क्यों बिगड़ी पंजाब की ‘वित्तीय स्थिति’

Edited By ,Updated: 07 Oct, 2019 01:13 AM

why punjab s financial situation deteriorated

स्वतंत्रता से लेकर 80वें दशक तक पंजाब एक खाता-पीता राज्य रहा। यह देश की खड्ग भुजा भी रहा और सबसे अधिक अन्न पैदा करने वाला भी। लगभग साढ़े 3 दशकों के समय में यहां अधिकतर समय कांग्रेस ने ही शासन किया, केवल कुछ वर्ष गैर-कांग्रेसी सरकारें रहीं। काफी समय...

स्वतंत्रता से लेकर 80वें दशक तक पंजाब एक खाता-पीता राज्य रहा। यह देश की खड्ग भुजा भी रहा और सबसे अधिक अन्न पैदा करने वाला भी। लगभग साढ़े 3 दशकों के समय में यहां अधिकतर समय कांग्रेस ने ही शासन किया, केवल कुछ वर्ष गैर-कांग्रेसी सरकारें रहीं। काफी समय यह राज्यपाल शासन के अधीन भी रहा। पंजाब के खुशहाल होने का बड़ा कारण पंजाबियों की हर क्षेत्र में कड़ी मेहनत थी। दूसरा, जिस पार्टी की सरकार केन्द्र में होती, लगभग उसी की पंजाब में भी। ज्यों ही यह संतुलन बिगड़ा तो इसके आर्थिक हालात में भी बदलाव आना शुरू हो गया। 

काले दिनों का दौर
पंजाब तथा पंजाबियों के ख्वाबो-ख्याल में भी नहीं था जब काले दिनों के दौर ने इसे दबोच लिया। केन्द्र ने इस पर काबू पाने के उद्देश्य से बड़ी संख्या में सुरक्षा बल पंजाब भेज दिए जिनका 20वीं शताब्दी के आखिरी समय तक दबदबा रहा। यह लड़ाई बेशक देश की राष्ट्रीय एकता व अखंडता के लिए थी मगर केन्द्र ने इसका सारा खर्च पंजाब के सिर डाल दिया। पंजाब के राजनीतिक दल, विशेषकर कांग्रेस तथा शिरोमणि अकाली दल, दोनों मिल कर पंजाब के हितों की खातिर केन्द्र पर यह खर्चा रोकने के लिए दबाव बना ही नहीं सके। इसलिए पंजाब की बिगड़ती वित्तीय स्थिति का यह प्रारम्भिक दौर कहा जा सकता है। अफसोस कि अब भी पंजाब के सभी राजनीतिक दल राज्य के किसी विशेष मुद्दे पर कभी इकट्ठे नहीं हुए। 

अत: काले दिनों के दौर में पंजाब के सिर कर्ज चढ़ाना शुरू कर दिया था। कहते हैं कर्ज एक बार लेने में ही कुछ हिचकिचाहट होती है, फिर तो आदत बन जाती है। केन्द्र का यह कर्ज तो सिर चढ़ा ही, उसके बाद आने वाली सरकारों ने कर्ज लेने की जैसे आदत ही बना ली। वैसे माना जाए तो इसमें सबसे अधिक छूट प्रकाश सिंह बादल और फिर कैप्टन अमरेन्द्र सिंह सरकार ने ली। आज परिणाम यह है कि पंजाब के सिर 2,60,000 करोड़ का कर्ज चढ़ गया है और थम भी नहीं रहा। कैप्टन की मौजूदा सरकार की वित्तीय स्थिति शुरू से ही दयनीय थी और है। स्थिति तो यहां तक पहुंच गई है कि कर्मचारियों को वेतन देने कठिन हो गए हैं। प्रकाश सिंह बादल पांच बार पंजाब के मुख्यमंत्री रहे। उन्होंने अपना वोट बैंक कायम रखने के लिए लोगों पर टैक्स तो लगाए ही नहीं, बल्कि केन्द्र से कर्ज ले लेकर सबसिडियों के मुंह खोल दिए। इस सूरत में खजाने की हालत तो पतली होनी ही थी। 

