आखिर सरकार क्यों बुरी तरह असफल हुई

Edited By ,Updated: 02 May, 2021 04:20 AM

why the government failed miserably

आप इस लेख को पढ़ रहे होंगे तब देश में दो घटनाएं घट रही होंगी। एक तो 18 से 45 वर्ष की आयु के सभी वयस्कों को वैक्सीनेशन कुछ राज्यों की इच्छा से और कुछ की अनिच्छा से की

आप इस लेख को पढ़ रहे होंगे तब देश में दो घटनाएं घट रही होंगी। एक तो 18 से 45 वर्ष की आयु के सभी वयस्कों को वैक्सीनेशन कुछ राज्यों की इच्छा से और कुछ की अनिच्छा से की जा रही होगी। दूसरी घटना वोटों की गिनती को लेकर है जो आज 8 बजे शुरू हो चुकी होगी। इस लेख को मैं दोनों घटनाओं के नतीजों को जाने बिना लिख रहा हूं। 

वैक्सीन के संदेह के बारे में व्याप्त कल्पना अपनी पहली खुराक पाने वाले लोगों की ल बी कतारों द्वारा बताई जा सकती है। वहीं खुराक लेने वाले कई दूसरे लोग वैक्सीन की कमी के चलते कतारों से बाहर आ गए होंगे। 2 अप्रैल 2021 को हमने 42,65,157 लोगों का टीकाकारण किया और ऐसा कोई कारण नहीं है कि औसत के आंकड़े को हम प्राप्त नहीं कर सकते। हालांकि अप्रैल में टीकाकरण की औसत दर 29 लाख प्रतिदिन है। अस्पतालों में वैक्सीन की अपर्याप्त आपूर्ति एक बड़ा कारण है। 

दूसरा कारण लॉकडाऊन के दिनों तथा घंटों को आगे बढ़ाया जाना है। ऐसी दर पर बाकी के बचे 70 करोड़ वयस्कों का टीकाकरण करने में 240 दिन लगेंगे। फंड की कोई बाधा नहीं होनी चाहिए। प्रति खुराक 250 रुपए की एक कल्पित कीमत, 70 करोड़ वयस्कों में से प्रति व्यक्ति को 2 खुराकें देने की लागत 3500 हजार करोड़ रुपए बनती है। यह राशि बजट में पहले ही आबंटित की जा चुकी है। बाकी सभी बाधाएं 1 मई तक हटा ली गई हैं। मगर यदि एक नई कीमत का निवारण जल्द न हो पाया तो 2 दवाई निर्माताओं द्वारा घोषित 5 कीमतें एक निवारक बन सकती हैं। 

आखिर वैक्सीन की कमी क्यों?
*वैक्सीन की कमी अभी भी एक समस्या है और इसका दोष पूरी तरह से केन्द्र सरकार की दहलीज पर खड़ा है जो सीरम इंस्टीच्यूट ऑफ इंडिया और भारत बायोटैक को छोड़कर दूसरे दवाई निर्माणकत्र्ताओं के साथ किसी भी समझौते पर आने के लिए असफल रही है।
*कोविशील्ड और कोवैक्सीन के अलावा स्वीकृत वैक्सीन के लिए कोई अग्रिम आर्डर नहीं दिया गया।
*निर्माण क्षमता को बढ़ाने की कोई आवश्यकता नहीं समझी गई और उत्पादन बढ़ाने के लिए दो भारतीय निर्माताओं को धन का प्रस्ताव नहीं दिया गया।
*दो भारतीय निर्माताओं के साथ एक समान मूल्य पर बातचीत किसी निष्कर्ष पर नहीं पहुंची।
*दो भारतीय निर्माताओं को एक समान कीमत पर बेचने के लिए अनिवार्य लाइसैंस के प्रावधान का आह्वान करने की इच्छा नहीं जताई।
*केन्द्र तथा सरकारों के मध्य  लागतों तथा जि मेदारियों को बांटने के लिए राज्य सरकारों के साथ विचार-विमर्श नहीं किया गया। 

