विभाजनकारी भाषणों का खतरा, हमें नफरत क्यों पसंद

Edited By ,Updated: 08 Jun, 2022 04:09 AM

why we love hate the threat of divisive speeches

लोकतंत्र हितों का टकराव है और इस पर सिद्धांतों के टकराव का मुखौटा ओढ़ा दिया जाता है। यह बात स्पष्टत: दर्शाती है कि किस प्रकार हमारी राजनीतिक, धार्मिक असहिष्णुता रसातल की ओर बढ़ रही है तथा यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति

लोकतंत्र हितों का टकराव है और इस पर सिद्धांतों के टकराव का मुखौटा ओढ़ा दिया जाता है। यह बात स्पष्टत: दर्शाती है कि किस प्रकार हमारी राजनीतिक, धार्मिक असहिष्णुता रसातल की ओर बढ़ रही है तथा यह इस बात पर निर्भर करता है कि कोई व्यक्ति धर्मनिरपेक्ष-सांप्रदायिक सिक्के के किस पहलू की ओर है। एक बार पुन: नफरती भाषण सुर्खियों में हैं। 

नि:संदेह पैगंबर मोहम्मद के विरुद्ध अपशब्दपूर्ण भाषा, जो भाजपा के 2 प्रवक्ताओं ने पिछले सप्ताह टी.वी. और ट्विटर पर प्रयुक्त की, निंदनीय है, जिसके चलते कुवैत, कतर, सऊदी अरब और ईरान जैसे कई खाड़ी देशों ने न केवल इसकी निंदा की, अपितु सार्वजनिक माफी की मांग भी की। खाड़ी में भारतीय सामान के बहिष्कार के आह्वान के बीच भारतीय राजदूतों को बुलाया गया। कतर के अमीर ने उपराष्ट्रपति वेंकैंया नायडू के सम्मान में दिए जाने वाले दोपहर भोज को रद्द किया, हालांकि उन्होंने इसका कारण चिकित्सा समस्या बताई। 

भाजपा ने इस पर यह कहते हुए माफी मांगी कि वह सभी धर्मों का सम्मान और किसी भी धार्मिक व्यक्ति के अपमान की घोर निंदा करती है। पार्टी ने अपने एक प्रवक्ता को निलंबित किया और दूसरे प्रवक्ता को पार्टी से निष्कासित किया। इस मुद्दे पर मध्य-पूर्व में आक्रोश चल ही रहा था कि कानपुर में इसी मुद्दे को लेकर हिंसा भड़की जिसमें 17 लोग घायल हुए। इस संबंध में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने स्पष्टत: कहा था कि प्रत्येक मस्जिद में शिवलिंग ढूंढना आवश्यक नहीं, हालांकि उन्होंने यह भी कहा कि ज्ञानवापी मस्जिद, काशी विश्वनाथ मंदिर तथा मथुरा के बारे में हिंदुओं की अटूट श्रद्धा है। उन्होंने यह भी कहा कि इन मामलों का समाधान न्यायालयों को करना है और दोनों समुदायों को इन मुद्दों का समाधान सौहार्दपूर्ण ढंग से करना चाहिए। 

कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह हिन्दू बहुसंख्यकवाद, सांप्रदायिक राजनीति कर रही है और इसके लिए वह मुसलमानों को चुनावी दृष्टि से हाशिए पर लाना चाहती है। गो संरक्षण और लव जिहाद जैसे धार्मिक मुद्दों पर सांप्रदायिक हिंसा को संरक्षण देती है और भाजपा शासित राज्यों में धर्मान्तरण विरोधी कानून लाती है। भाजपा ने इसका प्रत्युत्तर कांग्रेस और अन्य विपक्षी दलों पर गिद्ध राजनीति करने का आरोप लगाते हुए दिया कि वे शवों पर राजनीति करते हैं तथा समाजिक सौहार्द बिगाडऩा चाहते हैं। भाजपा ने राजस्थान में करोली हिंसा पर गांधी परिवार की चुप्पी पर प्रश्न उठाया और कहा कि कांग्रेस दंगाइयों के विरुद्ध कार्रवाई करने में विफल रही। भाजपा ने कांग्रेस को एक मुस्लिम पार्टी तथा टुकड़े-टुकड़े गैंग का हिस्सा बताया, जो आतंकवादियों को संरक्षण देती तथा पाकिस्तान के एजैंडे पर काम करते हुए तुष्टीकरण की राजनीति करती है। 

