भारतीय राजनीति में ‘बहाव’ की अवस्था क्यों

Edited By ,Updated: 08 Feb, 2020 01:51 AM

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एक पल ऐसा भी था कि मोदी ने मुसलमानों को भारत के नागरिक बता कर उनकी प्रशंसा की थी और यदि वे भारत के असली नागरिक हैं तब उन्हें अपनी नाराजगी व्यक्त करने का पूरा अधिकार है। भारतीय लोकतंत्र का यही बड़प्पन है। सरकार से यही अपेक्षित है कि वह...

एक पल ऐसा भी था कि मोदी ने मुसलमानों को भारत के नागरिक बता कर उनकी प्रशंसा की थी और यदि वे भारत के असली नागरिक हैं तब उन्हें अपनी नाराजगी व्यक्त करने का पूरा अधिकार है। भारतीय लोकतंत्र का यही बड़प्पन है। सरकार से यही अपेक्षित है कि वह प्रदर्शनकारियों से संवाद स्थापित करने के लिए उन तक अपनी पहुंच बनाए। मैंने कभी भी नहीं सोचा था कि दिल्ली विधानसभा चुनाव हमारे राष्ट्रीय नेताओं के तत्व की बुद्धिमत्ता तथा आम सोच को धुंधला देगा। 

मेरा यह दृढ़निश्चय है कि भारत में प्रत्येक राजनीतिक दल अपने अंदर ही देख रहा है क्योंकि हम महात्मा गांधी की 150वीं जयंती मना रहे हैं। हम उनके द्वारा 1942 में उनकी मैगजीन ‘हरिजन’ में व्यक्त किए गए उनके सुनहरे शब्दों को याद करते हैं जिसमें उन्होंने लिखा है कि ‘‘हिन्दुस्तान उन सबका है, जिनका जन्म यहां हुआ तथा उन्होंने किसी अन्य देश की तरफ नहीं देखा। इस कारण यह पारसियों का, भारतीय ईसाइयों, मुसलमानों तथा हिन्दुओं के जितना ही गैर-हिन्दुओं के लिए भी है। स्वतंत्र भारत हिन्दू राज नहीं होगा, ये भारतीय राज होगा, जो किसी भी धर्म, समुदाय के बहुमत पर नहीं बल्कि धर्म के भेदभाव के बिना पूरे लोगों के प्रतिनिधियों के आधार पर होगा।’’ गांधी जी का मुख्य लक्ष्य हिन्दू-मुस्लिम भाईचारे का निर्माण करना था। उनके लिए यही अहिंसा का प्रतिनिधित्व था। 

महात्मा गांधी की अहिंसा के मत के विपरीत हम आज क्या देखते हैं? बंदूक उठाए एक व्यक्ति सी.ए.ए. विरोधी रैली पर फायर करता है और चिल्लाता हुआ नारा लगाता है ‘जय श्री राम, यह लो आजादी’। क्या वह भाजपा या फिर ‘आप’ का समर्थक था? इस पहलू पर मैं मुट्ठी बांध कर बैठा हूं। भारत में इस समय राजनीति तथा धर्म आपस में मिश्रित हो चुके हैं। यह फायरिंग वित्त राज्य मंत्री अनुराग ठाकुर जैसे भाजपा नेताओं के हिंसा भड़काने वाले तथा साम्प्रदायिकता से भरे शब्दों के बाद की गई। ठाकुर ने कहा कि ‘गद्दारों को गोली मारो’, इसके समानांतर ही कपिल मिश्रा की शब्दावली ने भी विचलित कर दिया। 

कुछ भी हो, शाहीन बाग प्रदर्शन को आज धर्मनिरपेक्षता के अथाह समुद्र के तौर पर देखा जा रहा है जहां पर विभिन्न जातियों तथा धर्मों के लोगों को प्रेरित करने की क्षमता है। यह अलग बात है कि मोदी सरकार भारत को एक अलग नजरिए से देखती है। मेरा चिंता करने का मुख्य उद्देश्य यह है कि आखिर देश के मामलों से निपटने के लिए हमारे नेता किस गलत दिशा में जा रहे हैं। चुनावी समय के दौरान चलित राजनीतिक मामलों में इस तरह का बहाव क्यों आया? प्रत्येक पार्टी छोटी अवधि के वोट बैंक की राजनीति को लेकर अपने नजरिए से देख रही है। कुछ अपवाद के बाद हम शायद ही कोई सिद्धांतों या फिर तथ्यों वाले नेता देख पा रहे हैं। 

