकमात्र योगदान रहा है, इतिहास इसका गवाह है।

विलक्षण सम्मान
मैं यहां दोहराना चाहूंगा कि मेरे लिए एक ऐसे समय में मुख्यमंत्री बनना, जब यह गलियारा बनने वाला है, जिससे भारत के तीर्थ यात्रियों की अपने सर्वाधिक पवित्र तीर्थ स्थलों में से एक तक पहुंच बनेगी, विलक्षण सम्मान है। रावी दरिया में आई बाढ़ के कारण नष्ट होने के बाद मेरे दादा महाराजा भूपेन्द्र सिंह ने 1920 से 1929 के बीच करतारपुर साहिब का पुनॢनर्माण करवाया। मेरे पिता महाराजा यादविन्द्र सिंह ने 1932 में पंजा साहिब में सेवा की थी। 2004 में पाकिस्तानी पंजाब के तत्कालीन मुख्यमंत्री चौ. परवेज इलाही तथा मैंने ननकाना साहिब को वाघा से जोडऩे वाली एक नई सड़क का नींव पत्थर रखा था ताकि भारत से जाने वाले श्रद्धालुओं को आसानी हो।

हालांकि मैं नहीं भूल सकता कि पंजाब सरकार का मुखिया होने के नाते यह मेरा कत्र्तव्य है कि अपने राज्यों को किसी भी एजैंसी अथवा व्यक्तियों से सुरक्षित करूं, जो एक बार फिर गड़बड़ी की स्थितियां पैदा करने का प्रयास करते हों। 70 से 90 के दशकों के दौरान पंजाब बहुत भयावह समय से गुजरा है। ये हमारे सुरक्षा बल तथा लोग थे जिन्होंने उस समय पागलपन की समाप्ति को सुनिश्चित किया। उस समय में रहने के कारण मैं दृढ़संकल्प था कि कभी भी अपने राज्य को फिर से ऐसी स्थितियों में नहीं घिरने दूंगा। इसलिए जब तक पाकिस्तान मेरे राज्य तथा देश में अपनी दुष्टतापूर्ण कार्रवाइयां बंद नहीं कर देता, मैंने वहां न जाने का निर्णय किया, इस बात की परवाह न करते हुए कि करतारपुर साहिब न जाना मेरा निजी नुक्सान होगा।

क्या हमें क्षितिज में रोशनी दिखाई देती है? मैं समझता हूं नहीं। यदि पाकिस्तान सरकार तथा सेना भारत के साथ बेहतर संबंध चाहती है तो क्यों नहीं वे प्रतिदिन सीमा पार गोलीबारी, भारतीय सैनिकों की हत्या व उन्हें घायल करना बंद करके शुरूआत करतीं? आई.एस.आई. पर क्यों नहीं लगाम लगाई जाती, जो कश्मीर में आतंकवादी संगठनों को हथियार तथा प्रशिक्षण देना जारी रखे हुए हैं? क्यों पंजाब में एक बार फिर से आतंकवादी गतिविधियां शुरू करने के प्रयास किए जा रहे हैं? रैफरैंडम 2020 आई.एस.आई. का नया खेल है। इसका मोहरा अमरीका में रहने वाला पन्नू नामक एक बुजुर्ग वकील है जो खालिस्तान के लिए एक शांतिपूर्ण जनमत संग्रह का ढोंग करता है, जो हाल ही में समाप्त किए जा चुके एक आतंकवादी मॉड्यूल की इसके संगठन के साथ निष्ठा संबंधी स्वीकारोक्ति में विरोधाभास पाता है।

तो प्रश्र उठता है कि वर्षों के दौरान किए गए प्रयासों को ठुकराने के बाद अब पाकिस्तानी सेना गलियारे के लिए सहमत हो गई है? आई.एस.आई. की कार्यप्रणाली को समझने वाले किसी भी व्यक्ति के लिए कारण स्वाभाविक है-सिख समुदाय में वैश्विक स्तर पर उत्साह पैदा करना, जिसके चलते असंतुष्ट युवाओं अथवा नागरिकों से जहां तक हो सके सहानुभूति प्राप्त करना और फिर 2020 के रैफरैंडम के लिए समर्थन का उद्देश्य प्राप्त करने हेतु अपना आतंकी आधार बढ़ाना।