किसको दोष दें? हमारे नेताओं को नफरती भाषण देने में महारत हासिल है और इसके माध्यम से वे वर्षों से समाज में जहर घोल रहे हैं। आज राजनीति संकीर्ण धु्रवीकरण, तुष्टीकरण और अपशब्दपूर्ण भड़काऊ भाषणों, नफरत फैलाने तक सीमित रह गई है। यह सांप्रदायिक मतभेदों को बढ़ा भी रही है जिसके चलते हिंदुओं को मुसलमानों के विरुद्ध खड़ा किया जा रहा है। उनका इरादा एक ही होता है कि अपने अबोध वोट बैंक को भावनात्मक रूप से भड़काए रखें ताकि उनके स्वार्थों की पूर्ति हो सके। 

इस क्रम में देश घोर सांप्रदायिकता की ओर बढ़ रहा है। इसके साथ ही धार्मिक त्यौहारों में भी आक्रामकता दिखाई देती है। इन त्यौहारों में लोग भड़काऊ नारे लगाते हैं, अन्य धर्मों के लोगों को गाली देतेे हैं, जिसके चलते अक्सर झड़पें, खून-खराबा होता है और घृणा फैलती है तथा ये सब त्यौहार समाप्त होने तक चलता रहता है। ये सब जानबूझकर धु्रवीकरण और हिंदुओं और मुस्लिमों के बीच में मतभेद पैदा करने के लिए किया जाता है। इससे एक विचारणीय प्रश्न उठता है कि घृणा फैलाने वालों को किस प्रकार नियंत्रित और निष्प्रभावी किया जाए? क्या हमारे राजनेताओं ने अपने कार्यों के परिणामों को समझा है? क्या इससे पंथ के आधार पर मतभेद और नहीं बढ़ेगा? यह भारत में बढ़ते धार्मिक मतभेद को कम करने में सहायक नहीं होगा और इस प्रकार ये राजनेता एक दानव को पैदा कर रहे हैं। इससे समाज में किसी का भला या इससे वास्तविक मुद्दों जैसे बढ़ती गरीबी, बेरोजगारी, स्वास्थ्य, लोगों के कल्याण आदि समस्याओं का समाधान नहीं हो रहा। 

एक वरिष्ठ नेता के शब्दों में, ‘‘टी.वी. और सोशल मीडिया द्वारा ऐसा गर्मागर्म माहौल बनाया जाता है जो मुद्दों को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं और बताते हैं कि देश में धार्मिक असहिष्णुता बढ़ रही है, किंतु देश में पिछले एक दशक में कोई बड़ी सांप्रदायिक ङ्क्षहसा नहीं हुई। वस्तुत: नफरती भाषण और नफरती अपराध मोदी सरकार के सत्ता में आने से पूर्व होते थे। लोगों को आपस में लडऩा बंद करना चाहिए। सभी आस्थाओं और धर्मों का सम्मान करना चाहिए। ऐसे शरारती तत्वों और सांप्रदायिक भावनाएं भड़काने वाले तत्वों पर कानून का शिकंजा कसा जाना चाहिए।’’ 

