बच्चों का निर्माण अच्छी तरह से क्यों नहीं किया

Edited By ,Updated: 16 Oct, 2021 04:47 AM

why kids didn t build well

जैसा कि मैं देखता हूं लोग आजकल एक युवा को टार्गेट करने तथा सरकार के प्रतिशोध के बारे में बात कर रहे हैं। मैं अचम्भित हूं कि दोष कौन अपने सिर लेता है जब एक लड़का या लड़की या फिर एक युवक या महिला कुछ गलत कर देते हैं? सबसे बड़ी

जैसा कि मैं देखता हूं लोग आजकल एक युवा को टार्गेट करने तथा सरकार के प्रतिशोध के बारे में बात कर रहे हैं। मैं अचम्भित हूं कि दोष कौन अपने सिर लेता है जब एक लड़का या लड़की या फिर एक युवक या महिला कुछ गलत कर देते हैं? सबसे बड़ी बात जो मुझे उदास कर देती है वह यह है कि आमतौर पर अभिभावक अपने बच्चों के कृत्यों के लिए अपने ऊपर दोष नहीं लेते। मेरा सवाल उन अभिभावकों से है कि उन्होंने अपने बच्चे का निर्माण इस तरह से क्यों नहीं किया कि वे अपने जीवन को अच्छी तरह से हैंडल करने के योग्य हो सकें। आप स्थितियों और हालातों पर दोष क्यों मढ़ रहे हैं जबकि जो आधार आपने अपने बच्चों को दिया वह बेहद कमजोर था। मां-बाप पर निम्न कहानी को राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के पोते डा. अरुण गांधी ने कुछ इस तरह शेयर किया :

‘‘मैं 16 वर्ष का था तथा अपने माता-पिता के संग उस संस्थान में रह रहा था जिसको मेरे दादा ने दक्षिण अफ्रीका के डरबन से 18 मील दूर बाहरी इलाके में स्थापित किया था। यह संस्थान वहां पर स्थित था जहां पर गन्ने की खेती की जाती थी। हम उस देश में अकेले थे और हमारा कोई पड़ोसी नहीं था। इस कारण मेरी दो बहनें तथा मैं हमेशा ही शहर में अपने दोस्तों के पास जाते थे और फिल्में भी देखते थे। एक दिन की बात है, मेरे पिता ने मुझसे एक कस्बे में छोडऩे के लिए कहा जहां पर पूरा दिन एक कांफ्रैंस चलनी थी। मैंने इस मौके के लिए तत्काल हां कर दी। खुशी से कूद गया। क्योंकि मैं कस्बे में जा रहा था तो मेरी माता ने मुझे घर के राशन के सामान की सूची दी जिसकी उन्हें जरूरत थी क्योंकि मुझे सारा दिन कस्बे में लगना था इसलिए मेरे पिता ने मुझे कहा कि बाकी के बचते अनेकों कामों का ध्यान रखें। ऐसे कामों में मुझे कार की सर्विस भी करवानी थी। 

जब मैंने अपने पिता को उस प्रात: उस कस्बे में छोड़ा तो उन्होंने कहा, ‘‘मैं सायं को 5 बजे तुमसे मिलूंगा और हम एक साथ घर इकट्ठे चलेंगे।’’ क्योंकि मैं अपने सभी काम जल्दी में निपटा रहा था तो मैं सीधा ही साथ के एक मूवी थियेटर में चला गया। फिल्म को देखने के उपरांत मुझे 5.30 तक लौटना था। मुझे फिल्म का नाम भूल गया। इस दौरान मैं गैरेज की ओर भागा और कार को वापस लिया। उसके उपरांत मैं उस स्थल की ओर तेजी से चला जहां मेरे पिता मेरा इंतजार कर रहे थे। शायद करीब सायं के 6 बज गए थे। उन्होंने उत्सुकता से मुझसे पूछा, ‘‘तुम इतना लेट क्यों हो गए?’’ 

मैं उन्हें यह बताने में बेहद शर्म महसूस कर रहा था कि मैं एक फिल्म देखने चला गया क्योंकि गैरेज से कार तैयार नहीं थी और मुझे इंतजार करना था। मगर मेरे पिता पहले से ही कार के बारे में गैरेज का चक्कर लगा आए थे। जहां मैं उन्हें नहीं मिला। जब मेरा झूठ पकड़ा गया तो मेरे पिता ने कहा, ‘‘तुम्हारी राह में शायद कुछ गलत हुआ। जिस तरह से मैंने तुमको बड़ा किया उससे तुम में विश्वास नहीं जागा कि तुम मुझे सच्चाई बता सको। इतने में अच्छी ड्रैस पहने हुए हम घर की ओर चल दिए और अंधेरा हो गया। मेरे द्वारा बोले गए झूठ के कारण मेरे पिता पूरे रास्ते में ऐसे दिखे जैसे कोई यातना सह रहे हों। बेटे के झूठ के लिए पिता ने पूरा दोष अपने ऊपर ले लिया। क्या हम में से कुछ लोगों के पास ऐसी ही हिम्मत और जज्बा है, क्या हम हमेशा ही हालातों और किसी दूसरे पर दोष मढ़ते रहेंगे? आइए हम अपने बच्चों को जांचें और जब कभी वे गलत हो तो उसकी जिम्मेदारी अपने ऊपर ले लें।’’-दूर की कौड़ी राबर्ट क्लीमैंट्स
 

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