Edited By ,Updated: 08 Mar, 2019 04:23 AM
पिछले कुछ वर्षों में भारत बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित हुआ है। बकौल विश्व बैंक- भारत फ्रांस को पछाड़कर विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत आर्थिक और कारोबारी सुधारों की...
पिछले कुछ वर्षों में भारत बड़ी अर्थव्यवस्था के रूप में स्थापित हुआ है। बकौल विश्व बैंक- भारत फ्रांस को पछाड़कर विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष की एक रिपोर्ट के अनुसार, यदि भारत आर्थिक और कारोबारी सुधारों की प्रक्रिया को वर्तमान की तरह निरंतर जारी रखता है, तो वर्ष 2030 तक भारत विश्व की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन सकता है। इस पृष्ठभूमि में भारत जैसी उभरती आॢथक महाशक्ति को किस प्रकार की नई चुनौती और समस्या का सामना करना पड़ सकता है, वह अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के एक हालिया निर्णय से स्पष्ट हो जाता है।
राष्ट्रपति ट्रम्प ने सोमवार (4 मार्च) को अमरीकी कांग्रेस के सांसदों को पत्र लिखकर जानकारी दी कि वह ‘अमरीकी व्यापारिक वरीयता कार्यक्रम’ (जी.एस.पी.) के अंतर्गत एक लाभार्थी के रूप में भारत को इस सूची से 60 दिनों के भीतर बाहर कर देंगे। ट्रम्प के अनुसार, ‘‘यह कदम उठाना आवश्यक था क्योंकि भारत ने अमरीका को यह आश्वासन नहीं दिया है कि वह भारतीय बाजारों में उसे न्यायसंगत और उचित पहुंच प्रदान करेगा।’’
आखिर जी.एस.पी. है क्या
आखिर जी.एस.पी. है क्या? यह अमरीका का सबसे बड़ा और व्यापारिक वरीयता कार्यक्रम है, जिसकी शुरूआत वर्ष 1976 में की गई थी। इसका उद्देश्य विभिन्न देशों से आने वाले हजारों उत्पादों को शुल्क मुक्त प्रवेश की अनुमति देकर आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। जी.एस.पी. के अंतर्गत, 5.6 अरब डॉलर- अर्थात् लगभग 40,000 करोड़ रुपए के भारतीय निर्यात पर अमरीका द्वारा कोई शुल्क नहीं लगाया जाता है।
ट्रम्प ने पिछले सप्ताह एक कार्यक्रम में अपने चिरपरिचित धमकी भरे स्वर में कहा था, ‘भारत एक उच्च शुल्क वाला देश है और अब उन्हें पारस्परिक कर चाहिए या फिर कम से कम कोई अन्य कर। जब हम भारत को मोटरसाइकिल भेजते हैं तो उस पर 100 प्रतिशत शुल्क होता है। जब भारत हमारे पास मोटरसाइकिल भेजता है, तो हम उनसे कोई शुल्क नहीं लेते। मैं कहता हूं, साथियो, सुनो, वे हमसे 100 प्रतिशत वसूल रहे हैं। ठीक उसी उत्पाद के लिए, मैं उनसे 25 प्रतिशत वसूलना चाहता हूं। मुझे लगता है कि 25 प्रतिशत भी मूर्खता वाला होगा, यह 100 प्रतिशत होना चाहिए लेकिन मैं आपके लिए इसे 25 प्रतिशत करने जा रहा हूं। मुझे आपका समर्थन चाहिए।’
