क्या हमारे नेता वोट बैंक की राजनीति से परे सोचेंगे

Edited By ,Updated: 07 May, 2019 12:47 AM

will our leaders think beyond the politics of vote bank

लोकतंत्र हितों का टकराव है और इस पर तीखे, धुआंधार चुनावी मौसम में सिद्धांतों की प्रतिस्पर्धा का आवरण चढ़ा दिया गया है। यह हमारे नेताओं के झूठ का पर्दाफाश करता है। वे एक-दूसरे के विरुद्ध आरोप-प्रत्यारोप, धमकी और विष वमन कर रहे हैं और चुनाव के लिए...

लोकतंत्र हितों का टकराव है और इस पर तीखे, धुआंधार चुनावी मौसम में सिद्धांतों की प्रतिस्पर्धा का आवरण चढ़ा दिया गया है। यह हमारे नेताओं के झूठ का पर्दाफाश करता है। वे एक-दूसरे के विरुद्ध आरोप-प्रत्यारोप, धमकी और विष वमन कर रहे हैं और चुनाव के लिए जरूरी है कि जाति और सम्प्रदाय का सही मिश्रण बना दिया जाए और यह इस बात पर निर्भर करता है कि हिन्दू, मुस्लिम सिक्के के किस पहलू के साथ आते हैं। चुनावों में पैसों की खनखनाहट सुनाई दे रही है, सीटियां बजाई जा रही हैं। हमारे उम्मीदवारों द्वारा सार्वजनिक रूप से जिन अपशब्दों का प्रयोग किया जा रहा है उससे स्पष्ट है कि राजनीतिक चर्चा भावनाएं भड़काने वाली बन गई हैं। उनमें कोई सार नहीं है तथा वे घृणा फैला रहे हैं और साम्प्रदायिक मतभेद बढ़ा रहे हैं और ये सब कुछ वोट प्राप्त करने के लिए किया जा रहा है।

अली-बजरंग बली
इस क्रम में पहले स्थान पर उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी हैं जिन्होंने हिन्दू-मुस्लिम मतदाताओं को अली-बजरंग बली में बदल दिया और सपा के प्रत्याशी को बाबर की औलाद तक कह दिया तो बसपा की मायावती भी कहां पीछे रहने वाली थीं। उन्होंने कहा मैं अपने मुस्लिम भाइयों से अपील करती हूं कि अपना वोट हमें दें, अली भी हमारा है और बजरंग बली भी हमारा है। इस क्रम में प्रधानमंत्री भी आगे आए और उन्होंने कहा कि राहुल गांधी बहुसंख्यक जनसंख्या वाले निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लडऩे से डर गए हैं और अब ऐसे निर्वाचन क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं जहां बहुसंख्यक अल्पसंख्यक हैं और हिन्दू कांग्रेस को हिन्दू आतंकवाद शब्द गढऩे के लिए सबक सिखाएंगे।

यही नहीं, भाजपा अध्यक्ष अमित शाह ने कहा कि राहुल की वायनाड रैली भारत में थी या पाकिस्तान में क्योंकि इस रैली में इंडियन मुस्लिम लीग के हरे झंडे लहरा रहे थे। उसके बाद उन्होंने ट्वीट किया- हम बौद्ध, हिन्दू और सिख छोड़कर प्रत्येक घुसपैठिए को बाहर खदेडेंग़े। इस क्रम में केन्द्रीय मंत्री मेनका गांधी ने कहा यदि मुसलमान हमें वोट नहीं देंगे तो वह उनका काम नहीं करेंगी। उन्होंने कहा मैं चुनाव जीत रही हूं किंतु यदि मैं चुनाव मुसलमानों की सहायता के बिना जीतती हूं तो तब यदि मुसलमान मेरे पास काम के लिए आते हैं तो फिर मुझे सोचना पड़ेगा।

