लोकतंत्र में हिंसा क्यों

Edited By ,Updated: 09 Oct, 2021 05:25 AM

why violence in a democracy

लोकतंत्र में सत्तापक्ष हो या विपक्ष दोनों ओर से हिंसा वर्जित है। लोकतंत्र में सत्तापक्ष की ओर से चाहिए-संवेदनशीलता और विपक्ष की ओर से चाहिए-सजगता। संवेदनशीलता और सजगता के लिए चाहिए चिंतन। यू.पी. के लखीमपुर खीरी में दोनों पक्ष अदृश्य

लोकतंत्र में सत्तापक्ष हो या विपक्ष दोनों ओर से हिंसा वर्जित है। लोकतंत्र में सत्तापक्ष की ओर से चाहिए-संवेदनशीलता और विपक्ष की ओर से चाहिए-सजगता। संवेदनशीलता और सजगता के लिए चाहिए चिंतन। यू.पी. के लखीमपुर खीरी में दोनों पक्ष अदृश्य रहे। सत्तापक्ष को तो कभी भी अहं नहीं होना चाहिए और विपक्ष को कभी हिंसक नहीं। लोकतंत्र आपसी तालमेल से चलता है। मंजिल तो पक्ष-विपक्ष की रहनी चाहिए-जनकल्याण। 

लखीमपुर खीरी में तो दोनों ओर सत्ता की दौड़ लग रही है। मेरा कहना है सत्तापक्ष और विपक्ष में आपसी तालमेल बनता रहे तो लोकतंत्र आगे बढ़ता रहेगा अन्यथा देश डगमगाने लगेगा। लखीमपुर खीरी में जो हुआ और जो हो रहा है देश और लोकतंत्र के हित में नहीं। ऐसी घटनाओं पर गंभीर चिंतन सब पक्षों को करना चाहिए। हिंसा में नौ कीमती जानों का चले जाना शोचनीय है। हिंसा कैसे हुई, किसने की? यह जांच का विषय है परन्तु लोकतंत्र की मांग है कि ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति न हो। 

लोकतंत्र में सिंहासन यानी सत्ता जनसाधारण के हाथ होती है। लोकतंत्र में जन-साधारण ‘हीरो’ है। लोकतंत्र में जनता हित सर्वप्रिय है। सैन्य शासन और राजशाही में सत्ता तानाशाह के पास होती है। लोकतंत्र में जागरूक जनता राजनेताओं पर अंकुश रखती है। लोकतंत्र में ब्यूरोक्रेट्स से प्रश्र पूछने का जनता में साहस होता है। तानाशाही में सबको सिर झुका कर चलना पड़ता है। लोकतंत्र में लाखों गरीबों, अपंगों और बीमारों के लिए सहानुभूति होती है। तानाशाही में प्रश्र पूछने वालों का सिर कलम कर दिया जाता है। लोकतंत्र समाज का आचरण है। भारत में सदियों से गणराज्य था। निर्णय जनता और राजा मिलकर करते थे। तब राजा प्रजापालक होते थे। मुगलों और अंग्रेजों के आने से पहले दुनिया को लोकतंत्र तो भारत ने ही दिया इसलिए तो हमारे यहां गीत गाए जाते हैं कि रोम यूनान मिट गए जहां से कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी। 

एकता, समरसता और भाईचारे की एक लहर यूरोप में चल निकली। परन्तु इन्हीं लोकतंत्र अपनाने वाले देशों ने एशिया और अफ्रीका को बंदूकों के बल पर अपना गुलाम बना डाला। एशिया और अफ्रीका के लोगों को दूसरे दर्जे का नागरिक बना दिया। भारत ने तो मुगलों और अंग्रेजों की गुलामी झेली है। खुदा के लिए भारत में फिर से कोई बाहरी और आक्रमणकारी हमें पुन: पददलित न कर डाले। किसानी आंदोलन के नेता मेरी प्रार्थना तो सुन रहे होंगे? किसान हमारे देश का अन्नदाता है। सारा देश किसानों का ऋणी है। परन्तु किसानों की जिम्मेदारी है कि अपने इस आंदोलन को हिंसक न होने दें। सरकारों और विशेषकर केंद्र सरकार के प्रधानमंत्री नरेन्द्र भाई मोदी से अनुरोध है कि किसानी आंदोलन में निजी हस्तक्षेप करें। हिंसा लोकतंत्र में ये नहीं करती। सत्तापक्ष और किसान नेता अपने-अपने स्थान से दो कदम आगे आएं। इसमें हार-जीत किसी पक्ष की नहीं। 

देश अपना, सरकार अपनी, किसान अपना, दक्षिणपंथी, वामपंथी सब अपने तो हैं। फिर 26 जनवरी को लाल किले में हिंसा क्यों हो? फिर लखीमपुर खीरी लहूलुहान क्यों हो? विपक्ष भी विचार करे कि उनके लखीमपुर खीरी जाने से जो रूहें हिंसा का शिकार हुई हैं वह वापस तो नहीं आएंगी? जांच में दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। सारे पक्ष यह तो विचार कर लें कि कश्मीर घाटी में नित्य प्रति आतंकी क्या कर रहे हैं? नक्सली क्या कर रहे हैं? पाकिस्तान  और चीन जैसे हमारे पड़ोसी क्या गुल खिला रहे हैं? अफगानिस्तान के तालिबानों का भारत के विरुद्ध क्या कुछ करने का इरादा है? इन तमाम मसलों पर सत्तापक्ष भी और विपक्ष भी चिंतन तो कर लें? देश को बाहर और भीतर दोनों ओर से खतरा है। ऊपर से लखीमपुर खीरी जैसी दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं दोहराई जाएंगी तो देश का नुक्सान होगा। देश हिलने लगेगा। 

भारत में चुनाव और उस पर खर्च होने वाले धन की नाल काटनी होगी। सत्ता में बैठा यदि कोई नेता लाभ, लोभ और कपट करता है तो उस पर जनता का सुदर्शन चक्र चले। यह सुदर्शन चक्र जनता चुनावों में चलाए। पहले देश फिर हम। कभी भी जनता यह न सोचे कि हिंसा से समस्या का समाधान कराएंगे। लाठी-गोली, लिंचिंग या कारों से रौंदने से कभी समस्याएं हल होती हैं? उलटा देश और समाज का नुक्सान होता है। फिर हम तो बाबे नानक और महात्मा गांधी के देश से हैं। ‘नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाणे सरबत दा भला।’ ‘अहिंसा परमोधर्मा’ ‘सर्वे भवन्तु सुखिना:’ जैसे सिद्धांतों पर चलने वाले सत्ताधारी और विपक्ष क्या अपने बुजुर्गों के संदेश भूल गए? 

मेरे जैसे नाचीज दास की बात मानते हुए एक बार पुन: निवेदन करना चाहूंगा ‘हिंसा-हिंसा भड़काती है। हिंसा में चोर-उचक्के, आतंक फैलाने वाले फायदा उठा जाते हैं। बाहुबल, अन्याय को जन्म देता है। गरीब न्याय से वंचित हो जाता है। गरीब फिर एकजुट होकर ऐसा प्रहार करता है कि देश डगमगाने लगता है। भारत का प्रत्येक व्यक्ति इस पर विचार करे कि हमें सजग, सहनशील और अहिंसक रहना है। देश के लोकतंत्र को मजबूत करना है और सत्ता और विपक्ष को हिंसा का सहारा नहीं लेना है।-मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मंत्री, पंजाब)

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