एक अन्य नेता के शब्दों में, ‘‘किसी मुस्लिम नेता या मौलवी ने घाटी में गैर-कश्मीरियों की हत्याओं या विभिन्न राज्यों में रामनवमी की शोभा यात्राओं पर पथराव के बाद भड़के दंगों की ङ्क्षनदा क्यों नहीं की?’’ सुलह की बातें राजनीतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण 20 प्रतिशत मुस्लिम वोटों को ध्यान में रख कर की जाती हैं। वे मौलवियों को प्रोत्साहित करते हैं, जैसा कि एक मौलवी ने पेशकश की थी कि जो मोदी के चेहरे पर कालिख लगाएगा उसे पुरस्कार दिया जाएगा या उन मौलानाओं को नजरंदाज करते हैं जो टी.वी., संगीत, फोटोग्राफी तथा काफिरों के साथ बातचीत पर प्रतिबंध लगाने की बात करते हैं। 

दूसरी ओर हिन्दुओं में भी ऐसे शरारती तत्व हैं जो कर्नाटक में मंदिरों के आसपास मुस्लिम दुकानदारों पर प्रतिबंध लगाने, स्कूल-कालेज जाने वाली लड़कियों के हिजाब पर प्रतिबंध लगाने और मुस्लिम जैसे दिखने वाले व्यक्ति की या बीफ खाने पर पीट-पीट कर हत्या करने जैसे कार्य करते हैं। स्वयंभू धार्मिक-राजनीतिक नेताओं और उनके समर्थकों ने धार्मिक राष्ट्रवाद को भड़काया है और ये एक समुदाय के लोगों को अछूत मानते हैं, जिससे अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों में भय और घृणा की भावना फैलती है, ऐसे लोगों को सबक सिखाया जाना चाहिए, अन्यथा इस देश में कौन सुरक्षित रहेगा? 

सबसे महत्वपूर्ण यह है कि उन लोगों को कोई स्थान नहीं दिया जाना चाहिए जो लोगों या समुदायों में घृणा पैदा करते हैं, चाहे वे हिन्दू कट्टरवादी हों या मुस्लिम अतिवादी। उन्हें इस बात को समझना होगा कि हिन्दू और मुसलमानों को एक-दूसरे के विरुद्ध खड़ा करके वे केवल अपने निहित स्वार्थों को पूरा कर रहे हैं। सांप्रदायिकता एक समुदाय की दूसरे समुदाय के प्रति घृणा और बदला लेने की भावना से पोषित होती है। यह संदेश स्पष्ट रूप से दिया जाना चाहिए कि किसी भी समुदाय, जाति या समूह का कोई भी नेता घृणा नहीं फैला सकता और यदि वह ऐसा करता है तो वह सुनवाई का अपना लोकतांत्रिक अधिकार खो देगा। सभ्य राजनीतिक और शासन व्यवस्था में ऐसी बातों के लिए कोई स्थान नहीं। यदि वे लोग भारत से प्रेम करते हैं तो अपने राजनीतिक लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए धर्म को औजार के रूप में प्रयोग नहीं कर सकते। 

निर्दोष लोगों को इसलिए नुक्सान नहीं पहुंचाया जाना चाहिए कि वे किसी विशेष धर्म के हैं। हमें घृणा की राजनीति को पूर्णत: अस्वीकार करना चाहिए। भारत एक बड़ा देश है, जहां पर सभी धर्मों के लोग शांतिपूर्वक एक साथ मिलकर एक सुदृढ़ देश का निर्माण कर सकते हैं। हमें सार्वजनिक संवादों और चर्चाओं का स्तर उठाना होगा। भारत उन नेताओं के बिना भी आगे बढ़ सकता है जो राजनीति को विकृत करते हैं और इस क्रम में लोकतंत्र को नष्ट करते हैं। समय आ गया है कि हमारे राजनेता धर्म को राजनीति से अलग करें। न तो भगवान राम और न ही अल्लाह उनके नाम पर खिलवाड़ करने वालों को माफ करेंगे। पाॢटयों और उनमें शरारती तत्वों को यह समझना होगा कि घाव युगों तक नहीं भरते।-पूनम आई. कौशिश
 

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