मतदाताओं का काम भी व्यापार बना
आज मतदाताओं का काम भी व्यापार बन गया है। आज के नेता महात्मा गांधी की तरह नहीं हैं कि आप मतदाताओं को देते रहें और वे आपको हराते रहें। ‘आप’ के केजरीवाल ने कहा भाजपा अल्पसंख्यकों को घुसपैठिया मानती है। गौहत्या और गायों की चोरी के नाम पर भीड़ द्वारा हत्याएं की जा रही हैं जो वास्तव में संगठित हत्याएं हैं। इस क्रम में तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव ने कहा ये स्वयंभू हिन्दू बेकार हैं। वे देश में आग भड़काना चाहते हैं और वे नाली के कीड़े हैं। पंजाब के मंत्री सिद्धू एक कदम आगे बढ़े और उन्होंने मुसलमानों से वोट मांगे। इसी तरह जम्मू-कश्मीर के नेताओं ने भी एक विशेष धर्म के लोगों को अपनी पार्टी को वोट देने के लिए कहा तो सपा नेता आजम खान ने भाजपा प्रत्याशी जयाप्रदा पर घोर ङ्क्षनदनीय टिप्पणी की कि वह खाकी कच्छी पहनती हैं।

क्या इन टिप्पणियों से आप आहत नहीं होते हैं? क्या ये टिप्पणियां बढ़त प्राप्त करने के लिए हैं? टिप्पणियां जितनी घृणास्पद हों उतना बेहतर और ऐसा करके हमारे नेताओं ने निर्वाचन आयोग की आदर्श आचार संहिता के उस खंड को निरर्थक बना दिया जिसमें कहा गया है कि मत प्राप्त करने के लिए जाति और सांप्रदायिक आधार पर अपील नहीं की जाएगी। मंदिर, मस्जिद, गिरजाघर और अन्य धार्मिक स्थलों का उपयोग चुनाव प्रचार के लिए नहीं किया जाएगा। किंतु हमारे नेता अपने प्रतिद्वंद्वियों से भारत के भविष्य के बारे में उनके दृष्टिकोण और योजनाओं के बारे में पूछने कीबजाय चुनावी कार्य साधकता में लग जाते हैं। 
कोई इस बात पर ध्यान नहीं देता है कि चुनावी चर्चा इतनी जहरीली क्यों बन गई है। ऐसे अपशब्दों का प्रयोग क्यों किया जा रहा है जिनसे धार्मिक मतभेद बढ़ रहे हैं और क्या इसको आवेश में कहे गए शब्द मानकर माफ किया जाए? या यह माना जाए कि युद्ध और प्रेम में सब जायज होता है। इसके लिए दोषी हमारी राजनीतिक पार्टियां हैं। ये पाॢटयां प्रतिद्वंद्वियों की चुनाव आयोग से तुरंत शिकायत कर देती हैं किंतु स्वयं पालन नहीं करती हैं और निर्वाचन आयोग भी चेतावनी देने तथा चुनाव प्रचार पर दो दिन की रोक लगाने के अलावा कुछ नहीं कर सकता है।

राजनीति का खतरनाक खेल
आज हमारे नेताओं ने हमारे समाज में जहर फैलाने के लिए अपशब्दों का प्रयोग करने की कला में महारत हासिल कर ली है। यह वोट बैंक की राजनीति का खतरनाक खेल है जिसमें हिन्दुओं को मुसलमानों के विरुद्ध खड़ा किया जा रहा है और ऐसी विभाजनकारी प्रवृत्तियां पैदा की जा रही हैं जिनसे सांप्रदायिक मतभेद बढ़ रहे हैं। कांग्रेस ने भाजपा पर आरोप लगाया कि वह भारत में मुसलमानों को चुनावी दृष्टि से हाशिए पर रखकर हिन्दू बहुसंख्यक की सांप्रदायिकता फैला रही है तथा गौ संरक्षण और लव जेहाद जैसे भावनात्मक मुद्दों पर सांप्रदायिक हिंसा को संरक्षण दे रही है तो हिन्दुत्व ब्रिगेड अपने प्रतिद्वंद्वियों को मुस्लिम पार्टी, टुकड़े-टुकड़े गैंग और पाकिस्तान के एजैंडे पर काम करने वाली बता रहा है।

कुल मिलाकर घोर सांप्रदायिकता देखने को मिल रही है, जिसमें हमारे नेताओं ने राष्ट्रवाद और हिन्दू-मुस्लिम वोट बैंक को राजनीति का मुख्य आधार बना दिया है। आज हर नेता सांप्रदायिक सौहार्द की अपनी थाली परोस रहा है। अपने अबोध मतदाताओं को भावनात्मक रूप से भड़का रहा है ताकि अपनी पार्टी का हित साध सके किंतु इसमें नुक्सान देश का ही है। प्रश्न उठता है कि इन घृणा फैलाने वालों पर किस तरह नियंत्रण किया जाए। क्या हमारे राजनेताओं को उनके इन कार्यों के प्रभावों के बारे में पता है? क्या इससे सांप्रदायिक आधार पर मतभेद और नहीं बढेंग़े व इस तरह एक नया राक्षस पैदा नहीं किया जा रहा है?