खजाना खाली मिला का राग
यही कारण है कि 2017 में जब कैप्टन अमरेन्द्र सिंह के नेतृत्व में सरकार बनी तो उसका पहला वाक्य यह था कि उसे खजाना खाली मिला है। इसने शुरू में तो बचत करके खजाना भरने का वायदा भी किया मगर राजनीतिक वायदों का क्या है, यदि पूरे हो गए तो हो जाएं, अगर न भी हों तो सामने वाला क्या कर लेगा। कैप्टन अमरेन्द्र सिंह का हालांकि ऐसे वायदों का कोई स्वभाव नहीं था, मगर इस बार उन्होंने सत्ता पाने तथा निभाने के लिए जनता से सब छोटे-बड़े वायदे किए और फिर ऐसी नीतियां अपना लीं कि बचत होने की बजाय खर्चे बढऩे लगे। खजाना भरने की जगह और खाली होने लगा। कैप्टन ने भी बादलों की तरह सभी सबसिडियां ज्यों की त्यों जारी रखीं। दूसरा, अपने सचिवालय में पूर्व अधिकारियों की एक बड़ी टीम लगा ली, जिसने खजाने पर और बोझ डाल दिया। बादल सरकारों के समय कम से कम राज्य के अधिकारी ही ये जिम्मेदारियां निभाते थे। 

आज मुख्यमंत्री कार्यालय की रीढ़ की हड्डी प्रधान सचिव तथा सारी अफसरशाही का बॉस मुख्य सचिव कहीं नजर ही नहीं आते। इन दोनों की जगह एक पूर्व अफसरशाही सभी जिम्मेदारियां निपटा रहे हैं। उनकी मर्जी के बिना प्रशासन में पत्ता नहीं हिल सकता। कुल मिलाकर बादल तथा कैप्टन दोनों पंजाब को कर्ज में डुबोने के जिम्मेदार हैं। सम्पन्न तथा खाते-पीते लोग सबसिडियां ले रहे हैं। जो सबसिडियों के हकदार हैं, उनको मिल नहीं रहीं। पंजाब आज नशों, बेरोजगारी, किसानों की खुदकुशियों, कर्मचारियों की मांगों, दफ्तरों में परेशानी तथा भ्रष्टाचार की मार झेल रहा है। रेत, केबल व ट्रांसपोर्ट माफिया पंजाब की अर्थव्यवस्था को चाट रहा है। कैप्टन तथा इसके मंत्रियों, विधायकों तथा सांसदों की मौजें हैं। किसी कर्मचारी को वेतन मिले या न मिले, टी.ए. मिले या नहीं, मंत्रियों का आयकर भी सरकारी खजाने से जमा होगा। इस तरह से खजाना भरने से रहा। 

लोक हितों की चिंता नहीं
तत्कालीन सरकारों, विशेषकर बादलों तथा कैप्टन की सरकारों ने जनता के हितों की कभी चिंता नहीं की। हां, प्रेम जरूर जताया है। चलो सत्ता का नशा होता है, जरूर मनाओ मगर लोक हितों का भी ख्याल रखा जाए। फिर चुनावी घोषणा पत्र भी भूल जाते हैं। इसलिए पिछले कुछ समय से यह मांग भी उठने लगी है कि हर पार्टी के चुनावी घोषणा पत्र को कानूनी मान्यता दी जाए। उस पार्टी की सरकार बनने पर यदि वह चुनावी घोषणा पत्र की शर्तों को सही ढंग से लागू नहीं करती तो उसके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाए। अभी तक तो यह मांग कागजों में ही फंसी हुई है। चुनाव आयोग को ही इस ओर ध्यान देना पड़ेगा। राजनीतिक दल शायद इसे लागू न होने दें। बादल सरकारें भी ऐसे ही करती रही हैं और कैप्टन सरकार ने तो हद ही कर दी है। 

खजाने की हालत पहले ही खराब थी, बाकी कसर किसानों का कर्ज माफ कर पूरी कर दी। सच यह है कि किसानों का कर्ज माफ करने की जरूरत नहीं। सबसिडियां केवल तभी दी जाएं जब खजाने की क्षमता हो। कृषि के लिए ठोस नीति बने। उनको वस्तुओं के लागत मूल्य अनुसार तथा कुछ मुनाफा डाल कर कीमतें दी जाएं तो किसानों को राहत मिलेगी। आज पंजाब सरकार के हर विभाग में बड़ी गिनती में पद खाली हैं, जो लम्बे समय से भरे नहीं जा रहे। दूसरी ओर राज्य की यूनिवर्सि टियां तथा बड़े तकनीकी संगठन हर वर्ष हजारों की संख्या में डिग्रीधारक युवा तैयार कर रहे हैं। फलस्वरूप बेरोजगारों की बड़ी लाइन लग रही है। सही मायनों में इस सब कुछ के लिए एक ठोस योजनाबंदी तथा ईमानदारी चाहिए। बदकिस्मती से किसी भी सरकार ने इस ओर ध्यान नहीं दिया। केवल वोटरों के सिर पर ही सत्ता का मजा उठाया। इस सारी स्थिति ने पंजाब को दिनों-दिन पतन की ओर धकेल दिया है।-शंगारा सिंह भुल्लर

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