क्या वाड्रा मामला कांग्रेस के लिए ‘राजनीतिक गेमचेंजर’ सिद्ध होगा

Edited By ,Updated: 12 Feb, 2019 04:16 AM

will vadra case prove to be a  political game changer  for congress

यह दो दामादों फिरोज गांधी और राबर्ट वाड्रा की कहानी है। फिरोज गांधी अपने ससुर एवं भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के प्रबल प्रतिद्वंद्वी थे तो दूसरे वाड्रा नेहरू के पड़पोते-पड़पोती और फिरोज के पोते-पोती कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, जो उनके...

यह दो दामादों फिरोज गांधी और राबर्ट वाड्रा की कहानी है। फिरोज गांधी अपने ससुर एवं भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के प्रबल प्रतिद्वंद्वी थे तो दूसरे वाड्रा नेहरू के पड़पोते-पड़पोती और फिरोज के पोते-पोती कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी, जो उनके साले हैं और उनकी बहन प्रियंका वाड्रा की कमजोरी साबित हो रहे हैं। जहां गांधी ने स्वतंत्र भारत की पहली कांग्रेस सरकार में भ्रष्टाचार का पर्दाफाश किया था तो वहीं दूसरी ओर वाड्रा कथित रिश्वत कांडों के केन्द्र बन गए हैं। फिरोज ने नेहरू की पुत्री और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से 1942 में विवाह किया था और उन्हें अपने ससुर की सरकार में बेईमानी का पर्दाफाश करने के लिए याद किया जाता है। 

फिरोज 1952 में संसद के लिए चुने गए थे और 1957 में उन्होंने मुंद्रा मामले का पर्दाफाश किया था जिसके अंतर्गत एल.आई.सी. में एक उद्योगपति की कम्पनी ने धोखाधड़ी से 1.24 करोड़ रुपए का निवेश किया था जिसके चलते तत्कालीन वित्त मंत्री टी.टी. कृष्णामाचारी को त्यागपत्र देना पड़ा था और नेहरू को परेशानी झेलनी पड़ी थी। 1956 में रामकृष्ण डालमिया की बीमा कम्पनी द्वारा धोखाधड़ी के मामले में डालमिया को जेल पहुंचाने में भी फिरोज की बड़ी भूमिका रही।

डी.एल.एफ. भूमि सौदा
फिरोज के विपरीत राबर्ट वाड्रा मुरादाबाद का एक साधारण लड़का था जिनका कास्ट्यूम की ज्वैलरी निर्यात का छोटा-सा व्यवसाय था और वह तब तक सुॢखयों में नहीं आए थे जब तक कि 1997 में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया की पुत्री तथा राहुल की बहन प्रियंका से शादी नहीं की और उसके बाद उनके साथ विवाद जुडऩे लग गए। इंडिया अगेंस्ट करप्शन के संस्थापक अरविंद केजरीवाल ने 2012 में उनके कई काले कारनामों का पर्दाफाश किया। उन्होंने देश और कांग्रेस के प्रथम जंवाई राजा पर भारत की सबसे बड़ी रियल्टी फर्म डी.एल.एफ. से पैसा प्राप्त करने का आरोप लगाया और वाड्रा से पूछा कि जब 2007 में उनकी सम्पत्ति 50 लाख थी तो 2012 तक यह 300 करोड़ रुपए कैसे पहुंची।  वाड्रा और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हुड्डा गुडग़ांव में डी.एल.एफ. के भूमि सौदे में आरोपी हैं। उनके विरुद्ध एक प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गई जिसमें दावा किया गया कि स्काईलाइट हास्पिटैलिटी ने गुडग़ांव के सैक्टर 83 में 350 एकड़ का प्लाट खरीदा और लाइसैंस प्राप्त करने के बाद उसे व्यावसायिक प्लाट बनाया और भारी मुनाफा कमाया। 

मामला तब और उलझा जब प्रवर्तन निदेशालय ने वाड्रा पर मनी लांङ्क्षड्रग का आरोप लगाया और कहा कि उनके कथित रूप से लंदन में 2 बड़े बंगले और 6 फ्लैट हैं जिन्हें 2005-10 के बीच यू.पी.ए. सरकार के दौरान रक्षा और पैट्रोलियम सौदों में रिश्वत के पैसे से खरीदा गया है। वाड्रा के विरुद्ध राजस्थान के बीकानेर में 275 बीघा जमीन खरीदने के मामले में भी जांच चल रही है। यह जमीन उन्होंने अपनी कम्पनी स्काईलाइट हास्पिटैलिटी के माध्यम से नियमों का उल्लंघन कर खरीदी। प्रवर्तन निदेशालय ने इस मामले में भी केस दर्ज किया, जब 2015 में राजस्थान पुलिस ने भूमि आबंटन में धोखाधड़ी का आरोप पत्र दायर किया था। अब प्रियंका गांधी कांग्रेस की महासचिव के रूप में राजनीति में प्रवेश कर रही हैं तो वाड्रा के सौदों को हवा दी जा रही है। निश्चित रूप से वाड्रा के सिर पर कानून की तलवार लटक रही है। प्रवर्तन निदेशालय ने पिछले सप्ताह वाड्रा से 15 घंटे तक पूछताछ की जो उनके हथियारों के सौदागर से संबंध और मनी लांङ्क्षड्रग के मामलों में की गई। 

