क्यों ट्रम्प मोदी के साथ ‘प्रेम-पींघें’ बढ़ा रहे हैं

Edited By ,Updated: 19 Sep, 2019 03:19 AM

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चीन, तुम्हें ध्यान देना चाहिए और पाकिस्तान, तुम्हें भी वैसा ही करना चाहिए। अमरीकी एक ताकतवर संकेत भेज रहे हैं। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प न केवल ह्यूस्टन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली में शामिल होंगे बल्कि न्यूयार्क में उनके साथ एक...

चीन, तुम्हें ध्यान देना चाहिए और पाकिस्तान, तुम्हें भी वैसा ही करना चाहिए। अमरीकी एक ताकतवर संकेत भेज रहे हैं। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प न केवल ह्यूस्टन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैली में शामिल होंगे बल्कि न्यूयार्क में उनके साथ एक अलग द्विपक्षीय बैठक भी करेंगे। 

यह कश्मीर मुद्दे पर मध्यस्थता करके पाकिस्तान को थोड़ा अच्छा महसूस करवाने से परे जाना है। मगर पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान के रोज-रोज जेहाद के लिए आह्वानों तथा परमाणु युद्ध की धमकियों ने अमरीकी तथा अरब नेताओं को भी परेशान कर दिया है। इससे लगता है कि उन्होंने ट्रम्प को पूरी तरह से गंवा दिया है। जैसा कि अमरीका में पाकिस्तान के पूर्व राजदूत हुसैन हक्कानी ने मुझे बताया था, जहां ट्रम्प ने बेशक इमरान खान की मेजबानी की मगर यह मोदी ही हैं जिन्हें वह ‘सहयोगी तथा मित्र’ मानते हैं। यह निश्चित तौर पर ‘उन लोगों को निराश करेगा जो यह सोचते थे कि खान का वाशिंगटन का अंतिम दौरा संबंधों में बहुत महत्वपूर्ण था।’ 

तो प्रश्र यह है कि ट्रम्प मोदी के साथ प्रेम की पींघें क्यों बढ़ा रहे हैं? हां, ऊर्जा से भरपूर भीड़ का हिस्सा बनना बहुत बढिय़ा है लेकिन हम जानते हैं कि भारतीय अमरीकियों का झुकाव डैमोक्रेटिक पार्टी की ओर अधिक होता है। क्या वह इस वोट का एक महत्वपूर्ण हिस्सा अपने पक्ष में कर सकेंगे? इस पर हो सकता है एक गहरा खेल हो। जरा ट्रम्प के मोदी की रैली में शामिल होने बारे व्हाइट हाऊस की घोषणा पर गौर करें। इसमें एक नए निर्माण संयंत्र का जश्न मनाने के लिए आस्ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के साथ एक संयुक्त कार्यक्रम का भी जिक्र किया गया है। क्वाड अथवा चतुर्भुज सुरक्षा संवाद के 4 नेताओं में से 3-अमरीका, भारत तथा आस्ट्रेलिया, इस सप्ताह जोड़े बनाकर काम कर रहे हैं। चौथे सदस्य, जापान के प्रधानमंत्री श्ंिाजो अबे बड़े परिश्रम से ट्रम्प के साथ प्रेम बनाए हुए हैं और नियमित रूप से उनसे मिलते हैं।

सर्वोच्चता बनाए रखने के संघर्ष में अमरीका भारत को अपने पाले में चाहता है। वह नहीं चाहता कि चीन अरब सागर में नियंत्रण हासिल करने के लिए और बिंदू स्थापित करे, जैसे कि इसने दक्षिण चीन सागर में किया है (ग्वादर के बारे में सोचें)। बाकी अपने आप में ब्यौरा है। पाकिस्तान का सैन्य खुफिया अधिष्ठान, जो मोदी की रैली में व्यवधान डाल कर ध्यान आकर्षित करने की अंतिम समय तक तैयारी कर रहा था, अब उसे दोबारा सोचना होगा क्योंकि ट्रम्प इसमें शामिल हो रहे हैं। इंटर सर्विसिज इंटैलीजैंस (आई.एस.आई.) की उन धुंधली छवियों के बारे में सोचें जो ‘कश्मीर2खालिस्तान’ अथवा ‘सिख फार जस्टिस’ जैसे ‘अग्रिम’ संगठनों के तार खींच रही थीं ताकि अमरीका में अमरीकी राष्ट्रपति के खिलाफ प्रदर्शन किया जा सके। सम्भवत: एफ.बी.आई. ने पहले ही उनकी पूंछ पर पांव रख दिया है।