केन्द्र सरकार की अक्षमता को धन्यवाद। यह कहना कि भारत विश्व की फार्मेसी है जैसी बात पूरी तरह से विलुप्त हो गई है। इसके विपरीत हम अन्य देशों से आपूर्ति का आग्रह कर रहे हैं जिनके पास भारत को सप्लाई करने के लिए वैक्सीन की सीमित मात्रा है। सबसे शर्मनाक बात वह होगी जब हम सीनोफार्म और अन्य चीन निर्मित वैक्सीन की आपूर्ति का चीन की ओर से दिया गया प्रस्ताव स्वीकार कर लेंगे। याद रहे कि केन्द्र सरकार ने कई सप्ताहों तक डॉ. रैड्डीज लैबोरेटरीज को रोके रखा जो रशियन वैक्सीन स्पुतनिक-वी के ट्रायलों को शुरू करने के लिए तैयार थी।

यह भी याद रखना चाहिए कि डी.सी.जी.आई. ने फाइजर-बायोटैक वैक्सीन की आपात स्वीकृत के इस्तेमाल को भी नकार दिया। इसने कई नियामक से स्वीकृति पाई थी और इसका इस्तेमाल अमरीका, यू.के. और यूरोप में हो रहा था। सबसे बड़ी चिन्ता वैक्सीन की अपर्याप्त आपूर्ति है। कई प्रतिष्ठित अस्पतालों से वैक्सीन की कमी की रिपोर्टें आ रही हैं। यदि मैट्रो शहरों का यह हाल है तो जरा सोचें कि छोटे और मध्यम आकार के अस्पतालों का क्या हाल होगा। वैक्सीन की कमी उस समय भी हो जाएगी जब 18 से 45 वर्ष के आयु वर्ग के लोगों की भीड़ वैक्सीन के लिए उमड़ेगी। मुझे इस बात का भी आश्चर्य है कि अस्पताल प्रशासनों को क्रोधित प्रदर्शनकारियों द्वारा घेर लिया जाएगा जो आज अस्पताल बैडों और आक्सीजन की कमी के चलते भी देखा जा रहा है।

कोई नहीं जानता 
आखिर केन्द्र सरकार बुरी तरह से असफल क्यों हुई? इसके लिए मैं कई कारण बता सकता हूं जिसे मीडिया (विशेषकर विदेशी मीडिया) ने सूचित किया है :
1. मंत्रियों ने कहा ‘‘विश्व जश्न मना रहा है जिस तरह से मोदी ने महामारी को हराया।’’ स्वास्थ्य मंत्री ने मोदी को ‘विश्व गुरु’ बताया।
2. केन्द्रीयकरण को लेकर सभी निर्णय एक ही व्यक्ति द्वारा लिए गए वह कोई और नहीं प्रधानमंत्री मोदी थे। राज्यों को आज्ञाकारी अधीनस्थ तक सीमित कर दिया गया।
3. बुरा परामर्श : डॉ. पाल, डॉ. गुलेरिया और डॉ. भार्गव की तिकड़ी ने डाटा को पढऩे तथा प्रधानमंत्री को निडर होकर परामर्श देने से ज्यादा अपना समय टैलीविजन पर बिताया।
4. योजना आयोग के बिना ऐसा कोई भी संगठन नहीं जो यह जाने कि योजना क्या है?
5. आत्मनिर्भर पर गलत जोर दिया गया और आत्मनिर्भरता को संकीर्ण राष्ट्रवाद तक सीमित कर दिया गया।
6. वैक्सीन के आयात, निर्माण और उसे कुशलता से आबंटित करने के राष्ट्रीय प्रयास में और निर्माताओं को शामिल करने की बजाय दो राष्ट्रीय दवा निर्माताओं से लाड-प्यार दिखाया गया है। 

आगे का रास्ता
राष्ट्र बड़ी भारी कीमत चुका रहा है। संक्रमित लोगों की गिनती 1 मई तक 4,01,993 के उच्चतर स्तर पर हो गई है और 30 अप्रैल को एक्टिव मामलों की सं या 32,68,710 हो गई और मृत्युदर 1.11 प्रतिशत हो गई। विश्वव्यापी संक्रमण के रोजाना मामलों में भारत 40 प्रतिशत से ज्यादा अपनी भागीदारी दर्शा रहा था। अभी भी भारत तबाही झेल रहा है। प्रधानमंत्री को एक कदम पीछे हटकर स्वतंत्र सोच वाले मंत्रियों, मैडीकल विशेषज्ञों, योजनाकत्र्ताओं, सेवानिवृत्त, पब्लिक सर्वैंट और प्राइवेट नागरिकों का एक समूह बनाना चाहिए जिसका नाम ए पावर्ड क्राइसिस मैनेजमैंट ग्रुप होना चाहिए।-पी.चिदंबरम

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!