सोनिया व राहुल का ‘रूस प्रेम’ क्यों जाग रहा है

Edited By Pardeep,Updated: 08 Apr, 2018 04:02 AM

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क्या यह एक नई दोस्ती की सुगबुगाहट है या सोनिया गांधी अपनी सास के नक्शेकदम पर चलने को आतुर हैं। कांग्रेस से जुड़े विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि पिछले 5 महीनों में कोई 3 बार सोनिया भारत स्थित रूसी राजदूत से मिल चुकी हैं। सूत्रों की मानें तो रूसी राजदूत...

क्या यह एक नई दोस्ती की सुगबुगाहट है या सोनिया गांधी अपनी सास के नक्शेकदम पर चलने को आतुर हैं। कांग्रेस से जुड़े विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि पिछले 5 महीनों में कोई 3 बार सोनिया भारत स्थित रूसी राजदूत से मिल चुकी हैं। सूत्रों की मानें तो रूसी राजदूत के संग उनकी सबसे हालिया मुलाकात में उनके साथ न सिर्फ राहुल गांधी थे, अपितु कांग्रेस के 2 वरिष्ठ नेता डा. कर्ण सिंह और आनंद शर्मा भी थे। 

गांधी परिवार के रूस से पुराने रिश्ते हैं और खासकर पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी का एक स्वाभाविक रुझान रूस की ओर था, सो इस संदर्भ में कहते हैं पहल रूस की ओर से हुई, सूत्रों की मानें तो सबसे पहले भारत स्थित रूसी राजदूत राष्ट्रपति पुतिन का एक खास संदेशा  लेकर सोनिया से मिले कि इंदिरा जी के जन्म शताब्दी वर्र्ष में रूस भी अपनी सरजमीं पर कई कार्यक्रम करवाना चाहता है। कहते हैं सोनिया ने इस पर सहर्ष स्वीकृति दे दी, पर इससे पहले कांग्रेस का एक उच्च स्तरीय प्रतिनिधिमंडल रूस जाएगा और इंदिरा गांधी से जुड़े इन कार्यक्रमों की तैयारियों का जायजा लेगा तथा इसकी एक रिपोर्ट सोनिया को सौंपेगा। 

सूत्र बताते हैं कि इसके बाद सोनिया व राहुल रूस रवाना होंगे जहां उनकी मुलाकात रूसी राष्ट्रपति पुतिन से संभव है। ऐसे वक्त में जबकि अमरीका मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ा ‘ट्रम्प कार्ड’ बन गया है और भारत ने इसराईल समेत अमरीका के अन्य मित्र देशों के लिए भी बांहें फैला रखी हैं, ऐसे में रूस की बेचैनी सहज समझ आने वाली है। 2019 के चुनाव सिर पर हैं और कांग्रेस का खजाना खाली है, ऐसे में अपने मित्रों व शुभचिंतकों के लिए दिल व विचारों के दरवाजे खोलना कांग्रेस की मजबूरी भी है और एक रणनीतिक परिपक्वता की द्योतक भी। 

सोनिया का रूस कनैक्शन
सोनिया का रूस कनैक्शन पुराना है। वह न सिर्फ धाराप्रवाह रूसी बोलती हैं, बल्कि रूस के एक छोटे से शहर ब्लादिमीर से भी उनकी पुरानी यादें जुड़ी हैं। यह वही जगह है जहां की जेल में उनके पिता द्वितीय विश्व युद्ध के बंदी रह चुके हैं। एक वक्त सोनिया के बेहद वफादारों में शुमार होने वाले पूर्व केन्द्रीय मंत्री नटवर सिंह अपनी आत्मकथा ’वन लाइफ इज नॉट इनॉफ’ के 19वें अध्याय (सोवियत संघ का पतन) में इस बात का जिक्र करते हैं कि साल 2005 की गर्मियों में वह सोनिया के साथ एक विशेष विमान से मॉस्को गए थे, जहां उन्हें एक कन्वैंशन में हिस्सा लेना था। 

नटवर बताते हैं कि इस कार्यक्रम की समाप्ति के बाद सोनिया के साथ वह एक हैलीकॉप्टर में बैठे, जिससे वे वहां के एक छोटे से शहर ब्लादिमीर के लिए उड़ चले, जो वहां के घने जंगलों के मध्य में अवस्थित था। वहां हैलीकॉप्टर से उतर कर सोनिया एक भव्य इमारत की ओर मुड़ीं, उस इमारत को अब एक छोटे म्यूजियम में तबदील कर दिया गया था। सोनिया वहां पहुंच कर एक आयताकार कमरे के आगे ठिठक कर ठहर गईं, इस कमरे की दीवारों को हस्तलिखित पेपर से ढक दिया गया था। वह भाव-विह्वल होकर देर तक वहां खड़ी रहीं और फिर नटवर सिंह की ओर मुड़ीं तथा भरे गले से कहा, ‘नटवर, द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान मेरे पिता को इसी कमरे में युद्ध बंदी बना कर रखा गया था।’ इससे पहले कि नटवर कुछ बोल पाते, सोनिया ने अपने कदम आगे बढ़ा लिए थे। 

