मोदी की गलतियों पर चुनाव आयोग चुप क्यों

Edited By ,Updated: 21 Apr, 2019 03:33 AM

why the election commission is silent on modi s mistakes

चुनाव आयोग कड़ी आलोचना के घेरे में आ गया है। इस पर चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन पर तुरंत प्रतिक्रिया न देने या ऐसा पर्याप्त रूप से न करने के आरोप लग रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह 1990 के दशक में टी.एन. शेषण द्वारा स्थापित शिखर से उल्लेखनीय...

चुनाव आयोग कड़ी आलोचना के घेरे में आ गया है। इस पर चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन पर तुरंत प्रतिक्रिया न देने या ऐसा पर्याप्त रूप से न करने के आरोप लग रहे हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह 1990 के दशक में टी.एन. शेषण द्वारा स्थापित शिखर से उल्लेखनीय रूप से फिसल गया है। मुझे विशेष रूप से जो चीज परेशान कर रही है वह है आयोग की खुद प्रधानमंत्री द्वारा चुनाव आचार संहिता और यहां तक कि कानून के कथित उल्लंघन पर प्रतिक्रिया देने में कमजोरी। 

यद्यपि मैं यह कहूंगा आयोग ने मोदी की आत्मकथा पर बनी फिल्म तथा नमो टी.वी. के खिलाफ कड़ा कदम उठाया। मैं बस यही आशा करता हूं कि इसने उन अन्य क्षेत्रों में भी ऐसा किया होता जो अधिक सीधे तौर पर नरेन्द्र मोदी से जुड़े हैं। पहले प्रधानमंत्री के भाषणों की बात करते हैं। लातूर में 9 अप्रैल को उन्होंने लोगों से अपने वोट बालाकोट हवाई हमले के पीछे के सैनिकों तथा पुलवामा के शहीदों को समर्पित करने का आह्वान किया। ऐसा करते हुए उन्होंने सीधे रूप से चुनाव आयोग के 9 मार्च के पत्र की अवहेलना की जिसमें राजनीतिक दलों को सशस्त्र बलों का राजनीतिकरण करने के खिलाफ चेतावनी दी गई थी। पहली अप्रैल को वर्धा में उन्होंने हिन्दू आतंकवाद के शब्द को उछालते हुए उपस्थित लोगों को हिन्दुओं का अपमान करने के लिए कांग्रेस को माफ न करने को कहा। इसने चुनाव आचार संहिता की धारा-1 तथा जनप्रतिनिधित्व की धारा-123, दोनों का उल्लंघन किया। हालांकि आयोग ने नोटिस जारी किए मगर कोई कार्रवाई नहीं की। 

प्रश्र यह है कि क्यों नहीं? जब बात प्रधानमंत्री द्वारा कथित उल्लंघन से संबंधित हो तो एक जल्दी तथा स्पष्ट चर्चा की जरूरत होती है। यदि ऐसा लगे कि प्रधानमंत्री को बच कर जाने दिया जा रहा है तो इससे केवल आयोग की विश्वसनीयता को नुक्सान पहुंचता है। दूसरा मुद्दा यह है कि नमो टी.वी. पहले दिन के मतदान से ठीक पहले 48 घंटों के दौरान प्रधानमंत्री के भाषणों का प्रसारण करता है। जनप्रतिनिधित्व कानून की धारा-126 किसी भी ऐसे प्रसारण की अनुमति नहीं देती, जिसमें ‘कोई ऐसा विषय हो, जो चुनाव के परिणाम को प्रभावित कर सकता हो।’ इतना ही महत्वपूर्ण यह कि भाजपा स्वीकार करती है कि ‘नमो टी.वी. नमो एप का एक फीचर है।’ और निश्चित तौर पर एप पर नरेन्द्र मोदी का नियंत्रण है। इससे प्रधानमंत्री पर उंगली उठती है। 

तीसरे, खुलासा हुआ है कि नीति आयोग ने उन निर्वाचन क्षेत्रों, जहां प्रधानमंत्री ने जाना था, के नौकरशाहों को स्थानीय इनपुट्स पी.एम.ओ. को भेजने को कहा। ऐसे इनपुट्स वर्धा, गोंदिया तथा लातूर से मोदी के प्रचार से कुछ समय पहले प्राप्त हुए। क्या यह चुनाव आचार संहिता का उल्लंघन नहीं है, जो कहता है कि ‘मंत्री... चुनाव प्रचार के दौरान सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल नहीं करेंगे?’ जहां यह सच है कि चुनाव प्रचार के दौरान प्रधानमंत्री महज एक अन्य उम्मीदवार हैं, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि प्रधानमंत्री के तौर पर उनकी स्थिति तथा महत्व किसी भी अन्य व्यक्ति से काफी अलग है। 

इसका अर्थ यह हुआ कि उनकी गलतियां अधिक महत्व रखती हैं। उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता अथवा ढीले-ढाले तरीके से कार्रवाई नहीं की जा सकती। निश्चित तौर पर उनसे अनुचित व्यवहार नहीं किया जाना चाहिए लेकिन प्रतिक्रिया तीव्र होनी चाहिए, यदि अन्य मामलों से अधिक तेज नहीं तो। क्या यह अटपटा नहीं लगता कि आयोग ने योगी आदित्यनाथ तथा मायावती के खिलाफ कार्रवाई की, जिनकी गलतियां क्रमश: 7 तथा 9 अप्रैल को हुईं मगर नरेन्द्र मोदी के बारे में चुप है, हालांकि उनके मामले इससे पहले के हैं।-करण थापर
 

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