क्या बाजवा व इमरान पुरानी पाकिस्तानी मानसिकता छोड़ेंगे

Edited By ,Updated: 26 Mar, 2021 04:16 AM

will bajwa and imran give up the old pakistani mentality

जब भारत की बात आती है तो पाकिस्तानी सेना प्रमुखों द्वारा मेल-मिलाप की बातें स्वाभाविक नहीं हैं। उनका अस्तित्व हमारे देश के खिलाफ कड़ा रवैया अपनाने पर निर्भर होता है। पाकिस्तानी सैन्य तानाशाहों द्वारा समय-समय पर नरमी दिखाने

जब भारत की बात आती है तो पाकिस्तानी सेना प्रमुखों द्वारा मेल-मिलाप की बातें स्वाभाविक नहीं हैं। उनका अस्तित्व हमारे देश के खिलाफ कड़ा रवैया अपनाने पर निर्भर होता है। पाकिस्तानी सैन्य तानाशाहों द्वारा समय-समय पर नरमी दिखाने को एक रणनीतिक कदम के तौर पर देखा जाता है। इस संदर्भ में जनरल कमर जावेद बाजवा द्वारा अन्यथा अपने कड़े रवैये में बदलाव का संकेत देना अधिकांश भारतीयों के लिए हैरानीजनक है। 

इस्लामाबाद सिक्योरिटी डायलॉग नामक एक कार्यक्रम में इस्लामाबाद में उनके भाषण में भारत तथा पाकिस्तान के साथ-साथ दक्षिण एशिया की बेहतरी के लिए एक क्षेत्रीय आर्थिक एकीकरण का विचार दिया गया है। उन्होंने विशेष तौर पर नई दिल्ली को दोनों देशों के बीच शांतिपूर्ण वार्ता बहाल करने के लिए कश्मीर में एक ‘अनुकूल माहौल’ बनाने को कहा। हालांकि उन्होंने कश्मीर में ‘अनुकूल माहौल’ की प्रकृति बारे नहीं बताया।  हम अच्छी तरह जानते हैं कि जनरल जिया-उल-हक द्वारा शुरू किया गया ‘छद्म युद्ध’ ही मुख्य रूप से कश्मीर तथा अन्य मामलों में दोनों देशों के बीच तनाव के लिए जिम्मेदार है। 

पाकिस्तान के तालिबानीकरण ने पहले ही भारत तथा पाकिस्तान के बीच पुराने समीकरणों को अव्यवस्थित कर दिया है। इसके साथ ही आधिकारिक तौर पर धार्मिक आतंकवाद को गले लगाना एक ऐसे समय पर सामने आया है जब ऐसे रवैये के खिलाफ असंतोष बढ़ता जा रहा है, यहां तक कि पश्चिम में भी। पाकिस्तानी सेना को आतंकवादियों को धन तथा प्रशिक्षण उपलब्ध करवाने के अतिरिक्त उन्हें कश्मीर में दाखिल करवाने के लिए ‘कवरिंग फायर’ देने के लिए जाना जाता है। मैंने हमेशा कहा है कि पाक प्रायोजित सीमा पार आतंकवाद सबसे बड़ा मुद्दा है न कि कश्मीर, जिसने उपमहाद्वीप में शांति के लिए ‘अनुकूल माहौल’ नहीं बनने दिया। 

दरअसल आतंकवाद को अलग-थलग करके नहीं देखा जा सकता। इसे भारत की एक लोकतांत्रिक नीति के अस्तित्व के लिए एक प्रमुख खतरे के रूप में देखा जाना चाहिए। जनरल बाजवा ने साथ ही यह स्पष्ट किया कि शांतिपूर्ण माध्यमों से कश्मीर मसले का हल किए बिना ‘उपमहाद्वीपीय अतिक्रमण’ हमेशा ही ‘पटरी से उतारने के लिए अत्यंत संवेदनशील’ बना रहेगा इसलिए वह महसूस करते हैं कि यह समय ‘अतीत को दफन करके आगे बढऩे’ का है। 

महत्वपूर्ण प्रश्र यह है कि पाकिस्तान के सैन्य अधिष्ठान के व्यवहार में यह बदलाव क्यों? इस प्रश्र का एक साधारण उत्तर है पाकिस्तान का गंभीर आॢथक तथा वित्तीय संकट। यहां तक कि इसे एफ.ए.टी.एफ. द्वारा ब्लैकलिस्ट किए जाने के खतरे का भी सामना करना पड़ रहा है। इसके अतिरिक्त इस्लामाबाद को अपने देश के विभिन्न हिस्सों में कई घरेलू मुद्दों का सामना करना पड़ रहा है जिन्हें नियंत्रित करना पाकिस्तानी सेना के लिए भी मुश्किल हो रहा है। पश्चिमी एशिया में भू-राजनीतिक बदलाव, यहां तक कि मित्र देशों द्वारा उनके ऋणों को लौटाने की शर्मनाक मांगों के चलते पाकिस्तान विश्व को संकेत दे रहा है कि यह अपने राष्ट्रीय सुरक्षा माडल पर पुर्नविचार कर रहा है। 

