क्यों नहीं रुक रही देश में रेल दुर्घटनाएं

Edited By Pardeep,Updated: 12 Oct, 2018 05:14 AM

why not in the country stopping the rail accidents

हाल ही में गत 10 अक्तूबर को रायबरेली के निकट हरचंदपुर रेलवे स्टेशन पर न्यू फरक्का एक्सपै्रस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस दुर्घटना में ट्रेन के 9 डिब्बे पटरी से उतर गए, जिससे 7 लोगों की मौत हो गई और अनेक लोग घायल हो गए। दुर्घटना में मरने वाले लोगों की...

हाल ही में गत 10 अक्तूबर को रायबरेली के निकट हरचंदपुर रेलवे स्टेशन पर न्यू फरक्का एक्सपै्रस दुर्घटनाग्रस्त हो गई। इस दुर्घटना में ट्रेन के 9 डिब्बे पटरी से उतर गए, जिससे 7 लोगों की मौत हो गई और अनेक लोग घायल हो गए। दुर्घटना में मरने वाले लोगों की संख्या अभी और बढ़ सकती है। बताया जा रहा है कि हरचंदपुर स्टेशन के असिस्टैंट मास्टर ने ट्रेन को पास होने के लिए ग्रीन सिग्नल तो दिया लेकिन पटरियां नहीं जोड़ीं, जिससे ट्रेन हादसे का शिकार हो गई। हालांकि इस रेल दुर्घटना की सम्पूर्ण जांच होने के उपरांत ही पूरा सच सामने आ पाएगा। 

दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि पिछले कुछ समय से जितनी भी रेल दुर्घटनाएं हो रही हैं, उनमें से ज्यादातर का कारण चलती रेल का पटरी से उतर जाना है। सवाल यह है कि विकसित दौर में ट्रेनों के संचालन से जुड़े बुनियादी पहलुओं पर ध्यान क्यों नहीं दिया जा रहा है? यह शर्मनाक ही है कि सरकार बुलेट ट्रेन या फिर विभिन्न सुविधाओं वाली महंगी ट्रेनें चलाने हेतु बड़ी-बड़ी घोषणाएं कर रही है लेकिन यात्रियों की सुरक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। इस समय सबसे बड़ा सवाल यह है कि हमारे देश में बुलेट ट्रेन ज्यादा जरूरी है या फिर यात्रियों को मूलभूत सुविधाएं देनी ज्यादा जरूरी हैं। 

सर्दियों का मौसम शुरू होने वाला है, इसलिए अगले 4-5  महीनों में तो दुर्घटनाओं की आशंका और बढ़ जाएगी। सर्दियों में जहां एक ओर कोहरे के कारण परेशानी होती है वहीं दूसरी ओर ठंड के कारण पटरियों में क्रैक की वजह से दुर्घटना होने की आशंका बढ़ जाती है। इसलिए इस संबंध में अभी से सचेत होने की जरूरत है। दरअसल, पिछले कुछ समय से रेल दुर्घटनाओं की संख्या बढ़ती ही जा रही है। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि इस दौर में रेलगाडिय़ों की टक्कर, उनके पटरी से उतरने और आग लगने की घटनाएं आम हो गई हैं। यह दुख का विषय है कि हमारे देश में ट्रेन दुर्घटनाएं रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। किसी भी ट्रेन दुर्घटना के बाद रेल मंत्रालय बड़े-बड़े दावे तो करता है लेकिन कुछ समय बाद सब कुछ भुला दिया जाता है। 

गौरतलब है कि पिछले कुछ सालों से ट्रेन दुर्घटनाओं में मरने वाले लोगों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। इन दिनों रेल मंत्रालय अनेक विसंगतियों से जूझ रहा है। चाहे पुरानी पटरियों के रख-रखाव की बात हो या फिर सिग्नलों के आधुनिकीकरण की, इन सभी मामलों में हम अभी भी अन्य देशों से बहुत पीछे हैं। रेलवे के सम्पूर्ण आधुनिकीकरण और ट्रेनों में उन्नत तकनीक अपनाने की बात छोड़ दें तो भी रेल मंत्रालय चौकीदार-रहित रेलवे फाटकों पर चौकीदारों की नियुक्ति नहीं कर पा रहा है। अक्सर इसी कारण अनेक दुर्घटनाएं होती रहती हैं जिनमें सैंकड़ों लोग मारे जाते हैं। 

यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि जब भी कोई बड़ा रेल हादसा होता है तो रेल मंत्रालय सक्रियता दिखाता है लेकिन जमीनी रूप से रेल हादसों को रोकने के लिए कोई गम्भीर योजना नहीं बनाई जाती है। यही कारण है कि रेल हादसों के बाद जांच पर जांच होती रहती है और जल्दी ही एक नए रेल हादसे की पृष्ठभूमि तैयार हो जाती है। दरअसल, राजनीतिक श्रेय लेने के लिए लगातार ट्रेनों की संख्या बढ़ाई जा रही है लेकिन उस हिसाब से सुविधाएं नहीं बढ़ाई जा रही हैं। यात्रियों की संख्या भी लगातार बढ़ती जा रही है लेकिन रेलवे कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि नहीं हो पा रही है। ज्यों-ज्यों रेल मंत्रालय रेलवे का आधुनिकीकरण करने और सुविधाएं बढ़ाने का दावा कर रहा है, त्यों-त्यों रेलवे कर्मचारियों के बीच आपसी तारतम्य का अभाव दिखाई दे रहा है। हमें इस बात पर भी विचार करना होगा कि कर्मचारियों की कमी से जूझ रहे रेलवे में कहीं कर्मचारियों पर अत्यधिक दबाव तो नहीं है? 

