क्या चीन और उसकी परियोजनाओं के लिए पाकिस्तान वाटरलू साबित होगा

Edited By ,Updated: 31 Jul, 2021 06:04 AM

will pakistan prove to be waterloo for china and its projects

चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सी.पी.ई.सी.) में लगे अपने कर्मचारियों को ए.के.-47 बंदूकों से लैस करना और देश भर में फैले अपने लोगों और हितों की रक्षा के लिए अपने सैनिकों

चीन ने चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे (सी.पी.ई.सी.) में लगे अपने कर्मचारियों को ए.के.-47 बंदूकों से लैस करना और देश भर में फैले अपने लोगों और हितों की रक्षा के लिए अपने सैनिकों को पाकिस्तान भेजने पर भी विचार करना शुरू कर दिया है। चीन को पाकिस्तान आर्मी की स्पैशल सिक्योरिटी डिवीजन (एस.एस.डी.) की क्षमता पर कोई भरोसा नहीं है, जिस पर पेइचिंग ने प्रशिक्षण और चीनी नागरिकों तथा बहु-अरब डॉलर की सी.पी.ई.सी. परियोजना से जुड़ी संपत्तियों की रक्षा के लिए भारी मात्रा में धन का निवेश किया है। 

चीन ने खैबर प तून वा प्रांत के ऊपरी कोहिस्तान इलाके में दसू जलविद्युत परियोजना का काम भी रोक दिया है। 14 जुलाई को हुए विस्फोट में 9 चीनी इंजीनियरों की मौत से नाराज चीन ने सी.पी.ई.सी. परियोजना के लिए एक उच्च स्तरीय संयुक्त सहयोग समिति की बैठक रद्द कर दी, जो 16 जुलाई को होनी थी। हालांकि अभी तक किसी भी आतंकवादी संगठन ने विस्फोट की जि मेदारी नहीं ली है, इस तथ्य को देखते हुए कि खैबर प तून वा प्रतिबंधित तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टी.टी.पी.) संगठन का गढ़ रहा है, संदेह है कि विस्फोट के पीछे यह आतंकवादी संगठन हो सकता है। चीनी हितों पर पहले के हमलों की टी.टी.पी. के पास जि मेदारी थी। अप्रैल में दक्षिण-पश्चिम बलूचिस्तान में लग्जरी होटल पर हुए आत्मघाती हमले के पीछे इसका हाथ था। 

यह हमला पाकिस्तान में चीनी राजदूत नोंग रोंग को लक्ष्य बना कर किया गया था। चीनी राजदूत, हालांकि, टी.टी.पी. द्वारा किए गए आत्मघाती बम विस्फोट से चमत्कारिक रूप से बच गए। आतंकवादी संगठन ने तुरंत उस घटना की जि मेदारी ली, जिसमें 5 लोग मारे गए और 12 अन्य घायल हो गए। रिकॉर्ड बताते हैं कि पिछले 6 वर्षों में, विशेष रूप से सी.पी.ई.सी. परियोजनाओं के सिलसिले में चीनी सैनिकों के पाकिस्तान में उतरने के बाद, विभिन्न चरमपंथी समूहों ने देश में अपने हमलों का लक्ष्य चीनी हितों को बनाया है।

6 मई, 2016 को सिंध प्रांत के सक्कर शहर में इसके उद्घाटन समारोह में सी.पी.ई.सी. पर पाकिस्तान और चीन के सत्तारूढ़ कुलीनों की उत्साहजनक  आवाजें फैलने से पहले ही, मई 2016 में कराची में चीनी इंजीनियरों पर सिंधी अलगाववादियों ने हमला किया था। फिर सित बर 2016 में बलूच विद्रोहियों द्वारा किए गए हमले में 2 चीनी इंजीनियरों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए। 

