क्या प्रियंका का उत्तर प्रदेश में अभियान सफल हो पाएगा

Edited By ,Updated: 18 Oct, 2021 03:20 AM

will priyanka s campaign in uttar pradesh be successful

लखीमपुर खीरी में दुखद घटना के बाद जब से प्रियंका गांधी वाड्रा जोरदार प्रचार के बीच प्रदर्शनकारी किसानों से मिलने पहुंचीं, उनके वफादारों को लगता है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश में एक जोरदार तरीके से वापसी कर ली है। इसे कहते हैं कांग्रेस के सबसे

लखीमपुर खीरी में दुखद घटना के बाद जब से प्रियंका गांधी वाड्रा जोरदार प्रचार के बीच प्रदर्शनकारी किसानों से मिलने पहुंचीं, उनके वफादारों को लगता है कि उन्होंने उत्तर प्रदेश में एक जोरदार तरीके से वापसी कर ली है। इसे कहते हैं कांग्रेस के सबसे बड़े राज्य में पुनर्जन्म का भ्रम, जहां पांच महीनों बाद नई विधानसभा चुनने के लिए चुनाव होने वाले हैं। 

आपको यह जानने के लिए प्रशांत किशोर की तरह ऊंची कीमत पाने वाले एक व्यावसायिक चुनावी रणनीतिज्ञ होने की जरूरत नहीं है कि उत्तर प्रदेश में सुश्री वाड्रा का हाई-प्रोफाइल दखल वोटों में परिवर्तित होने वाला नहीं। हालांकि प्रियंका ने वाराणसी में एक बहुत बड़ी जनसभा को संबोधित किया। पार्टी के विश्वासपात्रों ने हर तरह की कोशिश करके प्रधानमंत्री के संसदीय निर्वाचन क्षेत्र में अच्छी भीड़ जुटा ली। यह देखते हुए कि वाराणसी में कोविड-19 की दूसरी लहर का हमला काफी तीव्र था और स्वास्थ्य ढांचा चरमरा गया था, यह स्वाभाविक था कि लोगों का एक वर्ग लखनऊ में भाजपा सरकार से खुश नहीं था। 

यद्यपि प्रियंका वाड्रा की वाराणसी रैली पर इतना अधिक ध्यान नहीं दिया गया जितना कि उसके बारे में बढ़ा-चढ़ा कर कहा गया। गांधी परिवार के विश्वासपात्र कई वर्षों से उनमें इंदिरा गांधी की छवि देख रहे हैं, प्रियंका गांधी ने वाराणसी में अपने गले में रुद्राक्ष की बड़ी-सी माला पहन कर उन्हें निराश नहीं किया। जैसा कि लगता है, यह सुनिश्चित करने के लिए कि हर कोई उस पर ध्यान दे, प्रियंका ने उसे अपनी कमीज के ऊपर पहना। अभी भी छोटी संख्या में कांग्रेसी किसी समय की महान तथा सर्वशक्तिमान पार्टी के अवशेषों से चिपके हुए हैं, इस आशा में कि प्रियंका इंदिरा की तरह सत्ता के रास्ते में आने वाले सभी विरोधियों अथवा शत्रुओं का नाश कर दे। 

उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से कुछ कटु टिप्पणियों के अलावा किसी भी वरिष्ठ भाजपा नेता ने वाड्रा के एक ऐसे राज्य में कांग्रेस को फिर से प्रासंगिक बनाने के प्रयासों पर ध्यान नहीं दिया जो 80 के दशक के मध्य तक इसका गढ़ था। अपने तौर पर कांग्रेस को बहुत अधिक सीटें जीतने की आशा नहीं हो सकती लेकिन हाई प्रोफाइल मीडिया प्रचार की बदौलत पार्टी विरोधी विपक्षी दलों की संभावनाओं को नुक्सान पहुंचा सकती है। 

योगी के फिर से सत्ता में वापसी करने के विश्वास के पीछे कारण यह है कि राज्य में बहु-कोणीय स्पर्धा निश्चित है। भाजपा के खिलाफ तीन मुख्य चुनौतीदाताओं में से एक भी दूसरे के साथ सांझेदारी करने का इच्छुक नहीं है सिवाय संभावित सांझेदारी के लिए अपनी अनुकूल शर्तों के। अखिलेश यादव तथा मायावती के बीच गठबंधन की संभावना को पूरी तरह से खारिज किया जा सकता है। जमीनी स्तर पर सामाजिक-आर्थिक कारक दोनों पाॢटयों के केंद्रीय मतदाताओं के बीच गठजोड़ को रोकते हैं। समाजवादियों के साथ सांझेदारी की कड़वी यादें अभी भी मायावती को बेचैन करती हैं। 