बहरहाल कमी कहीं भी हो, हमें रेलवे कर्मचारियों की कार्यकुशलता बढ़ाने पर ध्यान देना होगा। एक निश्चित समय के अन्तराल पर कर्मचारियों को ट्रेनिंग देकर उनकी कार्यकुशलता बढ़ाई जा सकती है। योग और ध्यान की कार्यशालाएं आयोजित कर कर्मचारियों का मनोबल बढ़ाया जा सकता है। आतंकी घटनाओं की बात छोड़ दें तो अधिकतर रेल दुर्घटनाओं के पीछे रेलवे के आधुनिकीकरण का अभाव और मानवीय भूल ही जिम्मेदार रही है इसलिए मानवीय भूल के कारण सैंकड़ों लोगों को मरने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता। जहां तक रेलवे के आधुनिकीकरण की बात है तो इस मामले में भी अन्य देशों के मुकाबले भारतीय रेल पिछड़ी हुई है। इससे बड़ी विडम्बना और क्या हो सकती है कि रेलवे मुनाफे को लेकर तो अपनी पीठ स्वयं ठोंकता रहता है लेकिन इस मुनाफे से यात्रियों की सुरक्षा कैसे की जाए,यह सोचना नहीं चाहता। 

गौरतलब है कि भारत में लगभग 70 फीसदी ट्रेन दुर्घटनाएं लाइनों में खराबी, खराब मौसम तथा मानवीय भूल के कारण होती हैं। पिछले दिनों कुछ विशेषज्ञों ने सैटेलाइट के माध्यम से ट्रेनों के नियंत्रण का सुझाव दिया था लेकिन इस सुझाव को भी ठंडे बस्ते में डाल दिया गया। इस दौर में जब अनेक कार्य सैटेलाइट के माध्यम से हो रहे हैं तो ट्रेनों का संचालन क्यों नहीं हो सकता? दरअसल, सरकार अपने अनाप-शनाप खर्चों में तो कोई कटौती करती नहीं है लेकिन इस तरह की योजनाओं के क्रियान्वयन के समय धन के अभाव का रोना रोया जाता है। 

गौरतलब है कि हमारे देश में ट्रेन दुर्घटनाओं में जितने लोग मारे जाते हैं उतने दुनिया के किसी भी देश में नहीं मारे जाते। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि रेल मंत्रालय यात्रियों की मंगलमय यात्रा की कामना करता है लेकिन हकीकत में यात्रा मंगलमय बनाने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाता है। देश के अनेक भागों में नई रेलगाडिय़ां चलाई गई हैं लेकिन उन रेलगाडिय़ों के हिसाब से रेलवे ट्रैक को उन्नत नहीं किया गया है। ऐसी स्थिति में इन सभी जगहों पर हमेशा दुर्घटना का खतरा मंडराता रहता है। न जाने क्यों रेल मंत्रालय एक दुर्घटना के बाद किसी दूसरी बड़ी दुर्घटना का इंतजार करता रहता है। तब जाकर एक-दो योजनाओं की घोषणाएं की जाती हैं।रेल मंत्रालय ने कुछ वर्ष पूर्व एक सुरक्षा परियोजना तैयार की थी, जिसमें अनेक बिंदुओं पर विचार किया गया था। इस योजना में पुराने पड़ चुके इंजनों का बदला जाना भी शामिल था। 

गौरतलब है कि अनेक इंजन अपना जीवन पूर्ण कर चुके हैं लेकिन इसके बावजूद भी ये पटरियों पर दौड़ रहे हैं। इसके अलावा रेलवे की अनेक परियोजनाएं अभी अधूरी पड़ी हुई हैं। हमारे राजनेताओं की मुश्किल यही है कि वे दुर्घटनाओं को राजनीति में घसीटते हुए मौतों पर भी राजनीति करने लगते हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण ही है कि ऐसी दुर्घटनाओं के समय हमारे राजनेता जान-बूझकर ऐसा वातावरण बनाते हैं जिससे मुख्य मुद्दा गौण हो जाता है। अच्छा होगा कि रेल मंत्रालय और सभी दलों के राजनेता मिल-बैठ कर भविष्य में ऐसी दुर्घटनाओं को रोकने के लिए कोई गंभीर और सार्थक योजना बनाएं।-रोहित कौशिक

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