ट्रम्प की चेतावनी के बाद भारत ने अपने कृषि, दुग्ध और मुर्गी पालन बाजार को अमरीका के लिए खोलने की सहमति जताते हुए ट्रम्प सरकार को इसका एक औपचारिक प्रस्ताव भेजा था। इसके प्रतिकूल राष्ट्रपति ट्रम्प ने भारत को अमरीकी व्यापारिक वरीयता कार्यक्रम से बाहर करने की घोषणा कर दी। फिलहाल, जी.एस.पी. के अंतर्गत रसायन और अभियांत्रिकी जैसे क्षेत्रों के लगभग 5 हजार भारतीय उत्पाद शुल्क मुक्त श्रेणी में हैं। अमरीका द्वारा जी.एस.पी. लाभ बंद किए जाने पर भारतीय वाणिज्य सचिव अनूप वधावन का कहना है कि इससे भारत को कोई खास नुक्सान नहीं होगा क्योंकि इस अमरीकी कार्यक्रम से मिलने वाला लाभ बहुत अधिक नहीं है और पूरे मामले को बातचीत के माध्यम से सुलझा लिया जाएगा। भारत मुख्य तौर पर कच्चा माल, जैविक रसायन, हस्तशिल्प, रत्न, आभूषण जैसे उत्पाद अमरीका को निर्यात करता है।
भारत का अमरीका को निर्यात अधिक, वहां से आयात कम
भारत ने 2017-18 में अमरीका को 48.6 अरब डॉलर, अर्थात् 3,39,811 करोड़ रुपए के उत्पादों का निर्यात किया था, जिसमें केवल 5.6 अरब डॉलर शुल्क मुक्त था, अर्थात् उससे भारत को प्रतिवर्ष 19 करोड़ डॉलर, यानी 1,345 करोड़ रुपए का शुल्क लाभ हुआ था। स्पष्ट है कि भारत को हालिया निर्णय से बहुत अधिक नुक्सान नहीं होगा। भारत अमरीका के साथ व्यापार अधिशेष (ट्रेड सरप्लस) वाला 11वां सबसे बड़ा देश है। अर्थात, भारत का अमरीका को निर्यात, वहां से आयात से अधिक है।
2017-18 में भारत का अमरीका के प्रति वर्ष व्यापार अधिशेष 21 अरब डॉलर- लगभग 1,48,667 करोड़ रुपए था। जब से ट्रम्प अमरीकी राष्ट्रपति बने है, तब से वह अपनी संरक्षणवादी नीतियों के अनुरूप अमरीका का व्यापारिक घाटा कम करने हेतु काफी आक्रामक हैं। इसके लिए उन्होंने तो एशियाई आॢथक शक्ति चीन के विरुद्ध ‘व्यापारिक युद्ध’ भी छेड़ दिया। संरक्षणवादी ट्रम्प का हालिया कदम स्पष्ट करता है कि वह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के कार्यकाल में भारतीय बाजार को जिस वांछित सीमा तक अमरीका के लिए खुलवाना चाहते थे, उसमें अपेक्षित सफलता नहीं मिलने पर वह बौखला गए हैं। प्रथम दृष्टया प्रतीत होता है कि अमरीका ने विशुद्ध रूप से अपने व्यापारिक घाटे को कम करने के लिए इस प्रकार का भारत विरोधी निर्णय लिया है। क्या वाकई ऐसा है?
आखिर बौखलाहट क्यों
वास्तव में, ट्रम्प की भारत के प्रति बौखलाहट का कारण कुछ और ही है। बीते 58 महीनों में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में ‘मेक इन इंडिया’ के अतिरिक्त ‘आयुष्मान भारत’ जैसी दर्जनों जनहितैषी और जनकल्याण योजनाएं चलाई गई हैं, जिनका उद्देश्य पंक्ति में बैठे आखिरी व्यक्ति को आर्थिक और सामाजिक लाभ पहुंचाना है। इसी कड़ी में मोदी सरकार द्वारा वर्ष 2017-18 में स्टेंट और घुटना प्रत्यारोपण के मूल्यों को भी नियंत्रित किया गया है।
भारतीय बाजार में 2 प्रकार के स्टेंट बिकते हैं। ड्रग इल्युटिंग स्टेंट- जिसका मूल्य पहले 1,29,404 रुपए तक था, जो सरकारी नियंत्रण के बाद लोगों को अधिकतम 29,600 रुपए में मिल रहा है। देश में 90 प्रतिशत हृदय-रोगियों को यही स्टेंट लगाया जाता है। जबकि अन्य स्टेंट ‘बेरे मैटल स्टेंट’ है, जिसकी बाजार में कीमत 45,095 रुपए थी, जो अब 7,260 रुपए में उपलब्ध है। इसी तरह, कोबाल्ट क्रोमियम घुटना प्रत्यारोपण, जिसकी पहले कीमत अढ़ाई लाख रुपए थी, वह अब 60 हजार से कम में संभव है। वहीं मैटल जिनकोनिम घुटना प्रत्यारोपण, जिसे करवाने में पहले कम से कम 4.5 लाख तक का खर्चा आता था, वह 77 हजार रुपए में करवाया जा सकता है। इसी प्रकार अन्य घुटना प्रत्यारोपण की कीमतों को भी सरकार द्वारा नियंत्रित किया गया है।