पाक सेना और सरकार
एक बार भी यह विश्वास नहीं किया जा सकता कि पाकिस्तानी सेना का भारत के लिए कोई प्रेम है। पाकिस्तानी सेना का सरकार के हर पहलू पर अधिकार है। आपके सामने बेशक एक नागरिक शासन है लेकिन इसके पीछे बंदूक है और आज पाकिस्तान में बंदूक एक विकृत रणनीति है। आज पाकिस्तानी सेना उत्तर तथा पश्चिम में कबायलियों, जिसे एन.डब्ल्यू.एफ.पी. (नार्थ-वैस्ट फ्रंटियर प्रोविंस) कहा जाता था, के साथ युद्ध में लिप्त है, दक्षिण में बलूची उन्हें उलझाए हुए हैं, उत्तर-पूर्व में कश्मीर है तथा पूर्व में वह पंजाब को इस लड़ाई में शामिल करना चाहती है। अति अक्खड़पन के परिणामस्वरूप आज यह 4 मोर्चों पर युद्ध में लिप्त है।

पाकिस्तान में सेना सबसे बड़ी कार्पोरेट ईकाई है, जिसे युद्ध के बाद के पुनॢनर्माण कोष से बनाया गया और यह वास्तव में हर चीज का संचालन कर रही है। चूंकि सेवानिवृत्ति करीब आ रही है, काप्र्स कमांडर्स, पी.एस.ओज तथा सी.ओ.ए.एस., जिनके पास अधिकार हैं, अपने मौद्रिक हितों पर अधिक ध्यान दे रहे हैं। सी.ओ.ए.एस. को सेवानिवृत्ति पर जमीन तथा आवास के अतिरिक्त बोनस के तौर पर लाखों डालर मिलते हैं और यह सब कुछ उस समय है जब देश ढहने की कगार पर है।

हमारे पंजाब के गांव
हमारे पंजाब में प्रत्येक गांव पक्की सड़क से जुड़ा है, यहां बिजली है तथा पेयजल उपलब्ध करवाया गया है। प्रत्येक गांव बसों के माध्यम से जुड़ा है तथा अब प्रत्येक गांव में पाइप के माध्यम से गैस उपलब्ध करवाई जा रही है और गैस से चलने वाले वाहनों के लिए सी.एन.जी. स्टेशन्स। पाकिस्तान में इनमें से कुछ भी नहीं है। कराची एक झोंपड़पट्टी बन चुका है, हाल ही में गैस पाइपें उखाड़ ली गईं क्योंकि गैस उपलब्ध नहीं करवाई जा सकती थी और लाहौर भी इससे अधिक पीछे नहीं है।

देश भाड़ में जाए, जनरल अवश्य फलने-फूलने चाहिएं, इसलिए जनता का ध्यान इन कष्टों से हटाना चाहिए। पंजाब को भी इसमें लपेटने से बेहतर कदम और क्या हो सकता है? जनरल बाजवा को यह समझना चाहिए कि भारत में जिस पंजाब को आज वह देख रहे हैं वह 70 के दशक वाला पंजाब नहीं है। 1978 में 20,000 के मुकाबले आज हमारे पुलिस बल में 81,000 अत्यंत प्रोफैशनल तथा निष्ठावान कर्मी हैं, जो किसी भी अनहोनी के लिए तैयार हैं। आपके तथाकथित अमन पसंद आंदोलन के पन्नू अथवा आपके आतंकवादी संगठनों के लिए हैप्पी पीएच.डी. सलाहकार किसी महत्व के नहीं। यदि आप शांति चाहते हैं, जैसे कि हम, तो निश्चित तौर पर यह रास्ता नहीं है। मिस्टर जनरल, मेरी सलाह है कि आपको दोस्ती का हाथ बढ़ाने बारे सोचना चाहिए जिससे आपको बहुत लाभ होगा। - कै. अमरेन्द्र सिंह

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