स्मृति को अमेठी पसंद है
केन्द्रीय नेत्री स्मृति ईरानी को सुर्खियों की सवारी गांठनी पसंद है, विवादों से भी उनका चोली-दामन का साथ है। फेक न्यूज का ताजा मामला इसी बात की गवाही देता है, सो, अपने दो मंत्रालयों को संभालने के अलावा इन दिनों स्मृति का सारा ध्यान अमेठी पर केन्द्रित है। उनका जोश और अमेठी को लेकर उनकी निरंतर ङ्क्षचता में कहीं ये निहितार्थ छुपे हैं कि 2019 के आम चुनाव में उनका इरादा अमेठी को खास बनाने का है। वह राहुल के खिलाफ अमेठी से चुनावी मैदान में उतर सकती हैं। सूत्रों की मानें तो महीने में कम से कम एक बार उनका अमेठी का दौरा अवश्यंभावी है। कहते हैं पिछले दिनों उन्होंने अमेठी के मंडल अध्यक्षों को दिल्ली आमंत्रित किया और उन्हें प्रधानमंत्री के अलावा नितिन गडकरी से भी मिलवाया। 

सूत्रों की मानें तो इस रविवार स्मृति अपने मंडल अध्यक्षों को तीर्थयात्रा पर भेजने वाली हैं और उन्होंने अपने मंडल अध्यक्षों को उनकी पत्नियों के लिए उम्दा साडिय़ां भी तोहफे में दी हैं। इन सर्दियों में स्मृति ने अमेठी में कंबल बंटवाए थे, पर जब उन्हें इन कंबलों की क्वालिटी को लेकर कुछ सर्द प्रतिक्रियाएं मिलीं तो उन्होंने फिर जमीन-आसमान एक कर दिया। सूत्रों के मुताबिक मंत्री साहिबा अमेठी के चुने हुए 100 पार्टी पदाधिकारियों को इन गर्मियों में किसी पहाड़ी पर्यटक स्थल पर ट्रेङ्क्षनग दिलवाने वाली हैं। वैसे भी उनका 13-14 अप्रैल को अमेठी का दौरा प्रस्तावित है। राहुल गांधी इसके बाद 15-16 अप्रैल को अमेठी का दौरा कर सकते हैं। अमेठीवासियों को स्मृति का बिंदास अंदाज पसंद है, उन्हें किंचित नाराजगी है तो बस इस बात को लेकर कि अगर अरुण जेतली यू.पी. से राज्यसभा में आ सकते हैं, तो फिर स्मृति को गुजरात की ठौर पकडऩे की क्या जरूरत थी? 

ममता ने शत्रु की ओर बढ़ाया दोस्ती का हाथ
ममता बनर्जी विपक्षी दलों को एकजुट करने की मुहिम में जुटी हैं, पर दबे कदमों से वह इस सियासी आहट को भी भांप रही हैं कि कांग्रेस का अगला पैंतरा क्या होगा? ममता जानती हैं कि कांग्रेस की सीटें जिस अनुपात में बढ़ेंगी या घटेंगी, उसी अनुपात में 2019 में दीदी का महत्व भी घटेगा या बढ़ेगा यानी कांग्रेस की सीटें बहुत ज्यादा नहीं बढ़ती हैं तो फिर दीदी की बल्ले-बल्ले, वह तीसरे मोर्चे की कवायद कर पी.एम. पद के लिए अपना नाम आगे बढ़ा कांग्रेस से समर्थन मांग सकती हैं। इसी क्रम में पिछले दिनों दीदी दिल्ली में थीं तो वह यशवंत सिन्हा से मिलने उनके घर जा पहुंचीं। यशवंत के घर पर ही शत्रुघ्न सिन्हा भी मौजूद थे।

सूत्रों की मानें तो दीदी ने इन दोनों भगवा बागियों के साथ भविष्य की राजनीति की चर्चा की। दीदी ने यशवंत से पूछा कि 2019 में वह लालू या शिबू सोरेन किसकी पार्टी से चुनाव लड़ेंगे? यशवंत ने कहा कि इन दोनों नेताओं से उनकी अच्छी बातचीत है, समय आने पर देखा जाएगा। दीदी ने शत्रु को हिदायत दी कि वह पटना साहिब से कांग्रेस के बजाय राजद के टिकट पर चुनाव लड़ें, क्योंकि वहां मुस्लिम व यादव मतदाताओं की अच्छी तादाद है। शत्रु ने कहा कि यह वक्त बताएगा कि वह किस पाले में जाते हैं, पर दीदी का साथ उन्हें हमेशा से पसंद रहा है, दीदी जाने कब से बस यही सुनने को अधीर थीं। 