डूब सकती है कांग्रेस की नैया
यदि प्रियंका और कांग्रेस समझती है कि वे राजनीतिक दृष्टि से इसका लाभ उठा सकती हैं तो वे गलतफहमी में हैं क्योंकि प्रवर्तन निदेशालय द्वारा पूछताछ के बाद कोई हो-हल्ला नहीं मचा हालांकि इस मामले में कांग्रेस और प्रियंका बचाव की मुद्रा में नहीं हैं बल्कि वे भाजपा पर राजनीतिक विद्वेष का आरोप लगा रही हैं। हालांकि कांग्रेस ने अब अपना पहले का रुख बदल दिया है कि वाड्रा एक प्राइवेट नागरिक हैं। कांग्रेस बड़ी दुविधा में है कि यदि वह वाड्रा को भाजपा के राजनीतिक बदले के रूप में प्रस्तुत करती है तो उसका यह जुआ विफल हो सकता है क्योंकि जनता की निगाहों में वह गांधी-कांग्रेस परिवार से नहीं है। इसके साथ ही भाजपा यदि उन्हें कांग्रेस के भ्रष्टाचार के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत कर पाती है तो इससे कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में और नुक्सान होगा। ऐसे नाजुक समय में वाड्रा के कारनामे कांग्रेस की नैया डुबो सकते हैं। 

वर्तमान में भाजपा और कांग्रेस दोनों अपने विकल्प तलाश रही हैं। भाजपा का मानना है कि प्रियंका की नियुक्ति से वाड्रा के भ्रष्टाचार घोटाले केन्द्र बिन्दु बन गए हैं जिससे पार्टी को लाभ हो सकता है किंतु कुछ लोगों का मानना है कि यदि इस मामले में सावधानी से कदम नहीं उठाया गया तो यह उलटा पड़ सकता है और कुछ का मानना है कि इस मामले में ओर्मेता कोड लागू किया जाना चाहिए और प्रवर्तन एजैंसियों को कार्रवाई करने दी जानी चाहिए। कुछ लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि मोदी सरकार वाड्रा के विरुद्ध पहले कार्रवाई क्यों नहीं कर पाई, वहीं वरिष्ठ कांग्रेसी नेता इस बात से चिंतित हैं कि क्या वाड्रा को पृष्ठभूमि में रहना चाहिए या सार्वजनिक बयान देना शुरू कर देना चाहिए। वाड्रा अतीत में भी चुनाव लडऩे की अपनी राजनीतिक मंशा जाहिर कर चुके हैं और अब यह कुछ समय की बात है कि भारत के सर्वाधिक विवादास्पद रीयल्टर राजनीति में पर्दापण कर लेंगे किंतु सत्ता के खेल में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा। 

प्रियंका के चुनावी मंसूबों पर असर
आगामी चुनावों के लिए युद्ध रेखाएं खिंच गई हैं और देखना यह है कि वाड्रा घोटाला किस तरह कांग्रेस और प्रियंका के चुनावी मंसूबों पर प्रभाव डालता है, यदि प्रियंका रायबरेली या नमो के विरुद्ध चुनाव लडऩे का निर्णय करती हैं तो। कुछ लोग मानते हैं कि वाड्रा के मुद्दे पर नाहक शोर किया जा रहा है और किसी नए घोटाले के सामने आने के बाद इसे भुला दिया जाएगा, जबकि कुछ लोगों का मानना है कि कांग्रेस ने अपने लिए मुसीबत खड़ी कर दी है और अब इसके नेता प्रतिस्पर्धा करने की बजाय वाड्रा को बचाने में लगेंगे इसलिए वाड्रा को अपना बचाव स्वयं करने दिया जाना चाहिए। 

विचारणीय मुद्दा केवल यह नहीं है कि वाड्रा ने कोई गलत काम किया है अपितु इससे तीन महत्वपूर्ण मुद्दे सामने आए हैं। पहला, यदि वाड्रा प्राइवेट नागरिक हैं तो फिर कांग्रेस उनका बचाव क्यों कर रही है? दूसरा, क्या इसका कारण यह है कि इससे गांधी परिवार के रहस्यों का भानुमति का पिटारा खुल सकता है? तीसरा, क्या इससे हमारे सम्माननीय नेताओं के बीच पालन किए जा रहे प्रतिद्वंद्वियों के परिवारों के कारनामों को न उछालने के अलिखित नियम का पर्दाफाश हो जाएगा? भाजपा भी अपने नेताओं के भ्रष्टाचार के मामलों तथा दूसरे दलों से भाजपा में आए नेताओं के कारनामों पर चुप है। हाल ही में पश्चिम बंगाल में शारदा घोटाले के आरोपी भाजपा में शामिल हुए हैं और संघ ने उन्हें क्लीन चिट दी है। क्या  हमारे राजनेता पारस्परिक विनाश के डर से जियो और जीने दो की नीति अपना रहे हैं? आगे क्या होगा? क्या वाड्रा मामला कांग्रेस के लिए राजनीतिक गेम चेंजर होगा? क्या यह ऐसा जुआ होगा जिस पर भाजपा पछताएगी? कुछ लोगों को विश्वास है कि यह मामला पुन: इस बात पर बल देता है कि उच्च पदों में भ्रष्टाचार व्याप्त है।-पूनम आई. कौशिश

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