2017 में ‘मजीद ब्रिगेड’ नामक  संगठन ने ग्वादर में एक पांच सितारा होटल पर हमला किया, जब चीनी प्रतिनिधिमंडल एक बंदरगाह परियोजना की योजना में व्यस्त था। उस हमले में 8 लोगों की मौत हो गई थी। उसी वर्ष, ट्विटर और अन्य सोशल मीडिया पर एक वीडियो सामने आया जिसमें ‘मजीद ब्रिगेड’ के एक कथित सदस्य को चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग को ‘बलूचिस्तान से बाहर निकलने’ की चेतावनी देते हुए सुना गया कि ‘राष्ट्रपति जिनपिंग, तु हारे पास अभी भी बलूचिस्तान से बाहर निकलने का समय है या आप बलूच बेटों और बेटियों का प्रतिशोध देखोगे, जिसे तुम कभी भूल नहीं पाओगे।’ 

नवंबर 2018 में जब बलूच लिबरेशन आर्मी ने चीनी वाणिज्य दूतावास पर हमला किया तो 4 लोग मारे गए थे। अगस्त 2018 में, पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में स्थित एक शहर दलबंदिन में चीनी इंजीनियरों को ले जा रही एक बस पर आत्मघाती हमला किया गया था। ये घटनाएं सी.पी.ई.सी. परियोजनाओं के कारण चीन के खिलाफ गहरी नफरत को दर्शाती हैं। वास्तव में, इन परियोजनाओं को जिस तरह के विरोध का सामना करना पड़ रहा है, वह यह नहीं दर्शाता है कि उन्हें पाकिस्तान में अच्छे मन से लिया गया है। 

7 जुलाई, 2020 को पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के मुजफ्फराबाद शहर को चीन और पाकिस्तान विरोधी जोरदार विरोध प्रदर्शनों से झटका लगा। नीलम और झेलम नदियों पर दो मैगा-बांधों के अवैध निर्माण के लिए पाकिस्तान और चीन के विरोध में हजारों लोगों ने रैली निकाली। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान और चीन नदियों पर कब्जा कर संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का उल्लंघन कर रहे हैं। 

अपने साथी चीनी हमवतन की तुलना में पाकिस्तानी श्रमिकों के वेतन में असमानता ने भी चीन विरोधी भावनाओं को हवा दी है। 18 नव बर, 2020 को, हजारों पाकिस्तानी मजदूरों ने कराची में चीन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, जिसमें सी.पी.ई.सी. परियोजनाओं में शामिल चीनी श्रमिकों की तुलना में उनकी असमान मजदूरी की शिकायत की गई थी। इस साल 16 जनवरी को, शिनजियांग क्षेत्र के यारकंद से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर तक अपने तोपखाने और सैन्य कर्मियों को स्थानांतरित करने के लिए 33 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने के चीनी कदम के खिलाफ पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर में बड़े पैमाने पर विरोध और ङ्क्षहसा भड़क उठी। 

पाकिस्तान में शायद ही कोई ऐसा क्षेत्र हो, जहां चीन के नेतृत्व वाली परियोजनाओं की मौजूदगी से देश के नागरिकों में द्वेष पैदा नहीं हो रहा हो। एक मजबूत भावना है कि शिनजियांग क्षेत्र से बलूचिस्तान में ग्वादर बंदरगाह तक चल रहे सी.पी.ई.सी. सहित विभिन्न परियोजनाओं के माध्यम से बड़े पैमाने पर चीनी निवेश, पाकिस्तान को चीनी उपनिवेश में परिवर्तित करने के किसी भी गुप्त या प्रमुख उद्देश्य के बिना नहीं हो सकता।

अफगानिस्तान में आतंकवादी समूहों के बीच संबंध बनाए रखने और इस्लामी कट्टरवाद की शपथ लेने की रिपोर्टों के बीच, चीन पूरे दक्षिण एशियाई क्षेत्र में अपने हितों की सुरक्षा को लेकर  डरा हुआ है। इस दौरान यदि चीन पाकिस्तान में अपने लोगों और हितों की रक्षा के लिए अपनी सेना भेजता है,यह बर्रों के छत्तेे को छेडऩे जैसा होगा क्योंकि चीन के खिलाफ पाकिस्तानी नागरिकों का गुस्सा दक्षिण एशियाई देश की गलियों, सड़कों पर फैल जाएगा। कुल मिलाकर पाकिस्तान में चीन का विश्वास लगभग चकनाचूर हो गया है। लेकिन बड़ा सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान या दक्षिण एशिया चीन और उसकी महत्वाकांक्षी बी.आर.आई. पहल के लिए वाटरलू साबित होगा?

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