एक चिंतित नागरिक के तौर पर मैं यह मुद्दे उठा रहा हूं जोकि राजनीतिक कोण की स्थिति के चलते विचलित हुआ है। मैं किसी एक व्यक्ति पर दोष नहीं मढ़ रहा और न ही किसी राजनीतिक दल पर। जैसा कि हम जानते हैं कि वास्तविकता का इंकार करने वाले माहौल में लोकतांत्रिक राजनीति स्वस्थ लकीरों पर नहीं चलती। वास्तव में भारतीय लोकतंत्र की गुणवत्ता उस समय तक अपग्रेड नहीं की जा सकती जब तक कि हम दोहरे मापदंड, पाखंड तथा दोगली भाषा वाली राजनीतिक सोच तथा कार्रवाई का त्याग नहीं करते। सैद्धांतिक मुद्दों से ज्यादा इस समय यह समझना अपेक्षित है कि आखिर लोग क्या चाहते हैं। जब तक हम लोगों की वास्तविक उम्मीदों तथा इच्छाओं को समझने की कोशिश नहीं करते तब तक भारत का निर्माण संभव नहीं। भारत को शॉर्ट-कट्स से आगे बढ़ाया नहीं जा सकता। 

ऐसा कहा जाता है कि चिकनी मिट्टी किसी भी सांचे में ढल जाती है मगर यह तभी सम्भव है जब तक कुम्हार उसको अपने हाथों से आकार नहीं देता। यहां पर राजनीति के सकारात्मक तथा नकारात्मक पहलू हैं। यह इस पर निर्भर करता है कि आप किस तरह राष्ट्र की छवि को देखते हैं। दिल्ली में व्याप्त हालात के लिए किसी एक का नजरिया तथा व्यवहार निर्भर करता है। राजनीति के नकारात्मक पहलू में सकारात्मक तत्व भी मौजूद होते हैं। वर्तमान बेचैनी नफरत तथा बांटने वाली राजनीति के चलते मौजूद है। राष्ट्र द्वारा झेली जा रही परेशानियों के सवालों के जवाब उपलब्ध करवाने की हमारे लोकतांत्रिक संस्थानों में क्षमता नहीं या फिर यूं कहें कि वे योग्य नहीं। 

मैं कल्पना कर सकता हूं कि राष्ट्रीय संस्कृति न तो हिन्दू और न ही मुसलमान की है। यह तो बस भारतीय की है। मैं देखता हूं कि हिन्दू तथा मुसलमानों के बीच व्याप्त मूल भेदों को मिटाया नहीं गया। इसी तरह ज्यादातर इन दोनों का इस्तेमाल सामाजिक भेदभाव तथा विरोध के लिए नहीं किया जा सकता। बेशक भारत की पुरातन सभ्यता होने के नाते हम राष्ट्रीयता में हिन्दुओं के वर्चस्व को नकार नहीं सकते। इस पुरातन भूमि की मिट्टी तथा सभ्यता के मूल्यों में इसकी जड़ें गहरी हैं। इस कारण आधुनिक भारत की संतुलित दृष्टि इसी में है कि हम सभी समुदायों को साथ लेकर चलें। यह दयनीय है कि हमारी सोच बहुत निम्न बदलाव को देखती है। हमारे पास गुजरात से भाजपा के दिग्गज नेता पी.एम. मोदी तथा गृह मंत्री अमित शाह हैं और इसी राज्य ने हमें राष्ट्रपिता महात्मा गांधी तथा सरदार पटेल जैसे महान नायक दिए। अब समय है कि देश के नेताओं को अपने भीतर झांकना होगा और यह टटोलना होगा कि आखिर उनसे गलती कहां हुई।-हरि जयसिंह
 

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