क्यों न कूड़े को ‘आमदनी का जरिया’ बनाया जाए

Edited By Pardeep,Updated: 08 Sep, 2018 03:51 AM

why not make waste a income generator

आधुनिक युग में जब विज्ञान, टैक्नोलॉजी, इंटरनैट जैसे साधन पलक झपकते हाजिर हैं तो यह सुनकर बहुत अजीब लगता है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्माण कार्य रोक देने के आदेश जारी होते हैं। सरकारों द्वारा झूठ पर आधारित आश्वासन देने के बाद यह आदेश वापस लेने का भी...

आधुनिक युग में जब विज्ञान, टैक्नोलॉजी, इंटरनैट जैसे साधन पलक झपकते हाजिर हैं तो यह सुनकर बहुत अजीब लगता है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्माण कार्य रोक देने के आदेश जारी होते हैं। सरकारों द्वारा झूठ पर आधारित आश्वासन देने के बाद यह आदेश वापस लेने का भी फरमान अदालत सुना देती है और पहले की तरह बिल्डर, कारखानेदार, उद्योगपति रिहायशी बस्तियों में कूड़े के ढेर बनाने में लग जाते हैं। 

दिल्ली में तो कूड़े के ढेर की ऊंचाई कुतुबमीनार जितनी होने जा रही है। इसी तरह बड़े हों या छोटे शहर, कस्बे हों या गांव-देहात, इनमें विशाल कूड़ेदानों की तादाद बढ़ती जा रही है। ऐसा नहीं है कि केवल मनुष्य ही कूड़ा-कचरा फैलाता है, प्रकृति भी ऐसा करती है लेकिन फर्क यह है कि कुदरत उसका निपटान भी प्राकृतिक तरीके से लगातार करती रहती है और इंसान कूड़े के ढेर को ऊंचे से ऊंचा करने और प्रदूषण फैलाने में ही लगा रहता है। हमारी अदालतें आदेश में यह भी सुनिश्चित करें कि उस आदेश को पूरा कैसे करना है। कानूनों के बावजूद परनाला पहले की ही तरह गंदगी बहाता रहता है। 

उदाहरण के लिए अदालत ने आदेश दिया कि एक निश्चित अवधि में वेस्ट मैनेजमैंट के बारे में सरकार ठोस योजना पेश करे। सरकार अपने किसी बाबू को इसे तैयार करने को कह देती है। वह बाबू ऐसा कुछ कर सकने के काबिल ही नहीं होता, लिहाजा अवधि बीत जाती है और अदालत नया आदेश जारी करती है कि सभी निर्माण कार्य रोक दिए जाएं, जिसे कुछ दिन में वापस भी ले लिया जाता है। इसके विपरीत यदि अदालत यह आदेश देती कि वेस्ट मैनेजमैंट के लिए सबसे पहले ज्यादा से ज्यादा दो सप्ताह में एक समिति का गठन कर अदालत के सामने रखा जाए जिसमें वैज्ञानिक, पर्यावरणविद्, समाजशास्त्री और सामान्य प्रशासन एवं प्रबंधन से जुड़े लोग हों तो वह आदेश ज्यादा कारगर होगा। 

वेस्ट मैनेजमैंट कैसा हो?
इस समिति को वेस्ट मैंनेजमैंट की नीति, उपाय और उनके क्रियान्वयन की जिम्मेदारी दी जाती। अगर ऐसा होता तो सरकारों के पास कोई बहाना नहीं होता और सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन इस तरह से होता कि सरकार तय समय सीमा के बाद यह बताने में गर्व महसूस करती कि उसने कूड़े-कचरे से इतने टन ऑर्गैनिक खाद बनाई है, इतनी मैगावाट बिजली का उत्पादन  किया है, बायो डीजल से इतनी गाडिय़ां चलने लगी हैं और प्रदूषण का स्तर अब इतना घट गया है कि लोगों का स्वास्थ्य पहले से बेहतर रहने लगा है, बीमारियों का प्रकोप नहीं है और खुली हवा में सांस लेने में मजा आने लगा है। 

यह बात वास्तविकता के आधार पर कह रहे हैं क्योंकि हमारे ही देश में केरल का अलैप्पी है, महाराष्ट्र का पुणे और शोलापुर है, तमिलनाडु का तिरूनलवेली, कर्नाटक के बेंगलुरू, मैसूर हैं व इसी तरह के कुछ और शहर हैं जहां कुछेक उद्यमशील व्यक्तियों से लेकर राजनीतिज्ञों तक ने वेस्ट मैनेजमैंट प्लांट लगाकर यह सिद्ध कर दिया है कि यदि कूड़े-कचरे का ठीक से प्रबंधन किया जाए तो यह निरन्तर आमदनी का बेहतरीन जरिया और प्रदूषण रोकने का अचूक फॉर्मूला है। इसी तरह मुम्बई के एक शानदार क्लब ने अपने यहां का कूड़ा-कचरा इस्तेमाल कर रसोई गैस का इंतजाम किया है, दमन में एक उद्योगपति प्लास्टिक से पॉलिस्टर बना रहा है और एक अन्य दूषित पानी को पीने या बागवानी के लायक बना रहा है। 

