Edited By ,Updated: 27 Apr, 2021 03:56 AM
एक मई से भारत में कोरोना का टीका लगाने का पूरा अंदाज ही बदल जाएगा। 18 से 45 साल आयु वर्ग को भी टीका लगेगा। केंद्र का टीका, राज्यों का टीका, निजी अस्पतालों का टीका। उस पर सीरम इंस्टीच्यूट के टीके के दाम अलग, भारत बायोटैक
एक मई से भारत में कोरोना का टीका लगाने का पूरा अंदाज ही बदल जाएगा। 18 से 45 साल आयु वर्ग को भी टीका लगेगा। केंद्र का टीका, राज्यों का टीका, निजी अस्पतालों का टीका। उस पर सीरम इंस्टीच्यूट के टीके के दाम अलग, भारत बायोटैक के टीके के दाम अलग। कुल मिलाकर राज्य सरकारों पर आ जाएगी टीका खरीदने और उसका निजी क्षेत्र में बंटवारा करने की जिम्मेदारी। सवाल उठता है कि क्या इतने टीके बाजार में हैं जितने टीकों के तलबदार हैं? क्या 18 प्लस को टीका लगाने का काम एक मई से शुरू हो पाएगा? आखिर देश की 70 फीसदी आबादी को टीका लगने में कितने महीने लगेंगे?
अगर आप 18 से 45 साल आयु वर्ग में आते हैं तो एक मई से आप टीके के हकदार हो जाएंगे। हां, टीका आपको कब लग पाएगा यह कहना मुश्किल है। ऐसा लग रहा है कि इस आयु वर्ग को टीकों के लिए 15 दिन से 30 दिन तक इंतजार करना पड़ सकता है।
समय सीमा तय नहीं है लेकिन यह तय हो गया है कि आपको केंद्र सरकार टीका नहीं लगाएगी, राज्य सरकार के पास आपको जाना होगा जो हो सकता है कि आपको मुफ्त में टीका लगा दे (ज्यादातर राज्य मुफ्त टीका लगाने के लिए नैतिक रूप से मजबूर हैं) लेकिन राज्य सरकार को सीरम इंस्टीच्यूट का कोविशील्ड टीका 400 रुपए का और भारत बायोटैक का टीका 600 रुपए में खरीदना पड़ेगा। अगर आप निजी अस्पताल जाते हैं तो वहां कोविशील्ड के टीके के 600 रुपए और कोवैक्सीन के 1200 रुपए देने होंगे। इसमें आप कम से कम सौ रुपए का सर्विस चार्ज जोड़ दीजिए। अब टीकों की खरीद पर कुछ टैक्स भी देने पड़े तो टीकों के दाम और ज्यादा बढ़ जाएंगे।
सवाल उठता है कि एक ही देश में जब एमरजैंसी यूज के लिए टीकों को मंजूरी दी गई है और महामारी के एक्ट के तहत मंजूरी दी गई है तो फिर टीका लगाने वाली कम्पनी रेट तय करने के लिए क्यों आजाद छोड़ दी गई? दुनिया भर में सरकारें जब मुफ्त में टीका लगा रही हैं तो हमारे यहां पैसे क्यों देने पड़ रहे हैं?
सवाल उठता है कि जब भारत सरकार ने अपने बजट में 35 हजार करोड़ रुपए टीकों के लिए रखे थे तो फिर राज्यों से क्यों खरीदने को कहा जा रहा है? अगर एक टीके की कीमत 350 रुपए (खरीद, भंडारण पर खर्च, वितरण में खर्च आदि मिलाकर) मानें तो भी देश की सौ करोड़ आबादी को इन पैसों से टीका लगाया जा सकता है। सवाल उठता है कि कोरोना काल में 18 से 45 साल का आयु वर्ग ही नौकरी के लिए सामने आ रहा है, कारखाने चला रहा है, फैक्टरियों में काम कर रहा है और इस आयु वर्ग को ही कोरोना से संक्रमित होने का सबसे ज्यादा खतरा है तो फिर इस वर्ग को मुफ्त टीकों से क्यों वंचित किया जा रहा है?
इसमें कोई दो राय नहीं कि अगर भारत को कोरोना की दूसरी लहर की मार को कम करना है और संभावित तीसरी लहर से बचना है तो ज्यादा से ज्यादा लोगों को कम से कम समय में टीका लगाना जरूरी है। जानकारों का कहना है कि नई टीका नीति से टीका बनाने वाली कम्पनियों को मुनाफा होगा तो वे टीकों के उत्पादन में तेजी लाएंगी, टीकाकरण का काम प्रभावी तरीके से चलेगा, निजी अस्पताल और कार्पोरेट जगत की भागीदारी से वितरण अच्छी तरह से हो सकेगा, मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन और सामंजस्य बना रहेगा।
उधर इस नई नीति का विरोध करने वालों का कहना है कि ये राज्यों के साथ भेदभाव है, को-आप्रेटिव फैडरेलिज्म की भावना के खिलाफ है और बाजार मूल्य पर कोई सीमा नहीं लगाई है। कहा जा रहा है कि जब जीवन रक्षक दवाओं के दाम सरकार तय कर सकती है तो कोरोना से बचाव के सबसे बड़े हथियार यानी टीके का दाम सरकार क्यों तय नहीं कर सकती? इसके अलावा कहा जा रहा है कि 18 से 45 साल के आयु वर्ग में गरीबी की सीमा रेखा से नीचे रहने वालों को, राशनकार्ड धारकों को और भोजन के अधिकार के कानून के तहत आने वालों को तो मुफ्त में टीका लगाना ही चाहिए। यह काम केंद्र सरकार को करना चाहिए। हैरानी की बात है कि अभी तक केंद्र सरकार ने इस पर स्थिति साफ नहीं की है।
वैसे साफ तो अन्य बहुत-सी चीजें भी नहीं हैं। नई नीति के तहत टीका कम्पनी 50 फीसदी टीके केंद्र सरकार को देगी। बाकी का हिस्सा राज्य सरकारों और निजी अस्पतालों के लिए रखा जाएगा लेकिन यहां बंटवारा कैसे होगा यह साफ नहीं है। सबसे बड़ी बात है कि इस समय दो ही टीके बाजार में हैं और दोनों का रेट अलग-अलग है। अब ऐसे में स्वाभाविक है कि सभी राज्य कोविशील्ड का 400 रुपए वाला टीका ही खरीदना चाहेंगे। एक मई में चंद ही दिन बाकी हैं। इस बीच राज्य सरकारों को टीका कम्पनियों के साथ बैठकर कीमत पर मोलभाव करना है, उसके आधार पर फिर आर्डर प्लेस करना है, नए टीकाकरण केंद्र बनाने हैं, वहां के लिए स्टाफ रखना है, उस स्टाफ को रिकार्ड रखने की ट्रेनिंग देनी है, अतिरिक्त भंडारण और वितरण से जुड़ी व्यवस्था करनी है, चूंकि कोविन सिस्टम पर 18 प्लस का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य कर दिया गया लिहाजा इसकी भी माकूल व्यवस्था करनी है।
अगर कोई राज्य खुद के लिए व साथ-साथ निजी अस्पतालों के लिए भी टीके खरीदता है तो उसे हिसाब-किताब रखना है कि किस अस्पताल या संस्थान के लिए कितने टीके खरीदे, किस रेट पर खरीदे, वह संस्थान लोगों से टीका लगाने के कितने पैसे अतिरिक्त रूप से ले रहा है आदि-आदि। सारी जानकारी कोविन एप में डालना भी जरूरी होगा।-विजय विद्रोही