पाकिस्तान के संघ प्रशासितजन-जातीय क्षेत्र तथा उत्तर-पश्चिमी फ्रंटियर प्रांत भी अफगानिस्तान की जीवन रेखा कहलाते रणनीतिक खैबर दर्रे के लिए खतरा पैदा कर रहे हैं। निश्चित तौर पर भ्रष्टाचार, कु-प्रबंधन तथा प्राथमिकताओं पर ध्यान न देने के कारण पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था जर्जर हो चुकी है। केवल एक चीज जिसने कुछ हद तक पाकिस्तान को आर्थिक तौर पर बचाए रखा है वे हैं घरेलू तथा विदेशी स्रोतों से ली गई उधारियां। इसका कुल विदेशी ऋण आश्चर्यजनक रूप से 111 अरब डालर है। 

ऐसी कड़ी आर्थिक सच्चाइयों तथा इस्लामिक आतंकवाद से उत्पन्न घरेलू संकटों के बीच भारत के प्रति जनरल बाजवा के बदले रवैये को समझा जा सकता है। हालांकि यदि पाकिस्तानी जनरल का अर्थ व्यापार से है तो उन्हें भारत के प्रति सभी नीतियों तथा रणनीतिक ढांचे का पुनर्निर्माण करना होगा, कश्मीर को मद्देनजर रखते हुए। शांति प्रक्रिया के लिए कोई आधा-अधूरा तरीका नहीं चलेगा। 

सच है कि पाकिस्तानी सैन्य शासक आमतौर पर भारतीय संवेदनाओं तथा जरूरत पडऩे पर इसके पलटवार की क्षमता को पहचानने में असफल रहे हैं। सशस्त्र झड़पों के दौरान पाकिस्तान को हमेशा एक भारी कीमत चुकानी पड़ी है। यह एक ऐतिहासिक तथ्य है। यहां तक कि इस बार चीन फैक्टर भी पाकिस्तान के लिए अधिक अंतर नहीं पैदा करने वाला। इसलिए प्रश्र यह है कि अपने शांति प्रयास के बारे में जनरल बाजवा कितने गंभीर हैं? हम इसे लेकर सुनिश्चित नहीं हो सकते जब तक कि पाकिस्तान जम्मू-कश्मीर तथा अन्य स्थानों पर आतंक संबंधी छद्मयुद्ध नहीं छोड़ देता। 

इस्लामाबाद के लिए यह याद रखना लाभदायक हो सकता है कि आतंकवाद को कुचलने के लिए विश्व पहले के मुकाबले कहीं अधिक दृढ़ संकल्प है। आतंकवाद के बढ़ते खतरे को देखते हुए इस्लामिक जगत भी अब आराम से बैठे रहने की स्थिति में नहीं है। इन कड़े तथ्यों को पाकिस्तानी नीति निर्माताओं तथा रणनीतिकारों को भारत तथा बाकी दुनिया के साथ इसके संबंधों बारे एक नई रूप-रेखा पर काम करने के लिए प्रेरित करना चाहिए। इस रोशनी में इसे आवश्यक तौर पर कश्मीर तथा अन्य स्थानों पर सशस्त्र घुसपैठिए भेजना बंद करना चाहिए। 

क्या जनरल बाजवा तथा पाकिस्तानी प्रधानमंत्री इमरान खान पाकिस्तान की पुरानी मानसिकता से बाहर आएंगे? जब तक यह प्रभावपूर्ण तरीके से नहीं दिखाया जाता, भारत जनरल बाजवा के शांति के लिए प्रस्तावित मार्ग को लेकर सुनिश्चित नहीं हो सकता। जो भी हो, लगता है प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सही शांतिपूर्ण दिशा में भारत-पाक संबंधों के विकास हेतु खुला मन रखते हैं। हालांकि मैं आशान्वित रहने को अधिमान दूंगा। वर्तमान में नई दिल्ली के लिए सर्वश्रेष्ठ विकल्प ‘इंतजार करो और देखो’ का होना चाहिए, जब तक कि जनरल बाजवा आतंकवाद को दबाने के लिए अपना अगला ठोस कदम नहीं दर्शाते।-हरि जयसिंह
 

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!