दूसरी ओर भारत तथा अमरीका एक व्यापारिक सौदे की घोषणा करने वाले हैं, जब तक कि अमरीका कोई और गड़बड़ न कर दे। इसके पीछे दोनों देशों द्वारा पहले ही जताई गई सहमति को और मजबूती प्रदान करना तथा सौदे में अन्य पहलू शामिल करना है। अमरीकी व्यापार प्रतिनिधि राबर्ट लेथीजर पूरी तरह से तैयार हैं क्योंकि ट्रम्प को 2020 में अपने पुन: चुने जाने के लिए अभियान हेतु व्यापारिक सौदों को जीतने की जरूरत है। रिपब्लिकन कांग्रेसी जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रैफ्रैंसिज (जी.एस.पी.) के अंतर्गत भारत के लिए लाभों को बहाल करने के लिए लाइटहाइजर को आगे बढ़ा रहे हैं, यदि भारत कुछ विशेष अवरोध हटा देता है। 

बात यह है कि भारतीय उत्पादों के अमरीकी आयातक जी.एस.पी. के पात्र हैं, जिन्हें चोट पहुंच रही है क्योंकि उनकी लागतें बढ़ गई हैं। यदि व्यापारिक सौदा फलीभूत होता है तो ट्रम्प व मोदी ह्यूस्टन में एक साथ जश्र मना सकते हैं। लेकिन जैसा कि कहा जाता है, कप के होंठों तक पहुंचने के बीच काफी अंतर होता है। ‘हाऊडी मोदी’ में ट्रम्प की उपस्थिति एक जनसम्पर्क बोनांजा है। यह कश्मीर में नई दिल्ली के विवादास्पद कदमों के परिप्रेक्ष्य में आया है। अमरीकी प्रशासन एक नाजुक संतुलन वाला कार्य कर रहा है-न तो यह निर्णय की आलोचना कर रहा है और न ही अनदेखी, जबकि संचार प्रतिबंधों को हटाने तथा राजनीतिक नेताओं की शीघ्र रिहाई पर जोर दे रहा है। आप चाहे इसे पसंद करें या नहीं, मंथन के इस समय में कश्मीर पहेली का महज एक छोटा-सा हिस्सा है। 

मगर इसमें एक सम्भावित नकारात्मक पहलू है। चूंकि ट्रम्प एक धु्रवीकरण वाली शख्सियत हैं, कुछ डैमोक्रेट उनके साथ मंच सांझा करने में असहज महसूस करते हैं। लम्बे समय से नजर रखने वाले एक पर्यवेक्षक ने मुझसे कहा कि भारतीय-अमरीकी समुदाय के नेताओं को इस मामले में चतुराईपूर्ण तरीके से खेलना होगा। डैमोक्रेट्स के लिए अब इसमें से चुनना है कि वे गुस्सा करें या किसी भारतीय-अमरीकी डोनर को खुश करें। वाम समूहों, दलित कार्यकत्र्ताओं तथा मुस्लिम अमरीकी संगठनों की ओर से कश्मीर को लेकर दबाव बनाया जा रहा है-अश्वेत मुसलमानों ने हाल ही में भारतीय दूतावास के बाहर प्रदर्शन किया था। भाजपा की बेहतरीन मित्र कांग्रेस वूमैन तुलसी गबार्ड पीछे हट गई हैं लेकिन लगभग 25 डैमोक्रेट्स तथा रिपब्लिकन्स के रैली में शामिल होने की आशा है। हाऊस मैजोरिटी लीडर स्टेनी होयर, जो स्पीकर नैंसी पेलोसी के बाद दूसरे नम्बर पर आते हैं, रैली को सम्बोधित करेंगे। 

यह मत भूलें कि पाकिस्तान ने मुस्लिम तथा खालिस्तानी दोनों को झकझोरा है। गत माह आई.एस.आई. के लोगों ने कथित रूप से नार्वे में यूरोप, अमरीका, ब्रिटेन तथा कनाडा के सिखों की एक ‘सामुदायिक बैठक’ आयोजित की थी ताकि कश्मीर मुद्दे पर उनको भड़का सकें। संदेश था-तैयार, आओ चलें। मगर अमरीकी कानून निर्माताओं तथा उनके युवा स्टाफर्स के पास यह जानने का कोई रास्ता नहीं है कि कौन कॉल कर रहा है या उनके कार्यालय को प्रोटैस्ट ई-मेल भेज रहा है-एक वास्तविक कश्मीरी या पाकिस्तानी अमरीकी जो भारतीय कश्मीरी होने का स्वांग रच रहा है? ‘फ्रैंड्स ऑफ कश्मीर’ की खोज करने पर खुलासा हुआ कि इसके सभी पदाधिकारी कराची में बैठे पाकिस्तानी हैं। 

एक प्रयोग के तौर पर मैंने इन ‘ई-मेल जैनरेटर्स’ में से एक की जांच की। एक क्लिक में मुझे एक तैयार वक्तव्य प्राप्त हुआ, जो उस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाली कांग्रेस वूमैन को सम्बोधित था, जिसमें मैं रहती हूं। इसमें ‘कश्मीरी लोगों के जनसंहार के खतरे’ बारे चेतावनी और उस पर ध्यान देने की मांग की गई थी। जब मोदी ह्यूस्टन के लिए रवाना होने की तैयारी कर रहे हैं, ऐसी हजारों ई-मेल पैदा की जा रही हैं।-एस. सिरोही                          

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