हालांकि पूरे विपक्षी खेमे में मोदी विरोधी तथा योगी विरोधी भावनाओं की तीव्रता को देखते हुए चुनावों से पहले विपक्षी दलों के बीच एक मतलब की समझ से इंकार नहीं किया जा सकता। तब तक सभी पाॢटयां विभिन्न जातियों तथा धार्मिक समूहों को जहां तक संभव हो सके लुभाने का प्रयास करती रहेंगी। उत्तर प्रदेश में सिख भाजपा के खिलाफ वोट डालने को दृढ़ निश्चयी हैं। उनकी प्राथमिकता कांग्रेस को वोट देना होगी यदि पार्टी के पास भाजपा को पराजित करने का कोई ताॢकक अवसर हो। इसमें असफल रहने पर वे सपा को वोट देंगे जबकि बसपा तीसरी प्राथमिकता होगी। दुर्भाग्य से तीन प्रतिशत से भी कम वोट होने के कारण वे शायद ही भाजपा को बहुत अधिक नुक्सान पहुंचा सकें। 

प्रियंका वाड्रा का लखीमपुर खीरी दौरा एक बड़े उद्देश्य से था। यह ब्राह्मण वोटों को वापस कांग्रेस की ओर आकॢषत करने के लिए था जो काफी हद तक भाजपा की ओर स्थानांतरित हो गए हैं। इन रिपोर्ट्स के चलते कि योगी शासन के अंतर्गत ठाकुरों के प्रभुत्व के कारण ब्राह्मणों में असंतोष है, सभी तीन विपक्षी समूह 8 प्रतिशत से अधिक ब्राह्मण वोटों को आकर्षित करने का बेताबी से प्रयास कर रहे हैं। हालांकि बसपा के ब्राह्मण चेहरे सतीश कुमार मिश्रा ने समुदाय को लुभाने के लिए कुछ ब्राह्मण सभाओं का आयोजन किया है जबकि सपा भी समुदाय के रुख को नर्म करने की तैयारी में है, सुश्री वाड्रा ने खुलकर ब्राह्मणों के समर्थन का दावा किया है।  इसके समर्थन में उन्होंने अपने माथे पर सिंदूर लगाया। अब रुद्राक्ष की माला पहनी। जबकि इससे पहले राहुल ने अपनी कमीज के ऊपर जनेऊ पहना तथा ङ्क्षहदुओं के पवित्र स्थलों के दौरे किए हैं। 

दुर्भाग्य से राहुल तथा प्रियंका के कांग्रेस को इसके मूल रूप में पुनर्जीवित करने के प्रयासों के फल देने की संभावना नहीं है। मूल कांग्रेस का लगभग 25 प्रतिशत मुसलमानों, दलितों तथा ब्राह्मणों के बीच मजबूत आधार था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मुसलमानों ने पूरी तरह से कांग्रेस को छोड़ दिया। दलित, विशेषकर मायावती के जाति भाई, जाटव बसपा में चले गए जबकि वाल्मीकियों ने भाजपा के प्रति अपनी वफादारी जताई। अत: कांग्रेस ने वास्तव में अपना मूल आधार खो दिया है। 

यहां यह उल्लेखनीय है कि जहां वे खुलकर अपने ङ्क्षहदू होने का प्रचार कर रहे हैं, गांधी भाई-बहन मुसलमानों के भाजपा के खिलाफ होने को देखते हुए उन्हें लुभाने का प्रयास नहीं कर रहे। मुसलमानों के व्यथित होने का कारण है, क्योंकि उनके मोदी तथा योगी विरोधी होने के बावजूद कोई भी विपक्षी दल खुलकर इस डर से उनका समर्थन नहीं लेना चाहता कि  ङ्क्षहदू मतदाता अलग-थलग हो जाएंगे। कुल मिलाकर उत्तर प्रदेश में प्रियंका वाड्रा का अभियान असफल होता दिखाई देता है-सीधी बातें वरिंद्र कपूर     
 

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