वसुंधरा जमीन पर
पिछले दिनों वसुंधरा राजे जब दिल्ली तशरीफ लाईं तो उनके तेवर किंचित ढीले थे। सूत्र बताते हैं कि पार्टी सुप्रीमो अमित शाह के साथ उनकी निर्णायक बातचीत कोई डेढ़ घंटेे तक चली और उन्होंने शाह के तमाम निर्देशों को बिना हील-हुज्जत के मान लिया। वसुंधरा खुश होकर वापस जयपुर लौट गईं, पर शाह सकते में ही रहे। इसके तुरंत बाद जब शाह अपने पार्टी महासचिवों की बैठक ले रहे थे तो उनके एक दुलारे महासचिव ने चिंता जाहिर करते हुए कहा कि ‘वसु को अभी अभयदान देना ठीक नहीं रहेगा, क्योंकि प्रदेश में कांग्रेस तेजी से आगे बढ़ रही है, सो आगामी विधानसभा चुनाव में हमारी पार्टी को यहां मुंह की खानी पड़ सकती है।’

कहते हैं कि इस पर सियासत के माहिर खिलाड़ी शाह ने हंस कर कहा, ’ हमारे लिए तो एक तरफ  कुआं और दूसरी तरफ  खाई की स्थिति है। अगर अभी हम वसुंधरा को हटा देते हैं और विधानसभा का चुनाव गंवा देते हैं तो वसुंधरा दबाव बनाएगी कि अगर मुझे नहीं हटाते तो मैं यहां जीत कर दिखा देती, सो अभी उन्हें चलने दो, 2019 से पहले जनता का निर्णय उनके लिए आ जाएगा।’ फिर इसी महासचिव ने वसुंधरा के सांसद पुत्र दुष्यंत सिंह के कारनामों की पोल खोलनी शुरू कर दी। सूत्र बताते हैं कि शाह ने अपने मुंहलगे महासचिव को डपटते हुए कहा, ‘हमें हर बात की जानकारी है, जांच एजैंसियों को अपना काम करने दो।’ 

तारीफों के केन्द्र में माया
हालिया दलित आंदोलन को लेकर केन्द्र सरकार की चिंताएं साफ तौर पर झलक रही हैं। विश्वस्त सूत्र बताते हैं कि पिछले दिनों पी.एम.ओ. के कुछ आला अधिकारी सरकार में बेहद पॉवरफुल नृपेंद्र मिश्र से मिलने पहुंचे। बात ताजा दलित आंदोलन के विभिन्न आयामों पर होने लगी और वहां मौजूद एक अधिकारी इस आंदोलन की जड़ मायावती को बताने लगे, तो मिश्र जी से रुका न गया और कहते हैं कि उन्होंने दो टूक लहजे में उस अधिकारी को डपट दिया और कहा, ‘इन उपद्रवों से मायावती का कोई लेना-देना नहीं।’ 

सूत्रों की मानें तो उन्होंने मायावती की तारीफों में कसीदे पढऩे शुरू कर दिए, अधिकारीगण हैरान कि मिश्र जी को आखिर हुआ क्या है? तो नृपेंद्र मिश्र ने अपनी भावनाओं को विस्तार देते हुए बताया कि ‘मायावती की राजनीति भाजपा और देश को सूट करती है, क्योंकि जब तक वह दलित राजनीति की केन्द्र बिंदू रहीं, उन्होंने दलित आंदोलन को हिंसक रूप नहीं लेने दिया। और एक बार जो यह दलित आंदोलन किसी जिग्नेश मेवाणी या भीम आर्मी के हाथों में चला गया तो इसकी परिणति हिंसक रूप ले सकती है, क्योंकि ये वामपंथी विचारधारा वाले लोग हैं और उग्रता इनकी वैचारिक कमजोरी है।’ सो मिश्र जी के मुताबिक भले ही मायावती में मनी व पॉवर की भूख हो पर यह उनका निजी मामला है, इससे देश टूटता नहीं। और न ही कमल की उम्मीदें मुरझाती हैं। 

तिवारी की बलिहारी
यू.पी. कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के लिए प्रमोद तिवारी का नाम एक तरह से तय हो गया था। कहते हैं तिवारी जी ने कांग्रेस हाईकमान के समक्ष बढ़ा-चढ़ा कर यह दावा पेश किया था कि उनकी मायावती से खूब छनती है, चुनांचे वह अगले चुनाव में बसपा और कांग्रेस का चुनाव पूर्व गठबंधन कराने का माद्दा रखते हैं। सूत्रों की मानें तो तिवारी जी ने एक कदम आगे बढ़कर दस जनपथ के समक्ष यह दावा भी कर दिया था कि वह जब भी चाहें बहन जी से सोनिया की बात करा सकते हैं और उन्हें मिलवाने के लिए 10 जनपथ भी ला सकते हैं। सो, पिछले दिनों तिवारी जी से कहा गया कि वह एक बार बहन जी की बात सोनिया गांधी से करवा दें, पर कहते हैं तिवारी जी के तमाम प्रयासों के बावजूद मायावती लाइन पर ही नहीं आईं तो आहत ‘दिल्ली’ ने तिवारी से कहा कि ‘जब आप उन्हें लाइन पर भी नहीं ला सकते तो दिल्ली क्या खाक लेकर आएंगे।’ और तिवारी जी का पत्ता कट गया।-त्रिदीब रमण 

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