किंतु प्रतिस्पर्धी लोकतंत्र के माहौल में यदि जातीय और सांप्रदायिक राजनीति से चुनावी लाभ मिलता है, धर्म पर आधारित राजनीति से घृणास्पद भाषणों से मतदाताओं का धुव्रीकरण होता है तो फिर कौन इसकी परवाह करता है? कोई इस बारे में नहीं सोचता कि यह विनाशकारी है और इससे सांप्रदायिक ङ्क्षहसा के बीज बोए जाते हैं। लोकतंत्र में उन लोगों को कोई स्थान नहीं दिया जाना चाहिए जो लोगों और समुदायों में घृणा फैलाते हैं। चाहे वे हिन्दू मसीहा हों या मुस्लिम मुल्ला,  दोनों ही राज्य तंत्र को नष्ट कर रहे हैं जिनकी कोई धार्मिक पहचान नहीं होती है।

हमारा नैतिक गुस्सा भी चयनात्मक नहीं होना चाहिए। यह न्यायप्रिय, सम्मानजनक और समान होना चाहिए। 130 करोड़ लोगों के देश में इतने ही विचार भी होंगे और आप किसी के राजनीतिक विचारों और अधिकारों पर अंकुश नहीं लगा सकते हैं। आप किसी दूसरे के विचार स्वीकार न करने के लिए स्वतंत्र हैं। आपको जो टिप्पणी आपत्तिजनक लग रही हो, हो सकता है दूसरे को वह सामान्य लगे। किंतु किसी को भी घृणा फैलाने, समुदायों में दुर्भावना पैदा करने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए।

इस गंदे राजनीतिक वातावरण में हमारा चुनाव प्रचार अभियान सांप्रदायिक बनता जा रहा है, खतरनाक विचारों को व्यक्त किया जा रहा है, सांप्रदायिक भाषा का प्रयोग किया जा रहा है। अत: समय आ गया है कि हर कीमत पर सत्ता की चाह रखने वाले हमारे नेता वोट बैंक की राजनीति से परे सोचें और अपने ऐसे बयानों के खतरनाक प्रभावों के बारे में विचार करें जिनसे समाज में जहर घुलता है। आज हमारे देश के समक्ष अस्तित्व का संकट है। आज बहुलवादी समावेशी भारत सांप्रदायिक विभाजनकारी चुनाव प्रचार का सामना कर रहा है। संसद में हमारे नए प्रतिनिधियों को आक्रामक और विभाजनकारी भाषा को बिल्कुल नहीं सहना चाहिए और स्पष्ट संदेश देना चाहिए कि किसी भी समुदाय या समूह का नेता घृणा नहीं फैला सकता है और यदि वे ऐसा करते हैं तो वे सुनवाई के अपने लोकतांत्रिक अधिकार को खो देंगे।

हमारे नेताओं को समझना होगा कि एक राष्ट्र मूलत: मन और दिलों का मिलन है और उसके बाद एक भौगोलिक इकाई। भारत इतना बड़ा देश है कि उसमें सभी लोग शांति और सद्भाव से रह सकते हैं। उद्देश्य सार्वजनिक चर्चा का स्तर उठाने का होना चाहिए न कि उसे गिराने का। भारत ऐसे नेताओं के बिना भी काम चला सकता है जो राजनीति को विकृत करते हैं और उसके बाद लोकतंत्र को नष्ट करते हैं। उन्हें चुनावी लाभ के लिए जाति और पंथ का उपयोग नहीं करना चाहिए। क्या वे इस पर ध्यान देंगे? 
पूनम आई. कौशिश pk@infapublications.com

Trending Topics

IPL
Chennai Super Kings

176/4

18.4

Royal Challengers Bangalore

173/6

20.0

Chennai Super Kings win by 6 wickets

RR 9.57
img title
img title

Be on the top of everything happening around the world.

Try Premium Service.

Subscribe Now!