हमारे देश में आंकड़ों के मुताबिक 62 मिलियन टन वेस्ट प्रतिवर्ष निकलता है। उसमें 83 प्रतिशत कूड़े का ढेर बन जाता है और 17 प्रतिशत इधर-उधर बिखर जाता है। इसमें से 50 प्रतिशत लैंडफिल यानी जहां जमीन मिली वहां जमा कर दिया जाता है। इससे नागरिकों का जीवन दिन-प्रतिदिन मुश्किल होता जाता है। अब जो बाकी कूड़ा बचा उसे ऊर्जा का साधन बनाने के लिए केवल 7 प्लांट पूरे देश में हैं। इनसे लगभग 90 मैगावाट बिजली का उत्पादन और 20 से 30 हजार टन ऑर्गैनिक खाद बनती है। जरा सोचिए यदि इनकी तादाद सैंकड़ों में होती तो कितनी बिजली, कितनी खाद और दूसरे जरूरी संसाधन मिलते। इसके साथ ही बेरोजगारी दूर करने में मदद मिलती और लोगों की आमदनी बढ़ती। 

लैंडफिल की जगह का सही इस्तेमाल होता जैसा कि केरल में लैंडफिल की जगह पर एक विशाल स्पोर्ट्स काम्पलैक्स बन रहा है। मतलब यह कि कूड़े के ढेर बनने बंद होने से जमीन का सही इस्तेमाल होता। अमरीका का उदाहरण लें तो वहां जो 230 मिलियन टन कचरा हर साल इकट्ठा होता है, इसके सही इस्तेमाल का सीधा असर वहां की अर्थव्यवस्था पर पड़ता है। हमारे यहां भी अगर इस कचरे को आमदनी का जरिया बना लिया जाए तो हम विकसित देशों की कतार में खड़े होने के काबिल बन सकते हैं। 

टैक्नोलॉजी का इस्तेमाल
हमारे देश के वैज्ञानिक जो टैक्नोलॉजी बनाते हैं वह अलमारियों में बंद रह जाती है या फिर कभी-कभार किसी प्रदर्शनी में उसकी झलक दिखाकर सरकार वाहवाही लूट लेती है। अगर सरकार कुछ ऐसे नियम बना दे कि कचरा प्रबंधन की नवीनतम टैक्नोलॉजी सामान्य नागरिकों के साथ-साथ उद्यमियों और उद्योगपतियों को आसानी से न केवल मिल जाए बल्कि उनका इस्तेमाल करने के लिए उन्हें प्रोत्साहित और सम्मानित भी किया जाए तो वह दिन दूर नहीं जब कूड़े-कचरे के ढेर हमारी सम्पन्नता का स्त्रोत बन सकते हैं। 

अभी जो कूड़ा-कचरा लोगों के लिए मुसीबत बन रहा है और गंदगी का पर्याय माना जाता है अगर उसे ऊर्जा का स्त्रोत बनने दिया जाए तो कूड़ा हासिल करने के लिए आम के आम और गुठलियों के दाम की कहावत सही सिद्ध हो सकती है। कूड़े  के निपटान से साफ -सफाई और उससे जबरदस्त कमाई का यह ऐसा मंत्र है जिसे फूंकने से शहर हो या देहात, सजे-संवरे और आधुनिक दिखाई देने लगेंगे।

अदालत को यह आदेश देना चाहिए कि सरकार किसी बिल्डर के नक्शे तब तक न पास करे जब तक बनने वाली रिहायशी कालोनी, कमर्शियल काम्पलैक्स या औद्योगिक क्षेत्र में कूड़े-कचरे के निपटान के लिए उसी स्थान पर कचरा प्रबंधन से जुड़ी टैक्नोलॉजी से युक्त प्लांट और मशीनरी लगाने की व्यवस्था न की जाए। इससे होगा यह कि बस्ती हो या उद्योग, कूड़ा-कचरा वहीं निपटा दिया जाएगा और उसे बाहर ले जाकर किसी लैंडफिल में भरना नहीं पड़ेगा। इस तरह के संयंत्र कम कीमत पर और आधुनिक टैक्नोलॉजी के साथ विश्व भर में उपलब्ध हैं जहां से इन्हें सस्ते दाम पर हासिल किया जा सकता है।-पूरन चंद सरीन

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