सरकारी आंकड़े के अनुसार, देश में डेढ़ से 2 करोड़ रोगियों को घुटना बदलवाने की जरूरत है और प्रतिवर्ष भारत में 1.2-1.5 लाख ऐसी सर्जरियां होती हैं। वहीं भारत में 3.2 करोड़ लोग हृदय रोगी हैं और हर वर्ष इससे 16 लाख लोगों की मौत होती है। किंतु मोदी सरकार द्वारा घुटना प्रत्यारोपण और स्टेंट की कीमतों को नियंत्रित करने के कारण विदेश से भी कई लोग उपचार हेतु भारत आ रहे हैं। अब अमरीका की स्थिति क्या है? अमरीका में जहां घुटना प्रत्यारोपण करवाने में 35-50 हजार अमरीकी डॉलर, अर्थात् 24-35 लाख का खर्चा आता है, वहीं भारत में यह सरकारी नियंत्रण के बाद 55 हजार से डेढ़ लाख रुपए में संभव है। इसी तरह, बेरे मैटल स्टेंट और ड्रग इल्युटिंग स्टेंट की कीमत अमरीका में क्रमश: 670 और 2070 अमरीकी डॉलर, अर्थात् 47 हजार और 1.45 लाख रुपए है, जबकि भारत में यह क्रमश: लगभग 7,200 और 29,600 रुपए में उपलब्ध है।
भारत एक बड़ा बाजार
निर्विवाद रूप से वैश्वीकरण के दौर में 133 करोड़ की आबादी वाला भारत एक बहुत बड़ा बाजार है और बीते कुछ वर्षों से एक औसत भारतीय की खर्च करने की सीमा भी बढ़ गई है। इस पृष्ठभूमि में अमरीका चाहता है कि मोदी सरकार ने जिस प्रकार घुटना प्रत्यारोपण और स्टेंट की कीमतों को ‘जरूरी दवा’ के रूप में नियंत्रित किया है, वह उसे निरस्त करे। यदि ऐसा होता है तो अमरीका सहित पश्चिमी देशों की कम्पनियों की चांदी हो जाएगी। अमरीकी सांसद वर्ष 2017 से इस पर अपनी आपत्ति जता रहे हैं, किंतु हर बार भारत अपनी स्थिति को स्पष्ट करते हुए इसमें परिवर्तन करने से साफ इंकार कर देता है।
भारत में अमरीकी ई-कॉमर्स कम्पनियों पर सख्ती को लेकर भी ट्रम्प सरकार और अन्य अमरीकी सांसद चिंतित हैं। जहां प्रधानमंत्री मोदी ने देश की सम्प्रभुता की सुरक्षा हेतु इन कम्पनियों पर नियम-कानूनों को कड़ा किया है, वहीं अमरीका को लगता है कि ऐसी नीतियां उसकी कम्पनियों को दबाने के लिए लागू की जा रही है। मोदी सरकार की हालिया नीति के अनुसार, अमरीकी ई-कॉमर्स कम्पनियां अब अपनी हिस्सेदार कम्पनियों के उत्पाद भारत में नहीं बेच पाएंगी। अब यही नीतियां अमरीका के अनुकूल तो बिल्कुल भी नहीं हैं, किंतु इनसे भारतीय व्यापारियों और कम्पनियों के हितों की रक्षा की जा रही है।
इन घटनाक्रमों से 2 बातें स्पष्ट हैं, पहली- विश्व भारतीय शक्ति, प्रतिभा और भारत निर्मित उत्पादों की अनदेखी नहीं कर पा रहा है। साथ ही विकसित देशों की भांति भारत की सामरिक, आर्थिक और सामाजिक नीतियों का व्यापक प्रभाव भी शेष विश्व पर पडऩे लगा है। दूसरी- भारी अंतर्राष्ट्रीय दबाव के बीच वर्तमान भारतीय नेतृत्व देशहित और जनकल्याणकारी निर्णय लेने में सक्षम और अटल है।-बलबीर पुंज